जमुई: बिहार के जमुई जिले के ग्रामीण इलाके की तंग गलियों से निकलकर अपने सपने को पूरा करने लिए यूक्रेन पहुंच गई थी नगमा परवीन. यूक्रेन पर रूस के हमले (Russia attack on Ukraine) के चलते परिस्थिति खराब होने के बावजूद अंतिम समय तक वह वापस नहीं आना चाहती थी. सात वर्ष की उम्र में देखे अपने सपने को हर हाल में पूरा करना चाहती थी लेकिन मजबूरन लौटना पड़ा (Jamui Nagma Parveen returned from Ukraine) है. अब वह सरकार से अपील कर रही हैं हम और हमारे जैसे जितने भी बच्चे वहां से वापस लौटे हैं, उनके सपनों को टूटने न दें.
यूक्रेन से वापस अपने घर जमुई लौटी एमबीबीएस की छात्रा नगमा और उनके परिजनों से बातचीत की. नगमा के पिता तो रो पड़े, वहीं उनकी दादी की आंखो में भी आंसू थे. नगमा के पिता मो. जमील तो फूट-फूटकर रोने लगे. वे बोले कि हमारे समाज में बेटियों को बाहर नहीं भेजते हैं. बच्ची पढ़ने में अच्छी थी तो हमें लगा की जैसे भी हो, इसे पढाऐंगे. शिक्षा से बड़ी कोई पूंजी नहीं है. अचानक ऐसी परिस्थिति वहां उत्पन्न हो गई तो दिन-दुनियां कुछ नजर नहीं आता था. केवल हमारी बच्ची का चेहरा आंखों के सामने तैरता था. समाज को भी देखना पड़ता था.
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परिजन थे बेचौन: छात्रा नगमा की दादी हमीदा खातून ने कहा कि बाप रे बाप जब से सुने थे वहां के बारे में रोटी (खाना) खाया नहीं जाता था. किसी को कुछ बोल नहीं पाते थे. कलेजे पर पत्थर रखे थे. जब बेटी के बर्थडे का वीडियो-फोटो आया वहां से, तब जान में जान आई. यूक्रेन से लौटी छात्रा नगमा परवीन ने कहा कि ऐसा लग रहा था वापस पहुंचेंगे या नहीं. जब दूर थे तो बहुत डर लग रहा था. अब अच्छा लग रहा है, परिवार के बीच आ गए है. मैं यूक्रेन में मिकोलाइव में रहती थी. वहां स्थिति धीरे-धीरे खराब होने लगी थी लेकिन मैं अपने परिवार को सबकुछ बताना नहीं चाहती थी. घर वाले डर जाऐंगे.
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मैं भी उन लोगों में से हूं जो सब कुछ छोड़कर ऐसे ही वापस नहीं आ जाना चाहते थे. मैं भी नहीं चाहती थी की मेरी पढ़ाई पर कोई असर पड़े. मेरा पांचवां साल का फर्स्ट सेमेस्टर स्टार्ट हो गया था. मैं आना नहीं चाहती थी. मुझे लग रहा था की काश सब कुछ ठीक हो जाये और हमारा कॉलेज फिर से चालू हो जाये. मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर सकूं.
मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाये सरकार: वेस्ट बंगाल 10वीं की पढ़ाई करने के बाद नीट की तैयारी के लिए कोटा चली गई. जमुई के एकलव्य कॉलेज से 12 वीं की. नीट क्वालीफाई किया पर जेनरल कटेगरी के वजह से कॉलेज नहीं मिल पाया. मेडिकल के लिए तब मजबूरन यूक्रेन जाना पड़ा. इंडिया में कॉलेजों की कमी है बहुत बच्चे हर साल टेस्ट देते हैं, सीट भी कम है. प्राइवेट कॉलेज की फीस बहुत ज्यादा, करोड़ में है. हम मीडिल क्लास इसे नहीं दे सकते. यहां भी सरकार को चाहिए मेडिकल कॉलेज की संख्या, सीटों की संख्या बढ़ाये. प्राइवेट कॉलेजों की अनाप-शनाप फीस पर भी सरकार लगाम लगाये.
ईटीवी भारत से बात करते हुए मेडिकल की छात्रा नगमा ने कहा कि मैं डॉक्टर ही बनना चाहूंगी. जब मैं क्लास 7 में थी तो इंजीनियर बनने की सोची. लेकिन जब हम कोलकाता में थे, एक फेस्टिवल में गई थी. वहां देखा कि किसी के हाथ नहीं हैं तो किसी का पैर. लोग बहुत तकलीफ में थे. उस दिन से मेरी सोच बदल गयी. तब डॉक्टर बनने की सोची. हमने अपने परिवार को बताया. गरीब हो या मिडिल क्लास, सपना देखना तो नहीं छोड़ते न. हम बचपन से ही किसी इंजीनियर, डॉक्टर, आईएएस को देखते हैं तो सोचते हैं कि मैं भी इनके जैसा बनूंगी. मां-बाप बच्चों को पढ़ाने के लिए क्या कुछ नहीं करते.
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नगमा ने अपने सपने को पूरा करने में सरकार से ममद अपील की है. नगमा ने कहा कि अपने जीवन का आठ साल इसमें दे चुकी हूं. अभी मेडिकल का पांचवां साल है. आठ साल कोई कम समय नहीं होता. कोई रास्ता नहीं दिख रहा है कि आगे क्या करूंगी. पता नहीं वापस जा पाउंगी भी या नहीं. 80 प्रतिशत लोग यही कह रहे हैं कि वापस जाने को नहीं मिलेगा तो सपना कैसे पूरा करेंगे. सरकार से हमारी अपील है प्लीज कुछ करें. सारे बच्चों के लाइफ डिस्ट्रॉय न होने दें.
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