जहानाबाद: सम्प्रदा सिंह का नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है. जहानाबाद में जन्मे सम्प्रदा सिंह का साल 2019 की 27 जुलाई को निधन हो गया. उन्होंने मुंबई के लीलावती अस्पताल में आखिरी सांस ली. उनके जाने से बिहार ने एक सफल बिजनेसमैन, अल्केम दवा कंपनी के संस्थापक और फोर्ब्स की लिस्ट में अंबानी को पछाड़ने वाली शख्सियत को खो दिया.
भारत की टॉप 5 दवा कंपनियों में से एक अल्केम के संस्थापक सम्प्रदा सिंह को पूरा भारत संप्रदा बाबू ही कहता था और कहता रहेगा. पटना यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद भी संप्रदा बाबू ने खेती की राह चुनी. स्थानीय लोग कहते हैं कि उस समय गांव के लोग पढ़े लिखे नौजवान को खेती करता देख मजाक उड़ाते थे. कहते थे कि 'पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो रे सम्प्रदा का खेल'.
ओकरी गांव में बने हैं स्कूल और लाइब्रेरी
जहानाबाद के ओकरी गांव में सम्प्रदा सिंह का बचपन गुजरा. आज इस पुस्तैनी मकान में कोई नहीं रहता है. उनका पूरा परिवार मुंबई शिफ्ट हो गया है. ऐसे में पैतृक आवास की देखभाल के जिम्मा एक महिला केयरटेकर पर है. वे बताती हैं कि समय-समय पर सम्प्रदा सिंह के बच्चे और परिजन आते रहते हैं. सम्प्रदा सिंह पर बिहार और बिहारवासियों को गर्व है. उन्होंने कई बेरोजगारों को अपनी कंपनी में नौकरी दी और उनके घरों में खुशियां बिखेरी.
बिहार ही नहीं देश को हुआ था उनके जाने का दुख
सम्प्रदा सिंह के निधन पर राजनीति जगत के लोगों ने शोक जताया था. सीएम नीतीश कुमार ने भी श्रद्धांजलि दी थी. बिहार के इस लाल ने जहानाबाद के ओकरी से लेकर मुंबई तक का सफर पूरा किया. मामूली किसान परिवार से निकलकर एक दवा कंपनी की स्थापना तक का सफर उनके लिए कतई आसान नहीं था. उन्होंने खेती छोड़कर जब मुबंई की राह ली तो उनके पास केवल 1 लाख रुपये थे. अपनी मेहनत और इच्छाशक्ति के बल पर उन्होंने कोशिश की और एक सफल उद्यमी बन मिसाल पेश की. उनका जीवन लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है.