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बिना लाइसेंस ही चल रहे कई वाटर प्लांट्स, हर दिन हजारों लीटर की हो रही बर्बादी

पानी बेचने का कारोबार व्यवसाय बन गया है. शहरी इलाकों के साथ ही ग्रामीण इलाकों में भी सैकड़ों वाटर प्लांट लगाए गए हैं. इनके शुद्धता की जांच कभी नहीं होती. लोगों में भी शुद्धता की जानकारी नहीं रहने के कारण इस पानी का खूब उपयोग भी कर रहे हैं.

पानी बेचने का कारोबार बना व्यवसाय
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Published : Jul 9, 2019, 2:19 PM IST

गोपालगंज: जिले में पानी का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है. इस कारोबार पर निगाह रखने वाला कोई भी नहीं है. यहां लाइसेंस के बगैर और तय मानकों के विपरीत वाटर प्लांट लगाकर पानी का कारोबार किया जा रहा है. इस कारण रोजाना पानी की बर्बादी होती है. वहीं पानी की शुद्धता की जांच के लिए कोई पहल नहीं होती.

पानी बेचने का कारोबार बना व्यवसाय
पूरा सरकारी महकमा नियम कानून की दुहाई देकर तमाशा देख रहा हैं. तमाम दावों के बावजूद सरकारी महकमे और जल संरक्षण के लिए काम करने वाले संगठन पानी के कारोबारियों पर नकेल नहीं कस पा रहे हैं. शहर में दर्जनों गाड़ियां प्रतिदिन पानी लेकर दौड़ती रहती हैं. पानी बेचने का कारोबार व्यवसाय बन गया है. शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में आरो प्लांट लगे हैं जो दिन-रात पानी का दोहन कर रहे हैं. जिले में बिना लाइसेंस लिए ही गैर कानूनी ढंग से पानी प्लांट लगाकर पानी बिक्री करने वाले उगाही कर रहे हैं.

बिना लाइसेंस ही चल रहे कई वाटर प्लांट

नहीं होती शुद्धता की जांच
शहरी इलाकों के साथ ही विभिन्न ग्रामीण इलाकों में सैकड़ों वाटर प्लांट लगाए गए हैं. इनकी शुद्धता की जांच कभी नहीं होती. वहीं लोगों में भी शुद्धता की जानकारी नहीं रहने के कारण इस पानी का खूब उपयोग कर रहे हैं. गर्मी के मौसम में पानी की अधिक डिमांड को देखते हुए पानी प्लांट वालों की चांदी कट रही है. 3 से 4 लाख खर्च करते ही पानी प्लांट लगा कर घर-घर पानी की सप्लाई शुरू कर दी जाती है.

gopalganj
वाटर प्लांट में हो रहा पानी का दोहन

बिना लाइसेंस के चल रहे सैकड़ों प्लांट
जिले में सैकड़ों वाटर प्लांट का पानी बिना लाइसेंस के संचालित हो रहे हैं. बिना लाइसेंस वाले पानी प्लांट के खिलाफ जिला प्रशासन ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की है. शुद्ध जल के नाम पर अधिकांश लोग प्लांट का पानी पी रहे हैं. शुद्ध पेयजल के नाम पर पानी का कारोबार बढ़ता जा रहा है. इस कारोबार के प्रति नगर परिषद से लेकर जिला प्रशासन तक उदासीन बना है.

gopalganj
वाटर प्लांट

भूगर्भ जल के स्तर पर पड़ रहा असर
जानकारों की मानें तो आरो प्लांट में पानी शुद्ध करने के लिए ऑस्मोसिस प्रोसेस अपनाया जाता है. इस प्रक्रिया में 100 लीटर पानी में सिर्फ 40 लीटर पानी शुद्ध होता है जबकि 60% पानी बर्बाद हो जाता है. शहर में प्रतिदिन 50 हजार लीटर पानी की सप्लाई की जाती है और इतना ही पानी बर्बाद हो जाता है. जिसका असर भूगर्भ जल के स्तर पर पड़ रहा है.

