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लालू यादव के किए इस अनोखे प्रयोग पर अब लग रहा है ग्रहण, सरकार भी लापरवाह - shepherd school

जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर उचकागांव में स्थापित चरवाहा विद्यालय में पहले चरवाहे पढ़ते थे. लेकिन अब यहां पढ़ाई करने वाले चरवाहे अब विद्यालय में मवेशी चराते दिखाई देते हैं.

बदहाल चरवाहा विद्यालय
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Published : Jul 25, 2019, 3:28 PM IST

गोपालगंज: राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने साल 1992 में चरवाहा विद्यालय की स्थापना की थी. इस तरह के विद्यालय स्थापित करने का उद्देश्य था कि मवेशी चराने वाले चरवाहे भी अपने पशुओं को चराने के साथ पढ़ाई कर शिक्षित बन सकें. लेकिन सरकार की लापरवाही के कारण चरवाहा विद्यालय बदहाली के आंसू रो रहा है. लेकिन सरकार इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है.

अंधकार में चरवाहों का भविष्य

जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर उचकागांव में स्थापित चरवाहा विद्यालय में पहले चरवाहे पढ़ते थे. लेकिन अब यहां पढ़ाई करने वाले चरवाहे विद्यालय में मवेशी चराते दिखाई दे जाते है. हालांकि समय के साथ बदलाव आता गया. अब इस विद्यालय में गांव के बच्चे पढ़ते हैं. सरकार की लापरवाही के चलते चरवाहों का भविष्य अंधकार में डूब रहा है. अगर जमीनी हकीकत की बात की जाए तो अब चरवाहों को इन विद्यालयों में कोई सुविधा नहीं मिलती है.

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स्कूल प्रांगण में चरते मवेशी

चर्चित प्रयोगों में से एक था यह चरवाहा विद्यालय

गोपालगंज के उचकागांव में चरवाहों के लिए चरवाहा विद्यालय का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने 15 जनवरी 1992 में किया था. इस विद्यालय में चरवाहों के बच्चे और गरीब तबके के बच्चों ने पढ़ाई शुरू की. लेकिन वर्तमान में इस स्कूल में शिक्षकों के नहीं होने से पठन-पाठन की व्यवस्था चरमरा गई है. बताया जाता है कि यह विद्यालय राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बेहद चर्चित प्रयोग में से एक था. उस समय जिसे यूनिसेफ सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने सराहा था.

बीते दिनों की याद दिलाता है विद्यालय भवन

जिले में कई चरवाहा विद्यालय की स्थापना की गई थी. लेकिन आज इन चरवाहा विद्यालय में सिर्फ भवन ही बीते दिनों की याद दिलाती है. चरवाहा स्कूलों में ताले लटके नजर आते हैं. पढ़ने वालों का कहीं कोई अता-पता नहीं है. ना ही सरकार की तरफ से इस ओर कोई पहल होती है.

बदहाल चरवाहा विद्यालय

कई सुविधाएं थी उपल्ब्ध

नीतीश कुमार जब शासन में आए तब भी इन स्कूलों को लेकर कोई औपचारिक फैसला नहीं लिया गया. इस चरवाहा स्कूल को चलाने की जिम्मेदारी कृषि, सिंचाई, उद्योग, पशुपालन, ग्रामीण विकास और शिक्षा विभाग पर थी. इसमें पढ़ने वाले बच्चों को मध्याह्न भोजन, दो पोशाक, किताबें और मासिक स्टाइपेंड के तौर पर 9 रुपये मिलते थे.

क्या कहते हैं अधिकारी

इस विद्यालय के बारे में उचकागांव प्रखंड के बीडीओ ने कहा कि जिस उद्देश्य से इस विद्यालय की स्थापना हुई थी, शायद उस समय इस तरह की पढ़ाई होती होगी. अब इस तरह की शिक्षा नहीं मिल रही है. बनाये गये विद्यालय में अब पढ़ाई का कार्य चलता है.

