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'नदियों के ससुराल' से अब विलुप्त हो रही है जलधारा, लोग पलायन को मजबूर - तालाब

दी सूखने का मुख्य कारण मिट्टी कटाव और भूमि अधिग्रहण है. बड़े बड़े भूमि कारोबारी नदी के आसपास अतिक्रमण कर जमीन बेच रहे हैं और बढ़ती आबादी नदियों के कगार तक आ कर बस गई.

सूख रही नदियां
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Published : Jun 6, 2019, 2:14 PM IST

खगड़ियाः एक तरफ पर्यावरण संरक्षण की बात हो रही है तो इस मुद्दे पर खासा जोर भी दिया जा रहा है. लेकिन बिहार में नदियां लगातार अपना अस्तित्व खो रही हैं. इस भीषण गर्मी में सूखे की मार झेल रहे खगड़िया जहां तकरीबन सात से आठ नदियां बहती थी. अब वहां पोखर तालाब और नदियां सूख चूके हैं.

लोगों की मानें तो एक समय था जब कमला नदी नेपाल से निकल कर दरभंगा होते हुए खगड़िया में विशाल रूप लिए प्रवेश करती थी और बागमती नदी में मिल जाती थी. इससे उलट आज हालात ये है कि कमला नदी लगभग विलुप्त हो चुकी है. लोगों का कहना है बारिश के दिनों में यहां मौजूद कोशी और बागमती नदी का पानी इसमें आकर मिल जाता है.

खगड़ियां में नदियों का हाल

क्या कहते है जानकार
जानकारों का कहना है कि नदी सूखने के मुख्य कारण मिट्टी कटाव और भूमि अधिग्रहण है. बड़े बड़े भूमि कारोबारी नदी के आसपास अतिक्रमण कर जमीन बेच रहे है और बढ़ती आबादी नदियों के कगार तक आ कर बस गई. आज हर जगह घर, मार्कट कॉम्पलेक्स बन रहे है जिनके आगे नदियों का सरंक्षण जरूरी मुद्दा नहीं रह जाता. इनमें मिट्टी की खपत भी बड़े मात्रा में होती है सभी जगह मिट्टी नदियों से ही ली जाती है.

स्थानीय लोगों पर असर
नदियों के सूखने से स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी पर भी फर्क पड़ रहा है. सबसे ज्यादा परेशानी उन गांवों के लिए है जो नदी के आसपास बसे हैं. ग्रामीण नदी से ही सिंचाई का काम करते हैं. ऐसे में इस सुखाड़ के किसानों के लिए कई समस्याएं खड़ी हो गई हैं. वहीं, मछुआरे तो यहां से पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं. उनकी रोजी रोटी का जरिया मछलियां ही होती हैं.

नहीं बदले हालात
समय के साथ बदलते भौगोलिक स्थितियों में खगड़िया का भूगोल भी बदलता जा रहा है. वर्षो से खगड़िया में 7 नदियों का बहाव होते रहा है. खगड़िया को नदियों का ससुराल भी कहा जाता था. लेकिन सुखाड़ से नदियां नाम मात्र की रह गई. उनकी स्वच्छता और संरक्षण के लिए मंत्रालय बने, परियोजनाएं चली लेकिन हालात नहीं बदले.

खगड़ियाः एक तरफ पर्यावरण संरक्षण की बात हो रही है तो इस मुद्दे पर खासा जोर भी दिया जा रहा है. लेकिन बिहार में नदियां लगातार अपना अस्तित्व खो रही हैं. इस भीषण गर्मी में सूखे की मार झेल रहे खगड़िया जहां तकरीबन सात से आठ नदियां बहती थी. अब वहां पोखर तालाब और नदियां सूख चूके हैं.

लोगों की मानें तो एक समय था जब कमला नदी नेपाल से निकल कर दरभंगा होते हुए खगड़िया में विशाल रूप लिए प्रवेश करती थी और बागमती नदी में मिल जाती थी. इससे उलट आज हालात ये है कि कमला नदी लगभग विलुप्त हो चुकी है. लोगों का कहना है बारिश के दिनों में यहां मौजूद कोशी और बागमती नदी का पानी इसमें आकर मिल जाता है.

खगड़ियां में नदियों का हाल

क्या कहते है जानकार
जानकारों का कहना है कि नदी सूखने के मुख्य कारण मिट्टी कटाव और भूमि अधिग्रहण है. बड़े बड़े भूमि कारोबारी नदी के आसपास अतिक्रमण कर जमीन बेच रहे है और बढ़ती आबादी नदियों के कगार तक आ कर बस गई. आज हर जगह घर, मार्कट कॉम्पलेक्स बन रहे है जिनके आगे नदियों का सरंक्षण जरूरी मुद्दा नहीं रह जाता. इनमें मिट्टी की खपत भी बड़े मात्रा में होती है सभी जगह मिट्टी नदियों से ही ली जाती है.

