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कैमूर: 6 साल से बिना शिक्षक के पढ़ाई कर रहे हैं बच्चे, कुंभकर्णी नींद में शिक्षा विभाग

साल 2013 में चांद प्रखंड के इंटर स्तरीय गांधी स्कूल को बारहवीं तक की मान्यता मिली. लेकिन, उसके लिए आजतक भवन नहीं बन पाया. केवल दो शिक्षकों के भरोसे पूरा स्कूल चल रहा है.

स्कूल की बदहाली
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Published : Sep 19, 2019, 1:59 PM IST

कैमूर: प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था सुधरने की बजाए दिनों दिन गिरती जा रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बिहार में सरकारी स्कूलों का हाल-बेहाल है. हालत यह है कि स्कूल में टीचर नहीं हैं. बुनियादी सुविधाएं तक मौजूद नहीं हैं. भवन जर्जर है. यह हाल कैमूर जिले के चांद प्रखंड के इंटरस्तरीय गांधी स्कूल का है.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

इस स्कूल में पिछले 6 सालों से इंटरमीडिएट साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स के छात्र-छात्रा बिना टीचर के पढ़ाई कर रहे हैं. उन्हें साल भर में केवल 3 बार स्कूल आने की जरूरत पड़ती है. एक बार एडमिशन के वक्त, दूसरी बार रजिस्ट्रेशन के समय और तीसरी बार एडमिट कार्ड लेने के लिए आना होता है.

kaimur
छात्राओं ने बताई परेशानी

65 साल पुराना है स्कूल
ऐसे हालात यह सोचने पर जरूर मजबूर करता है कि आखिर बिहार का भविष्य कैसा होगा? गौरतलब है कि इस विद्यालय की समस्या केवल इतनी ही नहीं है. 65 साल पुराने इस स्कूल की भवन जर्जर हो चुकी है. दीवारों में दरारें पड़ गई है. दरवाजे-खिड़कियां नदारद हैं. बच्चे कमरे के बाहर बरामदे में जमीन पर बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं. कई बार शिकायतों के बावजूद सरकार और प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है.

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जर्जर हाल में कक्षा

कमरे के अभाव में नहीं चलता है क्लास
बता दें कि इस विद्यालय में लगभग 2000 छात्र-छात्राओं का नामांकन है. यहां साइंस, आर्ट्स और कॉमर्स तीनों विषय की पढ़ाई होती है. साल 2013 में इस विद्यालय को बारहवीं तक की मान्यता मिली. लेकिन, उसके लिए आजतक भवन नहीं बन पाया. केवल दो शिक्षकों के भरोसे पूरा स्कूल चल रहा है. सरकार ने अपनी पीठ थपथपाने के लिए स्कूल को तो अपग्रेड किया. लेकिन, सुविधा के नाम पर कुछ उपलब्ध कराना तो दूर शिक्षक तक मुहैया नहीं कराया गया. इस विद्यालय में इंटरमीडिएट के छात्र-छात्राओं के लिए प्रैक्टिकल की भी कोई व्यवस्था नहीं है.

2000 बच्चों के पढ़ने के लिए केवल 9 कमरे
क्लास 9वीं और 10वीं को मिलाकर इस विद्यालय में करीब 1400 बच्चे हैं. वहीं, इंटरमीडिएट में करीब 600 बच्चे हैं. यानी 2000 बच्चों वाले इस विद्यालय का संचालन मात्र 9 कमरों में ही हो रहा है. आलम यह होता है कि बच्चों को क्लासरूम में बैठने की जगह नहीं मिलती है. ऐसे में आधे बच्चे क्लासरूम के बाहर पढ़ाई करते हैं.

