ETV Bharat / state

कटिहार का ये किसान कर रहा है ड्रैगन फ्रूट की खेती, धान-गेहूं से चौगुना है फायदा

किसान ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती से किसानों की रीढ़ सीधी हो जाएगी. कर्ज में दबे किसान अगर इस फल की खेती करते हैं तो उनका दिन बदल सकता है. सरकार सहयोग करे तो यहां के किसान भी समृद्ध हो सकते हैं.

author img

By

Published : Nov 23, 2019, 12:23 PM IST

कटिहार

कटिहारः जिले के 70 वर्षीय किसान खेती करने के लिए लगभग 52 साल पहले इंडियन नेवी की नौकरी छोड़कर गांव चले आए थे. परंपरागत फसलें धान और गेंहू में ज्यादा मुनाफा ना देख वो केले की खेती करने लगे. लंबे समय तक केले की खेती करने के बाद अब वो ड्रैगन फ्रूट की खेती में जुटे हैं. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का सपना है किसानों की आय दोगनी करने की. सरकार सहयोग करे ड्रैगन फ्रूट की खेती से किसानों की आय चौगुनी हो जाएगी.

'किसान ऋण से परेशान'
कोढ़ा प्रखंड अंतर्गत झिकटिया गांव निवासी राम नारायण सिंह पिछले 52 सालों से खेती में लगे हैं. उन्होंने बताया कि 1967 में जब वो खेती की शुरुआत कर रहे थे. उन्होंने पाया कि प्राकृतिक आपदाओं के कारण परंपरागत धान, गेहूं और मक्के की खेती घाटे का सौदा साबित होता था और किसान ऋण से परेशान होते थे. इस लिए उन्होंने 1969 में केले की खेती से शुरुआत की.

कटिहार
राम नारायण सिंह एक एकड़ जमीन में कर रहे हैं ड्रैगन फ्रूट की खेती

'ड्रैगन फ्रूट की खेती'
जो कि लंबे समय तक चला और इससे मुनाफा भी अच्छा हुआ. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसकी फलस को पनामा विल्ट रोग बुरी तरह नष्ट कर दे रहा है. जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा रहा है. राम नारायण सिंह ने बताया कि 2018 में उन्हें इंटरनेट के माध्यम से ड्रैगन फ्रूट की खेती के बारे में पता चला. जिससे ये बहुत प्रभावित हुए.

'किशनगंज में भी होती है इसकी खेती'
राम नारायण सिंह ने बताया कि इसकी खेती मुख्य रूप से इजराइल, श्री लंका और जापान में होती है. यहां लोकल में किशनगंज में कुछ लोग इसकी खेती कर रहे थे. मैंने वहां जाकर उन किसानों से मिला और इसके बारे में और जानकारी जुटाई. फिर इसकी खेती करने का निर्णय लिया.

कटिहार
अपने खेत में किसान राम नारायण सिंह

'जो चखता है वो इसका मुरीद हो जाता है'
राम नारायण सिंह ने एक एकड़ जमीन से इसकी शुरूआत की है. उन्होंने बताया कि इसका पौधा इजराइल से मंगाया गया. जिसकी किमत 80 रुपये प्रति पौधा पड़ा. उन्हें इसकी शुरुआत किए एक साल से ज्यादा का समय हो चुका है. उन्होंने बताया कि तल में फल भी आने लगे हैं. जो की काफी स्वादिष्ट और स्वस्थ वर्धक भी है. जिसे भी चखने देता हूं, वो इसका मुरीद हो जाता है.

कटिहार
यूं होती है ड्रैगन फ्रूट की खेती

'मेहनत के साथ-साथ पूंजी की जरूरत'
राम नारायण सिंह ने कहा कि ड्रैगन की खेती में मेहनत के साथ-साथ पूंजी की भी जरूरत होती है. एक एकड़ की खेती में लगभग पांच से छह लाख रुपए का खर्च आता हैं. एक बार की लागत के बाद 30-35 सालों तक मुनाफा कमाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि ये पौधा एक बार लग जाता है कि 30-35 सालों कर फल देता है.

ये भी पढ़ेंः महाराष्ट्र : फडणवीस फिर बने CM, पवार बोले, समर्थन देने का फैसला NCP का नहीं

'किसान हो सकते हैं समृद्ध'
उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती से किसानों की रीढ़ सीधी हो जाएगी. ऋण में दबे किसान अगर इस फल की खेती करते हैं तो उनका दिन बदल सकता है. सरकार सहयोग करे तो यहां के किसान भी समृद्ध हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि इसकी मांग कोलकाता, बेंगलुरु और महाराष्ट्र के बाजारों में काफी है.

