कैमूर: बिहार सरकार शिक्षा में सुधार के लाखों दावे क्यों न कर लें, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. जिलें के रामगढ़ स्थित उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय में 1 करोड़ 30 लाख की लागत से भवन निर्माण का कार्य तो कर दिया गया, लेकिन 4 साल बीत जाने के बाद भी आज तक इस स्कूल में एक भी शिक्षक की नियुक्ति नहीं की गई. ऐसे में 'कैसे पढ़ेगा बिहार और कैसे बढ़ेगा बिहार' इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
खुद से पढ़ाई करने पर मजबूर हैं छात्रा
बता दें कि इस विद्यालय में वर्तमान में क्लास 9 में 4 छात्रा है, जबकि क्लास 10 में 3 है. विद्यालय में पढ़ाई 2015 से शुरू हुई और आजतक एक भी शिक्षक की नियुक्ति नहीं हो पाई है. सबसे ताज्जुब की बात यह है कि इस विद्यालय कि छात्राएं खुद अपने भवन का ताला खोलती है और फिर स्मार्ट क्लास में जाकर खुद से पढ़ाई करती है. विद्यालय के बच्चें ही गुरुजी है और छात्र भी है. छात्रा शहजादी और शबनम खातून ने बताया कि वे स्कूल में खुद से स्मार्ट क्लास चलाती है और पढ़ाई करती है. उन्होंने बताया कि अगर शिक्षक होते तो पढ़ाई अच्छे से हो पाता, लेकिन कोई शिक्षक नहीं है. इसलिए खुद से पढ़ाई करने पर मजबूर है.
'शिक्षक नहीं होने से छात्राओं ने छोड़ा विद्यालय'
मध्य विद्यालय नोनार के प्रधानाचार्य रविन्द्र सिंह ने बताया कि उन्हें इस विद्यालय का प्रभारी बनाया गया है. 2015 में जब क्लास 9 में नामांकन शुरू किया गया तो करीब 40 छात्रों ने एडमिशन लिया, लेकिन शिक्षकों की नियुक्ति न होने से सभी छात्र विद्यालय छोड़ दिया. मध्य विद्यालय के शिक्षक अजित सिंह ने बताया कि 1 करोड़ 30 लाख की लागत से जब गांव में 10+2 के लिए विद्यालय का भवन बनकर तैयार हुआ तो गांव में खुशी की लहर दौड़ गई थी, लेकिन शिक्षकों की नियुक्ति न होने के कारण बच्चें दूसरे जगह चले गए.
शिक्षा के प्रति सरकार गंभीर नहीं
शिक्षा विभाग के कार्यक्रम अधिकारी रोहित चौरसिया ने बताया कि उन्हें इस बात की जानकारी नही थी कि विद्यालय में शिक्षक नहीं है उन्होंने कहा कि मामले की जांच कर जल्द से जल्द शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी. ऐसे में कहीं न कहीं यह सवाल खड़ा होता है कि क्या सरकार शिक्षा के प्रति गंभीर है या बिल्डिंग बनाकर खानापूर्ति और पेपरवर्क कर रही है.