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90 साल की मां को बेटे ने घर से निकाला, वृद्धा ने अस्पताल में लिया आसरा

नया टोला की एक बूढ़ी मां को बेटा ने घर से बाहर निकाल दिया है. इसके बाद वो जिंदगी के आखिरी कदम पर दर दर की ठोकरें खा रही है. वहीं, अस्पताल उसके लिए आसरा बन गया है. जहां उसका ख्याल रखा जाता है.

Katihar
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Published : Nov 9, 2019, 3:16 PM IST

कटिहार: एक तरफ जहां बिहार सरकार बुजुर्गों के भरण-पोषण को लेकर कानून बना रही है. वहीं, दूसरी ओर कुछ लोगों पर सरकार के इस कानून का कोई असर नहीं पड़ रहा. जिले में एक वृद्ध महिला जिंदगी के आखिरी कदम पर दर-दर की ठोकरें खा रही है. बीते 1 साल से सदर अस्पताल उसका आशियाना बन गया है. जहां उसको अस्पताल प्रशासन की ओर से भोजन और दवा मुहैया कराई जाती है.

बड़े घराने से रखती है तालुकात
इस बूढ़ी मां की फूटती काया को देखिए, शरीर पर नाममात्र का मांस है, चेहरे पर झुर्रियां निकल आई हैं और उम्र लगभग 90 का है. बताया जाता है कि यह वृद्धा शहर के नया टोला के किसी लाखपति परिवार से तालुकात रखती है और कुछ जमीन भी इसके नाम हैं, लेकिन बहू के आते ही यह वृद्ध सड़क पर आ गई. क्योंकि इसके नाम की जमीन और मकान पर बेटे और बहु ने कब्जा कर लिया और वृद्धा ने विरोध किया तो उसे धक्के मारकर घर से निकाल दिया. तब से यह वृद्ध महिला कभी अस्पताल में तो कभी सड़क के चौराहे पर अपने परिजनों की आस देख रही है.

katihar
ईटीवी से बात करती वृद्ध महिला

वृद्ध महिला की मर्ज क्या है किसी को पता नहीं
बता दें कि इतने दमन के बावजूद यह पीड़िता भारतीय महिला का पहचान नहीं छोड़ रही है. जुबां पर घर के झगड़े का नाम तक नहीं आता और कैमरा देखते हैं बस इतना कहती है कि वह तो बीमार है और इलाज के लिए यहां आई है. वृद्ध महिला बताती है कि इसका घर शहर के नया टोला में है और इलाज के लिए अस्पताल आई है.
इस वृद्ध महिला की मर्ज क्या है किसी को पता नहीं, अस्पताल में आम मरीजों की तरह कुछ दाने पेट भरने के लिए मिले तो घर के गम को भी भूल जाती है और अस्पताल ही उनका घर बन जाता है.

मां को बेटा ने घर से निकाला

अस्पताल में रखा जाता है ख्याल
सदर अस्पताल के कर्मचारी नागेंद्र सहनी ने बताया कि यह वृद्ध महिला बीते 1 साल से अस्पताल में रह रही है और जब कभी घर की याद आती है, तो कुछ दिनों के लिए चली जाती है. इसके बाद फिर वापस अस्पताल लौट जाती है. वहीं, अस्पताल में भी इसका ख्याल रखा जाता है.

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वृद्धा ने अस्पताल में लिया आसरा

वृद्धावस्था होता है जिंदगी का अंतिम दौर
बता दें कि इंसान की जिंदगी चार हिस्सों में बंटी होती है. शिशु अवस्था जहां जिंदगी का पहला दौर होता है. वहीं, वृद्धावस्था जिंदगी का अंतिम दौर और इन दोनों दौर में बच्चे और बूढ़े को अपने परिवार का प्यार चाहिए होता है, लेकिन समय के बदलते दौर में आज यह प्यार अब स्वार्थ बन गया है.

कटिहार: एक तरफ जहां बिहार सरकार बुजुर्गों के भरण-पोषण को लेकर कानून बना रही है. वहीं, दूसरी ओर कुछ लोगों पर सरकार के इस कानून का कोई असर नहीं पड़ रहा. जिले में एक वृद्ध महिला जिंदगी के आखिरी कदम पर दर-दर की ठोकरें खा रही है. बीते 1 साल से सदर अस्पताल उसका आशियाना बन गया है. जहां उसको अस्पताल प्रशासन की ओर से भोजन और दवा मुहैया कराई जाती है.

बड़े घराने से रखती है तालुकात
इस बूढ़ी मां की फूटती काया को देखिए, शरीर पर नाममात्र का मांस है, चेहरे पर झुर्रियां निकल आई हैं और उम्र लगभग 90 का है. बताया जाता है कि यह वृद्धा शहर के नया टोला के किसी लाखपति परिवार से तालुकात रखती है और कुछ जमीन भी इसके नाम हैं, लेकिन बहू के आते ही यह वृद्ध सड़क पर आ गई. क्योंकि इसके नाम की जमीन और मकान पर बेटे और बहु ने कब्जा कर लिया और वृद्धा ने विरोध किया तो उसे धक्के मारकर घर से निकाल दिया. तब से यह वृद्ध महिला कभी अस्पताल में तो कभी सड़क के चौराहे पर अपने परिजनों की आस देख रही है.