गोपालगंज: राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने साल 1992 में चरवाहा विद्यालय की स्थापना की थी. इस तरह के विद्यालय स्थापित करने का उद्देश्य था कि मवेशी चराने वाले चरवाहे भी अपने पशुओं को चराने के साथ पढ़ाई कर शिक्षित बन सकें. लेकिन सरकार की लापरवाही के कारण चरवाहा विद्यालय बदहाली के आंसू रो रहा है. लेकिन सरकार इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है.

अंधकार में चरवाहों का भविष्य

जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर उचकागांव में स्थापित चरवाहा विद्यालय में पहले चरवाहे पढ़ते थे. लेकिन अब यहां पढ़ाई करने वाले चरवाहे विद्यालय में मवेशी चराते दिखाई दे जाते है. हालांकि समय के साथ बदलाव आता गया. अब इस विद्यालय में गांव के बच्चे पढ़ते हैं. सरकार की लापरवाही के चलते चरवाहों का भविष्य अंधकार में डूब रहा है. अगर जमीनी हकीकत की बात की जाए तो अब चरवाहों को इन विद्यालयों में कोई सुविधा नहीं मिलती है.

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स्कूल प्रांगण में चरते मवेशी

चर्चित प्रयोगों में से एक था यह चरवाहा विद्यालय

गोपालगंज के उचकागांव में चरवाहों के लिए चरवाहा विद्यालय का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने 15 जनवरी 1992 में किया था. इस विद्यालय में चरवाहों के बच्चे और गरीब तबके के बच्चों ने पढ़ाई शुरू की. लेकिन वर्तमान में इस स्कूल में शिक्षकों के नहीं होने से पठन-पाठन की व्यवस्था चरमरा गई है. बताया जाता है कि यह विद्यालय राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बेहद चर्चित प्रयोग में से एक था. उस समय जिसे यूनिसेफ सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने सराहा था.

बीते दिनों की याद दिलाता है विद्यालय भवन

जिले में कई चरवाहा विद्यालय की स्थापना की गई थी. लेकिन आज इन चरवाहा विद्यालय में सिर्फ भवन ही बीते दिनों की याद दिलाती है. चरवाहा स्कूलों में ताले लटके नजर आते हैं. पढ़ने वालों का कहीं कोई अता-पता नहीं है. ना ही सरकार की तरफ से इस ओर कोई पहल होती है.

बदहाल चरवाहा विद्यालय

कई सुविधाएं थी उपल्ब्ध

नीतीश कुमार जब शासन में आए तब भी इन स्कूलों को लेकर कोई औपचारिक फैसला नहीं लिया गया. इस चरवाहा स्कूल को चलाने की जिम्मेदारी कृषि, सिंचाई, उद्योग, पशुपालन, ग्रामीण विकास और शिक्षा विभाग पर थी. इसमें पढ़ने वाले बच्चों को मध्याह्न भोजन, दो पोशाक, किताबें और मासिक स्टाइपेंड के तौर पर 9 रुपये मिलते थे.

क्या कहते हैं अधिकारी

इस विद्यालय के बारे में उचकागांव प्रखंड के बीडीओ ने कहा कि जिस उद्देश्य से इस विद्यालय की स्थापना हुई थी, शायद उस समय इस तरह की पढ़ाई होती होगी. अब इस तरह की शिक्षा नहीं मिल रही है. बनाये गये विद्यालय में अब पढ़ाई का कार्य चलता है.

Intro:राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने वर्ष 1992 में चरवाहा विद्यालय की स्थापना इसलिए की थी ताकि चरवाहे भी अपने मवेशियों को चराने के साथ पढ़ाई कर शिक्षित बन सके लेकिन बदलते जमाने के अनुसार चरवाहा विद्यालय का अस्तित्व खोता जा रहा है


