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धन से गरीब लेकिन मन से अमीर है यह ठेले वाला, हर दिन बच्चों को पहुंचाता है स्कूल

ठेला चालक जो अपने ठेले से रोज बच्चों को स्कूल छोड़ने जाता है. बच्चे भी खुश हैं क्योंकि एक तो उन्हें स्कूल जाने का मौका मिला. दूसरी लंबे पैदल चलने से उन्हें मुक्ति भी मिली.

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Published : May 21, 2019, 10:13 AM IST

अनोखा ठेला चालक

कटिहार: जिले में एक ऐसा अनोखा ठेला चालक जो अपने ठेले से रोज बच्चों को स्कूल छोड़ने जाता है. जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए उसने ठेला चलाना तो शुरू कर दिया. लेकिन अब यही ठेला बच्चों को स्कूल तक जोड़ रहा है. उनका भविष्य सुधार रहा है.

katihar
अनोखा ठेला

दरअसल, ठेला चालक रामेश्वर चौहान किसी तरह पारिवारिक जिंदगी गुजारने के लिए ठेला चलाता है. ठेले से तो परिवार की गाड़ी चल गई पर बच्चों के पढ़ाई रूक सी गई. क्योंकि नजदीकी स्कूल उसके घर से 4 किलोमीटर दूर था. कोई चारा नहीं देखकर रामेश्वर ने खुद बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने की कमान संभाल ली और रोजाना ठेले पर अपनी बेटी को बैठाकर 4 किलोमीटर दूर स्कूल पहुंचाने और लाने लगा.

अनोखा ठेला

एक दर्जन बच्चे इस ठेले में जाते हैं स्कूल

ऐसे ही कुछ दिन तक तो बात ऐसे वैसे चली. लेकिन रामेश्वर के पढ़ाई से बच्चों को जोड़ने का दृढ़ निश्चय को देख आसपास के कई और परिवार ने उस ठेले पर अपने मासूमों को बैठाकर स्कूल भेजना शुरू कर दिया. अब करीब एक दर्जन बच्चे इस ठेले में स्कूल जाते हैं. इन सब में खास बात यह है कि रामेश्वर अपने बच्चों के अलावा अन्य बच्चों के अभिभावकों से ठेला किराया नहीं लेता और अब तो बच्चों को स्कूल से लाना और ले जाना उसकी दिनचर्या सी बन गई है.

बच्चे भी है खुश

बच्चे भी खुश हैं. क्योंकि एक तो उन्हें स्कूल जाने का मौका मिला. दूसरी लंबे पैदल चलने से उन्हें मुक्ति भी मिली. लिहाजा अब हर बच्चा डॉक्टर और इंजीनियर बनना चाहते हैं. कहते हैं कि बच्चे पढ़ेंगे तो देश बनेगा और रामेश्वर की इस अनोखी मुहिम ने आज दर्जनों बच्चों को स्कूल से दूरियों को पाट डाला है और यह बच्चे शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़ कर कुछ बनना चाहते हैं. ऐसे में रामेश्वर का यह अभियान सराहनीय है.

कटिहार: जिले में एक ऐसा अनोखा ठेला चालक जो अपने ठेले से रोज बच्चों को स्कूल छोड़ने जाता है. जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए उसने ठेला चलाना तो शुरू कर दिया. लेकिन अब यही ठेला बच्चों को स्कूल तक जोड़ रहा है. उनका भविष्य सुधार रहा है.

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अनोखा ठेला

दरअसल, ठेला चालक रामेश्वर चौहान किसी तरह पारिवारिक जिंदगी गुजारने के लिए ठेला चलाता है. ठेले से तो परिवार की गाड़ी चल गई पर बच्चों के पढ़ाई रूक सी गई. क्योंकि नजदीकी स्कूल उसके घर से 4 किलोमीटर दूर था. कोई चारा नहीं देखकर रामेश्वर ने खुद बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने की कमान संभाल ली और रोजाना ठेले पर अपनी बेटी को बैठाकर 4 किलोमीटर दूर स्कूल पहुंचाने और लाने लगा.

