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लखीसराय में महामना मदनमोहन मालवीय की जयंती मनाई गई, लोगों ने किया याद

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Published : Dec 25, 2022, 10:40 PM IST

लखीसराय के चानन प्रखंड के मध्य विद्यालय लाखोचक में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के संस्थापक (Founder of Kashi Hindu University Varanasi) महामना मदन मोहन मालवीय की जयंती मनाई गई. इस अवसर पर बच्चों को उनके जीवन के बारे में जानकारी दी गई. पढ़ें पूरी खबर..

लखीसराय में महामना मदनमोहन मालवीय की जयंती मनाई गई
लखीसराय में महामना मदनमोहन मालवीय की जयंती मनाई गई

लखीसरायः बिहार के लखीसराय में महामना मदनमोहन मालवीय की जयंती मनाई (Madan Mohan Malviya birth anniversary celebrated ) गई. चानन प्रखंड के मध्य विद्यालय लाखोचक में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के संस्थापक और भारत रत्न महामना मदनमोहन मालवीय जी की 161वीं जयंती मनाई गई. मदनमोहन मालवीय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन बार अध्यक्ष रहे चुके थे. संस्कृत शिक्षक पीयूष कुमार झा की देखरेख में आयोजित जयंती कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाध्यापक आनंद कुमार ने किया.

ये भी पढ़ेंःचाणक्य परिषद की ओर से मालवीय और वाजपेयी जी की जयंती का आयोजन, लोगों ने दी श्रद्धांजलि

बच्चों को दी गई जानकारीः इस अवसर पर सबसे पहले मालवीय जी के तैल चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर नमन किया गया. इस अवसर पर छात्रों को संबोधित करते हुए संस्कृत शिक्षक पीयूष कुमार झा ने कहा कि महामना मदनमोहन मालवीय जी का व्यक्तित्व काफी अद्वितीय था. एक निर्धन परिवार में जन्म लेने के बावजूद मालवीय जी ने सबों के कल्याण के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना ऐसे समय में की, जब देश में अंग्रेजों के द्वारा जबरन ईसाइयत को थोपने का काम किया जा रहा था.

काशी विद्यापीठ के संस्थापक थे महामनाः पीयूष कुमार झा ने कहा कि मालवीय जी ने देश की आजादी में अपना योगदान दिया. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ये तीन बार अध्यक्ष रहे. इनके जन्मदिन के अवसर पर छात्रों को अपने विद्यालय का वार्षिकोत्सव फरवरी माह में आयोजित करने का निर्णय लिया गया. इस अवसर पर शिक्षक महेश कुमार, दिलीप कुमार सहित बाल संसद व मीना मंच के सभी सदस्य उपस्थित थे. 25 दिसंबर 1861 को जन्मे मदन मोहन मालवीय ने शिक्षा पर सर्वाधिक जोर दिया. काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना समेत प्रयागराज में लाइब्रेरी और हिंदी साहित्य सम्मेलन की शुरुआत भी महामना के प्रयासों से हुई. 12 नवंबर 1946 को वाराणसी में उनका निधन हुआ.

"महामना मदनमोहन मालवीय जी का व्यक्तित्व काफी अद्वितीय था. एक निर्धन परिवार में जन्म लेने के बावजूद मालवीय जी ने सबों के कल्याण के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना ऐसे समय में की, जब देश में अंग्रेजों के द्वारा जबरन ईसाइयत को थोपने का काम किया जा रहा था" - पीयूष कुमार झा, शिक्षक

वकील के रूप में महामनाःभारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय ने साल 1893 में कानून की परीक्षा पास कर वकालत के क्षेत्र में कदम रखा था. उनकी सबसे बड़ी सफलता चौरी चौरा कांड के अभियुक्तों को फांसी की सजा से बचाने को माना जाता है. चौरी-चौरा कांड में 170 भारतीयों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. लेकिन मालवीय जी के बुद्धि कौशल ने अपनी योग्यता और तर्क के बल पर 152 लोगों को फांसी की सजा से बचा लिया था.

महामना का सियासी कदः सरदार वल्लभ भाई पटेल की तरह ही मदन मोहन मालवीय भी भारतीय राष्ट्र कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से एक थे. वो चार बार यानी 1909,1918,1932 और 1933 कांग्रेस पार्टी के सर्वोच्च पद पर आसीन रहे. बताते चलें कि 1886 में कोलकाता में हुए कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में मदन मोहन मालवीय ने ऐसा प्रेरक भाषण दिया कि वो सियासी मंच पर छा गए. उन्होंने लगभग 50 साल तक कांग्रेस की सेवा की. मालवीय जी ने 1937 में सक्रिय सियासत को अलविदा कहने के बाद अपना पूरा ध्यान सामाजिक मुद्दे पर केंद्रित किया.

