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किशनगंज का 33 वां स्थापना दिवस समारोह आज, पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा ने घोषित किया था जिला - etv bharat news

किशनगंज का स्थापना दिवस 14 जनवरी को मनाया जा रहा है. यह जिले का 33वां स्थापना दिवस है. किशनगंज अनुमंण्डल के 145 वर्षो के लंबे जीवन व्यतीत करने के बाद 14 जनवरी 1990 को जिला बनाया गया था. पढे़ं पूरी खबर...

किशनगंज का स्थापना दिवस
किशनगंज का स्थापना दिवस
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Published : Jan 14, 2023, 4:13 PM IST

किशनगंज: बिहार के किशनगंज जिले का आज 33 वां स्थापना दिवस (Foundation day Of Kishanganj) 14 जनवरी को मनाया जा रहा है. शहर के खगड़ा स्थित शहीद अशफाकउल्लाह खां स्टेडियम में सुबह 11 बजे समारोह का उद्घाटन किया गया. इस कार्यक्रम में प्रमंडलीय आयुक्त मनोज कुमार ने उद्घाटन किया. इस मौके पर डीएम श्रीकांत शास्त्री, उप विकास आयुक्त मनन राम, एडीएम अनुज कुमार सहित कई और पदाधिकारी मौजूद थे.

ये भी पढ़ें- 17 से 22 मार्च तक मनेगा जिला स्थापना दिवस, कई कार्यक्रमों का होगा आयोजन

पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र ने जिला घोषित किया: किशनगंज अनुमंडल के 145 वर्षो के लंबे अनुमंंडलीय जीवन व्यतीत करने के बाद 14 जनवरी 1990 को दर्जा दिया गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा ने किशनगंज को अलग जिला घोषित किया था. जिले के तीनों ओर से पश्चिम बंगाल की सीमाओं के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश की सीमाओं से भी सटे रहने से सामरिक दृष्टिकोण से किशनगंज का अपना अलग महत्व है. जिले को पहले आलमगंज के नाम से जाना जाता था. जो पहले पूर्णिया जिले का एक अनुमंडल मात्र था. इसे जिले के रूप में मान्यता मिलने के बाद किशनगंज के रूप में जाना जाने लगा.

कुल 7 प्रखंडों से बना किशनगंज जिला: दरअसल कुल 1884 स्क्वायर किलोमीटर में फैले किशनगंज की जनसंख्या वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 16,90,948 है. जबकि 2022 तक किशनगंज की आबादी लगभग 23 लाख हो चुकी है. जिले में कुल 7 प्रखंड बहादुरगंज, दिघलबैंक, किशनगंज, कोचाधामन, पोठिया, ठाकुरगंज व टेढ़ागाछ बनाये गए है. जबकि एक मात्र अनुमंडल किशनगंज है. जिले में 70 प्रतिशत आबादी मुस्लिम, 29 प्रतिशत हिंदू और मात्र 1 प्रतिशत अन्य धर्म के लोग निवास करते हैं. इसके बावजूद यहां की आपसी भाईचारे की मिसाल विश्व के कोने कोने तक पहुंची है.

सरकारी योजना धरातल पर नहीं: हालांकि अगर साक्षरता दर की बात करें तब यह जिला सूबे के अन्य जिलों से काफी पिछड़ा हुआ है. इसका नतीजा यह है कि जनसंख्या वृद्धि दर और मृत्यु दर भी अन्य जिलों की अपेक्षा काफी अधिक है. जबकि यहां लगातार बढ़ रहे स्त्री और पुरूष की अनुपात भी चिंता का कारण बना हुआ है. वहीं जिले में रोजगार के अवसर के अभाव होने के कारण बड़ी संख्या में लोगों का पलायन हो रहा है. इसके बावजूद यहां सरकारी योजनाओं को जिले में धरातल पर नहीं उतारा गया है.

विकास की बाट जोह रहा किशनगंज: इसके बावजूद भी कृषि प्रधान जिला होने के कारण पलायन को रोकने के लिए किए जा रहे सरकारी प्रयास नाकाम ही साबित हो रहे है. पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार होने के कारण चिकेन नेक के नाम से मशहूर जिले में पयर्टन की अपार संभावनाएं हैं. जिले बनने के बावजूद भी सरकारी उदासीनता के बावजूद भी आज तक इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है. जिले के रमजान नदी और ऐतिहासिक खगड़ा मेला अपना अस्तित्व खोने की कगार पर पहुंच चुका है. वहीं भीम वालिस, कच्चूदह झील, बड़ीजान, बेणुगढ़ आदि ऐतिहासिक स्थल आज भी उद्धारक की बाट जोह रहे हैं. जबकि कई प्रखंड मे चाय की खेती होने से आज पूरे देश मे किशनगंज को टी सिटी के नाम से जाना जाता है.

