खगड़ियाः शिक्षा के मामले में पिछड़े बिहार में इन दिनों गरीब बच्चों की तालीम एक बार फिर बदहाल हो गई है. सरकारी योजनाओं की मदद के सहारे बिहार में बदहाल शिक्षा का ग्राफ जो ऊपर उठा था. वो सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले गरीब बच्चों का ही था. जो अब इस लॉकडाउन में पढ़ाई के लिए तरस रहे हैं.
भूल रहे हैं बच्चे पिछली पढ़ाई
ये स्थिति किसी एक जिले की नहीं है. कमों-बेश हर जिले के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का यही हाल है. स्कूल खुलने का इंतजार करते-करते ये बच्चे अपनी पिछली पढ़ाई भी भूल गए हैं. हमारे संवाददाता ने कई जिलों के हालात पर नजर डाली, सभी जिले में हालात एक ही जैसे हैं. इतना ही नहीं कई जिलों में बाहर से आए प्रवासी मजदूरों के बच्चों की पढ़ाई का हाल और बुरा है.
लॉकडाउन में बच्चों की शिक्षा बर्बाद
लॉकडाउन में रोजगार गंवाकर जैसे-तैसे अपने घर लौटे लाखों प्रवासी मजदूरों के सामने अब रोजगार के साथ-साथ बच्चों की शिक्षा की समस्या भी खड़ी हो गई है. इन बच्चों के लिए शिक्षा का इंतेजाम करना सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है. इस संकट को भांपकर बिहार सरकार बच्चों के दाखिले के लिए सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया है कि सर्वे कर बच्चों का बिना किसी डॉक्यूमेंट का नामांकन लिया जाय. लेकिन धरातल पर ये सब काम होते हुए नहीं दिखाई दे रहा है.
लॉकडाउन में नहीं हो रहा नामांकन
खगड़िया में ईटीवी भारत की पड़ताल के मुताबिक इन प्रवासियों के पास अब तक कोई प्रसाशन की टीम नहीं गई है. हालांकि जिला शिक्षा विभाग की माने तो अब तक 412 प्रवासी बच्चो का नामांकन कराया जा चुका है. लेकिन प्रवासियों से बातचीत और पड़ताल में बात सामने आई है कि विद्यालय बंद होने के वजह से कहीं नामांकन नहीं हो रहा है.
दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरू या अन्य जगहों से आये प्रवासी मजदूरों का कहना है कि बीच साल में ही बच्चों की पढ़ाई छूट गई है. अब राज्य सरकार इस पर गम्भीर नहीं है. बता दें कि जिले में लगभग 46 हजार प्रवासी मजदूर लॉकडाउन के दौरान खगड़िया आये हैं.
'412 बच्चों का हुआ है नामांकन'
इस सिलसिले में जिला शिक्षा अधिकारी राज देव राम का कहना है कि जिला शिक्षा विभाग प्रवासी बच्चों के लिए गम्भीर है अब तक 412 बच्चों का नामांकन कराया जा चुका है. आगे सर्वे जारी है. जैसे ही कोरोना का कहर कम होगा और बच्चों का नामाकन लिया जाएगा. जिन 412 बच्चों का दाखिला लिया गया वो 1 जुलाई से 15 जुलाई के बीच में लिया गया था.
नहीं हो रही लाखों गरीब बच्चों की पढ़ाई
वहीं, बात अगर गोपालगंज की करें तो यहां कुल 114 हाई स्कूल सरकारी संचालित होते हैं. जबकि 61 विद्यालयों में 11वीं व 12वीं की शिक्षा दी जाती है. वहीं पूरे जिले में 1,779 प्रारंभिक विद्यालय भी संचालित हो रहे हैं. कक्षा 9 से 12वीं तक की शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र-छात्राओं की अनुमानित संख्या करीब एक लाख 70 हजार है. जबकि प्रारंभिक विद्यालयों में करीब साढ़े तीन लाख बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.
सरकार की ऑनलाइन शिक्षा असफल
इन तमाम बच्चों की पढ़ाई कोरोना काल में बंद पड़ी है.अप्रैल माह की शुरुआत के बाद निजी स्कूलों में ऑनलाइन शिक्षा शुरू हो गई. लेकिन बंद पड़े सरकारी स्कूलों में बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा से जोड़ने की व्यवस्था अब तक सफल नहीं हो पाई है. सरकारी विद्यालयों में चलाए जा रहे स्मार्ट क्लास आज पूरी तरह फेल हो चुके हैं. वजह ये है कि मीडिल स्कूलों के 70 फीसद बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से संबंध रखते हैं. जिनके पास टीवी, लैपटाप या स्मार्ट फोन जैसी सुविधा नहीं है. कुछ के पास अगर स्मार्ट फोन है भी तो डाटा पैक भरवाने की समस्या बड़ी है.
स्कूल खुलने के इंतजार में बैठे हैं बच्चे
बहरहाल अब सवाल ये है कि क्या ये गरीब बच्चे स्कूल खुलने के इंतजार में ही बैठे रहें और गांव में अपने मवेशी चराने के चक्कर में पढ़े हुए ए बी सी डी भी भूल जाएं. वक्त रहते अगर गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए शिक्षा विभाग ने कोई कारगर विकल्प नहीं ढूंढा तो बिहार के इन बच्चों की शिक्षा दोबारा गर्त में चली जाएगी.