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कटिहार: कचरे के ढेर पर मिली दवाइयों की अब तक नहीं आई जांच रिपोर्ट

कटिहार से लेकर पटना तक स्वास्थ्य विभाग में मचे हड़कंप के बाद सिविल सर्जन डा. मुरतजा अली ने आनन-फानन में जांच के आदेश दिये. तफ्शीश के लिये तीन सदस्यीय टीम गठित कर घोषणा की गई कि जल्द ही मामले का राजफाश होगा. बात आई और गई हो गई, आलम यह है कि डेढ़ महीने के बाद भी मामले का कुछ खुलासा नहीं हो पाया है.

कचरे के ढ़ेर में दवाइयां
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Published : Sep 5, 2019, 1:16 PM IST

कटिहार: स्वास्थ्य विभाग के काले-चिट्ठे का राज डेढ़ महीने बाद भी नहीं खुल पाया है, कि मरीजों को दी जाने वाली करोड़ों रुपये की दवाइयों को किसने और क्यों कबाड़खाने में सड़ने के लिये फेंक दिया, मामले में अब भी सस्पेंस बना हुआ है. सिविल सर्जन अब भी तफ्शीश की बातें कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं. लोगों की मानें तो यह एक बड़ा दवा घोटाला है. जिसका नेक्सस जिले के सदर अस्पताल प्रबंधन से लेकर सूबे के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय तक है. साथ ही स्थानीय लोगों ने कहा कि यदि जल्द दवा मामले का पर्दाफाश नहीं हुआ तो पब्लिक सड़कों पर उतरकर धरना-प्रदर्शन करेगी.

medicine
कचरे के ढ़ेर में दवाइयां

मामले का कुछ राजफाश नहीं हो पाया
बात बीते सात जुलाई की है, जब कटिहार सदर अस्पताल के कबाड़खानानुमा एक कमरे के बाहर मरीजों के बीच बांटे जाने वाली दवाइयां कचरे के ढ़ेर में पड़ी मिलीं. इनमें कई दवाइयां तो ऐसी थी जो 2020 में एक्सपायर होनी थी. मामले के खुलासे के बाद हंगामा मच गया. कटिहार से लेकर पटना तक स्वास्थ्य विभाग में मचे हड़कंप के बाद सिविल सर्जन डा. मुरतजा अली ने आनन-फानन में जांच के आदेश दिये. तफ्शीश के लिये तीन सदस्यीय टीम गठित कर घोषणा की गई कि जल्द ही मामले का राजफाश होगा. बात आई और गई हो गई, आलम यह है कि डेढ़ महीने के बाद भी मामले का कुछ खुलासा नहीं हो पाया है.

कटिहार: चर्चित करोड़ों रुपये दवा घोटाले का डेढ़ महीने बाद भी नहीं खुल पाया राज

'जनता धरना-प्रदर्शन करेगी'
सिविल सर्जन डॉ. मुरतजा अली अब भी जांच की बातें कह रहे हैं. उन्होंने बताया कि जल्द ही जांच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है. अब सवाल उठता है कि यह जांच आखिर कब तक चलेगी और कब तक उसकी रिपोर्ट आयेगी? यदि जांच रिपोर्ट आ भी गयी तो जब जांच रिपोर्ट आने में महीनों का वक्त गुजार दिया गया तो आरोपियों पर कार्रवाई में कितना समय लगेगा. वहीं, स्थानीय पब्लिक इसे एक बड़े घोटाले की नजर से देख रही है. जिसकी काली कमाई में स्वास्थ्य कर्मचारी से विभाग के मंत्री मंगल पांडेय तक शामिल हैं. लोगों का कहना है यदि जल्द मामले में कार्रवाई नहीं हुई तो जनता सड़क पर उतरकर धरना-प्रदर्शन करेगी.