13 प्रखंडों को किशनगंज से हटाया: ब्रिटिश हुक्मरानों की हुकूमत कायम होने पर किशनगंज को सन् 1845 में ही दर्ज मिल चुका था. यहीं नहीं किशनगंज नगर पालिका का गठन सन् 1868 में ही कर दिया गया था. जबकि जिले की अधिसूचना 1887 में जारी हुई थी. किशनगंज को साल 1956 ई. में पश्चिम बंगाल के सोनापुर से लेकर कर्नदिघी तक विस्तारित किया गया था. जबकि राज्य पुर्नगठन आयोग की अनुशंसा पर सन् 1956 में किशनगंज का 750 वर्गमील काटकर पश्चिम बंगाल को दे दिया गया. इसके फलस्वरूप 13 प्रखंडों वाले किशनगंज का छह प्रखंड पश्चिम बंगाल के हिस्से में चला गया. यहीं कारण है कि किशनगंज पिछडा हुआ इलाका माना जाने लगा. एक बहुत बड़ी व्यापारीक मंडी होता।किशनगंज, बाहादुरगंज, ठाकुरगंज, पोठिया, टेढ़ागाछ, कोचाधामन ओर दिघेलबैक नामक सात प्रखंड वाले इस किशनगंज अनुमंडल के 145 वर्षो के लंबे अनुमंडलीय जीवन व्यतीत करने के बाद 14 जनवरी 1990 को जिला का दर्जा दिया गया.

जिला बनने का इतिहास: बताया जाता है कि इसका एक दिलचस्प इतिहास है. उस वक्त किशनगंज में खगड़ा नवाब, मो फकीरूद्दीन का राज था था. उस मुगलकाल में उस क्षेत्र के एक सन्यासी थे. जिसने किशनंगज की हरी भरी वादियों को देखने के बाद यहां कुछ क्षणों के लिए विश्राम करने का निर्णय लिया था. उस समय इसका नाम आलमगंज शहर के बीचोंबीच बहने वाली नदी का नाम रमजान और शासक का नाम फकरूद्दीन शेख था. हालांकि साधु के शहर से वापस लौटने की जानकारी मिलते ही जब सीमा से लौटने लगे तब वहां के शासक खगड़ा नवाब फकीरूद्दीन को पता लगा. इसके बाद नवाब ने प्रसन्न करने के लिए निमित्त आलमगंज का एक भाग का नामकरण करने के बाद कृष्णागंज कर दिया. इसी कृष्णागंज का तद्भव शब्द रूप आज किशनगंज है.

ये भी पढ़ें- राजगीर में विश्व शांति स्तूप का 52वां स्थापना दिवस, समारोह में शामिल हुए राज्यपाल फागू चौहान

किशनगंज: बिहार के किशनगंज जिले का आज 33 वां स्थापना दिवस (Foundation day Of Kishanganj) 14 जनवरी को मनाया जा रहा है. शहर के खगड़ा स्थित शहीद अशफाकउल्लाह खां स्टेडियम में सुबह 11 बजे समारोह का उद्घाटन किया गया. इस कार्यक्रम में प्रमंडलीय आयुक्त मनोज कुमार ने उद्घाटन किया. इस मौके पर डीएम श्रीकांत शास्त्री, उप विकास आयुक्त मनन राम, एडीएम अनुज कुमार सहित कई और पदाधिकारी मौजूद थे.

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पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र ने जिला घोषित किया: किशनगंज अनुमंडल के 145 वर्षो के लंबे अनुमंंडलीय जीवन व्यतीत करने के बाद 14 जनवरी 1990 को दर्जा दिया गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा ने किशनगंज को अलग जिला घोषित किया था. जिले के तीनों ओर से पश्चिम बंगाल की सीमाओं के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश की सीमाओं से भी सटे रहने से सामरिक दृष्टिकोण से किशनगंज का अपना अलग महत्व है. जिले को पहले आलमगंज के नाम से जाना जाता था. जो पहले पूर्णिया जिले का एक अनुमंडल मात्र था. इसे जिले के रूप में मान्यता मिलने के बाद किशनगंज के रूप में जाना जाने लगा.