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जमीन पर बैठने को मजबूर हैं छात्राएं

क्या कहते हैं स्कूल प्रिंसिपल?
विद्यालय के प्रभारी प्रधानाचार्य देवकान्त गुप्ता ने बताया कि विद्यालय में क्लासरूम की कमी है. जो क्लासरूम हैं वो भी जर्जर हाल में हैं. उन्होंने बताया कि इंटरमीडिएट में विज्ञान और अंग्रेजी के लिए एक भी शिक्षक नहीं है. यहां एडमिशन लेने वाले इंटरमीडिएट के छात्र स्कूल नहीं आते हैं. प्रभारी ने बताया कि इस समस्या को लेकर मंत्री, जिला और ब्लॉक स्तर के सभी अधिकारियों से कई दफा गुहार लगा चुके हैं. लेकिन, अभी तक आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला.

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भवन के अभाव में बाहर पढ़ने को मजबूर

शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहा स्कूल
विद्यालय के शिक्षकों ने बताया कि क्लास में छात्र-छात्राओं की संख्या अधिक होती है. इसलिए आधे बच्चों को बाहर तो आधे को अंदर बैठाना पड़ता है. जो बच्चे कक्षा के अंदर होते हैं, वह पढ़ लेते हैं. बाहर वाले बच्चों को काफी नुकसान होता है. शिक्षकों ने यह भी कहा कि स्कूल में एक भी क्लर्क नहीं हैं. ऐसे में यहां आने वाले बच्चों का भविष्य क्या होगा यह सहज ही समझा जा सकता है.

कैमूर: प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था सुधरने की बजाए दिनों दिन गिरती जा रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बिहार में सरकारी स्कूलों का हाल-बेहाल है. हालत यह है कि स्कूल में टीचर नहीं हैं. बुनियादी सुविधाएं तक मौजूद नहीं हैं. भवन जर्जर है. यह हाल कैमूर जिले के चांद प्रखंड के इंटरस्तरीय गांधी स्कूल का है.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

इस स्कूल में पिछले 6 सालों से इंटरमीडिएट साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स के छात्र-छात्रा बिना टीचर के पढ़ाई कर रहे हैं. उन्हें साल भर में केवल 3 बार स्कूल आने की जरूरत पड़ती है. एक बार एडमिशन के वक्त, दूसरी बार रजिस्ट्रेशन के समय और तीसरी बार एडमिट कार्ड लेने के लिए आना होता है.

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छात्राओं ने बताई परेशानी

65 साल पुराना है स्कूल
ऐसे हालात यह सोचने पर जरूर मजबूर करता है कि आखिर बिहार का भविष्य कैसा होगा? गौरतलब है कि इस विद्यालय की समस्या केवल इतनी ही नहीं है. 65 साल पुराने इस स्कूल की भवन जर्जर हो चुकी है. दीवारों में दरारें पड़ गई है. दरवाजे-खिड़कियां नदारद हैं. बच्चे कमरे के बाहर बरामदे में जमीन पर बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं. कई बार शिकायतों के बावजूद सरकार और प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है.

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जर्जर हाल में कक्षा

कमरे के अभाव में नहीं चलता है क्लास
बता दें कि इस विद्यालय में लगभग 2000 छात्र-छात्राओं का नामांकन है. यहां साइंस, आर्ट्स और कॉमर्स तीनों विषय की पढ़ाई होती है. साल 2013 में इस विद्यालय को बारहवीं तक की मान्यता मिली. लेकिन, उसके लिए आजतक भवन नहीं बन पाया. केवल दो शिक्षकों के भरोसे पूरा स्कूल चल रहा है. सरकार ने अपनी पीठ थपथपाने के लिए स्कूल को तो अपग्रेड किया. लेकिन, सुविधा के नाम पर कुछ उपलब्ध कराना तो दूर शिक्षक तक मुहैया नहीं कराया गया. इस विद्यालय में इंटरमीडिएट के छात्र-छात्राओं के लिए प्रैक्टिकल की भी कोई व्यवस्था नहीं है.

