जमुई: बिहार के जमुई में डोली ढोने वाले दर्जनों परिवार भुखमरी के कगार पर हैं. ऐसे में पीड़ित परिवार जिलाधिकारी से मिलकर आवेदन सौंपा है. इन लोगों का कहना है कि अवैध वाहनों की बढ़ती संख्या के चलते उन्हें डोली के लिए कोई सवारी नहीं मिल रही है. हमारा रोजगार छिन गया है. पीड़ितों ने कहा कि पहले जैन श्रद्धालुओं को भगवान महावीर के दर्शन (Darshan of Lord Mahavir In Jamui) कराते थे और जो मेहनाताना मिलता था, उसी से सालों भर परिवार का पालन-पोषण होता था. दर्जनों परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंचने के बाद जिलाधिकारी से मिलकर आवेदन सौंपा है. जिसमें उन्होंने कोई रोजगार देने की सरकार से गुहार लगाई है.
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डोली ढोने वाले दर्जनों परिवार भुखमरी के कगार पर : हम बात कर रहे है जिले के लछुआड़ थाना क्षेत्र और खैरा थाना क्षेत्र के बीच 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्मस्थली क्षत्रिय कुंड जन्मस्थान लछुआड़ की. यहां पहाड़ की तलहटी में जैन धर्मशाला है. जहां सालों भर जैन श्रद्धालु पहुंचते हैं. यहां पर देश के अलग-अलग कोने से, यहां तक की विदेशों से भी लोग भगवान महावीर के दर्शन करने आते हैं. सात पहाड़ पार कर अंतिम पहाड़ की उंचाई पर जन्म स्थान क्षत्रिय कुंड के पास स्थित भगवान महावीर मंदिर में पहुंचकर 2600 साल पूर्व की मूर्ति का श्रद्धालु दर्शन करते हैं.
भगवान महावीर के जन्मस्थली दर्शन करने आते हैं श्रद्धालु : भगवान महावीर मंदिर में पहुंचकर 2600 साल पूर्व की मूर्ति का श्रद्धालु दर्शन करते हैं और पूजा-अर्चना कर वापस लौटते हैं. पहाड़ से नीचे धर्मशाला में विश्राम के बाद ही ये श्रद्धालु और सैलानी वापस लौटते हैं. शुरुआती दिनों में लछुआड़ स्थित धर्मशाला से सात पहाड़ पार जन्म स्थान पहुंचने का कच्चा रास्ता, पूर्व की बनी टूटी-फूटी सीढ़ियां, एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी के बीच मैदान, घने जंगल, रास्ते में पानी का झरना था और इन्हीं रास्तों पर डोली में बैठाकर अगल-बगल के गांव के पहाड़ी आदिवासी, मांझी, दलित आदि, श्रद्धालुओं को ले जाया करते थे और भगवान महावीर के दर्शन कराते थे. और श्रद्धालु रमणीक स्थल का आनंद लेते थे. यहां पर बड़ा ही मनोरम दृश्य का आनंद मिलता था. मिलने वाले मेहनाताना से दर्जनों परिवार, सैंकड़ों लोगों की सालों भर की रोजी-रोटी इसी से चलती थी.
रूक गया है डोली से भगवान महावीर तक पहुंचने का काम : आज दर्जनों ऐसे परिवार के लोग रोजगार छीन जाने के बाद जिलाधिकारी से मिलने जमुई समाहरणालय पहुंचे और आवेदन सौंपा. कुछ काम, रोजगार दिलाने की जिलाधिकारी से गुहार लगाई. जिनमें जलधर मांझी, चंद्र मांझी, जतन मांझी, राजेन्द्र मांझी, डोमन मांझी, मिथुन मांझी, सकलदेव चौधरी, मोहन चौधरी, सरजु मांझी, महेश मांझी, चिंटू मांझी, महेश मांझी, मनोज मांझी, विष्णु मांझी आदि सैंकड़ों लोग थें. जिन्होंने एक सुर में कहा कि रोजी-रोटी हमलोगों का छीना गया है.
डोली ढोने वालों को छीन गया रोजगार : डोली ढोने वाले मजदूरों का कहना था कि पहले जैन श्रद्धालु लोग आते थे, डोली में उनको ले जाते थे. 5-7 किलोमीटर, जन्म स्थान पर लेकर जाते थे. फिर वापस लाकर कुंडघाट में छोड़ते थे. जो पैसा, मेहनाताना हमलोगों को मिलता था, डोली में लाने ले-जाने का. उसी पैसे से सालों भर परिवार, बाल-बच्चे सब दुख, बीमारी दवाई, कपड़ा, दाना-पानी, खोराकी सब उसी पैसे से जुगाड़ होता था. एक आदमी कमाता था तो दस परिवार का पेट पल जाता था. हर घर की यही कहानी थी. अब रोजगार छीना गया, क्या करें?. कहां जांए, भुखमरी आ गई है. जगह-जमीन, रोजी-रोजगार कुछ नहीं है, कैसे पेट पलेगा?, क्या खिलाएं बच्चों को?.
'रोजगार नहीं मिलने से सवारी गाड़ी वाले भी उसी रास्ते पर आ गए हैं. श्रद्धालुओं को बहला-फुसलाकर वही दर्शन कराने ले जाते हैं. डोली-कहार वाला सिस्टम बंद हो गया है. रास्ता नहीं हैं, पैदल वाला. यही सब बताकर मुंहमांगा रकम लेकर श्रद्धालुओं को वाहन से उपर पहाड़ पर ले जाते हैं. सड़क मार्ग से परदेशी लोग को ये सब पता नहीं चल पाता है, मंदिर, कमेटी और प्रशासन से भी कोई मदद नहीं मिल पाया. जबकि सालों भर पैदल मार्ग का देखरेख, मरम्मती, हम गरीब लोग अपने रोजगार को चालू रखने के लिऐ खुद श्रमदान से करते रहते हैं. अब जिला प्रशासन सरकार मदद करें. रोजी-रोजगार की व्यवस्था करे, हमलोगों को भुखमरी से बाहर निकाले.' - टोनी मांझी, डोली ढोने वाला मजदूर