अनोखा ठेला

एक दर्जन बच्चे इस ठेले में जाते हैं स्कूल

ऐसे ही कुछ दिन तक तो बात ऐसे वैसे चली. लेकिन रामेश्वर के पढ़ाई से बच्चों को जोड़ने का दृढ़ निश्चय को देख आसपास के कई और परिवार ने उस ठेले पर अपने मासूमों को बैठाकर स्कूल भेजना शुरू कर दिया. अब करीब एक दर्जन बच्चे इस ठेले में स्कूल जाते हैं. इन सब में खास बात यह है कि रामेश्वर अपने बच्चों के अलावा अन्य बच्चों के अभिभावकों से ठेला किराया नहीं लेता और अब तो बच्चों को स्कूल से लाना और ले जाना उसकी दिनचर्या सी बन गई है.

बच्चे भी है खुश

बच्चे भी खुश हैं. क्योंकि एक तो उन्हें स्कूल जाने का मौका मिला. दूसरी लंबे पैदल चलने से उन्हें मुक्ति भी मिली. लिहाजा अब हर बच्चा डॉक्टर और इंजीनियर बनना चाहते हैं. कहते हैं कि बच्चे पढ़ेंगे तो देश बनेगा और रामेश्वर की इस अनोखी मुहिम ने आज दर्जनों बच्चों को स्कूल से दूरियों को पाट डाला है और यह बच्चे शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़ कर कुछ बनना चाहते हैं. ऐसे में रामेश्वर का यह अभियान सराहनीय है.

Intro:कटिहार

कटिहार में एक अनोखा ठेला चालक लिख रहा है नौनिहालों के किस्मत का गाथा। जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए उसने ठेले चलाने तो शुरू कर दिए लेकिन अब यही ठेला बच्चों को स्कूल तक जोड़ रहा है।


Body:दरअसल हम बात कर रहे हैं कटिहार के एक ऐसे ठेले वाले की जो मैले कुचैले कपड़े से अपने तन को ढका है और किसी तरह पारिवारिक जिंदगी निर्वाह करने के लिए ठेले चलाता है। ठेले से तो परिवार की गाड़ी चल गई पर बच्चों के पढ़ाई रुक सी गई क्योंकि नजदीकी स्कूल उसके घर से 4 किलोमीटर दूर था।

कोई चारा नहीं देखकर रामेश्वर चौहान ने खुद बच्चों को तालीम से जोड़ने का कमान संभाल ली और रोजाना ठेले पर अपनी बेटी को बैठाकर 4 किलोमीटर दूर स्कूल पहुंचाने और लाने लगा। कुछ दिन तक तो बात ऐसे वैसे चली लेकिन रामेश्वर के पढ़ाई से बच्चों को जोड़ने का दृढ़ निश्चय के कारण उसे देख आसपास के कई और परिवार ने उस ठेले पर अपने मासूमों को बैठाकर स्कूल भेजने लगे और यह संख्या करीब एक दर्जन हो गई।

मजे की बात तो यह है कि रामेश्वर अपने बच्चों के अलावा दूसरे अन्य बच्चों के अभिभावकों से ठेला किराया के रूप में एक भी रुपया नहीं लेता और अब तो बच्चों को स्कूल से लाना और ले जाना उसकी दिनचर्या सी बन गई है। उसके बाद ही वह अन्य कार्यों में निकलता है। चिलचिलाती गर्मी हो या रिमझिम बारिश रामेश्वर प्रतिदिन बच्चों को स्कूल पहुंचाता है। जरा सुनिए रामेश्वर के इस अनोखी मुहिम को उसी के जुबानी।


Conclusion:बच्चे भी खुश हैं क्योंकि एक तो उन्हें स्कूल जाने का मौका मिला। दूसरी लंबे पैदल चलने से उन्हें मुक्ति भी मिला। लिहाजा अब हर बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर बनना चाहते हैं।

कहते हैं कि बच्चे पढ़ेंगे तो देश बनेगा और रामेश्वर की इस अनोखी मुहिम ने आज दर्जनों बच्चों को स्कूल से दूरियों को पाट डाला है और यह बच्चे तालीम की मुख्यधारा से जुड़ कर कुछ बनना चाहते हैं। ऐसे में रामेश्वर का यह अभियान सराहनीय है। धन से गरीब रामेश्वर जरूर है लेकिन मन से नहीं और वह चाहता है कि बच्चे तालीम का ककहरा सीखे जो अपने हिंदुस्तान के किस्मत की गाथा को लिखेगा।
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