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बिहार के लाल विजय शंकर द्विवेदी ने देश को दिया पहला मानव रहित सोलरयान - यूएवी सोलर मराल-2

देश को पहला मानव रहित सोलरयान देने वाले विजय शंकर द्विवेदी गोपालगंज के सेवानिवृत प्रिंसिपल ब्रजनाथ द्विवेदी के सबसे छोटे बेटे हैं. शिक्षक के इस बेटे ने छोटे से गांव से निकलकर जो बड़ा काम किया है वो औरों के लिए नसीहत और प्रेरणा से कम नहीं है.

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विजय शंकर द्विवेदी
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Published : Feb 18, 2020, 11:56 AM IST

गोपालगंजः हमारे देश में प्रतिभा की कमी नहीं है. अगर बात करें बिहार की तो यहां कई ऐसे प्रतिभा के धनी व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने देश का मान सम्मान बढ़ाया है. ऐसे में एक नाम और जुड़ गया है, गोपालगंज जिले के विजय शंकर द्विवेदी का. जिसने एक ऐसा मानव रहित सोलरयान तैयार किया है, जो दुनिया का पहला ऐसा मानवरहित यान(यूएवी)सोलर मराल-2 है, जो एक्सीररॉन तकनीक से लैस है.

मेहनत और लगन के बदौलत हासिल की सफलता
गोपालगंज जिला मुख्याल से तकरीबन 55 किलोमीटर दूर कटेया प्रखण्ड के पटखौली गांव के रहने वाले हैं विजय शंकर द्विवेदी जो अवकाश प्राप्त प्रिंसिपल ब्रजनाथ द्विवेदी के सबसे छोटे बेटे हैं. जिन्होंने ने यह सफलता 2 सालों की कड़ी मेहनत और लगन के बदौलत हासिल की है.

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विजय शंकर द्विवेदी

प्रारंभिक शिक्षा उत्तराखंड के देहरादून से हुई
विजया शंकर द्विवेदी की प्रारंभिक शिक्षा उत्तराखंड के देहरादून से हुई. पिता जी राजकीय इंटर कॉलेज सराईखेत अलमोड़ा में प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत्त हैं. विजय शंकर दो भाई और एक बहन में सबसे छोटे है. बीटेक की पढ़ाई उत्तराखंड से की और इस समय एमटेक कर रहे है. फिलहाल विजय शंकर कानपुर आईआईटी में हैं.

विजय शंकर के गांव में खुशी का माहौल
विजय शंकर की इस सफलता पर माता पिता फुले नहीं समा रहे हैं. पूरे गांव में खुशी का माहौल है. विजय शंकर के घर बधाई देने वालों का तांता लगा है. विजय शंकर के जरिए किए गए इस सफल अविष्कार के बाद ईटीवी भारत की टीम भी उनके घर पहुंची और परिवार के लोगों से बातचीत की.

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विजय शंकर द्विवेदी के गांव में बधाई के लिए पहुंचे लोग

'विश्वास नहीं था इतना बड़ा काम करेगा'
बेटे की सफलता पर सेवानिवृत्त प्रिंसिपल ब्रजनाथ द्विवेदी काफी खुश हैं. उन्होंने उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए कहा कि मुझे यह विश्वास नहीं था कि मेरा बेटा आज इतना बड़ा काम करेगा, जिस पर पूरे देश को गर्व है. उन्होंने कहा कि विजय ने सौर ऊर्जा से चलने वाला दुनिया का पहला ऐसा मानवरहित यान (यूएवी) सोलर मराल-2 बनाया है, जो एक्सिरॉन तकनीक से लैस है. इस तकनीक से यूएवी के पैनल हमेशा सूर्य की ओर होंगे और उसकी सबसे अधिक ऊर्जा ग्रहण करेंगे.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ये भी पढ़ेंः सरायकेला: स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम की शुरुआत, मिथिला पेंटिंग से जुड़कर महिलाएं हो रही आत्मनिर्भर

'बचपन में बनाता था मिट्टी की जहाज'
वहीं, विजय शंकर की मां शकुंतला का कहना है कि उनके बेटे की कड़ी मेहनत के कारण यह सम्भव हो पाया है. मां शकुंतला अपने बेटे की इस सफलता पर काफी खुश हैं. चाचा आशुतोष द्विवेदी ने कहा कि मेरा भतीजा बचपन से ही होनहार था. जब वह छोटा था तभी से मिट्टी के जहाज बनाता और कहता कि एक दिन कुछ अलग जहाज बनाऊंगा. आज उसने कुछ अलग कर के दिखा दिया.

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परिवार के सदस्य

2 साल के शोध के बाद बना मराल-2
बता दें कि दुनिया का सर्वाधिक समय तक उड़ने वाले इस मराल-2 सोलर यूएवी को एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर एके घोष और डॉ जीएम कामत के दिशा निर्देश में बनाया गया है. जो 2 साल के शोध के बाद तैयार किया गया है. आईआईटी की एयर स्ट्रिप पर 18 घंटे की सफल उड़ान के बाद तकनीक को पेटेंट करा लिया गया. 12 किलो के इस यूएवी का पेलोड के साथ उड़ते समय का वजन 20 किलोग्राम है.

