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किशनगंज में डॉल्फिन का नजारा, शाम होते ही नदी किनारे जुटने लगती है भीड़

राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन को लेकर जिले की नदियों में सर्वे करवाया गया था. इस दौरान किशनगंज जिले में 14 डॉल्फिन देखी गई है.

राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फ़िन
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Published : Jul 9, 2019, 12:29 PM IST

किशनगंजः बिहार की गंगा नदी के बाद सीमावर्ती किशनगंज की महानंदा नदी में सबसे ज्यादा राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन देखी जा रही है. पूरे बिहार में पहली बार सबसे ज्यादा डॉल्फिन गंगा के बाद किशनगंज के महानंदा नदी में मिली है. किशनगंज में महानंदा और उसकी सहयोगी नदियों में 14 से ज्यादा डॉल्फिन है. आजकल डॉल्फिन को देखने लिए लोगों की भीड़ शाम होते ही नदी किनारे जुटने लगी है.

डॉल्फिन को बचाने के लिए जागरुकता अभियान
दरअसल, विलुप्त प्राय डॉल्फिन को बचाने के लिए किशनगंज वन विभाग नदी के किनारे बसे ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार और लोगों के बीच जागरुकता अभियान भी चला रहा है. ताकि कम पानी में डॉल्फिन अगर फंस जाए तो ग्रामीण या मछुआरे उन्हें शिकार ना कर उनकी सूचना वन विभाग को दें. अब तक किशनगंज जिले में कम पानी के कारण तीन बार डॉल्फिन को रेस्क्यू कर गहरे पानी में छोड़ा गया है.

किशनगंज में राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फ़िन

किशनगंज की महानंदा नदी में 14 डॉल्फिन
किशनगंज वन विभाग के रेंजर यू.एन. दुबे ने बताया कि डॉल्फिन को लेकर जिले की नदियों में सर्वे करवाया गया था. इस दौरान किशनगंज जिले में 14 डॉल्फिन देखी गई है. वन विभाग ने भागलपुर के टीएमबीयू के पीजी बॉटनी विभाग स्थित विक्रमशिला जैव विविधता शिक्षा एवं शोध केंद्र ने जिले की महानंदा और उनके सहायक नदी, डंक नदी, कंकई नदी, रतुआ नदी और मेची नदी में सर्वे किया है. इस दौरान नदियों में 7 वयस्क और 7 युवा डॉल्फिन देखी गई. जबकि एक भी शीशु डॉल्फिन नहीं देखी गई.

dolphin
डॉल्फ़िन का रेस्क्यू करती पुलिस

नदियों में प्रदूषण के कारण हो रही विलुप्त
यू.एन.दुबे ने ये भी बताया कि ये सर्वे जिले में एक महीना चलाया गया. उन्होंने बताया की यदि ये सर्वे जुलाई से फरवरी के बीच होता तो परिणाम और अच्छा होता. वहीं सर्वे टीम ने बिहार सरकार से अनुशंसा की है कि 15 अक्टूबर से फरवरी के बीच ये सर्वे दोबारा कराई जाए. ताकि डॉल्फिन की सही आबादी का पता चल पाए. विशेषज्ञों का मानना है गंगा और अन्य सहयोगी नदियों में प्रदूषण, जलस्तर में कमी, शिल्ट का जमाव और अवैध शिकार ने डॉल्फिन को दुर्लभ और विलुप्तप्राय बना दिया है.

mahananda river
महानंदा नदी

साल 2009 में राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित
बिहार में डॉल्फिन संकटग्रस्त जीव है. जिसके संरक्षण के लिए बिहार सरकार और केंद्र सरकार दोनों ही प्रयासरत हैं. 5 अक्टूबर 2009 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में नेशनल गंगा रिवर ऑथोरिटी (NGRBA) की बैठक हुई थी. इस पहली बैठक में ही डॉल्फिन को संरक्षण प्रदान करने के लिए सरकार ने इसे राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था.

