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38 साल पहले आज के दिन ही सहम गया था खगड़िया, हुआ था विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा

38 साल पहले आदज के दिन जिले में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा हुआ था. 6 जून 1981 को मानसी से सहरसा की ओर जा रही 416 डाउन ट्रेन की लगभग सात बोगियां नदी के गहराई में समा गयी, उसका जख्म आज भी कई परिवारों के जेहन में ताजा है.

सहरसा-मानसी रेलखंड स्थित बागमती नदी पर बना पुल
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Published : Jun 6, 2019, 10:05 PM IST

खगड़िया: आज से ठीक 38 साल पहले जिला देश के सबसे बड़े और विश्व के दूसरे सबसे बड़े रेल हादसे का गवाह बना था. इस हादसे में मानसी से सहरसा की ओर जा रहे यात्रियों से खचाखच भरी नौ डिब्बों की ट्रेन बेपटरी होते हुए बागमती नदी की गोद में समा गयी थी. इसमें सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए. 6 जून 1981 का वो वक्त याद करने भर से लोगों की रूंह कांप जाती है.

हादसे के पीछे की दो संभावनाएं
इतने साल पहले हुए इस हादसे के पीछे की दो संभावनाएं सामने आयी. पहली संभावना यह जताई गई कि देर शाम जब ट्रेन मानसी से सहरसा जा रही थी तो इसी दौरान पुल पर एक भैंस आ गयी. उसे बचाने के लिए ड्राइवर ने ब्रेक लगायी, पर बारिश की वजह से पटरियों पर फिसलन थी और इसी कारण ट्रेन बेपटरी हो गई और उसके सात डिब्बे बागमती नदी में डूब गये.

तूफान के दबाव से बेपटरी हुई ट्रेन
हादसे से जुड़ी दूसरी संभावना यह सामने आई कि ट्रेन के पुल नंबर 51 पर पहुंचने से पहले उस दिन जोरदार आंधी और बारिश शुरू हो गयी थी. बारिश से बचने के लिए अंदर बैठे यात्रियों ने ट्रेन की खिड़की बंद कर दी. इसके बाद हवा के एक ओर से दूसरी ओर जाने के सारे रास्ते बंद हो गये और फिर तूफान के भारी दबाव के कारण ट्रेन की बोगी पलट कर नदी में जा गिरी.

ट्रेन की सात बोगियां नदी के गहराई में समा गयी
उस मनहूस दिन को याद कर आज भी लोग सहम जाते हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जहां मृतकों की संख्या सैंकड़ों में बतायी गयी तो चश्मदीदों के अनुसार हजारों की संख्या में मौतें हुई. देश के इतिहास के सबसे बड़े हादसे ने सबकों गमगीन कर दिया था. 6 जून 1981 का वह मनहूस दिन जब मानसी से सहरसा की ओर जा रही 416 डाउन ट्रेन की लगभग सात बोगियां नदी के गहराई में समा गयी, उसका जख्म आज भी कई परिवारों के जहन में ताजा है.

खगड़िया: आज से ठीक 38 साल पहले जिला देश के सबसे बड़े और विश्व के दूसरे सबसे बड़े रेल हादसे का गवाह बना था. इस हादसे में मानसी से सहरसा की ओर जा रहे यात्रियों से खचाखच भरी नौ डिब्बों की ट्रेन बेपटरी होते हुए बागमती नदी की गोद में समा गयी थी. इसमें सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए. 6 जून 1981 का वो वक्त याद करने भर से लोगों की रूंह कांप जाती है.

हादसे के पीछे की दो संभावनाएं
इतने साल पहले हुए इस हादसे के पीछे की दो संभावनाएं सामने आयी. पहली संभावना यह जताई गई कि देर शाम जब ट्रेन मानसी से सहरसा जा रही थी तो इसी दौरान पुल पर एक भैंस आ गयी. उसे बचाने के लिए ड्राइवर ने ब्रेक लगायी, पर बारिश की वजह से पटरियों पर फिसलन थी और इसी कारण ट्रेन बेपटरी हो गई और उसके सात डिब्बे बागमती नदी में डूब गये.

तूफान के दबाव से बेपटरी हुई ट्रेन
हादसे से जुड़ी दूसरी संभावना यह सामने आई कि ट्रेन के पुल नंबर 51 पर पहुंचने से पहले उस दिन जोरदार आंधी और बारिश शुरू हो गयी थी. बारिश से बचने के लिए अंदर बैठे यात्रियों ने ट्रेन की खिड़की बंद कर दी. इसके बाद हवा के एक ओर से दूसरी ओर जाने के सारे रास्ते बंद हो गये और फिर तूफान के भारी दबाव के कारण ट्रेन की बोगी पलट कर नदी में जा गिरी.

ट्रेन की सात बोगियां नदी के गहराई में समा गयी
उस मनहूस दिन को याद कर आज भी लोग सहम जाते हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जहां मृतकों की संख्या सैंकड़ों में बतायी गयी तो चश्मदीदों के अनुसार हजारों की संख्या में मौतें हुई. देश के इतिहास के सबसे बड़े हादसे ने सबकों गमगीन कर दिया था. 6 जून 1981 का वह मनहूस दिन जब मानसी से सहरसा की ओर जा रही 416 डाउन ट्रेन की लगभग सात बोगियां नदी के गहराई में समा गयी, उसका जख्म आज भी कई परिवारों के जहन में ताजा है.

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thirty eight years ago khagadiya witnessed world second deadliest train accident


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