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किशनगंज: मां दुर्गा को प्रत्यक्ष रूप देने वाले मूर्तिकारों की हालत बदहाल, सरकार से लगा रहे मदद की गुहार

मूर्तिकारों का कहना है कि सरकार की तरफ से मदद नहीं मिलती है. ऐसे में राज्य से धीरे-धीरे मूर्तिकारों का वंशज या तो इस कारोबार से मुंह मोड़ लेगा नहीं तो पलायन कर जाएगा.

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Published : Oct 5, 2019, 12:09 AM IST

किशनगंज के मूर्तिकार

किशनगंज: जिले में मां दुर्गा के आगमन की तैयारी जोरों से हो रही है. शुक्रवार यानी षष्ठी की शाम तक सभी पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर दी जायेगी. हालांकि कुछ मंदिरों में महालया के बाद से ही प्रतिमा स्थापित कर दी गई है. वहीं, मां के भक्तों में कुछ ऐसे भी हैं जो उनके आगमन की तैयारी पूरे साल करते हैं. ये भक्त जिले के मूर्ति कारीगर हैं, जो दिन-रात मेहनत कर मूर्ति का निर्माण करते हैं. लेकिन इनके हालात कुछ ऐसे हैं कि भविष्य अंधकार में है.

condition of sculptors in kishanganj
मूर्ति को रूप देते मूर्तिकार

65 वर्षीय लाइन पारा के मूर्तिकार निमाई पाल अपने कारखाने में मां दुर्गा की विशाल मूर्ति बनाते हैं. उन्होंने बताया कि मूर्तिकार हर मौसम से मूर्ति को बचाते हैं. एलईडी की रोशनी में मां दुर्गा के चेहरे के हर भाव को उभारते हैं. वहीं, महिषासुर की मूर्ति के चेहरे पर क्रोध के साथ-साथ पीड़ा दिखाना आसान काम नहीं है. ऐसे में वो लोग इसे साधना समझकर मूर्ति को वास्तविक रुप देते हैं.

condition of sculptors in kishanganj
मूर्ति की रंगाई करती महिला मूर्तिकार

'नहीं मिलता है मूर्तियों का वाजिब दाम'
मूर्तिकार निमाई पाल के मुताबिक वो कक्षा पांच से अपने दादा और पिता के जरिए इस कला से जुड़े हुए हैं. यह उनका खानदानी पेशा है. उनके दादा, परदादा सहित कई पीढ़ी इस काम को करते आ रही है. वह करीब 55 वर्षों से मूर्ति बना रहे हैं. हालांकि, इस पुश्तैनी कला को उन्होंने अपने बेटे सिखाने से माना किया है. उनका कहना है कि मंहगाई में मूर्तिकारों का जीना मुश्किल है. मंहगाई के अनुसार, मूर्ति के दामों में इजाफा नहीं हो रहा. यह काम अब घाटे का सौदा है. उन्होंने कहा कि वे किसी तरह अपना पेट पाल रहे हैं. इस वजह से शिल्पकार की इस परंपरा से वह अपनी नई पीढ़ी को जोड़ना नहीं चाहते.

बदहाल स्थिति में किशनगंज के मूर्तिकार

मूर्तियां बनाने में होती है समस्या
मूर्तिकार ने बताया कि एक-डेढ़ दशक पहले जोश और उत्साह के साथ मूर्तियां बनाते थे, लेकिन वर्तमान में उनके उत्साह में काफी कमी आई है. पूर्वजों के समय से उनका यह मुख्य पेशा है, पूरा परिवार इसी काम पर आश्रित है. वह आगे कहते हैं कि वर्तमान में उन्हें मूर्तियां बनाने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

माइनिंग एक्ट के बाद बढ़ी मुश्किलें
मूर्तिकार निमाई पाल ने बताया कि बिहार में माइनिंग एक्ट लागू होने के बाद मिट्टी आसानी से उपलब्ध नहीं होती है. मिट्टी दूरदराज के इलाकों से लानी पड़ती है. वहीं, ढुलाई में अधिक पैसे लग जाते हैं. जबकि प्रतिमा के फिनिशिंग के लिए कपड़ा और ज्वेलरी कोलकाता से लाते हैं, जो काफी महंगे हैं. जिसके कारण खर्च में बढ़ोतरी हो गई है. इसके बावजूद मूर्ति की सही कीमत उन्हें नहीं मिलती.

