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बारिश में टापू बन जाता है ये स्कूल, जान जोखिम में डालकर तैरकर जाते हैं बच्चे और शिक्षक - etv bharat bihar

इस विद्यालय में लगभग 180 छात्र पढ़ाई करते हैं. लेकिन शिक्षा विभाग के उदासीन रवैये के कारण यहां पढ़ने वाले बरसात के दिनों में रोजाना पानी तैरने को मजबूर हैं. शिक्षा विभाग की तरफ से अभी तक इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.

स्कूल में जलजमाव
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Published : Jul 12, 2019, 9:09 PM IST

कैमूर: जिला मुख्यालय भभुआ से महज 12 किमी दूर बसे सादेकवई गांव के बच्चे पानी में तैरकर स्कूल जाने को मजबूर हैं. बारिश के दिनों में इस स्कूल के चारों तरफ जलजमाव हो जाता है. इसके कारण स्कूल के शिक्षक से लेकर बच्चे तक सभी उस पानी को तैरकर स्कूल जाने को विवश हैं.

180 छात्र करते हैं पढ़ाई
इस विद्यालय में लगभग 180 छात्र पढ़ाई करते हैं. लेकिन शिक्षा विभाग के उदासीन रवैये के कारण यहां पढ़ने वाले बरसात के दिनों में रोजाना पानी तैरने को मजबूर हैं. शिक्षा विभाग की तरफ से अभी तक इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.

छात्रों का बयान

स्कूल जाने के लिए नहीं है रास्ता
छात्रों के अनुसार गांव से स्कूल जाने का कोई रास्ता ही नही हैं. गांव के मैदानों से सभी बच्चे स्कूल जाते हैं. मगर बारिश के दिनों में इन रास्तों में पानी भर जाता है. जिसके बाद उन्हें पानी तैरकर स्कूल जाना पड़ता है.

15 सालों से स्कूल की ऐसी ही दशा
स्कूल की एक शिक्षिका ने बताया कि पिछले 15 सालों से स्कूल की ऐसी ही दशा है. हर बार बरसात के मौसम में स्कूल के चारों तरफ जलजमाव हो जाता है. छात्र से लेकर शिक्षक सभी तैरकर ही स्कूल आते हैं.

नहीं हो रही कोई सुनवाई
वहीं, विद्यालय के प्रभारी प्रधानाचार्य ने बताया कि वो 2016 से यहां काम कर रहे हैं. लेकिन आज तक स्थिति वही है. बच्चे पानी तैरने को मजबूर हैं. इसके लिए कई बार शिक्षा विभाग को पत्र भी लिखा जा चुका है. लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है.

कैमूर: जिला मुख्यालय भभुआ से महज 12 किमी दूर बसे सादेकवई गांव के बच्चे पानी में तैरकर स्कूल जाने को मजबूर हैं. बारिश के दिनों में इस स्कूल के चारों तरफ जलजमाव हो जाता है. इसके कारण स्कूल के शिक्षक से लेकर बच्चे तक सभी उस पानी को तैरकर स्कूल जाने को विवश हैं.

180 छात्र करते हैं पढ़ाई
इस विद्यालय में लगभग 180 छात्र पढ़ाई करते हैं. लेकिन शिक्षा विभाग के उदासीन रवैये के कारण यहां पढ़ने वाले बरसात के दिनों में रोजाना पानी तैरने को मजबूर हैं. शिक्षा विभाग की तरफ से अभी तक इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.

छात्रों का बयान

स्कूल जाने के लिए नहीं है रास्ता
छात्रों के अनुसार गांव से स्कूल जाने का कोई रास्ता ही नही हैं. गांव के मैदानों से सभी बच्चे स्कूल जाते हैं. मगर बारिश के दिनों में इन रास्तों में पानी भर जाता है. जिसके बाद उन्हें पानी तैरकर स्कूल जाना पड़ता है.

15 सालों से स्कूल की ऐसी ही दशा
स्कूल की एक शिक्षिका ने बताया कि पिछले 15 सालों से स्कूल की ऐसी ही दशा है. हर बार बरसात के मौसम में स्कूल के चारों तरफ जलजमाव हो जाता है. छात्र से लेकर शिक्षक सभी तैरकर ही स्कूल आते हैं.

