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गुरबत की जिंदगी जी रहे हैं बांसुरी बनाने वाले - स्किल इंडिया

मुबारकपुर गांव में 40 परिवार हैं जो इस काम में सालों से लगे हुए हैं. लेकिन इनकी आर्थिक और पारिवारिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ.

बांसुरी बजाता हुआ बच्चा
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Published : Apr 30, 2019, 3:13 AM IST

जमुई: जिले के मुबारकपुर गांव के लगभग सभी लोग बांसुरी बना कर उसे बेचने का काम करते हैं. लेकिन बांसुरी बनाने में जितनी मेहनत इन्हें लगती है. उससे कहीं कम मुनाफा मिलता है. इस सबके बावजूद पेट पालने के लिए वो अपने पारम्परिक पेशे से मजबूरन जुड़े हुए हैं.

jamui
बांसुरी बजाते ग्रामींण

मुबारकपुर गांव में 40 परिवार हैं जो इस काम में सालों से लगे हुए हैं. लेकिन इनकी आर्थिक और पारिवारिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. बांसुरी बनाने वालों का कहना है कि ना तो भारत सरकार के स्किल इंडिया और मुद्रा योजना के तहत कोई अनुदान दिया और ना ही कोई सरकारी अधिकारी इनकी सुध लेने पहुंचा.

jamui
बांसुरी बनाते हुए ग्रामींण

बांसुरी बनाने के लिए असम से लाते हैं बांस

यहां जिस बांस से बांसुरी बनाई जाती है वो कोई साधारण बांस नहीं है. बासुंरी बनाने वालों का दावा है कि वो असम से लाए गए बांस से बांसुरी बनाते हैं. लिहाजा बांसुरी बनाने में लागत भी ज्यादा आ जाती है. जिससे उन्हें खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

बांसुरी बजाते ग्रामींण

मेले में बेचते हैं बांसुरी

यहां की बांसुरी ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में खासी मशहूर है. बांसुरी बनाने वाले कारीगरों की मानें तो बांसुरी के लिए सबसे उपयुक्त बाजार मेला होता है. इसलिए वो इन राज्यों में लगने वाले मेलों में बांसुरी ले जाते हैं और बेचते हैं.

जमुई: जिले के मुबारकपुर गांव के लगभग सभी लोग बांसुरी बना कर उसे बेचने का काम करते हैं. लेकिन बांसुरी बनाने में जितनी मेहनत इन्हें लगती है. उससे कहीं कम मुनाफा मिलता है. इस सबके बावजूद पेट पालने के लिए वो अपने पारम्परिक पेशे से मजबूरन जुड़े हुए हैं.

jamui
बांसुरी बजाते ग्रामींण

मुबारकपुर गांव में 40 परिवार हैं जो इस काम में सालों से लगे हुए हैं. लेकिन इनकी आर्थिक और पारिवारिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. बांसुरी बनाने वालों का कहना है कि ना तो भारत सरकार के स्किल इंडिया और मुद्रा योजना के तहत कोई अनुदान दिया और ना ही कोई सरकारी अधिकारी इनकी सुध लेने पहुंचा.

jamui
बांसुरी बनाते हुए ग्रामींण

बांसुरी बनाने के लिए असम से लाते हैं बांस

यहां जिस बांस से बांसुरी बनाई जाती है वो कोई साधारण बांस नहीं है. बासुंरी बनाने वालों का दावा है कि वो असम से लाए गए बांस से बांसुरी बनाते हैं. लिहाजा बांसुरी बनाने में लागत भी ज्यादा आ जाती है. जिससे उन्हें खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

बांसुरी बजाते ग्रामींण

मेले में बेचते हैं बांसुरी

यहां की बांसुरी ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में खासी मशहूर है. बांसुरी बनाने वाले कारीगरों की मानें तो बांसुरी के लिए सबसे उपयुक्त बाजार मेला होता है. इसलिए वो इन राज्यों में लगने वाले मेलों में बांसुरी ले जाते हैं और बेचते हैं.