2000 बच्चों के पढ़ने के लिए केवल 9 कमरे
क्लास 9वीं और 10वीं को मिलाकर इस विद्यालय में करीब 1400 बच्चे हैं. वहीं, इंटरमीडिएट में करीब 600 बच्चे हैं. यानी 2000 बच्चों वाले इस विद्यालय का संचालन मात्र 9 कमरों में ही हो रहा है. आलम यह होता है कि बच्चों को क्लासरूम में बैठने की जगह नहीं मिलती है. ऐसे में आधे बच्चे क्लासरूम के बाहर पढ़ाई करते हैं.

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जमीन पर बैठने को मजबूर हैं छात्राएं

क्या कहते हैं स्कूल प्रिंसिपल?
विद्यालय के प्रभारी प्रधानाचार्य देवकान्त गुप्ता ने बताया कि विद्यालय में क्लासरूम की कमी है. जो क्लासरूम हैं वो भी जर्जर हाल में हैं. उन्होंने बताया कि इंटरमीडिएट में विज्ञान और अंग्रेजी के लिए एक भी शिक्षक नहीं है. यहां एडमिशन लेने वाले इंटरमीडिएट के छात्र स्कूल नहीं आते हैं. प्रभारी ने बताया कि इस समस्या को लेकर मंत्री, जिला और ब्लॉक स्तर के सभी अधिकारियों से कई दफा गुहार लगा चुके हैं. लेकिन, अभी तक आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला.

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भवन के अभाव में बाहर पढ़ने को मजबूर

शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहा स्कूल
विद्यालय के शिक्षकों ने बताया कि क्लास में छात्र-छात्राओं की संख्या अधिक होती है. इसलिए आधे बच्चों को बाहर तो आधे को अंदर बैठाना पड़ता है. जो बच्चे कक्षा के अंदर होते हैं, वह पढ़ लेते हैं. बाहर वाले बच्चों को काफी नुकसान होता है. शिक्षकों ने यह भी कहा कि स्कूल में एक भी क्लर्क नहीं हैं. ऐसे में यहां आने वाले बच्चों का भविष्य क्या होगा यह सहज ही समझा जा सकता है.

Intro:कैमूर।

नीतीश कुमार के बहारे वाले बिहार में कुछ भी सम्भव हैं। यहां नामुमकिन कुछ भी नही हैं जनाब। कैमूर जिले के चांद प्रखंड के +2 गांधी स्कूल इसका जीता जागता उदाहरण हैं। यहां पिछले 6 सालों से इंटरमीडिएट साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स के छात्रों को स्कूल सिर्फ साल में 3 बार आने की जरूरत पड़ती हैं। एक एडमिशन के वक़्त दूसरा रजिस्ट्रेशन के वक़्त और तीसरा एडमिट कार्ड लेने। जरा सोचिए आखिर में ऐसे कैसा होगा बढ़ते और बदलते बिहार की तस्वीर। इस विद्यालय में ऐसी एक नही अनेक समस्या हैं लेकिन यहां गांव के गरीब बच्चें पढ़ाई करते हैं जनाब शायद इसलिए 65 साल पुराने इस विद्यालय की तस्वीर आज भी नही बदली हैं।


Body:आपकों बतादें कि इस विद्यालय में लगभग 2000 छात्र छात्रएं पढ़ते हैं। यहाँ इंटरमीडिएट में साइंस, आर्ट्स और कॉमर्स तीनों विषय की पढ़ाई होती हैं। वर्ष 2013 में इस विद्यालय को अपग्रेड हैं +2 विद्यालय का दर्जा दिया गया हैं। लेकिन भवन आजतक नही बन सका हैं। इस विद्यालय का दुर्भाग्य यह हैं कि यहां कमरे के आभाव में इंटरमीडिएट के छात्रों का क्लास पिछले 6 वर्षो से नही संचालित हो रहा हैं। इंटरमीडिएट में केवल बालिकाओं के क्लास संचालित होता हैं। यही नही इस विद्यालय में इंटरमीडिएट के लिए एक भी विज्ञान के शिक्षक नही हैं। कॉमर्स और आर्ट्स में एक एक शिक्षकों के भरोशे हैं।

