जमुई: जिले के मुबारकपुर गांव के लगभग सभी लोग बांसुरी बना कर उसे बेचने का काम करते हैं. लेकिन बांसुरी बनाने में जितनी मेहनत इन्हें लगती है. उससे कहीं कम मुनाफा मिलता है. इस सबके बावजूद पेट पालने के लिए वो अपने पारम्परिक पेशे से मजबूरन जुड़े हुए हैं.
मुबारकपुर गांव में 40 परिवार हैं जो इस काम में सालों से लगे हुए हैं. लेकिन इनकी आर्थिक और पारिवारिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. बांसुरी बनाने वालों का कहना है कि ना तो भारत सरकार के स्किल इंडिया और मुद्रा योजना के तहत कोई अनुदान दिया और ना ही कोई सरकारी अधिकारी इनकी सुध लेने पहुंचा.
बांसुरी बनाने के लिए असम से लाते हैं बांस
यहां जिस बांस से बांसुरी बनाई जाती है वो कोई साधारण बांस नहीं है. बासुंरी बनाने वालों का दावा है कि वो असम से लाए गए बांस से बांसुरी बनाते हैं. लिहाजा बांसुरी बनाने में लागत भी ज्यादा आ जाती है. जिससे उन्हें खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
मेले में बेचते हैं बांसुरी
यहां की बांसुरी ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में खासी मशहूर है. बांसुरी बनाने वाले कारीगरों की मानें तो बांसुरी के लिए सबसे उपयुक्त बाजार मेला होता है. इसलिए वो इन राज्यों में लगने वाले मेलों में बांसुरी ले जाते हैं और बेचते हैं.