कटिहार: आज अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस (Intarnational Labour Day) है, यह दिन मेहनतकश मजदूरों के लिये समर्पित हैं. वह मजदूर जो अपने पसीने से देश को मजबूत करने की हैसियत रखता है, आज उसकी स्थिति क्या है? एक सवाल बनकर रह गया गया है. क्या मजदूर आज भी मजबूर हैं? सरकार मजदूरों के इलाज के नाम पर हर साल लाखों रुपये औद्योगिक प्रतिष्ठानों से बीमा करवाती है, ताकि वक्त आने पर मजदूरों का उसके हॉस्पिटल में इलाज संभव हो सके. लेकिन यह भी अन्य सरकारी अस्पतालों की तरह बीमार पड़ा है. कटिहार के कर्मचारी राज्य बीमा औषधालय की स्थिती भी कुछ ऐसी ही है, जिससे इंश्योर्ड लेबर परेशान हो गए हैं.
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मजदूरों का यहां होगा इलाज: कटिहार के कर्मचारी राज्य बीमा औषधालय के कन्धे पर कटिहार, पूर्णिया, अररिया, किशनगंज, सहरसा , सुपौल , मधेपुरा समेत दस से अधिक जिलों के मजदूरों के इलाज का जिम्मा है. इस औषधालय के क्षेत्र में पड़ने वाले जिलों के मजदूर, जो पेट की आग बुझाने के लिए किसी फैक्ट्री में काम करते हैं. तो ऐसे मजदूर हर साल इलाज के नाम पर हजारों रुपये का अंशदान करते हैं ताकि इलाज की सुविधा मिल सकें लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. सीमांचल का यह इकलौता राज्य बीमा औषधालय आज खुद ही बीमार है. यदि कोई मजदूर बदकिस्मती से बीमार पड़ जाए तो उसका इलाज कैसे हो यह बड़ा सवाल है. कहने को तो कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय में दस से अधिक स्वास्थ्य कर्मचारी पदस्थापित हैं, अस्पताल खुलने और डॉक्टरों के सिटिंग टाइम तक फाइलों में लिखे पड़े हैं लेकिन धरातल पर यह हमेशा बन्द पड़ा रहता है.
इलाज के लिए भटकते इंश्योर्ड लेबर: इंटक नेता विकास सिंह बताते हैं कि यह अस्पताल मजदूरों के इलाज के नाम पर बस एक धोखा है. स्थानीय मजदूर मोहर्रम खान बताते हैं कि यहां इलाज कैसे होगा जब अस्पताल ही दम तोड़ चुका हैं. इलाज कराने पहुंचे लाल मोहन सिंह का कहना है कि इलाज कराने कहां जाए समझ में नहीं आता. स्थानीय हरेन्द्र मिश्रा बताते हैं कि यह अस्पताल कभी खुलता ही नहीं हैं, ऐसे में मजदूर बीमार पड़ते हैं तो भगवान ही मालिक हैं. जहां एक मई को दुनियाभर में मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता हैं, मजदूरों के नाम पर होने वाले आयोजनों में लोग बड़ी बाते करते हैं लेकिन पर्दे के पीछे इसकी हकीकत कुछ और ही है.
"यह अस्पताल मजदूरों के इलाज के नाम पर बस एक धोखा है. यह कर्मचारी होने के बाद भी हमेशा ताला लगा रहता है. मजदूर यहां आकर वापस लौट जाते हैं. उनका इलाज करने के लिए को भी अस्पताल कर्मचारी नजर नहीं आता है." - विकास सिंह, नेता, इंटक