डॉल्फिन के देखने जुटती है भीड़
मालूम हो कि डॉल्फिन का लोकप्रिय नाम सोंस है. जो किशनगंज की महानंदा और डोंक नदी के पानी में गुलाटी मारते कभी-कभी देखी जाती है. लेकिन घंटों नदी किनारे इंतजार करने के बाद आपकी खुशकिस्मती होगी जो आप डॉल्फिन को देख पाएं. आजकल डॉल्फिन को देखने लिए लोगों की भीड़ शाम होते ही नदी किनारे जुटने लगी है. भारत के अलावा फ्रेशवाटर डॉल्फिन चीन के यांग्जी नदी में, दक्षिण अमेरिका के अमेजन नदी में, और पाकिस्तान के सिंधु नदी में देखे जा सकते हैं.

बन सकती है किशनगंज की पहचान
भारतीय नस्ल का डॉल्फिन बांग्लादेश और नेपाल में भी थोड़ी संख्या में मौजूद है. वहीं किशनगंज में बहने वाली गंगा की सहयोगी नदी होने के कारण महानंदा में काफी संख्या में डॉल्फिन देखी जा रही है. सरकार को ऐसा प्रयास करना चाहिए कि किशनगंज में विलुप्तप्राय डॉल्फिन को सुरक्षित स्थान देश में मिल सके. साथ ही डॉल्फिन को लेकर किशनगंज की एक नई पहचान बन सके.

किशनगंजः बिहार की गंगा नदी के बाद सीमावर्ती किशनगंज की महानंदा नदी में सबसे ज्यादा राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन देखी जा रही है. पूरे बिहार में पहली बार सबसे ज्यादा डॉल्फिन गंगा के बाद किशनगंज के महानंदा नदी में मिली है. किशनगंज में महानंदा और उसकी सहयोगी नदियों में 14 से ज्यादा डॉल्फिन है. आजकल डॉल्फिन को देखने लिए लोगों की भीड़ शाम होते ही नदी किनारे जुटने लगी है.

डॉल्फिन को बचाने के लिए जागरुकता अभियान
दरअसल, विलुप्त प्राय डॉल्फिन को बचाने के लिए किशनगंज वन विभाग नदी के किनारे बसे ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार और लोगों के बीच जागरुकता अभियान भी चला रहा है. ताकि कम पानी में डॉल्फिन अगर फंस जाए तो ग्रामीण या मछुआरे उन्हें शिकार ना कर उनकी सूचना वन विभाग को दें. अब तक किशनगंज जिले में कम पानी के कारण तीन बार डॉल्फिन को रेस्क्यू कर गहरे पानी में छोड़ा गया है.

किशनगंज में राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फ़िन

किशनगंज की महानंदा नदी में 14 डॉल्फिन
किशनगंज वन विभाग के रेंजर यू.एन. दुबे ने बताया कि डॉल्फिन को लेकर जिले की नदियों में सर्वे करवाया गया था. इस दौरान किशनगंज जिले में 14 डॉल्फिन देखी गई है. वन विभाग ने भागलपुर के टीएमबीयू के पीजी बॉटनी विभाग स्थित विक्रमशिला जैव विविधता शिक्षा एवं शोध केंद्र ने जिले की महानंदा और उनके सहायक नदी, डंक नदी, कंकई नदी, रतुआ नदी और मेची नदी में सर्वे किया है. इस दौरान नदियों में 7 वयस्क और 7 युवा डॉल्फिन देखी गई. जबकि एक भी शीशु डॉल्फिन नहीं देखी गई.

dolphin
डॉल्फ़िन का रेस्क्यू करती पुलिस

नदियों में प्रदूषण के कारण हो रही विलुप्त
यू.एन.दुबे ने ये भी बताया कि ये सर्वे जिले में एक महीना चलाया गया. उन्होंने बताया की यदि ये सर्वे जुलाई से फरवरी के बीच होता तो परिणाम और अच्छा होता. वहीं सर्वे टीम ने बिहार सरकार से अनुशंसा की है कि 15 अक्टूबर से फरवरी के बीच ये सर्वे दोबारा कराई जाए. ताकि डॉल्फिन की सही आबादी का पता चल पाए. विशेषज्ञों का मानना है गंगा और अन्य सहयोगी नदियों में प्रदूषण, जलस्तर में कमी, शिल्ट का जमाव और अवैध शिकार ने डॉल्फिन को दुर्लभ और विलुप्तप्राय बना दिया है.

