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सामरिक ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी खास है किशनगंज, कहलाता है भारत का 'चिकेन नेक'

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Published : Oct 26, 2020, 1:47 PM IST

किशनगंज विधानसभा में जनता की मूलभूत समस्याएं कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन सकी हैं. इस साल विधानसभा के चुनाव हैं ऐसे में लोग सरकार और जनप्रतिनिधि से सवाल कर रहे हैं.

kishanganj
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किशनगंज: पूर्वोतर भारत से शेष भारत को सड़क और रेल मार्ग से जोड़ने वाला महत्वपूर्ण जिला किशनगंज है. इसका ना सिर्फ सामरिक बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी है. ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तो महाभारत काल में पांडवों का प्रवास काल इन्हीं क्षेत्रों में बीता. जिसके कुछ निशान आज भी जिले के ठाकुरगंज प्रखंड में देखने को मिलते हैं. आज भी किशनगंज में रमजान नदी बहती है, क्योंकि जिले में 69 फीसदी मुसलमान और 31 फीसदी हिंदू निवास करते हैं. लेकिन यहां मंदिर की घंटियों और मस्जिद की अजान में सांप्रदायिक सद्भाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है.

भौगोलिक रूप से देखें तो भारतीय मानचित्र पर यह जिला बिहार राज्य में है. लेकिन महत्व अंतरराष्ट्रीय स्तर का रखता है. जिला एक तरफ से बांग्लादेश तो दूसरी ओर से नेपाल से जुड़ा है. जिले को ‘चिकन नेक’ के नाम से भी जाना जाता है. जिले में 4 विधानसभा क्षेत्र और 7 प्रखंड है और आबादी लगभग 18 लाख की है. जिला राजनीतिक रूप से इतना महत्वपूर्ण रहा कि कई राष्ट्रीय नेताओं ने अपने करियर की शुरुआत यहीं से की.

किशनगंज की आर्थिक महत्ता
आर्थिक आधार जिले का काफी मजबूत है. लेकिन उसके विकास पर कभी ध्यान नहीं दिया गया. जिले में प्लाईवुड, चाय, जूट उद्योग को बढ़ावा देने से राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम कर सकता है. किशनगंज शहरी विधानसभा क्षेत्र की हम बात करें तो यहां नगर परिषद के 34 वार्ड के साथ-साथ किशनगंज प्रखंड के 5 पंचायत और पोठिया प्रखंड को मिलाकर परिसीमन के बाद अलग विधानसभा क्षेत्र बनाया गया है.

मूलभूत सुविधाओं से वंचित है जिला
किशनगंज में व्यापार समस्याओं की बात करें तो गिनती करते थक जाएंगे. हालांकि पूरे देश की समस्या ‘बसपा’ के नाम से जानी जाती है. यानी बिजली, सड़क और पानी की समस्या तो है ही लेकिन रोजगार, पलायन, शिक्षा का निम्न स्तर भी अपने आप में मायने रखता है. किशनगंज विधानसभा में जनता की मूलभूत समस्याएं कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन सकी. कई हिस्सों में हल्की बारिश होने पर जलजमाव की समस्या आम बात है.

बारिश के बाद हाल-बेहाल
हर वर्ष बरसात के बाद कटाव और बाढ़ की समस्या बनी रहती है. जिसके लिए ठोस प्रयास नहीं किए गए हैं. जिले के पोठिया प्रखंड, ठाकुरगंज प्रखंड, दिघलबैंक में बड़े पैमाने पर चाय और अनानास की खेती होती है. लेकिन चाय बागान के बढ़ोतरी के बाद भी मजदूरों का पलायन वस्तु जारी है. यहां की युवक दूसरे प्रदेशों में नौकरी की तलाश में जाने को मजबूर हैं. दूसरी और सबसे बड़ी समस्या है बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ का जो जनसंख्या में प्रति वर्ष 12 फीसदी की बढ़ोतरी कर रहा है.

शिक्षा और किसानों की हालत दयनीय
किशनगंज में शिक्षा का स्तर काफी गिरा हुआ है. उच्च शिक्षा बदहाली पर आंसू बहा रहा है हालांकि अभी सरकार ने यहां अब्दुल कलाम कृषि महाविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की शाखा खोली है. इसके बावजूद हाई स्कूल और महाविद्यालय की कमी के कारण छात्रों को पलायन करना पड़ता है. जिले का पोठिया प्रखंड एशिया का सबसे कम साक्षरता वाला प्रखंड है जो कि सरकार की शिक्षा नीति की पोल खोलता है. किसानों की बात करें तो यहां पर चाय के अलावे धान, केला, जूट, अनानास के साथ-साथ जूट की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. लेकिन बाजार उपलब्ध नहीं होने के कारण किसानों को बिचौलियों का शिकार होना पड़ता है.