सरकार है उदासीन
मूर्तिकार अपनी बदहाली का कारण सरकार को भी मानते हैं. उनका कहना हैं कि सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती. ऐसे में राज्य से धीरे-धीरे मूर्तिकारों का वंशज इस कारोबार से मुंह मोड़ लेगा, अन्यथा पलायन कर जाएगा. मूर्तिकार भानु पाल ने बताया कि उन्होंने सरकार से मदद की गुहार भी लगाई. लेकिन सरकार का रवैया उदासीन है. ऐसे में उनकी आर्थिक हालत ठीक नहीं है. अगर सरकार मूर्तिकारों को लेकर पहल करे तो राज्य में रोजगार का अच्छा साधन बन सकता है.

किशनगंज: जिले में मां दुर्गा के आगमन की तैयारी जोरों से हो रही है. शुक्रवार यानी षष्ठी की शाम तक सभी पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर दी जायेगी. हालांकि कुछ मंदिरों में महालया के बाद से ही प्रतिमा स्थापित कर दी गई है. वहीं, मां के भक्तों में कुछ ऐसे भी हैं जो उनके आगमन की तैयारी पूरे साल करते हैं. ये भक्त जिले के मूर्ति कारीगर हैं, जो दिन-रात मेहनत कर मूर्ति का निर्माण करते हैं. लेकिन इनके हालात कुछ ऐसे हैं कि भविष्य अंधकार में है.

condition of sculptors in kishanganj
मूर्ति को रूप देते मूर्तिकार

65 वर्षीय लाइन पारा के मूर्तिकार निमाई पाल अपने कारखाने में मां दुर्गा की विशाल मूर्ति बनाते हैं. उन्होंने बताया कि मूर्तिकार हर मौसम से मूर्ति को बचाते हैं. एलईडी की रोशनी में मां दुर्गा के चेहरे के हर भाव को उभारते हैं. वहीं, महिषासुर की मूर्ति के चेहरे पर क्रोध के साथ-साथ पीड़ा दिखाना आसान काम नहीं है. ऐसे में वो लोग इसे साधना समझकर मूर्ति को वास्तविक रुप देते हैं.

condition of sculptors in kishanganj
मूर्ति की रंगाई करती महिला मूर्तिकार

'नहीं मिलता है मूर्तियों का वाजिब दाम'
मूर्तिकार निमाई पाल के मुताबिक वो कक्षा पांच से अपने दादा और पिता के जरिए इस कला से जुड़े हुए हैं. यह उनका खानदानी पेशा है. उनके दादा, परदादा सहित कई पीढ़ी इस काम को करते आ रही है. वह करीब 55 वर्षों से मूर्ति बना रहे हैं. हालांकि, इस पुश्तैनी कला को उन्होंने अपने बेटे सिखाने से माना किया है. उनका कहना है कि मंहगाई में मूर्तिकारों का जीना मुश्किल है. मंहगाई के अनुसार, मूर्ति के दामों में इजाफा नहीं हो रहा. यह काम अब घाटे का सौदा है. उन्होंने कहा कि वे किसी तरह अपना पेट पाल रहे हैं. इस वजह से शिल्पकार की इस परंपरा से वह अपनी नई पीढ़ी को जोड़ना नहीं चाहते.

बदहाल स्थिति में किशनगंज के मूर्तिकार

मूर्तियां बनाने में होती है समस्या
मूर्तिकार ने बताया कि एक-डेढ़ दशक पहले जोश और उत्साह के साथ मूर्तियां बनाते थे, लेकिन वर्तमान में उनके उत्साह में काफी कमी आई है. पूर्वजों के समय से उनका यह मुख्य पेशा है, पूरा परिवार इसी काम पर आश्रित है. वह आगे कहते हैं कि वर्तमान में उन्हें मूर्तियां बनाने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

माइनिंग एक्ट के बाद बढ़ी मुश्किलें
मूर्तिकार निमाई पाल ने बताया कि बिहार में माइनिंग एक्ट लागू होने के बाद मिट्टी आसानी से उपलब्ध नहीं होती है. मिट्टी दूरदराज के इलाकों से लानी पड़ती है. वहीं, ढुलाई में अधिक पैसे लग जाते हैं. जबकि प्रतिमा के फिनिशिंग के लिए कपड़ा और ज्वेलरी कोलकाता से लाते हैं, जो काफी महंगे हैं. जिसके कारण खर्च में बढ़ोतरी हो गई है. इसके बावजूद मूर्ति की सही कीमत उन्हें नहीं मिलती.