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ईटीवी से बात करती वृद्ध महिला

वृद्ध महिला की मर्ज क्या है किसी को पता नहीं
बता दें कि इतने दमन के बावजूद यह पीड़िता भारतीय महिला का पहचान नहीं छोड़ रही है. जुबां पर घर के झगड़े का नाम तक नहीं आता और कैमरा देखते हैं बस इतना कहती है कि वह तो बीमार है और इलाज के लिए यहां आई है. वृद्ध महिला बताती है कि इसका घर शहर के नया टोला में है और इलाज के लिए अस्पताल आई है.
इस वृद्ध महिला की मर्ज क्या है किसी को पता नहीं, अस्पताल में आम मरीजों की तरह कुछ दाने पेट भरने के लिए मिले तो घर के गम को भी भूल जाती है और अस्पताल ही उनका घर बन जाता है.

मां को बेटा ने घर से निकाला

अस्पताल में रखा जाता है ख्याल
सदर अस्पताल के कर्मचारी नागेंद्र सहनी ने बताया कि यह वृद्ध महिला बीते 1 साल से अस्पताल में रह रही है और जब कभी घर की याद आती है, तो कुछ दिनों के लिए चली जाती है. इसके बाद फिर वापस अस्पताल लौट जाती है. वहीं, अस्पताल में भी इसका ख्याल रखा जाता है.

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वृद्धा ने अस्पताल में लिया आसरा

वृद्धावस्था होता है जिंदगी का अंतिम दौर
बता दें कि इंसान की जिंदगी चार हिस्सों में बंटी होती है. शिशु अवस्था जहां जिंदगी का पहला दौर होता है. वहीं, वृद्धावस्था जिंदगी का अंतिम दौर और इन दोनों दौर में बच्चे और बूढ़े को अपने परिवार का प्यार चाहिए होता है, लेकिन समय के बदलते दौर में आज यह प्यार अब स्वार्थ बन गया है.

Intro:कटिहार

बिहार सरकार बुजुर्गों के भरण-पोषण से जुड़े कायदे को एक और सख्त बनाने की कवायद कर रही है वहीं दूसरी ओर सूबे में बूढ़े मां बाप का ख्याल रखना लोगों की एक फितरत से बन गई है। जन्मदाता कहां है किसी को ख्याल नहीं बेटें तो बस अपने पत्नी के साथ जिंदगी गुजारने में ही व्यस्त हैं। कटिहार में एक वृद्धा जिंदगी की आखरी कदम पर दर दर की ठोकरें खा रही है। बीते 1 साल से सदर अस्पताल उसका आशियाना बन बैठा है। अब तो कर्मचारी भी उसे कुछ मुट्ठी दाने और कुछ दवाइयां देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझते हैं।


Body:जरा गौर से इस फूटती काया को देखिए। शरीर पर नाममात्र का मांस है, चेहरे पर झुरिया निकल आई है और उम्र लगभग 90 का है। बताया जाता है कि यह वृद्धा शहर के नया टोला के किसी लखपति परिवार से तालुकात रखती है और कुछ जमीन भी इसके नाम है लेकिन बहू के आते ही साल 2 साल बाद यह बृद्धा सड़क पर आ गई। क्योंकि इसके नाम की जमीन और मकान पर बेटे बहुओं ने कब्जा कर लिया और थोड़ा सा बृद्धा ने विरोध किया तो उसे धक्का मार घर से निकाल डाला। तब से यह बृद्धा कभी अस्पताल में तो कभी सड़क के चौराहे पर अपने परिजनों की आस देख रही है।

इतने दमन के बावजूद यह पीडिता भारतीय महिला का पहचान नहीं छोड़ती। जुबां पर घर के झगड़े का नाम भी नहीं आता और कैमरा देखते हैं बस इतना कहती है कि वह तो बीमार है बस इलाज के लिए आई है। वृद्धा बताती है इसका घर शहर के नया टोला में है और इलाज के लिए अस्पताल पहुंच जाती है।

लेकिन मर्ज क्या है किसी को पता नहीं अस्पताल में आम मरीजों की तरह कुछ दाने पेट भरने के लिए मिले तो घर के गम को भी भूल जाती है और अस्पताल हीं घर बन जाता है। सदर अस्पताल के कर्मचारी नागेंद्र सहनी बताते हैं यह वृद्ध महिला बीते 1 साल से अस्पताल में रह रही है और जब कभी घर की याद आती है तो कुछ दिनों के लिए चली जाती है और फिर लौट कर अस्पताल आ जाती है। मानो अस्पताल इसका घर सा हो गया है। अस्पताल में भी इसका ख्याल रखा जाता है। खाना और रहने का व्यवस्था कर दिया जाता है।


Conclusion:इंसान की जिंदगी चार हिस्सों में बंटी होती है। शिशु अवस्था जहां जिंदगी का पहला दौर होता है वही वृद्धावस्था जिंदगी का अंतिम दौर और इस दोनों दौर में बच्चे और बूढ़े को अपने परिवार का प्यार चाहिए होता है लेकिन समय के बदलते दौर में आज यह प्यार अब स्वार्थ बन गया है। तभी तो 90 साल की यह वृद्धा बिते एक साल से सड़क और अस्पताल के बीच पेंडुलम की तरह जिंदगी झुल रही है और इसके परिजन जलते रोम की तरह बेफिक्र होकर बिन बजा रहे हैं। मौजूदा समय में देश में ऐसे लाखों बुजुर्ग है जिसे उनके बच्चों ने प्यार की जगह दुत्कार दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए सरकार के नये सख्त कानून से ऐसे बूढ़े मां-बाप को मदद मिल पाएगी।
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