गोपालगंज: जिले में पानी का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है. इस कारोबार पर निगाह रखने वाला कोई भी नहीं है. यहां लाइसेंस के बगैर और तय मानकों के विपरीत वाटर प्लांट लगाकर पानी का कारोबार किया जा रहा है. इस कारण रोजाना पानी की बर्बादी होती है. वहीं पानी की शुद्धता की जांच के लिए कोई पहल नहीं होती.

पानी बेचने का कारोबार बना व्यवसाय
पूरा सरकारी महकमा नियम कानून की दुहाई देकर तमाशा देख रहा हैं. तमाम दावों के बावजूद सरकारी महकमे और जल संरक्षण के लिए काम करने वाले संगठन पानी के कारोबारियों पर नकेल नहीं कस पा रहे हैं. शहर में दर्जनों गाड़ियां प्रतिदिन पानी लेकर दौड़ती रहती हैं. पानी बेचने का कारोबार व्यवसाय बन गया है. शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में आरो प्लांट लगे हैं जो दिन-रात पानी का दोहन कर रहे हैं. जिले में बिना लाइसेंस लिए ही गैर कानूनी ढंग से पानी प्लांट लगाकर पानी बिक्री करने वाले उगाही कर रहे हैं.

बिना लाइसेंस ही चल रहे कई वाटर प्लांट

नहीं होती शुद्धता की जांच
शहरी इलाकों के साथ ही विभिन्न ग्रामीण इलाकों में सैकड़ों वाटर प्लांट लगाए गए हैं. इनकी शुद्धता की जांच कभी नहीं होती. वहीं लोगों में भी शुद्धता की जानकारी नहीं रहने के कारण इस पानी का खूब उपयोग कर रहे हैं. गर्मी के मौसम में पानी की अधिक डिमांड को देखते हुए पानी प्लांट वालों की चांदी कट रही है. 3 से 4 लाख खर्च करते ही पानी प्लांट लगा कर घर-घर पानी की सप्लाई शुरू कर दी जाती है.

gopalganj
वाटर प्लांट में हो रहा पानी का दोहन

बिना लाइसेंस के चल रहे सैकड़ों प्लांट
जिले में सैकड़ों वाटर प्लांट का पानी बिना लाइसेंस के संचालित हो रहे हैं. बिना लाइसेंस वाले पानी प्लांट के खिलाफ जिला प्रशासन ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की है. शुद्ध जल के नाम पर अधिकांश लोग प्लांट का पानी पी रहे हैं. शुद्ध पेयजल के नाम पर पानी का कारोबार बढ़ता जा रहा है. इस कारोबार के प्रति नगर परिषद से लेकर जिला प्रशासन तक उदासीन बना है.

gopalganj
वाटर प्लांट

भूगर्भ जल के स्तर पर पड़ रहा असर
जानकारों की मानें तो आरो प्लांट में पानी शुद्ध करने के लिए ऑस्मोसिस प्रोसेस अपनाया जाता है. इस प्रक्रिया में 100 लीटर पानी में सिर्फ 40 लीटर पानी शुद्ध होता है जबकि 60% पानी बर्बाद हो जाता है. शहर में प्रतिदिन 50 हजार लीटर पानी की सप्लाई की जाती है और इतना ही पानी बर्बाद हो जाता है. जिसका असर भूगर्भ जल के स्तर पर पड़ रहा है.

Intro:गोपालगंज जिले में पानी का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा लेकिन इस कारोबार पर निगाह रखने वाला शायद कोई नही है आलम यह है कि यहां बिनाय लाइसेंस व मानक के विपरीत वाटर प्लांट लगाकर कर पानी का कारोबार किया जा रहा है। जिसके कारण रोजाना पानी की बर्बादी होती है वही पानी की शुद्धता की जांच के लिए कोई पहल नही होती।










