जमुई: जिले की सबसे महत्वपूर्ण सिंचाई योजनाओं में कुकुरझप डैम का नाम शामिल है. 25 वर्षों से लंबे इंतजार के बाद पहली बार हर खेत तक सिंचाई डैम का पानी पहुंच गया है, दो वर्ष पूर्व शुरू हुए सिंचाई केनाल के जीर्णोद्धार का कार्य अपने अंतिम चरण में है. लगभग 70 फीसदी कार्य पूरे हो चुके हैं.
6 हजार हेक्टेयर को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने वाली उक्त योजना से फिलहाल 4 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि को सिंचाई की सुविधा मिलने लगी है. सिंचाई की सुविधा से लाभान्वित खेतों में लगाए गए धान की फसल की हरियाली से उक्त कैनाल के लाभ का अंदाजा लगाया जा सकता है. इतना ही नहीं अब रवि फसल के उत्पादन में भी यह क्षेत्र धनी हो जाएगा.
टॉप लाइन कंपनी को दी गई है जानकारी
कुकुरझप डैम से निकले कुछ 40 किमी लंबी सिंचाई कैनाल के जीर्णोद्धार का कार्य 46 करोड़ की लागत से कराया जा रहा है, कटिहार की टॉप लाइन कंपनी को इस कार्य की जिम्मेदारी दी गई है. कुकुरझप डैम से हिर्ंबा मेन केनाल का जीर्णोद्धार पूरा हो चुका है. इसके अलावा लेफ्ट कैनाल के ललमटिया नुमर एवं मटिया ब्रांच का काम लगभग पूरा हो चुका है. लेफ्ट केनाल के बलिया ब्रांच का काम अभी बाकी है. बारिश के कारण कार्य की गति धीमी हो गई है. बारिश खत्म होने के बाद पुरा कर लिया जाएगा.
ऐसा नहीं है कि कुकुरझप डैम की पानी को खेतों तक पहुंचाने के लिए यह पहला विभागीय प्रयास है. 8 साल पूर्व वर्ष 2012 में भी 48 करोड़ की लागत से उक्त सिंचाई केनाल के जीर्णोद्धार की योजना को विभागीय स्वीकृति मिली थी. टेंडर भी हुआ था और तब संबंधित निर्माण एजेंसी द्वारा कार्य किया गया. 15 से 18 करोड़ खर्च भी हो गए. लेकिन तब तक नक्सलियों की नजर लग गई और निर्माण कार्य पर ग्रहण लग गया. नक्सलियों ने निर्माण कार्य में लगे संवेदक उपेंद्र सिंह और मुन्शी प्रियानंद सिंह की हत्या कर दी. लिहाजा निर्माण कार्य को रोक दिया गया था.
1976 में कुकुरझप डैम के निर्माण की बनाई गई थी योजना
कुकुरझप डैम के निर्माण की योजना वर्ष 1976 में बनाए गई थी तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एवं स्थानीय सांसद डीपी यादव ने बरहट के तत्कालीन मुखिया शुक्रदास यादव से विकास के एक बड़े कार्य का सुझाव मांगा था, सुक्र्दस ने दो पहाड़ को काटकर डैम मनाने की रुपरेखा तैयार की. जिसे मंत्रिमंडल से स्वीकृति दिलाकर निर्माण कार्य की शुरुआत की गई, 1976 से शुरु हुआ निर्माण कार्य 1995 में पूरा हुआ, तब से आज तक उक्त डैम से पानी को हर खेत तक पहुंचाने के लिए किसानों द्वारा आवाज उठाया जाता रहा. लेकिन किसानों को 2020 में इस डेम का लाभ मिलने लगा. इस इलाके में रहने वाले किसानों में खुशी देखी जा रही है.