नहीं हो रही कोई सुनवाई
वहीं, विद्यालय के प्रभारी प्रधानाचार्य ने बताया कि वो 2016 से यहां काम कर रहे हैं. लेकिन आज तक स्थिति वही है. बच्चे पानी तैरने को मजबूर हैं. इसके लिए कई बार शिक्षा विभाग को पत्र भी लिखा जा चुका है. लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है.

Intro:कैमूर।

जिले का यह स्कूल हल्की सी बारिष के बाद बन जाता है टापू। वैसे तो इस स्कूल तक पहुँचे का कोई रास्ता नही है लेकिन छोटे छोटे बच्चों की यह मजबूरी है कि उन्हें खेत के रास्ते अपने स्कूल जाना पड़ता हैं। सबसे अधिक परेशानी तो बरसात में होती है जब स्कूल चारों तरफ से जलमग्न हो जाता हैं और शिक्षक शिक्षिकाओं के साथ छोटे छोटे नौनिहाल भी पानी मे गिरते उठते स्कूल पहुचते हैं।


Body:आपकों बतादें कि जिला मुख्यालय भभुआ से महज 12 किमी दूर सादेकवई गांव स्तिथ प्राथमिक विद्यालय सादेकवई तक पहुँचे का रास्ते अभी तक शिक्षा विभाग नही ढूंढ पाई हैं। इस विद्यालय में लगभग 180 छोटे छोटे बच्चों पढ़ाई करते हैं। लेकिन शिक्षा विभाग के उदासीन रवैये के कारण यह पढ़ने वाले 1 से 5 क्लास तक के बच्चों को बरसात के दिनों में रोजाना पानी मे गिरते उठते स्कूल तक पहुँचे के लिए लगभग 300 मीटर का सफर तय करना पड़ता हैं। आलम यह है कि अधिक पानी मे कभी भी कोई भी दुर्घटना हो सकती हैं लेकिन सरकार और शिक्षा विभाग पिछले 3 दशक से शायद किसी अनहोनी का इंतजार कर रहे हैं तभी तो आज तक इस विद्यालय के लिए एक सड़क तक का निर्माण नही करा सके हैं।

ईटीवी भारत ने जब इस स्कूल के बच्चों और शिक्षकों से बात किया तो शिक्षा व्यवस्था की सारी पोल खुल गई। बच्चों ने बताया कि उन्हें स्कूल का कोई रास्ता ही नही हैं। ऐसे में वो सालोंभर दूसरों के खेत से होकर स्कूल पहुँचते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी बरसात के दिनों में होती हैं। स्कूल के चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ पानी रहता हैं और यह स्कूल टापू बन जाता हैं। बच्चों ने बताया कि वो पानी मे गिरते उठते किसी तरह स्कूल आते हैं तो कई ने बताया कि अपने छोटे भाई को कंधे पर बैठाकर स्कूल लाते हैं। लेकिन बेचारे छोटे बच्चों को क्या पता है कि यह नीतीश कुमार का बहारे बिहार वाला स्कूल हैं जहाँ बिना सड़क के ही उन्हें सालोभर आना पड़ेगा और शिक्षा लेना पड़ेगा।

स्कूल की एक शिक्षिका ने बताया कि वो यह आलम पिछले 15 सालों से देखती आ रही हैं। साल बदलते गए लेकिन स्कूल का आलम वो है जो पहले था। उन्होंने बताया कि पिछले साल बरसात के मौसम में स्कूल आने के क्रम में खुद उनका पैर टूट गया था। लेकिन किसी को कोई परवाह नही हैं।

विद्यालय के प्रभारी प्रधानाचार्य ने बताया कि वो 2016 से अपने पोस्ट पर है लेकिन विद्यालय बहुत पुराना है जहां गांव के अधिकांश गरीब घर के बच्चे पढ़ाई करने आते हैं। उन्हें बताया कि हर साल स्कूल का एक रिपोर्ट शिक्षा विभाग को दिया जाता हैं लेकिन विभाग द्वारा रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नही होती हैं और इस स्कूल का सड़क आज तक नही बन सका। यहां तक कि स्कूल पर आने के लिए कोई रास्ता ही नही हैं।


Conclusion:
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