कटिहार: स्वास्थ्य विभाग के काले-चिट्ठे का राज डेढ़ महीने बाद भी नहीं खुल पाया है, कि मरीजों को दी जाने वाली करोड़ों रुपये की दवाइयों को किसने और क्यों कबाड़खाने में सड़ने के लिये फेंक दिया, मामले में अब भी सस्पेंस बना हुआ है. सिविल सर्जन अब भी तफ्शीश की बातें कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं. लोगों की मानें तो यह एक बड़ा दवा घोटाला है. जिसका नेक्सस जिले के सदर अस्पताल प्रबंधन से लेकर सूबे के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय तक है. साथ ही स्थानीय लोगों ने कहा कि यदि जल्द दवा मामले का पर्दाफाश नहीं हुआ तो पब्लिक सड़कों पर उतरकर धरना-प्रदर्शन करेगी.

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कचरे के ढ़ेर में दवाइयां

मामले का कुछ राजफाश नहीं हो पाया
बात बीते सात जुलाई की है, जब कटिहार सदर अस्पताल के कबाड़खानानुमा एक कमरे के बाहर मरीजों के बीच बांटे जाने वाली दवाइयां कचरे के ढ़ेर में पड़ी मिलीं. इनमें कई दवाइयां तो ऐसी थी जो 2020 में एक्सपायर होनी थी. मामले के खुलासे के बाद हंगामा मच गया. कटिहार से लेकर पटना तक स्वास्थ्य विभाग में मचे हड़कंप के बाद सिविल सर्जन डा. मुरतजा अली ने आनन-फानन में जांच के आदेश दिये. तफ्शीश के लिये तीन सदस्यीय टीम गठित कर घोषणा की गई कि जल्द ही मामले का राजफाश होगा. बात आई और गई हो गई, आलम यह है कि डेढ़ महीने के बाद भी मामले का कुछ खुलासा नहीं हो पाया है.

कटिहार: चर्चित करोड़ों रुपये दवा घोटाले का डेढ़ महीने बाद भी नहीं खुल पाया राज

'जनता धरना-प्रदर्शन करेगी'
सिविल सर्जन डॉ. मुरतजा अली अब भी जांच की बातें कह रहे हैं. उन्होंने बताया कि जल्द ही जांच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है. अब सवाल उठता है कि यह जांच आखिर कब तक चलेगी और कब तक उसकी रिपोर्ट आयेगी? यदि जांच रिपोर्ट आ भी गयी तो जब जांच रिपोर्ट आने में महीनों का वक्त गुजार दिया गया तो आरोपियों पर कार्रवाई में कितना समय लगेगा. वहीं, स्थानीय पब्लिक इसे एक बड़े घोटाले की नजर से देख रही है. जिसकी काली कमाई में स्वास्थ्य कर्मचारी से विभाग के मंत्री मंगल पांडेय तक शामिल हैं. लोगों का कहना है यदि जल्द मामले में कार्रवाई नहीं हुई तो जनता सड़क पर उतरकर धरना-प्रदर्शन करेगी.

Intro:........डेढ़ महीने बीतने के बाद भी नहीं खुल पाया स्वास्थ्य विभाग के काला चिट्ठा का राज ....। मरीजों को बाँटे जाने वाले करोड़ों रुपये की दवाइयाँ क्यों और किसने कबाड़खाने में सड़ने के लिये फेंक डाली , इस पर बना हुआ हैं सस्पेंस......। सिविल सर्जन अब भी तफशीश की बातें कह झाड़ रहें हैं पल्ला ......। लोगों की मानें तो यह हैं एक बड़ा दवा घोटाला.....जिसका नेक्सस जिले के सदर अस्पताल प्रबंधन से लेकर सूबे के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय तक हैं .....। यदि जल्द मेडिसिन मामले का नहीं हुआ पर्दाफाश तो पब्लिक सड़कों पर उतर धरना - प्रदर्शन करेगी ......।


