किशनगंज: जिले में मां दुर्गा के आगमन की तैयारी जोरों से हो रही है. शुक्रवार यानी षष्ठी की शाम तक सभी पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर दी जायेगी. हालांकि कुछ मंदिरों में महालया के बाद से ही प्रतिमा स्थापित कर दी गई है. वहीं, मां के भक्तों में कुछ ऐसे भी हैं जो उनके आगमन की तैयारी पूरे साल करते हैं. ये भक्त जिले के मूर्ति कारीगर हैं, जो दिन-रात मेहनत कर मूर्ति का निर्माण करते हैं. लेकिन इनके हालात कुछ ऐसे हैं कि भविष्य अंधकार में है.
![condition of sculptors in kishanganj](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/4650323_kishanpic1.jpg)
65 वर्षीय लाइन पारा के मूर्तिकार निमाई पाल अपने कारखाने में मां दुर्गा की विशाल मूर्ति बनाते हैं. उन्होंने बताया कि मूर्तिकार हर मौसम से मूर्ति को बचाते हैं. एलईडी की रोशनी में मां दुर्गा के चेहरे के हर भाव को उभारते हैं. वहीं, महिषासुर की मूर्ति के चेहरे पर क्रोध के साथ-साथ पीड़ा दिखाना आसान काम नहीं है. ऐसे में वो लोग इसे साधना समझकर मूर्ति को वास्तविक रुप देते हैं.
![condition of sculptors in kishanganj](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/4650323_kishanpic.jpg)
'नहीं मिलता है मूर्तियों का वाजिब दाम'
मूर्तिकार निमाई पाल के मुताबिक वो कक्षा पांच से अपने दादा और पिता के जरिए इस कला से जुड़े हुए हैं. यह उनका खानदानी पेशा है. उनके दादा, परदादा सहित कई पीढ़ी इस काम को करते आ रही है. वह करीब 55 वर्षों से मूर्ति बना रहे हैं. हालांकि, इस पुश्तैनी कला को उन्होंने अपने बेटे सिखाने से माना किया है. उनका कहना है कि मंहगाई में मूर्तिकारों का जीना मुश्किल है. मंहगाई के अनुसार, मूर्ति के दामों में इजाफा नहीं हो रहा. यह काम अब घाटे का सौदा है. उन्होंने कहा कि वे किसी तरह अपना पेट पाल रहे हैं. इस वजह से शिल्पकार की इस परंपरा से वह अपनी नई पीढ़ी को जोड़ना नहीं चाहते.
मूर्तियां बनाने में होती है समस्या
मूर्तिकार ने बताया कि एक-डेढ़ दशक पहले जोश और उत्साह के साथ मूर्तियां बनाते थे, लेकिन वर्तमान में उनके उत्साह में काफी कमी आई है. पूर्वजों के समय से उनका यह मुख्य पेशा है, पूरा परिवार इसी काम पर आश्रित है. वह आगे कहते हैं कि वर्तमान में उन्हें मूर्तियां बनाने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
माइनिंग एक्ट के बाद बढ़ी मुश्किलें
मूर्तिकार निमाई पाल ने बताया कि बिहार में माइनिंग एक्ट लागू होने के बाद मिट्टी आसानी से उपलब्ध नहीं होती है. मिट्टी दूरदराज के इलाकों से लानी पड़ती है. वहीं, ढुलाई में अधिक पैसे लग जाते हैं. जबकि प्रतिमा के फिनिशिंग के लिए कपड़ा और ज्वेलरी कोलकाता से लाते हैं, जो काफी महंगे हैं. जिसके कारण खर्च में बढ़ोतरी हो गई है. इसके बावजूद मूर्ति की सही कीमत उन्हें नहीं मिलती.
सरकार है उदासीन
मूर्तिकार अपनी बदहाली का कारण सरकार को भी मानते हैं. उनका कहना हैं कि सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती. ऐसे में राज्य से धीरे-धीरे मूर्तिकारों का वंशज इस कारोबार से मुंह मोड़ लेगा, अन्यथा पलायन कर जाएगा. मूर्तिकार भानु पाल ने बताया कि उन्होंने सरकार से मदद की गुहार भी लगाई. लेकिन सरकार का रवैया उदासीन है. ऐसे में उनकी आर्थिक हालत ठीक नहीं है. अगर सरकार मूर्तिकारों को लेकर पहल करे तो राज्य में रोजगार का अच्छा साधन बन सकता है.