Intro:गुरबत की जिंदगी जी रहे हैं बांसुरी निर्माता

ANC- जमुई जिले के सिकंदरा ब्लॉक स्थित सबल बीघा पंचायत में मुबारकपुर गांव है जहां के लगभग सभी लोग बांसुरी निर्माण के कार्य में लगे हुए हैं इतना ही नहीं बांसुरी निर्माता बनाते हैं वह बेचने का भी काम करते हैं। लेकिन जितना उन्हें बांसुरी बनाने में मेहनत होता है उससे कहीं कम उम्र की कमाई होती है बावजूद वह अपने पारंपरिक पेशे को नहीं छोड़ रहे हैं और अपने पूर्वजों की स्पेशल लगातार चलाते हैं।


Body:इन बांसुरी निर्माताओं को नहीं मिला है अब तक कोई सरकारी अनुदान

Vo - जमुई जिले के सिकंदरा ब्लॉक स्थित सबल बीघा पंचायत में मुबारकपुर गांव है जहां के लगभग सभी लोग बांसुरी निर्माण के कार्य में लगे हुए हैं इतना ही नहीं बांसुरी निर्माता बनाते हैं वह बेचने का भी काम करते हैं। लेकिन जितना उन्हें बांसुरी बनाने में मेहनत होता है उससे कहीं कम उम्र की कमाई होती है बावजूद वह अपने पारंपरिक पेशे को नहीं छोड़ रहे हैं और अपने पूर्वजों की स्पेशल लगातार चलाते हैं।

बांसुरी निर्माताओं का कहना है कि मुबारकपुर गांव में 40 परिवार है जो इस काम में वर्षों से लगा हुआ है इतना ही नहीं इनके पूर्वज भी इसी काम को करते थे और बांसुरी बनाया करते थे ।लेकिन तब से लेकर अब तक इनके आर्थिक और पारिवारिक स्थिति में सुधार हुआ है। बांसुरी निर्माताओं का कहना है कि ना तो भारत सरकार की स्किल इंडिया और मुद्रा योजना के तहत सरकारी अनुदान का उन्हें अब तक लाभ मिला है ना ही कोई सरकारी अधिकारी इनकी सुध लेने पहुंचा है

बांसुरी बनाने के लिए असम से लाते हैं बांस

बांसुरी निर्माताओं का कहना है कि जिस बांस से बांसुरी बनाया जाता है वह कोई साधारण बांस नहीं है वह बाहर असम जैसे राज्य से लाया जाता है जो यहां से काफी दूर है लिहाजा बनाने में लागत बहुत ज्यादा आ जाती है लेकिन उससे कमाई बहुत ही कम होती है।

चार राज्यों में बेचते हैं बांसुरी

बांसुरी बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि जहां असम से बांस लाकर अलग अलग तरह की बांसुरी का निर्माण किया जाता है वही बांसुरी बेचने के लिए उड़ीसा झारखंड बंगाल और बिहार के विभिन्न जिलों में मार्केट तलाश किया जाता है
बांसुरी बनाने वाले कारीगर का की माने तो बांसुरी के लिए सबसे उपयुक्त बाजार मेला होता है इन्हें पता होता है कि उड़ीसा जैसे राज्य झारखंड और बंगाल जैसे राज्य में कहां-कहां किस दिन मेला लगता है और उस मेले में अपनी बांसुरी लेकर पहुंच जाते हैं और बांसुरी का बिक्री करते हैं जिससे थोड़ा बहुत पैसा जो होता है उससे उनका परिवार चलता है।



Conclusion:जिला प्रशासन इनकी सुध ले

जहां बांसुरी बनाने के लिए बांस असम जैसे सुदूर राज्यों से लाया जाता है।जबकि बेचने के लिए बिहार ,बंगाल ,झारखंड और उड़ीसा जैसे राज्यों में ले जाया जाता है ताकि यह बांसुरी बिके और उसे कुछ उपार्जन हो जिससे इनका परिवार चल सके । ऐसे में जरूरत है कि जिला प्रशासन इनकी ओर ध्यान दें ताकि इनके पारंपरिक पेशे को घोषित किया जा सके और उन्हें आर्थिक लाभ मिल सके
ईटीवी भारत के लिए जमुई से ब्रजेंद्र नाथ

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