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कभी अंबानी को बिहार के इस बिजनेसमैन ने छोड़ा था पीछे, 2019 में दुनिया को कहा अलविदा

भारत की टॉप 5 दवा कंपनियों में से एक अल्केम के संस्थापक सम्प्रदा सिंह को पूरा भारत संप्रदा बाबू ही कहता था और कहता रहेगा. पटना यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद भी संप्रदा बाबू ने खेती की राह चुनी.

अल्केम के संस्थापक सम्प्रदा सिंह
अल्केम के संस्थापक सम्प्रदा सिंह
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Published : Dec 31, 2019, 8:08 AM IST

जहानाबाद: सम्प्रदा सिंह का नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है. जहानाबाद में जन्मे सम्प्रदा सिंह का साल 2019 की 27 जुलाई को निधन हो गया. उन्होंने मुंबई के लीलावती अस्पताल में आखिरी सांस ली. उनके जाने से बिहार ने एक सफल बिजनेसमैन, अल्केम दवा कंपनी के संस्थापक और फोर्ब्स की लिस्ट में अंबानी को पछाड़ने वाली शख्सियत को खो दिया.

भारत की टॉप 5 दवा कंपनियों में से एक अल्केम के संस्थापक सम्प्रदा सिंह को पूरा भारत संप्रदा बाबू ही कहता था और कहता रहेगा. पटना यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद भी संप्रदा बाबू ने खेती की राह चुनी. स्थानीय लोग कहते हैं कि उस समय गांव के लोग पढ़े लिखे नौजवान को खेती करता देख मजाक उड़ाते थे. कहते थे कि 'पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो रे सम्प्रदा का खेल'.

देखें पूरी रिपोर्ट

ओकरी गांव में बने हैं स्कूल और लाइब्रेरी
जहानाबाद के ओकरी गांव में सम्प्रदा सिंह का बचपन गुजरा. आज इस पुस्तैनी मकान में कोई नहीं रहता है. उनका पूरा परिवार मुंबई शिफ्ट हो गया है. ऐसे में पैतृक आवास की देखभाल के जिम्मा एक महिला केयरटेकर पर है. वे बताती हैं कि समय-समय पर सम्प्रदा सिंह के बच्चे और परिजन आते रहते हैं. सम्प्रदा सिंह पर बिहार और बिहारवासियों को गर्व है. उन्होंने कई बेरोजगारों को अपनी कंपनी में नौकरी दी और उनके घरों में खुशियां बिखेरी.

बिहार ही नहीं देश को हुआ था उनके जाने का दुख
सम्प्रदा सिंह के निधन पर राजनीति जगत के लोगों ने शोक जताया था. सीएम नीतीश कुमार ने भी श्रद्धांजलि दी थी. बिहार के इस लाल ने जहानाबाद के ओकरी से लेकर मुंबई तक का सफर पूरा किया. मामूली किसान परिवार से निकलकर एक दवा कंपनी की स्थापना तक का सफर उनके लिए कतई आसान नहीं था. उन्होंने खेती छोड़कर जब मुबंई की राह ली तो उनके पास केवल 1 लाख रुपये थे. अपनी मेहनत और इच्छाशक्ति के बल पर उन्होंने कोशिश की और एक सफल उद्यमी बन मिसाल पेश की. उनका जीवन लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है.

जहानाबाद: सम्प्रदा सिंह का नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है. जहानाबाद में जन्मे सम्प्रदा सिंह का साल 2019 की 27 जुलाई को निधन हो गया. उन्होंने मुंबई के लीलावती अस्पताल में आखिरी सांस ली. उनके जाने से बिहार ने एक सफल बिजनेसमैन, अल्केम दवा कंपनी के संस्थापक और फोर्ब्स की लिस्ट में अंबानी को पछाड़ने वाली शख्सियत को खो दिया.

भारत की टॉप 5 दवा कंपनियों में से एक अल्केम के संस्थापक सम्प्रदा सिंह को पूरा भारत संप्रदा बाबू ही कहता था और कहता रहेगा. पटना यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद भी संप्रदा बाबू ने खेती की राह चुनी. स्थानीय लोग कहते हैं कि उस समय गांव के लोग पढ़े लिखे नौजवान को खेती करता देख मजाक उड़ाते थे. कहते थे कि 'पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो रे सम्प्रदा का खेल'.

देखें पूरी रिपोर्ट

ओकरी गांव में बने हैं स्कूल और लाइब्रेरी
जहानाबाद के ओकरी गांव में सम्प्रदा सिंह का बचपन गुजरा. आज इस पुस्तैनी मकान में कोई नहीं रहता है. उनका पूरा परिवार मुंबई शिफ्ट हो गया है. ऐसे में पैतृक आवास की देखभाल के जिम्मा एक महिला केयरटेकर पर है. वे बताती हैं कि समय-समय पर सम्प्रदा सिंह के बच्चे और परिजन आते रहते हैं. सम्प्रदा सिंह पर बिहार और बिहारवासियों को गर्व है. उन्होंने कई बेरोजगारों को अपनी कंपनी में नौकरी दी और उनके घरों में खुशियां बिखेरी.

बिहार ही नहीं देश को हुआ था उनके जाने का दुख
सम्प्रदा सिंह के निधन पर राजनीति जगत के लोगों ने शोक जताया था. सीएम नीतीश कुमार ने भी श्रद्धांजलि दी थी. बिहार के इस लाल ने जहानाबाद के ओकरी से लेकर मुंबई तक का सफर पूरा किया. मामूली किसान परिवार से निकलकर एक दवा कंपनी की स्थापना तक का सफर उनके लिए कतई आसान नहीं था. उन्होंने खेती छोड़कर जब मुबंई की राह ली तो उनके पास केवल 1 लाख रुपये थे. अपनी मेहनत और इच्छाशक्ति के बल पर उन्होंने कोशिश की और एक सफल उद्यमी बन मिसाल पेश की. उनका जीवन लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है.