सरकार है उदासीन
मूर्तिकार अपनी बदहाली का कारण सरकार को भी मानते हैं. उनका कहना हैं कि सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती. ऐसे में राज्य से धीरे-धीरे मूर्तिकारों का वंशज इस कारोबार से मुंह मोड़ लेगा, अन्यथा पलायन कर जाएगा. मूर्तिकार भानु पाल ने बताया कि उन्होंने सरकार से मदद की गुहार भी लगाई. लेकिन सरकार का रवैया उदासीन है. ऐसे में उनकी आर्थिक हालत ठीक नहीं है. अगर सरकार मूर्तिकारों को लेकर पहल करे तो राज्य में रोजगार का अच्छा साधन बन सकता है.

Intro:किशनगंज मे ऐसे तो दुर्गा पूजा की शुरुआत महालया से हो चुकी है। और मां दुर्गा के आगमन की किशनगंज में हर्ष उल्लास के साथ जोरों पर तैयारी की जा रही है।शुक्रवार यानी षष्टि के शाम तक जिले के सभी मंडपों बैदियो पर माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जायेगी।हालांकि कुछ मंदिरों में महालया के बाद से ही प्रतिमा बैठा दी गई है। वहीं किशनगंज मे माँ के भक्तों में कुछ भक्त ऐसे भी हैं जो, उनके आगमन की तैयारी पूरे साल करते हैं। और इन्हीं की मेहनत से मां मानो सच में प्रत्यक्ष रूप से हर जगह विराजमान होती है। यह वह भक्तों किशनगंज के मूर्ति कारीगर है । जो किशनगंज के मंदिरों मे घूम-घूम कर दिन रात एक कर मूर्ति बनाने में लगे हैं। हर मौसम से बचाकर अपने कारखाने में एलईडी की रोशनी में यह लोग मां दुर्गे की चेहरे के हर भाव को उभारते हैं और साथ में उभर कर आते हैं मां दुर्गे के चारों संताने लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और कार्तिक। महिषासुर की मूर्ति के चेहरे पर क्रोध के साथ साथ पीड़ा दिखाना भी कोई बच्चा का खेल नहीं होता।इसे भी एक साधना समझा जाता है। किशनगंज के एक मात्र 65 वर्षीय लाइन पारा के मूर्तिकार निमाई पाल अपने कारखाना में मां दुर्गा की विशाल मूर्ति बनाने मे दिन रात एक कर जुटे हुए हैं वहीं मुर्ति अपने गंतव्य तक जाने के लिए मात्र एक दिन शेष बचे हैं जिस कारन मृर्तिकार निमाई पाल दिन रात एक कर मृर्ति का अंतिम रूप देने मे लगे हैं।