250 मीटर ऊंचाई पर होगी रिमोट की जरूरत
इसमें सर्विलांस निगरानी का पूरा सिस्टम मौजूद है. यह सोलर यूएवी सौ किलोमीटर तक लंबाई और 5 किलोमीटर तक ऊर्ध्व ऊंचाई में उड़ सकता है. इसे 250 मीटर तक ऊंचाई में उड़ने के लिए रिमोट की जरूरत होती है. फिर उसकी ऑटो पायलट तकनीक यूएवी को नियंत्रित कर लेती है. अधिकतम ऊंचाई पर भी इसके कैमरे जमीन पर हो रही हरकत को पकड़ लेते हैं.

गोपालगंजः हमारे देश में प्रतिभा की कमी नहीं है. अगर बात करें बिहार की तो यहां कई ऐसे प्रतिभा के धनी व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने देश का मान सम्मान बढ़ाया है. ऐसे में एक नाम और जुड़ गया है, गोपालगंज जिले के विजय शंकर द्विवेदी का. जिसने एक ऐसा मानव रहित सोलरयान तैयार किया है, जो दुनिया का पहला ऐसा मानवरहित यान(यूएवी)सोलर मराल-2 है, जो एक्सीररॉन तकनीक से लैस है.

मेहनत और लगन के बदौलत हासिल की सफलता
गोपालगंज जिला मुख्याल से तकरीबन 55 किलोमीटर दूर कटेया प्रखण्ड के पटखौली गांव के रहने वाले हैं विजय शंकर द्विवेदी जो अवकाश प्राप्त प्रिंसिपल ब्रजनाथ द्विवेदी के सबसे छोटे बेटे हैं. जिन्होंने ने यह सफलता 2 सालों की कड़ी मेहनत और लगन के बदौलत हासिल की है.

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विजय शंकर द्विवेदी

प्रारंभिक शिक्षा उत्तराखंड के देहरादून से हुई
विजया शंकर द्विवेदी की प्रारंभिक शिक्षा उत्तराखंड के देहरादून से हुई. पिता जी राजकीय इंटर कॉलेज सराईखेत अलमोड़ा में प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत्त हैं. विजय शंकर दो भाई और एक बहन में सबसे छोटे है. बीटेक की पढ़ाई उत्तराखंड से की और इस समय एमटेक कर रहे है. फिलहाल विजय शंकर कानपुर आईआईटी में हैं.

विजय शंकर के गांव में खुशी का माहौल
विजय शंकर की इस सफलता पर माता पिता फुले नहीं समा रहे हैं. पूरे गांव में खुशी का माहौल है. विजय शंकर के घर बधाई देने वालों का तांता लगा है. विजय शंकर के जरिए किए गए इस सफल अविष्कार के बाद ईटीवी भारत की टीम भी उनके घर पहुंची और परिवार के लोगों से बातचीत की.

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विजय शंकर द्विवेदी के गांव में बधाई के लिए पहुंचे लोग

'विश्वास नहीं था इतना बड़ा काम करेगा'
बेटे की सफलता पर सेवानिवृत्त प्रिंसिपल ब्रजनाथ द्विवेदी काफी खुश हैं. उन्होंने उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए कहा कि मुझे यह विश्वास नहीं था कि मेरा बेटा आज इतना बड़ा काम करेगा, जिस पर पूरे देश को गर्व है. उन्होंने कहा कि विजय ने सौर ऊर्जा से चलने वाला दुनिया का पहला ऐसा मानवरहित यान (यूएवी) सोलर मराल-2 बनाया है, जो एक्सिरॉन तकनीक से लैस है. इस तकनीक से यूएवी के पैनल हमेशा सूर्य की ओर होंगे और उसकी सबसे अधिक ऊर्जा ग्रहण करेंगे.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ये भी पढ़ेंः सरायकेला: स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम की शुरुआत, मिथिला पेंटिंग से जुड़कर महिलाएं हो रही आत्मनिर्भर

'बचपन में बनाता था मिट्टी की जहाज'
वहीं, विजय शंकर की मां शकुंतला का कहना है कि उनके बेटे की कड़ी मेहनत के कारण यह सम्भव हो पाया है. मां शकुंतला अपने बेटे की इस सफलता पर काफी खुश हैं. चाचा आशुतोष द्विवेदी ने कहा कि मेरा भतीजा बचपन से ही होनहार था. जब वह छोटा था तभी से मिट्टी के जहाज बनाता और कहता कि एक दिन कुछ अलग जहाज बनाऊंगा. आज उसने कुछ अलग कर के दिखा दिया.

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परिवार के सदस्य

2 साल के शोध के बाद बना मराल-2
बता दें कि दुनिया का सर्वाधिक समय तक उड़ने वाले इस मराल-2 सोलर यूएवी को एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर एके घोष और डॉ जीएम कामत के दिशा निर्देश में बनाया गया है. जो 2 साल के शोध के बाद तैयार किया गया है. आईआईटी की एयर स्ट्रिप पर 18 घंटे की सफल उड़ान के बाद तकनीक को पेटेंट करा लिया गया. 12 किलो के इस यूएवी का पेलोड के साथ उड़ते समय का वजन 20 किलोग्राम है.

250 मीटर ऊंचाई पर होगी रिमोट की जरूरत
इसमें सर्विलांस निगरानी का पूरा सिस्टम मौजूद है. यह सोलर यूएवी सौ किलोमीटर तक लंबाई और 5 किलोमीटर तक ऊर्ध्व ऊंचाई में उड़ सकता है. इसे 250 मीटर तक ऊंचाई में उड़ने के लिए रिमोट की जरूरत होती है. फिर उसकी ऑटो पायलट तकनीक यूएवी को नियंत्रित कर लेती है. अधिकतम ऊंचाई पर भी इसके कैमरे जमीन पर हो रही हरकत को पकड़ लेते हैं.

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