mahananda river
महानंदा नदी

साल 2009 में राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित
बिहार में डॉल्फिन संकटग्रस्त जीव है. जिसके संरक्षण के लिए बिहार सरकार और केंद्र सरकार दोनों ही प्रयासरत हैं. 5 अक्टूबर 2009 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में नेशनल गंगा रिवर ऑथोरिटी (NGRBA) की बैठक हुई थी. इस पहली बैठक में ही डॉल्फिन को संरक्षण प्रदान करने के लिए सरकार ने इसे राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था.

डॉल्फिन के देखने जुटती है भीड़
मालूम हो कि डॉल्फिन का लोकप्रिय नाम सोंस है. जो किशनगंज की महानंदा और डोंक नदी के पानी में गुलाटी मारते कभी-कभी देखी जाती है. लेकिन घंटों नदी किनारे इंतजार करने के बाद आपकी खुशकिस्मती होगी जो आप डॉल्फिन को देख पाएं. आजकल डॉल्फिन को देखने लिए लोगों की भीड़ शाम होते ही नदी किनारे जुटने लगी है. भारत के अलावा फ्रेशवाटर डॉल्फिन चीन के यांग्जी नदी में, दक्षिण अमेरिका के अमेजन नदी में, और पाकिस्तान के सिंधु नदी में देखे जा सकते हैं.

बन सकती है किशनगंज की पहचान
भारतीय नस्ल का डॉल्फिन बांग्लादेश और नेपाल में भी थोड़ी संख्या में मौजूद है. वहीं किशनगंज में बहने वाली गंगा की सहयोगी नदी होने के कारण महानंदा में काफी संख्या में डॉल्फिन देखी जा रही है. सरकार को ऐसा प्रयास करना चाहिए कि किशनगंज में विलुप्तप्राय डॉल्फिन को सुरक्षित स्थान देश में मिल सके. साथ ही डॉल्फिन को लेकर किशनगंज की एक नई पहचान बन सके.

Intro:बिहार के गंगा नदी के बाद सीमावर्ती किशनगंज मे महानंदा नदी में सबसे ज्यादा राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फ़िन देखी जा रही हैं। वहीं पूरे बिहार में पहली बार डॉल्फ़िन गंगा के बाद किशनगंज के महानंदा नदी में मिली है।किशनगंज मे महानंदा और उनके सहयोग नदियों मे 14 से ज्यादा डॉल्फिन है।विलुप्तप्राय डॉल्फ़िन
को बचाने के लिए किशनगंज वन विभाग द्वारा नदी के छोड़ मे बसे ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार प्रसार व लोगों को जागरुकता अभियान भी चला रहे हैं।ताकि कम पानी में डॉल्फ़िन फस जाने पर ग्रामीण या मछुआरे उन्हें शिकार ना कर उनकी सूचना वन विभाग को दे। अबतक किशनगंज जिले में कम पानी के कारण तीन बार डॉल्फ़िन को रेस्क्यू कर गहरी पानी में छोड़ा गया है।

(मेल से दो फोटो व दो वीडियो भेजे हैं)



