कटिहार: एक तरफ जहां बिहार सरकार बुजुर्गों के भरण-पोषण को लेकर कानून बना रही है. वहीं, दूसरी ओर कुछ लोगों पर सरकार के इस कानून का कोई असर नहीं पड़ रहा. जिले में एक वृद्ध महिला जिंदगी के आखिरी कदम पर दर-दर की ठोकरें खा रही है. बीते 1 साल से सदर अस्पताल उसका आशियाना बन गया है. जहां उसको अस्पताल प्रशासन की ओर से भोजन और दवा मुहैया कराई जाती है.
बड़े घराने से रखती है तालुकात
इस बूढ़ी मां की फूटती काया को देखिए, शरीर पर नाममात्र का मांस है, चेहरे पर झुर्रियां निकल आई हैं और उम्र लगभग 90 का है. बताया जाता है कि यह वृद्धा शहर के नया टोला के किसी लाखपति परिवार से तालुकात रखती है और कुछ जमीन भी इसके नाम हैं, लेकिन बहू के आते ही यह वृद्ध सड़क पर आ गई. क्योंकि इसके नाम की जमीन और मकान पर बेटे और बहु ने कब्जा कर लिया और वृद्धा ने विरोध किया तो उसे धक्के मारकर घर से निकाल दिया. तब से यह वृद्ध महिला कभी अस्पताल में तो कभी सड़क के चौराहे पर अपने परिजनों की आस देख रही है.
वृद्ध महिला की मर्ज क्या है किसी को पता नहीं
बता दें कि इतने दमन के बावजूद यह पीड़िता भारतीय महिला का पहचान नहीं छोड़ रही है. जुबां पर घर के झगड़े का नाम तक नहीं आता और कैमरा देखते हैं बस इतना कहती है कि वह तो बीमार है और इलाज के लिए यहां आई है. वृद्ध महिला बताती है कि इसका घर शहर के नया टोला में है और इलाज के लिए अस्पताल आई है.
इस वृद्ध महिला की मर्ज क्या है किसी को पता नहीं, अस्पताल में आम मरीजों की तरह कुछ दाने पेट भरने के लिए मिले तो घर के गम को भी भूल जाती है और अस्पताल ही उनका घर बन जाता है.
अस्पताल में रखा जाता है ख्याल
सदर अस्पताल के कर्मचारी नागेंद्र सहनी ने बताया कि यह वृद्ध महिला बीते 1 साल से अस्पताल में रह रही है और जब कभी घर की याद आती है, तो कुछ दिनों के लिए चली जाती है. इसके बाद फिर वापस अस्पताल लौट जाती है. वहीं, अस्पताल में भी इसका ख्याल रखा जाता है.
वृद्धावस्था होता है जिंदगी का अंतिम दौर
बता दें कि इंसान की जिंदगी चार हिस्सों में बंटी होती है. शिशु अवस्था जहां जिंदगी का पहला दौर होता है. वहीं, वृद्धावस्था जिंदगी का अंतिम दौर और इन दोनों दौर में बच्चे और बूढ़े को अपने परिवार का प्यार चाहिए होता है, लेकिन समय के बदलते दौर में आज यह प्यार अब स्वार्थ बन गया है.