पेश है खास रिपोर्ट

बाढ़ से परेशान किसान
बता दें कि सीमांचल का यह इलाका पूरे राज्य में धान के कटोरे के नाम से प्रसिद्ध है. यहां धान के साथ-साथ मक्का और केले की खेती बड़े पैमाने पर होती है. लेकिन इलाके में हर साल आने वाली बाढ़ किसानों की कमर तोड़ देती है. ऐसे में यहां के किसान गैर परंपरागत खेती में जुट रहे हैं. राम नारायण सिंह से पहले जिले के बरारी प्रखंड के धनंजय सिंह भी ड्रैगन फ्रूट की खेती कर अपना जीवन समृद्ध बना रहे हैं.

कटिहारः जिले के 70 वर्षीय किसान खेती करने के लिए लगभग 52 साल पहले इंडियन नेवी की नौकरी छोड़कर गांव चले आए थे. परंपरागत फसलें धान और गेंहू में ज्यादा मुनाफा ना देख वो केले की खेती करने लगे. लंबे समय तक केले की खेती करने के बाद अब वो ड्रैगन फ्रूट की खेती में जुटे हैं. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का सपना है किसानों की आय दोगनी करने की. सरकार सहयोग करे ड्रैगन फ्रूट की खेती से किसानों की आय चौगुनी हो जाएगी.

'किसान ऋण से परेशान'
कोढ़ा प्रखंड अंतर्गत झिकटिया गांव निवासी राम नारायण सिंह पिछले 52 सालों से खेती में लगे हैं. उन्होंने बताया कि 1967 में जब वो खेती की शुरुआत कर रहे थे. उन्होंने पाया कि प्राकृतिक आपदाओं के कारण परंपरागत धान, गेहूं और मक्के की खेती घाटे का सौदा साबित होता था और किसान ऋण से परेशान होते थे. इस लिए उन्होंने 1969 में केले की खेती से शुरुआत की.

कटिहार
राम नारायण सिंह एक एकड़ जमीन में कर रहे हैं ड्रैगन फ्रूट की खेती

'ड्रैगन फ्रूट की खेती'
जो कि लंबे समय तक चला और इससे मुनाफा भी अच्छा हुआ. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसकी फलस को पनामा विल्ट रोग बुरी तरह नष्ट कर दे रहा है. जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा रहा है. राम नारायण सिंह ने बताया कि 2018 में उन्हें इंटरनेट के माध्यम से ड्रैगन फ्रूट की खेती के बारे में पता चला. जिससे ये बहुत प्रभावित हुए.

'किशनगंज में भी होती है इसकी खेती'
राम नारायण सिंह ने बताया कि इसकी खेती मुख्य रूप से इजराइल, श्री लंका और जापान में होती है. यहां लोकल में किशनगंज में कुछ लोग इसकी खेती कर रहे थे. मैंने वहां जाकर उन किसानों से मिला और इसके बारे में और जानकारी जुटाई. फिर इसकी खेती करने का निर्णय लिया.

कटिहार
अपने खेत में किसान राम नारायण सिंह

'जो चखता है वो इसका मुरीद हो जाता है'
राम नारायण सिंह ने एक एकड़ जमीन से इसकी शुरूआत की है. उन्होंने बताया कि इसका पौधा इजराइल से मंगाया गया. जिसकी किमत 80 रुपये प्रति पौधा पड़ा. उन्हें इसकी शुरुआत किए एक साल से ज्यादा का समय हो चुका है. उन्होंने बताया कि तल में फल भी आने लगे हैं. जो की काफी स्वादिष्ट और स्वस्थ वर्धक भी है. जिसे भी चखने देता हूं, वो इसका मुरीद हो जाता है.

कटिहार
यूं होती है ड्रैगन फ्रूट की खेती

'मेहनत के साथ-साथ पूंजी की जरूरत'
राम नारायण सिंह ने कहा कि ड्रैगन की खेती में मेहनत के साथ-साथ पूंजी की भी जरूरत होती है. एक एकड़ की खेती में लगभग पांच से छह लाख रुपए का खर्च आता हैं. एक बार की लागत के बाद 30-35 सालों तक मुनाफा कमाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि ये पौधा एक बार लग जाता है कि 30-35 सालों कर फल देता है.

ये भी पढ़ेंः महाराष्ट्र : फडणवीस फिर बने CM, पवार बोले, समर्थन देने का फैसला NCP का नहीं

'किसान हो सकते हैं समृद्ध'
उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती से किसानों की रीढ़ सीधी हो जाएगी. ऋण में दबे किसान अगर इस फल की खेती करते हैं तो उनका दिन बदल सकता है. सरकार सहयोग करे तो यहां के किसान भी समृद्ध हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि इसकी मांग कोलकाता, बेंगलुरु और महाराष्ट्र के बाजारों में काफी है.