Body:बात बीते सात जुलाई की हैं जब कटिहार सदर अस्पताल के कबाड़खाना नुमा एक कमरे के बाहर मरीजों के बीच बाँटे जाने वाली दवाइयाँ कचरे में पड़ी मिली थी ....। इनमें कई दवाइयाँ तो ऐसी थी जो 2020 में एक्सपायर होनी थी.....। इस मामले के खुलासे के बाद हंगामा मच गया....। कटिहार से लेकर पटना तक स्वास्थ्य विभाग में मचे हड़कम्प के बाद सिविल सर्जन डॉ मुर्तजा अली ने आनन - फानन में जाँच के आदेश दिये ....। तफशीश के लिये तीन सदस्यीय टीम गठित की गयी और घोषणा की गयी कि जल्द ही मामले का राजफाश होगा और परत दर परत मामले के खुलासे होंगी....। बात आयी औऱ गयी , वक्त का कारवाँ बढ़ता चला गया और समय बीते डेढ़ महीने हो गया लेकिन कुछ राजफाश नहीं हो पाया ....। सिविल सर्जन डॉ मुर्तजा अली अब भी जाँच की बातें कह रहे हैं ....। उन्होंने बताया कि जल्द ही जाँच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया हैं ....। अब सवाल उठता हैं कि यह जाँच आखिर कब तक चलेगा और कब तक उसकी रिपोर्ट आयेगी ...। यदि जाँच रिपोर्ट आ भी गयी तो जब जाँच रिपोर्ट आने में महीनों - महीनों का वक्त गुजार दिया गया तो आरोपियों पर कार्रवाई में कितना समय लगेगा और यदि कार्रवाई हो भी गयी तो सभी को कटघरे में डाल पाना क्या इतना आसान होगा ....। खैर , यह तो भविष्य की बातें हैं लेकिन स्थानीय पब्लिक इसे एक बड़े घोटाले के नजर से देखती हैं जिसके काली कमाई में स्वास्थ्य कर्मचारी से विभाग के मंत्री मंगल पांडेय तक शामिल हैं और यदि जल्द इसपर से राजफाश नहीं हुआ तो जनता सड़क पर उतरेगी और धरना - प्रदर्शन करेगी......।


Conclusion:दरअसल , इस वाकये के पीछे अंदरखाने के बात यह हैं कि जनता के आरोप कमोवेश सही हैं ....। राज्य में हैंडसम कमीशन के चक्कर मे लम्बे - चौड़े स्टीमेट पर मशहूर की जगह औने - पौने मेडिसिन कम्पनियों से दवाईयों की खरीद कर ली जाती हैं और फिर चलता हैं उक्त मेडिसिन को खपाने का खेल .....। जिला अस्पतालों में माँग से अधिक मेडिसिन की खेप भेज दी जाती हैं । जिला अस्पतालों में कर्मचारी इसे सरकारी दवा समझकर मरीजों में जैसे - तैसे निष्पादन में लगे रहते हैं ....। कहीं बंटा ....कहीं नहीं बंटा ....तो कहीं जैसे - तैसे कचरानुमा स्टोर में फेंका मिला तो कहीं - कहीं जिला अस्पतालों में कचरे के नाम पर दवाओं को आग में जलाकर खत्म कर डालने के कार्य खबरों के रूप में हम - आप के बीच आतें रहते हैं और फिर जब कोई मामला तूल पकड़ता हैं तो जाँच टीम बना ठण्डे बस्ते में डाल दी जाती हैं और फिर धीरे - धीरे समय का कारवाँ बढ़ता जाता हैं और दूसरी अन्य समस्याओं की सुर्खियां बनते ही करोड़ों रुपये के दवा ख़रीदगी का वारा - न्यारा हो जाता हैं और फिर राज्य सरकारें कहती है कि किसी भी मरीज को दवाओं की कमी से मरने नहीं दिया जायेगा .....। हाय रे सुशासन .......।
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