Intro:यह देखो संप्रदाय खेल पढ़े फारसी बेचे तेल जहानाबाद के मोदनगंज प्रखंड के ओखरी गांव में एक वक्त ऐसा भी था जब गांव के लोग मजे लेकर यह बात करते थे लेकिन उसी संपर्दा ने ऐसा खेल रचा की ओकरी और जहानाबाद ही नहीं बल्कि पूरे बिहार को अपने इस लाल पर गर्म होने लगा जहां तक कोई दूसरा बिहारी नहीं पूछा वहां तक इस बिहार के लाल जहानाबाद के ओकरी से मुंबई तक का सफर और पूरे विश्व में अपना नाम रोशन किया पहुंचकर दवा व्यवसाय में


Body:जहानाबाद जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी स्थित मोदनगंज प्रखंड के ओकरी गांव किसान परिवार में जन्मे संप्रदा सिंह का जन्म 1925 में हुआ था और 94 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हुई थी संप्रदा सिंह 45 साल पहले फार्मा कंपनी अल्केम का स्थापना किया फिर अपनी मेहनत और काबिलियत के बल पर उन्हें ₹26हजार से ज्यादा की वैल्यूएशन वाली कंपनी खड़ी करने वाले संप्रदा सिंह कभी एक केमिस्ट शॉप की नौकरी किया करते थे गया गया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद संपदा सी खेती करना चाहते थे पिता के पास केवल 25 बीघा जमीन थी पढ़ाई पूरा कर वह गांव और आधुनिक तरीके से खेती करने का कोशिश की पढ़ लिख कर खेती करने आए संपदा सिंह को देख कर गांव वालों ने पढ़ पारसी विचित्र देखो रे संपदा का खेल वो कहने लगे पर उन्हें क्या पता था कि एक दिन यही संप्रदा पूरा विश्व विख्यात हो जाएगा। वह धान और गेहूं की जगह सब्जी की खेती करना चाहते थे खेती शुरू की तो उनके सामने की सबसे बड़ी मस्तानी सिंचाई की आई संप्रदायिक ने डीजल से चलने वाला वाटर पंप लोन पर लिया और उसीसे सब्जी की सिंचाई करने की कोशिश की उसी साल अकाल पड़ गया और इंसानों और जानवरों को पीने के लिए पानी नहीं मिलता तो तो खेती कहां से होती फिर संप्रदा सिंह ने 1953 में रिटेल केमिस्ट के तौर पर एक छोटी-सी शुरूआत की उसके बाद उन्हें लक्ष्मी शर्मा के साथ पटना में दवा की दुकान शुरू की युवा हॉस्पिटल में दवा की सप्लाई करने लगे 1960 में पटना में मगद फरमा के बैनर तले उन्होंने इस मिशन का बिजनेस शुरू किया धीरे धीरे मेहनत के बल पर मल्टीनेशनल कंपनी को डिसटीब्यूटरशिप कुछ ही दिनों में भारत के पूर्वी क्षेत्र का दूसरा बड़ा डिसटीब्यूशन नेटवर्क खड़ा कर दिया पर संपर्दा बाबू यही तक नहीं रुके और इतने पर संतुष्ट होने वाले नहीं थे और कारोबार को विस्तार देने के लिए भी मुम्बई चले गए जहां उन्होंने ₹1 लाख रुपया लेकर मुंबई चले आए और दवा कंपनी शुरू की उन्होंने अल्केम लैबोरेट्रीज नाम की कंपनी बनाई दूसरे की दवा फैक्ट्री में अपनी दवा बनवाई दवा की मांग बढ़ने पर संप्रदा सिंह ने अपनी दवा फैक्ट्री शुरू कर दी उसके बाद उनकी कंपनी चल पड़ी


Conclusion:वही आज भी इनका पुराना घर जो जिले के ओकरी गांव में है उसका देखभाल एक महिला दाई के द्वारा किया जाता है वह बताती कि मुझे सुबह शाम दिया बत्ती के लिए रखा गया जिस का महीना भी मुझे मिलता है वही संपदा बाबू के परिवार के उनका चाचा लगने वाले नवल शर्मा ने बताते हैं कि संपदा शुरू से ही कुछ ना कुछ करने की मंशा रखे रहते थे और उसका परिणाम है कि आज उनका पूरे देश दुनिया में नाम रोशन है शुरुआती दौर में छाता बेचने से और खेती के तक काम करके दवा व्यवसाई में अपना भाग आज माया से संप्रदा बाबू अपने गांव में मंदिर का स्थापना करवया जहा पर हमेसा कीर्तन का आयोजन किया जाता गांव में सभी को सबका मदद करते थे अब उनका बच्चे इस कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं उनके तीन बच्चे हैं पहला नवल सिंह दूसरा बाल्मीकि सिंह और किसी यह तीनों अपने पिता के कंपनी को संभालते हैं मुंबई में और बीच-बीच में गांव परवीन का आना जाना लगा रहता है इनके चचेरा भतीजा बताते हैं कि कि अपने पिता और परिवार के सदस्य चाचा के बारे में अक्सर हम पहले का जो उनकी मेहनत था वह सुना करते थे और उनकी कंपनी में भी कार्यरत था उस दौरान में उनसे काफी करीबी था अफसोस है कि वह हम लोग के बीच में नहीं है लेकिन उनके मार्गदर्शन बताएं रास्ते परब सभी चलते हैं
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