कुल 7 प्रखंडों से बना किशनगंज जिला: दरअसल कुल 1884 स्क्वायर किलोमीटर में फैले किशनगंज की जनसंख्या वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 16,90,948 है. जबकि 2022 तक किशनगंज की आबादी लगभग 23 लाख हो चुकी है. जिले में कुल 7 प्रखंड बहादुरगंज, दिघलबैंक, किशनगंज, कोचाधामन, पोठिया, ठाकुरगंज व टेढ़ागाछ बनाये गए है. जबकि एक मात्र अनुमंडल किशनगंज है. जिले में 70 प्रतिशत आबादी मुस्लिम, 29 प्रतिशत हिंदू और मात्र 1 प्रतिशत अन्य धर्म के लोग निवास करते हैं. इसके बावजूद यहां की आपसी भाईचारे की मिसाल विश्व के कोने कोने तक पहुंची है.

सरकारी योजना धरातल पर नहीं: हालांकि अगर साक्षरता दर की बात करें तब यह जिला सूबे के अन्य जिलों से काफी पिछड़ा हुआ है. इसका नतीजा यह है कि जनसंख्या वृद्धि दर और मृत्यु दर भी अन्य जिलों की अपेक्षा काफी अधिक है. जबकि यहां लगातार बढ़ रहे स्त्री और पुरूष की अनुपात भी चिंता का कारण बना हुआ है. वहीं जिले में रोजगार के अवसर के अभाव होने के कारण बड़ी संख्या में लोगों का पलायन हो रहा है. इसके बावजूद यहां सरकारी योजनाओं को जिले में धरातल पर नहीं उतारा गया है.

विकास की बाट जोह रहा किशनगंज: इसके बावजूद भी कृषि प्रधान जिला होने के कारण पलायन को रोकने के लिए किए जा रहे सरकारी प्रयास नाकाम ही साबित हो रहे है. पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार होने के कारण चिकेन नेक के नाम से मशहूर जिले में पयर्टन की अपार संभावनाएं हैं. जिले बनने के बावजूद भी सरकारी उदासीनता के बावजूद भी आज तक इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है. जिले के रमजान नदी और ऐतिहासिक खगड़ा मेला अपना अस्तित्व खोने की कगार पर पहुंच चुका है. वहीं भीम वालिस, कच्चूदह झील, बड़ीजान, बेणुगढ़ आदि ऐतिहासिक स्थल आज भी उद्धारक की बाट जोह रहे हैं. जबकि कई प्रखंड मे चाय की खेती होने से आज पूरे देश मे किशनगंज को टी सिटी के नाम से जाना जाता है.

13 प्रखंडों को किशनगंज से हटाया: ब्रिटिश हुक्मरानों की हुकूमत कायम होने पर किशनगंज को सन् 1845 में ही दर्ज मिल चुका था. यहीं नहीं किशनगंज नगर पालिका का गठन सन् 1868 में ही कर दिया गया था. जबकि जिले की अधिसूचना 1887 में जारी हुई थी. किशनगंज को साल 1956 ई. में पश्चिम बंगाल के सोनापुर से लेकर कर्नदिघी तक विस्तारित किया गया था. जबकि राज्य पुर्नगठन आयोग की अनुशंसा पर सन् 1956 में किशनगंज का 750 वर्गमील काटकर पश्चिम बंगाल को दे दिया गया. इसके फलस्वरूप 13 प्रखंडों वाले किशनगंज का छह प्रखंड पश्चिम बंगाल के हिस्से में चला गया. यहीं कारण है कि किशनगंज पिछडा हुआ इलाका माना जाने लगा. एक बहुत बड़ी व्यापारीक मंडी होता।किशनगंज, बाहादुरगंज, ठाकुरगंज, पोठिया, टेढ़ागाछ, कोचाधामन ओर दिघेलबैक नामक सात प्रखंड वाले इस किशनगंज अनुमंडल के 145 वर्षो के लंबे अनुमंडलीय जीवन व्यतीत करने के बाद 14 जनवरी 1990 को जिला का दर्जा दिया गया.

जिला बनने का इतिहास: बताया जाता है कि इसका एक दिलचस्प इतिहास है. उस वक्त किशनगंज में खगड़ा नवाब, मो फकीरूद्दीन का राज था था. उस मुगलकाल में उस क्षेत्र के एक सन्यासी थे. जिसने किशनंगज की हरी भरी वादियों को देखने के बाद यहां कुछ क्षणों के लिए विश्राम करने का निर्णय लिया था. उस समय इसका नाम आलमगंज शहर के बीचोंबीच बहने वाली नदी का नाम रमजान और शासक का नाम फकरूद्दीन शेख था. हालांकि साधु के शहर से वापस लौटने की जानकारी मिलते ही जब सीमा से लौटने लगे तब वहां के शासक खगड़ा नवाब फकीरूद्दीन को पता लगा. इसके बाद नवाब ने प्रसन्न करने के लिए निमित्त आलमगंज का एक भाग का नामकरण करने के बाद कृष्णागंज कर दिया. इसी कृष्णागंज का तद्भव शब्द रूप आज किशनगंज है.

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