ऐसे में सोचने वाली बात यह हैं कि सरकार ने अपनी पीठ थपथपाने के लिए स्कूल को अपग्रेड तो किया लेकिन स्कूल में सुविधा के नाम पर कुछ उपलब्ध कराना तो दूर की बात हैं शिक्षक तक उपलब्ध न करवा सके। यही नही इस विद्यालय में इंटरमीडिएट के छात्र छात्राओं के लिए प्रैक्टिकल की भी कोई व्यवस्था नही हैं। ऐसे में विज्ञान की पढ़ाई कर रहे इस विद्यालय के बच्चों के भविष्य के साथ आखिर खिलवाड़ नही तो क्या किया जा रहा हैं।

दूसरी तरफ क्लास 9 और 10 मिलाकर इस विद्यालय में करीब 1400 बच्चें हैं और इंटरमीडिएट में करीब 600 बच्चें हैं। यानी 2000 बच्चों वाले इस विद्यालय का संचालन मात्र 9 कमरों के स्कूल में होता हैं। आलम यह होता हैं कि बच्चों को क्लासरूम में बैठने की जगह नही मिलती हैं ऐसे में आधे बच्चें क्लास में तो आधे बरामदे में बैठकर पढ़ाई करते हैं। शिक्षक क्लासरूम की ब्लैकबोर्ड पर कुछ समझाते हैं तो बाहर बरामदे में बैठी छात्राएं ताक झाक में लगी रहती हैं कि उन्हें भी कुछ समझ मे आ जाए।

विद्यालय के प्रभारी प्रधानाचार्य देवकान्त गुप्ता ने बताया कि विद्यालय में क्लासरूम की कमी हैं। जितने क्लासरूम हैं वो भी जर्जर स्तिथ में हैं। उन्होंने बताया कि इंटरमीडिएट में विज्ञान और अंग्रेजी के एक भी शिक्षक नही हैं। क्लासरूम के आभाव में इंटरमीडिएट में छात्रों का क्लास संचालन पिछले 6 सालों से नही किया जा रहा हैं तो दूसरी तरफ छात्राओं की पढ़ाई करवाई जाती हैं। यहां एडमिशन लेने वाले इंटरमीडिएट के छात्र स्कूल नही आते हैं। प्रभारी ने बताया कि मंत्री से लेकर जिला और ब्लॉक स्तर के सभी अधिकारियों से कई दफा गुहार लगा चुके हैं लेकिन अभी तक आश्वासन के अलावे कुछ नही मिला हैं।

विद्यालय के शिक्षक तौफीक अंसारी ने बताया कि क्लास में बच्चियों की संख्या अधिक होती हैं इसलिए आधी को क्लास के अंदर और आधी लड़कियों को बरामदे में बैठाया जाता हैं। जो बच्चें अंदर होते हैं उनकी पढ़ाई तो होती हैं लेकिन बाहर बैठी बच्चियों को नुकशान उठाना पड़ता हैं।

शिक्षक विमल कुमार मिश्र ने बताया कि 65 साल पुराने इस विद्यालय की सभी क्लासरूम जर्जर हो चुकी हैं। बच्चों का संख्या इतना ज्यादा हैं कि बिना भवन निर्माण के पढ़ना मुश्किल हैं।

शिक्षक रोहित कुमार सिंह ने बताया कि यहां एक भी क्लर्क नही हैं। शिक्षकों का समय आफिस का कार्यो को पूरा करने में चला जाता हैं ऐसे में कैसे क्लास का सही संचालन किया जा सकता हैं।


विद्यालय की छात्राओं ने बताया कि उनके शिक्षक आफिस के कार्य मे ज्यादा व्यस्त रहते हैं इसलिए क्लास का संचालन अच्छे नही होता हैं। विद्यालय में बच्चियों की संख्या अधिक और बैठने का जगह भी नही हैं ऐसे में पढ़ाई नही हो पाती हैं। इंटरमीडिएट की लड़कियों ने बताया कि उन्होंने आजतक प्रैक्टिकल नही किया हैं।


Conclusion:
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