बाइट:निमाई पाल, मुर्तिकार
बाइटः भानू पाल, मुर्तिकार


Body:किशनगंज के मुर्तिकार 65 वर्षीय निमाई पाल ने बताया कक्षा पांच से ही दादा व पापा के हाथ पकड़ कर इस कला में जुड़े थे। उनके ये खानदानी पेशा है उनके दादा, परदादा सहित कई पीढ़ी इसी काम करते आ रहे है। और वह भी करीब 55 वर्षों से मुर्ति निर्माण करते आ रहे है। लेकिन निमाई पाल अपने पुश्तैनी कला को अपने बेटे को नहीं सिखाया।कारन पुछने पर बताया अब इस धंधे में जान नहीं रहा।मंहगाई ने मृर्तिकारो का जीना मुश्किल कर दिया है।जिस तरह से महगाई बढ़ा है उस तरह से मुर्ति की दामों पर इजाफा नहीं हुआ है।अब ये घाटे का काम है।किसी तरह पापी पेट को चला लेते हैं। जिस कारन निमाई पाल अब अपने नये पीढ़ी को इस शिल्पकार के धंधे से नहीं जुड़वाना चाहते हैं और बेटे को अन्य कारोबार में लगा दिया है। बातचीत मे निमाइ पाल ने बताया आज से एक-डेढ़ दशक पहले जिस जोश और उत्साह के साथ मूर्तियां बनाने का काम करते थे। वर्तमान समय में उनके उत्साह में काफी कमी है। बताया कि अब वह सिर्फ परंपरा को निभाने के लिए मूर्तियां बनाने का काम कर किसी तरह पापी पेट को पाल रहा हु। उनसे पूछने पर इस परंपरा को आगे कौन बढ़ाइगा तो उन्होंने कहा सैकड़ों वर्षों से दादा, परदादा, उनके पिताजी और फिर वह इस शिल्पकार के इस परंपरा को आगे ले आया लेकिन अब वह अपने नई पीढ़ी यानी अपने बेटे को इस परंपरा से नहीं जोड़ना चाहते हैं। बताया कि पूर्वजों के समय से उनका मुख्य पेशा यही रहा है और पूरा परिवार इसी काम पर आश्रित रहा है। वर्तमान समय में मूर्तियां बनाने में उन्हें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मगर फिर भी उन्हें उस हिसाब से मेहनत नामा नहीं मिलता है। बताया कि कारीगरों की काफी समस्याएं हैं। उनकी मजदूरी भी काफी बढ़ गई है। मगर मूर्ति की कीमत उस हिसाब से नहीं बढ़ी। कारीगरों के अलावे अब समय के साथ आधुनिकरण भी एक समस्या हो गया है। वहीं बिहार में माइनिंग एक्ट लागू होने के बाद मिट्टी आसानी से उपलब्ध होना भी मुश्किल हो गया है। अब मिट्टी के लिए उन्हें दूरदराज के इलाके की और से लाना पड़ता है जिससे ढुलाई में अधिक पैसे लग जाते हैं। वहीं प्रतिमा के फिनिशिंग के लिए कपड़ा और ज्वैलरी कोलकाता से लाते हो जो अब काफी महंगा हो गया है।जो कभी 75 प्रतिशत तक का मुनाफा होता था अब 25 प्रतिशत भी मुश्किल से मुनाफा हो पाता है। बताया कि पहले कि हिसाब काम काफी जटिल हो गया है। और खर्च भी अत्याधिक बढ़ गया है। बावजूद इसके लोग मूर्ति की कीमत उस हिसाब से नहीं देते हैं। जिससे उनका मेहनत नामा तक ठीक से नहीं निकल पाता है। कहां की अबे उम्र के आखिरी पड़ाव में सिर्फ परंपरा निभाने के लिए मूर्तियां बनाने का काम करते हैं नहीं तो परिस्थितियां अनुकूल नहीं रहा।


Conclusion:मुर्तिकारो का इस बदहाली का कारण बिहार के सुशासन बाबू भी है। जो इन मूर्तिकार के दर्द को आज तक नहीं समझ पाए और ना ही सरकार इन्हें किसी तरह की मदद करने की प्रयास करते हैं। धीरे धीरे बिहार में मूर्ति कारों की वंशज या तो इस धंधे से मुंह मोड़ लेंगे या पलायन कर जाएंगे। मूर्तिकार भानु पाल ने बताया उन्होंने कई बार सरकार से शिल्पकार को मदद करने का गुहार लगाया। लेकिन नीतीश सरकार ने एक ना सुना और जिसका कारण आज मूर्तिकार का हालत खस्ता हो गया है। जिस कारण आप मूर्तिकार अपने नई पीढ़ी को इस धंधे में नहीं जुड़वाना चाहते हैं। और अपनी परंपरा को धीरे धीरे समाप्त कर देना चाहते हैं। यदि सरकार इन मूर्तिकार पर थोड़ा सा भी पहल करें तो बिहार में रोजगार का अच्छा साधन बन सकता है। वहीं रात के करीब एक बजे निमाई पाल अपने पूरे टीम के साथ प्रतिमाओं को आखरी रुप देने मे लगे है। जो शुक्रवार यानी कल षष्ठी से मंदिरों मे पंडालों व अन्य साज सज्जा का शोभा बढ़ाईगे। लेकिन विडंबना है कि जिस मूर्ति को सब कोई पूजते हैं। उस मूर्ति बनाने वाले सिल्पाकारों का सुनने वाला कोई नहीं है। वहीं देश के प्रधानमंत्री भी मेंक इन इंडिया की बात करते हैं लेकिन इन मुर्तिकारो से ज्यादा मेक इन इंडिया का काम कोन कर सकता है।
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