पेश है खास रिपोर्ट

बाढ़ से परेशान किसान
बता दें कि सीमांचल का यह इलाका पूरे राज्य में धान के कटोरे के नाम से प्रसिद्ध है. यहां धान के साथ-साथ मक्का और केले की खेती बड़े पैमाने पर होती है. लेकिन इलाके में हर साल आने वाली बाढ़ किसानों की कमर तोड़ देती है. ऐसे में यहां के किसान गैर परंपरागत खेती में जुट रहे हैं. राम नारायण सिंह से पहले जिले के बरारी प्रखंड के धनंजय सिंह भी ड्रैगन फ्रूट की खेती कर अपना जीवन समृद्ध बना रहे हैं.

Intro:कटिहार

जिले के एक 70 वर्षीय किसान बैंक की नौकरी, इंडियन नेवी की नौकरी को बाय बाय कह मातृभूमि की सेवा में लग गये और परंपरागत खेती को छोड़कर केले की खेती शुरू की लेकिन केले में पनामा विल्ट रोग के कारण अब दूसरे लखपतिया खेती ड्रैगन फ्रूट की खेती में जुट गए हैं और प्रधानमंत्री का सपना किसानों की आय हो दुगना को साकार कर रहे हैं।

Body:जिले का कोढ़ा प्रखंड अंतर्गत झिकटिया गांव के निवासी रामनारायण सिंह जो पिछले 52 साल से खेती में लगे हुए हैं कई सरकारी नौकरी को बाय-बाय किया है और आज खेती की बदौलत अपना जीवन समृद्धि बनाए हुए हैं। 1967 से खेती की शुरुआत करने वाले किसान राम नारायण सिंह जी ने परंपरागत खेती को तौबा कह केले की खेती से शुरुआत की।

किसानों को बाढ़, सुखाड़ के कारण परंपरागत खेती धान, गेहूं और मक्का घाटा का सौदा हो रहा था। किसान ऋण से परेशान थे इन्हीं सब समस्याओं से पीछा छुड़ाने के लिए इन्होंने 1969 में केले की खेती से शुरुआत की। इनका केला देश के विभिन्न राज्यों में सप्लाई होती थी लेकिन केले में पनामा विल्ट रोग ने केले की फसल को बर्बाद कर डाला और उसमें भी घाटा होने लगा।

2018 में इन्होंने इंटरनेट के माध्यम से ड्रैगन फ्रूट की खेती के बारे में जानना और इस लखपतिया फसल को अपने खेतों में लगा डाला‌। एक संस्था से मिलकर इन्होंने ड्रैगन के पौधा को इजराइल से मंगाया जिसका कीमत प्रति पौधा ₹80 लगा और खेतों में लगाया। आज डेढ़ साल होने को है और इनके एक एकड़ में लगाया गया ड्रैगन, फल भी देने लगे हैं।

रामनारायण सिंह बताते हैं ड्रैगन की खेती में मेहनत के साथ-साथ पैसों की भी जरूरत होती है। एक एकड़ की खेती में लगभग पांच से छह लाख रुपए का खर्च आता हैं। एक बार की लागत के बाद 30-35 वर्ष तक फायदा होता रहेगा। इन्होंने बताया इस खेती के बारे में जिले के लोगों को जानकारी होते ही हमारे घर पहुंचने लगे। कृषि विभाग से आत्मा के लिए पहुंचे, एक बैंक मैनेजर पहुंचे तब जाकर उन्हें संतुष्टि हुई कि वाकई में ड्रैगन फल की खेती लाभदायक है।

Conclusion:उन्होंने बताया ड्रैगन फ्रूट की खेती से किसानों की रीढ़ सीधा हो जाएगा। ऋण में दबे किसान अगर इस फल की खेती करते हैं तो उनका दिन दुगुनी और रात चौगुनी हो सकती है। बस सरकार से थोड़ा सहयोग मिल जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का सपना 2022 तक किसानों की आय हो दोगूना का सपना भी पूरा हो जाएगा।

ड्रैगन फल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। यह मुख्य रूप से कोलकाता, बेंगलुरु और महाराष्ट्र के बाजारों में दिखता है। बिहार के बाजारों में यह फल दिखता ही नहीं। राम नारायण सिंह बताते हैं अगर फसल की उपज होगी तो बाजार भी होंगे और लोगों को आसानी से ड्रैगन फल उपलब्ध भी हो सकेंगे।

सीमांचल का यह इलाका धान के कटोरा का नाम से पूरे राज्य में प्रसिद्ध है। यहां धान के साथ-साथ मक्का और केले की खेती में काफी मात्रा में होती है लेकिन इलाके में आने वाली हर साल बाढ़ इन किसानों की कमर तोड़ देती है। ऐसे में यहां के किसान आधुनिक खेती में जुट गए हैं। राम नारायण सिंह से पहले बरारी प्रखंड के धनंजय सिंह भी ड्रैगन फ्रूट की खेती कर अपना जीवन समृद्ध बना रहे हैं।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.