जमुई: जिले के करीब सभी प्रखंडों में सरकारी दाम पर धान की खरीद नहीं होने से किसान परेशान है. किसानों का कहना है कि पैक्स धान लेने के बाद भी एक साल ये 6 महीने तक पैसा नहीं देते हैं. कई किसानों का तो पिछले साल का भी पैसा नहीं दिया है. मजबूरन उन्हें औने-पौने दाम में व्यापारियों को धान बेचना पड़ता है. कम पैसा ही सही नगद तो मिल ही जाता है. बड़े-बड़े ट्रकों में लदकर धान बिहार से बंगाल जा रहा है.
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किसान पैक्स में धान देने को तैयार नहीं
जिले के बरहट और खैरा प्रखंड के अंतर्गत किसानों ने ईटीवी भाारत को बताया कि एक भी किसान पैक्स में अपना धान देने को तैयार नहीं है. मजबूरी में उन्हें धान व्यापारियों के पास ही बेचना पड़ता है. किसानों का कहना है कि पैक्स में धान देने पर नगद पैसा नहीं मिल पाता है. कई-कई महीनों तक किसानों को पैसों के लिए दौड़ाया जाता है. कई किसानों का तो पिछले साल का भी पैसा नहीं दिया. सरकारी घोषणा का लाभ हम किसानों को तो नहीं मिल पाता है.
समय पर नहीं मिलता धान का पैसा
किसानों ने कहा कि खेती हमारा पुश्तैनी काम है. कुछ खेत खुद का है और कुछ मनकुट्टा पर ले लेते हैं. किसी तरह परिवार का पेट पाल लेते हैं. हम मुख्य रूप से धान की और गेहूं की खेती करते हैं. खेत जुताई, बुआई, बीज, खाद, पटवन, फसल कटाई, झड़ाई, दवाई आदि में काफी पैसा लगता है. महाजन से भी उधार पैसा लेना पड़ता है. फसल तैयार होते ही तगादा और फिरा अगली फसल गेहूं के लिए फिर से पैसों की जरूरत होती है.
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सस्ते में धान बेचने को मजबूर किसान
अब धान नगद जल्दी बेचेंगे, तभी तो उधार चुकाएंगे औक परिवार का पेट पाल सकेंगे. ऐसे में पैक्स की मनमानी के चलते मजबूर किसान और मजदूर कर भी क्या सकते हैं. शायद यही कारण है की धान खेत खलिहानों से सीधे व्यापारियों के गोदाम में पहुंच रहा है. जानकारी के अनुसार सीता धान 1200 से 1300 रु. और मंसूरी धान 1100 से 1200 रु. तक बिक रहा है. ऐसे में व्यापारियों की चांदी हो रही है.