Body:चरवाहा विद्यालय में कहीं ताला लग गए तो कहीं चरवाहों के बदले स्थानीय बच्चों की पढ़ाई होने लगी जो सिर्फ एक कागजों पर ही सिमट कर रह गया है हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर उसका गांव प्रखंड के स्थित चरवाहा विद्यालय की इस विद्यालय में चरवाहे पढ़ते हुए तो नजर नहीं आए लेकिन अपने भैसों को चराते हुए जरूर नजर आए वह भी स्कूल की छुट्टी होने के बाद यहां चरवाहे अक्सर अपने भैंसों को चराने के लिए तो पहुंचते हैं लेकिन पढ़ने के लिए नहीं। क्योंकि चरवाहे के लिए या कोई ऐसी व्यवस्था ही नहीं की गई है।जिसे चरवाहे अपने मवेशियों को चराने के साथ पढ़ाई कर सके हालांकि यहां के स्थानीय बच्चों को स्कूली शिक्षा दी जाती है। वही मौके पर अपनी मवेशी चरा रहे चरवाहा ने बताया कि इस स्कूल की स्थापना चरवाहों के लिए लालू यादव ने किया था लेकिन चरवाहों को आजतक इसमें कोई सुविधा नही मिली।
प्रखंड मुख्यालय अंतर्गत उसका गांव में चरवाहा भाइयों के लिए चरवाहा विद्यालय का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने 15 जनवरी 1992 में को किया था। इस विद्यालय में चरवाहों के बच्चे और गरीब तबके के बच्चों ने पढ़ाई शुरू की लेकिन वर्तमान में इस स्कूल में शिक्षकों के नहीं होने से पठन-पाठन की व्यवस्था चरमरा गई है। बताया जाता है कि यह विद्यालय राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बेहद चर्चित प्रयोग में से एक था। 5 से 15 साल की उम्र के बच्चे जो जानवरों को चराते हैं, उनको ध्यान में रखकर चरवाहा विद्यालय खोला गया था। यह एक ऐसा प्रयोग था जिसे यूनिसेफ सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने सराहा लेकिन बाद में यह फ्लॉप हो गया। पूर्व के लालू सरकार द्वारा चरवाहा विद्यालय की स्थापना 1992 में की गई थी लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद इन चरवाहा विद्यालय की दशा खराब हो गई। गोपालगंज जिले में कई चरवाहा विद्यालय की स्थापना की गई है। लेकिन आज इन चरवाहा विद्यालय में सिर्फ भवन ही बीते दिनों के याद दिलाते है लेकिन शिक्षक एवं चरवाहा छात्र नहीं है। बताया जाता है कि पूर्व की सरकार के मुखिया लालू प्रसाद का सपना था कि हर कोई शिक्षा प्राप्त कर सके। उस समय का नारा था की घोंघा चुनने वालों मूसा पकड़ने वालों, गाय भैंस चराने वालों शिक्षा प्राप्त करो। इस दिशा में चरवाहा विद्यालय की स्थापना की गई थी विद्यालय अभी मुख्यधारा से जुड़ने ही वाले थे कि बिहार में सत्ता परिवर्तन हो गई और यहां की व्यवस्था बदहाल हो गई । बिहार में 15 साल लालू यादव शासनकाल में चरवाहा विद्यालय फ़्लॉप तो हुए ही लेकिन बंद करने की घोषणा कभी नहीं हुई है। लेकिन दिलचस्प है कि नीतीश कुमार जब शासन में आए तब भी इन स्कूलों को लेकर कोई औपचारिक फैसला नहीं लिया गया। इस चरवाहा स्कूल चलाने की जिम्मेवारी कृषि, सिंचाई,उद्योग पशुपालन, ग्रामीण विकास और शिक्षा विभाग पर थी। इसमें पढ़ने वाले बच्चों को मध्याह्न भोजन, दो पोशाक, किताबें और मासिक स्टाइपेंड के तौर पर 9 रुपये मिलते थे। इसके अलावा बच्चों को रोजाना एक रुपए मिलता था लेकिन यह प्रावधान बिहार में सरकारी स्कूल में कक्षा 1 से 8 तक पढ़ने वाले सभी छात्रों के लिए था। जानकार बताते हैं कि इतने विभागों में समन्वय बैठाना मुश्किल था जिसके चलते चरवाहा विद्यालय का इस्तेमाल ध्वस्त होने लगा था। बहरहाल मामला चाहे जो हो लेकिन वर्तमान शिक्षा प्रणाली सरकार के बेहतर शिक्षा व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रहा है।




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