Body:किशनगंज वन विभाग के रेंजर यु.एन दुबे ने बताया कि डॉल्फ़िन को लेकर जिले के नदियों मे सर्वे करवाया गया था।इस दौरान किशनगंज जिले में 14 डॉल्फ़िन देखी गई हैं।वन विभाग ने भागलपुर के टीएमबीयू के पीजी बॉटनी विभाग स्थित विक्रमशिला जैव विविधता शिक्षा एवं शोध केंद्र ने जिले के महानंदा और उनके सहायक नदी, डंक नदी, कंकई नदी, रतुआ नदी व मेची नदी मे सर्वे किया है।इस दौरान नदियों मे 7 वयस्क व 7 युवा डॉल्फ़िन देखी गई।जबकि एक भी शीशु डॉल्फ़िन नहीं देखा गया। सर्वे टीम के नेतृत्व कर रहे व बॉटनी विभाग के प्रोफेसर सुनील कुमार चौधरी ने वन विभाग को बताया की सर्वे के दौरान स्पष्ट हुआ है की डॉल्फ़िन महानंदा का स्थायी निवासी हैं।मतलब महानंदा नदी डॉल्फ़िन के लिए अनुकूल है।टीम ने जल की गुणवत्ता की भी जांच की है।जिसमें पाया गया की प्रदुषण के दृष्टिकोण से महानंदा सहित उनके सहायक नदियों की स्थिति संतोषजनक है।वहीं ये सर्वे जिले में एक महीना तक चला है।उन्होंने बताया की यदि ये सर्वे जुलाई से फरवरी के बीच होता तो परिणाम और अच्छा होता।वहीं शर्बे टीम ने बिहार सरकार से अनुशंसा की है कि 15 अक्टूबर से फरवरी के बीच ये सर्वे दोबारा कराया जाये। ताकि डॉल्फ़िन की असली आवादी पता चल पाये।

बाइटः यु.एन. दुबे, रेंजर, वन विभाग




Conclusion:वहीं आपको बता दें डोल्फिन का लोकप्रिय नाम सोंस है।जिले के महानंदा व डोंक नदी के पानी में गुलाटी मारते कभी कभी देखा जाता हैं।लेकिन घंटों तक नदी किनारे इंतजार करने के बाद आपके खुशकिस्मती जो आप डॉल्फ़िन को देख पाये।लेकिन आजकल डॉल्फ़िन के कारन लोगों का भीड़ शाम होते ही नदी किनारे होने लगा है।विशेषज्ञों का मानना है गंगा और अन्य सहयोग नदियों में प्रदुषण, जलस्तर मे कमी, शिल्ट का जमाव और अवैध शिकार से डॉल्फ़िन को दुर्लभ और विलुप्तप्राय बना दिया है।बिहार में डॉल्फ़िन संकटग्रस्त जीव है।जिसके संरक्षण के लिए बिहार सरकार व केंद्र सरकार दोनों ही प्रयासरत हैं। 5 अक्टूबर 2009 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में नेशनल गंगा रिवर ऑथोरिटी (NGRBA) की बैठक हुई थी और इसी पहली बैठक में ही डॉल्फ़िन को संरक्षण प्रदान करने के लिए सरकार ने इसे राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था। वहीं गंगा के सहायक नदी किशनगंज से बहने वाली महानंदा व डोंक नदी मे अक्सर थोड़ी सी लबी प्रतीक्षा के बाद डॉल्फ़िन नजर आ जाता हैं।डॉल्फ़िन को थोड़ी थोड़ी देर के बाद सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आना ही पड़ता है। आपको बता दें की समुंद्री डॉल्फिन के अलावा चार जगह पर ताजा पानी या फ्रेशवाटर डॉल्फिन का वजूद है। भारत का गांगेय उनमें से एक है। भारत के अलावा फ्रेशवाटर डॉल्फिन चीन के यांग्जी नदी में, दक्षिण अमेरिका के अमेजन नदी में, और पाकिस्तान के सिंधु नदी में देखे जा सकते हैं। भारतीय नस्ल का डॉल्फिन बांग्लादेश और नेपाल में भी थोड़ी संख्या में मौजूद है।वहीं किशनगंज मे बहने वाली गंगा के सहयोग नदी होने के कारन काफी संख्या में डॉल्फ़िन देखि जा रही। हालांकि आकड़ा 14 से काफी ज्यादा है। जरुरत है बिहार सरकार को किशनगंज मे डॉल्फ़िन के संरक्षण के लिए और प्रयास करें ताकि किशनगंज में विलुप्तप्राय डॉल्फिन को सुरक्षित स्थान देश में मिल सके और डॉल्फिन को लेकर किशनगंज की एक नये पहचान बन सके।
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