किशनगंज: शहर के प्राचीन और प्रसिद्ध 116 वर्ष पुराना बड़ी कोठी दुर्गा मंदिर में भक्तों की अटूट आस्था है. किशनगंज में सबसे पहले ब्रिटिश जमाने में सन् 1903 में बड़ीकोठी दुर्गा मंदिर में पुजा की शुरुआत की गई थी. इस प्राचीन मंदिर में शारदीय नवरात्र में विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इसके अलावा मंदिर में प्रतिदिन सुबह-शाम मां की पूजा और आरती निरंतर होती है. शारदीय नवरात्र के पहले दिन से ही मां के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है.
मनोकामनाएं होती हैं पूरी
बता दें कि किशनगंज में सबसे पहले ब्रिटिश जमाने में सन् 1903 में बड़ी कोठी दुर्गा मंदिर मे पूजा की शुरुआत की गई थी. यहां आने वाले भक्तों का मानना है कि जो जिस मनोकामना के साथ आता है उसकी वह मनोकामना मां पूरी करती हैं. यहां पूरे विधि-विधान के साथ मां की आराधना की जाती है.
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भक्तों का है अटूट श्रद्धा और विश्वास
श्रद्धालुओं का मानना है कि सच्ची श्रद्धा के साथ मांगी गई हर मुराद मां दुर्गा पूरी करती हैं. जिसके चलते भक्तों का इस मंदिर के प्रति लोगों का अटूट श्रद्धा और विश्वास है. स्थानीय बुजुर्ग ने बताया कि बड़ी कोठी दुर्गा मंदिर शहर का सबसे पुराना और पहला मंदिर है. इस जगह सबसे पहले सार्वजनिक रूप से दुर्गा पूजा की शुरुआत की गई थी. आज यह मंदिर किशनगंज के गौरव के रूप में जाना जाता है.
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एक ही पुरोहित के वंशज कराते हैं पूजा
बता दें कि एक ही पुरोहित के वंशज आज भी इस मंदिर में पूजा कराते है. सन् 1903 में सबसे पहले पुरोहित प्रगास पांडे थे. तब से अब तक उनके ही वंशज इस मंदिर में पुरोहित है. वर्तमान समय में तीसरी पीढ़ी पंडित धन्तोष पांडेय पूजा कराते हैं. जो हर वर्ष शारदीय नवरात्र के मौके पर लगातार नौ दिनों तक वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पूजा अर्चना करते हैं.
प्रतिमा को दिया जाता है एक ही रूप
वहीं इस मंदिर की प्रतिमा को 34 वर्षों से पश्चिम बंगाल के जय पाल बनाते आ रहे हैं. प्रतिमा बनाने का कार्य मंदिर परिसर में ही एक महीने पहले से शुरू कर दिया जाता है. यहां मां की प्रतिमा को हमेशा एक ही रूप दिया जाता है. वहीं इस मंदिर में हर वर्ष पूजा में होने वाले सभी खर्च थिरानी ट्रस्ट करता है.
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मां का होता है विशेष श्रृंगार
इस बड़ी कोठी दुर्गा मंदिर में महालया की पहली पूजा से ही मंदिर में भक्तों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है. लेकिन नवरात्र के अष्टमी और नवमी में मंदिर में पांव रखने तक की जगह नहीं मिलती. अष्टमी और नवमी में देर रात तक मां का विशेष श्रृंगार किया जाता है. उसके बाद सुबह से ही मंदिर में भक्तों का तांता लगना शुरू हो जाता है.
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