किशनगंज: पूर्वोतर भारत से शेष भारत को सड़क और रेल मार्ग से जोड़ने वाला महत्वपूर्ण जिला किशनगंज है. इसका ना सिर्फ सामरिक बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी है. ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तो महाभारत काल में पांडवों का प्रवास काल इन्हीं क्षेत्रों में बीता. जिसके कुछ निशान आज भी जिले के ठाकुरगंज प्रखंड में देखने को मिलते हैं. आज भी किशनगंज में रमजान नदी बहती है, क्योंकि जिले में 69 फीसदी मुसलमान और 31 फीसदी हिंदू निवास करते हैं. लेकिन यहां मंदिर की घंटियों और मस्जिद की अजान में सांप्रदायिक सद्भाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है.

भौगोलिक रूप से देखें तो भारतीय मानचित्र पर यह जिला बिहार राज्य में है. लेकिन महत्व अंतरराष्ट्रीय स्तर का रखता है. जिला एक तरफ से बांग्लादेश तो दूसरी ओर से नेपाल से जुड़ा है. जिले को ‘चिकन नेक’ के नाम से भी जाना जाता है. जिले में 4 विधानसभा क्षेत्र और 7 प्रखंड है और आबादी लगभग 18 लाख की है. जिला राजनीतिक रूप से इतना महत्वपूर्ण रहा कि कई राष्ट्रीय नेताओं ने अपने करियर की शुरुआत यहीं से की.

किशनगंज की आर्थिक महत्ता
आर्थिक आधार जिले का काफी मजबूत है. लेकिन उसके विकास पर कभी ध्यान नहीं दिया गया. जिले में प्लाईवुड, चाय, जूट उद्योग को बढ़ावा देने से राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम कर सकता है. किशनगंज शहरी विधानसभा क्षेत्र की हम बात करें तो यहां नगर परिषद के 34 वार्ड के साथ-साथ किशनगंज प्रखंड के 5 पंचायत और पोठिया प्रखंड को मिलाकर परिसीमन के बाद अलग विधानसभा क्षेत्र बनाया गया है.

मूलभूत सुविधाओं से वंचित है जिला
किशनगंज में व्यापार समस्याओं की बात करें तो गिनती करते थक जाएंगे. हालांकि पूरे देश की समस्या ‘बसपा’ के नाम से जानी जाती है. यानी बिजली, सड़क और पानी की समस्या तो है ही लेकिन रोजगार, पलायन, शिक्षा का निम्न स्तर भी अपने आप में मायने रखता है. किशनगंज विधानसभा में जनता की मूलभूत समस्याएं कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन सकी. कई हिस्सों में हल्की बारिश होने पर जलजमाव की समस्या आम बात है.

बारिश के बाद हाल-बेहाल
हर वर्ष बरसात के बाद कटाव और बाढ़ की समस्या बनी रहती है. जिसके लिए ठोस प्रयास नहीं किए गए हैं. जिले के पोठिया प्रखंड, ठाकुरगंज प्रखंड, दिघलबैंक में बड़े पैमाने पर चाय और अनानास की खेती होती है. लेकिन चाय बागान के बढ़ोतरी के बाद भी मजदूरों का पलायन वस्तु जारी है. यहां की युवक दूसरे प्रदेशों में नौकरी की तलाश में जाने को मजबूर हैं. दूसरी और सबसे बड़ी समस्या है बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ का जो जनसंख्या में प्रति वर्ष 12 फीसदी की बढ़ोतरी कर रहा है.

शिक्षा और किसानों की हालत दयनीय
किशनगंज में शिक्षा का स्तर काफी गिरा हुआ है. उच्च शिक्षा बदहाली पर आंसू बहा रहा है हालांकि अभी सरकार ने यहां अब्दुल कलाम कृषि महाविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की शाखा खोली है. इसके बावजूद हाई स्कूल और महाविद्यालय की कमी के कारण छात्रों को पलायन करना पड़ता है. जिले का पोठिया प्रखंड एशिया का सबसे कम साक्षरता वाला प्रखंड है जो कि सरकार की शिक्षा नीति की पोल खोलता है. किसानों की बात करें तो यहां पर चाय के अलावे धान, केला, जूट, अनानास के साथ-साथ जूट की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. लेकिन बाजार उपलब्ध नहीं होने के कारण किसानों को बिचौलियों का शिकार होना पड़ता है.

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