स्थानीय लोगों पर असर
नदियों के सूखने से स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी पर भी फर्क पड़ रहा है. सबसे ज्यादा परेशानी उन गांवों के लिए है जो नदी के आसपास बसे हैं. ग्रामीण नदी से ही सिंचाई का काम करते हैं. ऐसे में इस सुखाड़ के किसानों के लिए कई समस्याएं खड़ी हो गई हैं. वहीं, मछुआरे तो यहां से पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं. उनकी रोजी रोटी का जरिया मछलियां ही होती हैं.

नहीं बदले हालात
समय के साथ बदलते भौगोलिक स्थितियों में खगड़िया का भूगोल भी बदलता जा रहा है. वर्षो से खगड़िया में 7 नदियों का बहाव होते रहा है. खगड़िया को नदियों का ससुराल भी कहा जाता था. लेकिन सुखाड़ से नदियां नाम मात्र की रह गई. उनकी स्वच्छता और संरक्षण के लिए मंत्रालय बने, परियोजनाएं चली लेकिन हालात नहीं बदले.

Intro:समय के साथ बदलते भौगोलिक स्तिथियों में खगड़िया का भूगोल भी बदलता जा रहा है। वर्षो से खगड़िया में 7 नदियों का बहाव होते रहा है कहा जाता है कि खगड़िया जिला चारो तरफ से नदियों के जाल से घिरा हुआ है खगड़िया को नदियों का ससुराल भी कहा जाता है। खगड़िया के अस्थनीय कहते है कि मुगल शाषक अकबर ने टोडरमल को आदेश दिया था कि पूरे देश का भूगोल नापे टोडरमल जब खगड़िया के भूगोल को नापने लगे तो उनको कूछ समझ नही आ रहा था शुरू कंहा से करे और खत्म कंहा करे क्यों कि हर तरफ नदी और नदियों की धार और बड़े बड़े घास थे इसलिए टोडरमल ने अपनी हार मान कर इसको फरक कर दिया तब से जिला को फरकिया नाम से भी जाना जाता है।
लेकिन आज वक्त थपेड़ो ने जैसे सबकुछ बदल सा दिया है।कुछ नदियां जो अपने वजूद के लिए लड़ रही है,या यूं कह लीजये की छोटी धारा के रूप में आज उसका अस्तित्व मात्र बचा है।लेकिन कुछ का अस्तित्व मात्र भी अब शेष नही गया है।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार एक समय था जब कमला नदी नेपाल से निकल कर दरभंगा होते हुए खगड़िया में विशाल रूप लिए प्रवेश करती थी और बागमती नदी में मिल जाती थी लेकिन आज कमला नदी का अस्तित्व खतरे में आ गया है। एक विशाल नदी आज सिर्फ एक छाडन के रूप में बन कर रह गई है इस नदी में बारिश और बाढ़ के दिनों में ही सिर्फ पानी देखने को मिलता है।
क्या कहते है जानकर
जानकारों का कहना है कि नदी सूखने के मुख्य कारण मिट्टी कटाव और भूमिअधिग्रहण है बड़े बड़े भूमिकरोबर नदी के आसपास अतिक्रमण कर जमीन बेच रहे है और बढ़ती आबादी नदियों के कगार तक आ कर बस गई। आज हर जगह घर मार्कट बनने का काम चल रहा है और उसमें मिट्टी की खपत भी बड़े मात्रा में होती है सभी जगह मिट्टी का काम नदियों से ही ले जा कर होता है।विशेषग्यों ने बताया कि नदी सूखने की वजह से अस्थनीय लोगो की रोजी रोटी पर भी फर्क पड़ रहा है क्यों कि जो भी नदी के आसपास के गांव थे वो सिचाई का काम इसी नदी से करते थे यंहा तक कि नदी के सूखने के वजह से आसपास के खेत मे उपज भी नही हो रही है
मछुआरे पलायन करने को मजबूर हो रहे है।मछुआरों का का रोजी रोटी भी नदी से मछलीपालन कर के होता था लेकिन नदी सूखने की वजह से बेरोजगार बैठे कब तक घर चालयंगे।



Body:समय के साथ बदलते भौगोलिक स्तिथियों में खगड़िया का भूगोल भी बदलता जा रहा है। वर्षो से खगड़िया में 7 नदियों का बहाव होते रहा है कहा जाता है कि खगड़िया जिला चारो तरफ से नदियों के जाल से घिरा हुआ है खगड़िया को नदियों का ससुराल भी कहा जाता है।


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