लखीसरायः बिहार के लखीसराय में महामना मदनमोहन मालवीय की जयंती मनाई (Madan Mohan Malviya birth anniversary celebrated ) गई. चानन प्रखंड के मध्य विद्यालय लाखोचक में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के संस्थापक और भारत रत्न महामना मदनमोहन मालवीय जी की 161वीं जयंती मनाई गई. मदनमोहन मालवीय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन बार अध्यक्ष रहे चुके थे. संस्कृत शिक्षक पीयूष कुमार झा की देखरेख में आयोजित जयंती कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाध्यापक आनंद कुमार ने किया.

ये भी पढ़ेंःचाणक्य परिषद की ओर से मालवीय और वाजपेयी जी की जयंती का आयोजन, लोगों ने दी श्रद्धांजलि

बच्चों को दी गई जानकारीः इस अवसर पर सबसे पहले मालवीय जी के तैल चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर नमन किया गया. इस अवसर पर छात्रों को संबोधित करते हुए संस्कृत शिक्षक पीयूष कुमार झा ने कहा कि महामना मदनमोहन मालवीय जी का व्यक्तित्व काफी अद्वितीय था. एक निर्धन परिवार में जन्म लेने के बावजूद मालवीय जी ने सबों के कल्याण के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना ऐसे समय में की, जब देश में अंग्रेजों के द्वारा जबरन ईसाइयत को थोपने का काम किया जा रहा था.

काशी विद्यापीठ के संस्थापक थे महामनाः पीयूष कुमार झा ने कहा कि मालवीय जी ने देश की आजादी में अपना योगदान दिया. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ये तीन बार अध्यक्ष रहे. इनके जन्मदिन के अवसर पर छात्रों को अपने विद्यालय का वार्षिकोत्सव फरवरी माह में आयोजित करने का निर्णय लिया गया. इस अवसर पर शिक्षक महेश कुमार, दिलीप कुमार सहित बाल संसद व मीना मंच के सभी सदस्य उपस्थित थे. 25 दिसंबर 1861 को जन्मे मदन मोहन मालवीय ने शिक्षा पर सर्वाधिक जोर दिया. काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना समेत प्रयागराज में लाइब्रेरी और हिंदी साहित्य सम्मेलन की शुरुआत भी महामना के प्रयासों से हुई. 12 नवंबर 1946 को वाराणसी में उनका निधन हुआ.

"महामना मदनमोहन मालवीय जी का व्यक्तित्व काफी अद्वितीय था. एक निर्धन परिवार में जन्म लेने के बावजूद मालवीय जी ने सबों के कल्याण के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना ऐसे समय में की, जब देश में अंग्रेजों के द्वारा जबरन ईसाइयत को थोपने का काम किया जा रहा था" - पीयूष कुमार झा, शिक्षक

वकील के रूप में महामनाःभारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय ने साल 1893 में कानून की परीक्षा पास कर वकालत के क्षेत्र में कदम रखा था. उनकी सबसे बड़ी सफलता चौरी चौरा कांड के अभियुक्तों को फांसी की सजा से बचाने को माना जाता है. चौरी-चौरा कांड में 170 भारतीयों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. लेकिन मालवीय जी के बुद्धि कौशल ने अपनी योग्यता और तर्क के बल पर 152 लोगों को फांसी की सजा से बचा लिया था.

महामना का सियासी कदः सरदार वल्लभ भाई पटेल की तरह ही मदन मोहन मालवीय भी भारतीय राष्ट्र कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से एक थे. वो चार बार यानी 1909,1918,1932 और 1933 कांग्रेस पार्टी के सर्वोच्च पद पर आसीन रहे. बताते चलें कि 1886 में कोलकाता में हुए कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में मदन मोहन मालवीय ने ऐसा प्रेरक भाषण दिया कि वो सियासी मंच पर छा गए. उन्होंने लगभग 50 साल तक कांग्रेस की सेवा की. मालवीय जी ने 1937 में सक्रिय सियासत को अलविदा कहने के बाद अपना पूरा ध्यान सामाजिक मुद्दे पर केंद्रित किया.

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