Body:जिले का कोई ऐसा इलाका नहीं जहां जल का दोहन ना होता हो पानी के कारोबारियों द्वारा हर रोज धरती की कोख से पानी निकाला जा रहा है। लेकिन सरकारी महकमे नियम कानून की दुहाई देकर तमाशा देख रहे हैं। तमाम दावों के बावजूद सरकारी महकमे व जल संरक्षण के लिए कार्य करने वाले संगठन पानी के कारोबारियों पर नकेल नहीं कस पा रहे हैं। शहर में दर्जनों गाड़ियां प्रतिदिन पानी लेकर दौड़ती रहती है। पानी बेचने का कारोबार व्यवसाय बन गया है। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में आरो प्लांट लगे हैं जो दिन-रात पानी का दोहन कर रहे हैं जिले में बिना लाइसेंस लिए ही गैर कानूनी ढंग से पानी प्लांट लगाकर पानी बिक्री करने वाले उगाही कर रहे हैं।

नही होतीशुद्धता की जांच
गोपालगंज शहर समेत विभिन्न ग्रामीण इलाकों में सैकड़ो वाटर प्लांट लगाए गए है जिसकी शुद्धता की जांच कभी नही होती।वही लोगो को भी शुद्धता की जानकारी नहीं रहने के कारण इस पानी का खूब उपयोग कर रहे हैं। गर्मी के मौसम में पानी की अधिक डिमांड को देखते हुए पानी प्लांट वालों की चांदी कट रही है। तीन से 4 लाख खर्च कर पानी प्लांट बैठा कर पाने की घर-घर सप्लाई शुरू कर दी जाती है।

बिना लाइसेंस के चल रहे सैकड़ो प्लांट

जिले में सैकड़ो वाटर प्लांट का पानी बिनाय लाइसेंस के संचालित होते है। साथ ही पानी शुद्ध है या नहीं इसकी जांच भी नहीं होती बिना लाइसेंस वाले पानी प्लांट के विरुद्ध जिला प्रशासन द्वारा आज तक कोई भी कार्यवाही नहीं की गई। शुद्ध जल के नाम पर अधिकांश लोग प्लांट का पानी पी रहे हैं। लेकिन लोगों को यह जानकारी नहीं है कि प्लांट का पानी कितना शुद्ध है। पानी के 20 लीटर वाले जार का पानी 20 रुपये से 25 रुपये तक मिल जाता है। हालांकि अधिक दूर जाने पर 5 रूपए अधिक बढ़ा दिया जाता है। वाटर प्लांट कर्मी लोगों के घर होटल रेस्टोरेंट तक पानी को जार में भरकर पहुंचाते हैं। लोगों के मांग के अनुसार पानी का धंधा तेजी से परवान चढ़ता जा रहा है। शुद्ध पेयजल के नाम पर पानी का कारोबार बढ़ता जा रहा है।जिससे वाटर प्लांट मालिकों की भी चांदी रहती। शुद्ध और स्वच्छ पानी के नाम पर यह कारोबार जिस गति से बढ़ता जा रहा है, उसी अनुपात में पानी बर्बादी हो जा रहा है। जिसे भूगर्भ जलस्तर में भी असर पड़ना लाजिमी है। शुद्ध पानी के नाम पर इस कारोबार के प्रति नगर परिषद से लेकर जिला प्रशासन उदासीन बनी हुई है।
जानकारों की माने तो आरो प्लांट में पानी शुद्ध करने के लिए ऑस्मोसिस प्रोसेस अपनाई जाती है। इस प्रक्रिया में 100 लीटर पानी में सिर्फ 40 लीटर पानी के शुद्ध होता है जबकि 60% पानी बर्बाद हो जाता है व शहर में प्रतिदिन 50000 लीटर पानी की सप्लाई की जाती है तो इतना ही पानी बर्बाद हो जाता है। जिसका असर भूगर्भ जल स्तर पर पड़ता है। आरो प्लांट पानी की बर्बादी तभी रोकी जा सकती है जब बर्बाद हो रहे पानी को किसी जगह इकट्ठा कर रि साइकिल किया जा सकता है रि साइकिल से पहले पानी की बर्बादी रोकी जा सकती है। लेकिन री साइक्लिंग की बात कौन करे यहां तो बिना लाइसेंस के आर ओ वाटर प्लांट चल रहे हैं।


Conclusion:na
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