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पर्यावरण संरक्षण के लिए इस गांव में है अनोखी परंपरा, पेड़ों को बनाते हैं परिवार का सदस्य

गोपालगंज के थावे प्रखंड स्थित विशंभरपुर गांव में साल 1952 से अपने घर के सामने एक पेड़ लगाने की परंपरा चली आ रही है. इसको लेकर गांव के मुखिया ने कहा कि यहां पर्यावरण को बचाने के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी अपने घर के सामने पेड़ लगाने की अनोखी परंपरा है. ग्रामीण पेड़-पौधे की देखभाल घर के परिजन के तरह करते हैं.

पेड़ों को बनाते हैं परिवार का सदस्य
पेड़ों को बनाते हैं परिवार का सदस्य
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Published : Mar 2, 2020, 9:56 PM IST

गोपालगंज: एक मशहूर कहावत है कि अगर मन में कुछ करने की दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कोई भी कार्य आसान हो जाता है. कुछ ऐसा ही मामला जिले के थावे प्रखंड स्थित धतिगना पंचायत के विशंभरपुर गांव निवासियों का है. दरअसल, यहां पर्यावरण को बचाने के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी अपने घर के सामने पेड़ लगाने की अनोखी परंपरा है. इसको लेकर ग्रामीण बताते हैं कि यहां पेड़-पौधे की देखभाल घर के परिजन के तरह की जाती है. लोगों का कहना है कि गांव वाले किसी बिमारी या शुभ कार्य के समय अपने घर के सामने लगे पेड़ की पूजा-प्रार्थना करते हैं. राखी, दीपावली, होली या अन्य त्योहार पर भी इन्हीं पेड़-पौधों के साथ मनाया जाता है.

गांव में लगे हुए पेड़-पौधे
गांव में लगे हुए पेड़-पौधे

'1952 से चली आ रही है पेड़ लगाने की परंपरा'
इसको लेकर गांव के मुखिया ओमप्रकाश बताते है कि गांव की यह परंपरा देश और दुनिया के लिए एक मिशाल है. यहां के ग्रामीण सालों से पर्यावरण की रक्षा करने का संदेश देते आ रहे हैं. गांव में हर दरवाजे पर एक पेड़ लगाने की परंपरा साल 1952 में शुरू हुई थी, जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती गई. उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं है कि यहां के लोगों को पेड़ लगाने के लिए किसी पर दबाव दिया जाता है. लोग यहां पर खुद से अपने परंपरा को कायम रखे हुए हैं. इस गांव को लोग ग्रीन विलेज के नाम से भी जानते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'पंचायत में किया गया था पेड़ लगाने का फैसला'
गांव के मुखिया ने बताया कि इस गांव में प्रवेश करते ही सड़क किनारे हरे भरे पेड़-पौधे भरे हुए हैं. गांव की सड़कों पर कदम्ब, पीपल, अमरुद से लेकर नीम और अन्य कई तरह के पेड़ देखे जा सकते हैं. यहां गर्मी की तपती दोपहर और आग उगलते आसमान के बावजूद दोपहर में भी गांव के चौराहे पर पेड़ के नीचे बैठे लोग मिल जाएंगे. गांव के मुखिया ओमप्रकाश ने बताया कि उनके बाबा स्वर्गीय राम नारायण राय ने इस परंपरा की शुरुआत की थी. उन्होंने कहा कि इस गांव के लोग काफी दूरदर्शी थे. उन्होंने पर्यावरण के आने वाले खतरे को काफी पहले भांप लिया था और गांव के लोगों से विचार-विमर्श कर पंचायत में अधिक से अधिक पेड़ लगाने की फैसला लिया. तब से लेकर आज तक जो भी अपना घर बनाता है वह अपने घर के सामने या अपने जमीन पर पेड़ जरूर लगाता है. यह परंपरा सालों से यूं ही चलता आ रहा है.

वहीं, इस मामले पर जब ईटीवी भारत संवाददाता ने जिले के डीएम अरशद अजीज से बात की तो उन्होंने बताया कि गांव वालों का यह कदम स्वागत योग्य है. मुझे इस बात की जानकारी नहीं हैं. उन्होंने कहा कि मैं एक बार इस गांव का विजिट जरूर करूंगा.

गोपालगंज: एक मशहूर कहावत है कि अगर मन में कुछ करने की दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कोई भी कार्य आसान हो जाता है. कुछ ऐसा ही मामला जिले के थावे प्रखंड स्थित धतिगना पंचायत के विशंभरपुर गांव निवासियों का है. दरअसल, यहां पर्यावरण को बचाने के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी अपने घर के सामने पेड़ लगाने की अनोखी परंपरा है. इसको लेकर ग्रामीण बताते हैं कि यहां पेड़-पौधे की देखभाल घर के परिजन के तरह की जाती है. लोगों का कहना है कि गांव वाले किसी बिमारी या शुभ कार्य के समय अपने घर के सामने लगे पेड़ की पूजा-प्रार्थना करते हैं. राखी, दीपावली, होली या अन्य त्योहार पर भी इन्हीं पेड़-पौधों के साथ मनाया जाता है.

गांव में लगे हुए पेड़-पौधे
गांव में लगे हुए पेड़-पौधे

'1952 से चली आ रही है पेड़ लगाने की परंपरा'
इसको लेकर गांव के मुखिया ओमप्रकाश बताते है कि गांव की यह परंपरा देश और दुनिया के लिए एक मिशाल है. यहां के ग्रामीण सालों से पर्यावरण की रक्षा करने का संदेश देते आ रहे हैं. गांव में हर दरवाजे पर एक पेड़ लगाने की परंपरा साल 1952 में शुरू हुई थी, जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती गई. उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं है कि यहां के लोगों को पेड़ लगाने के लिए किसी पर दबाव दिया जाता है. लोग यहां पर खुद से अपने परंपरा को कायम रखे हुए हैं. इस गांव को लोग ग्रीन विलेज के नाम से भी जानते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'पंचायत में किया गया था पेड़ लगाने का फैसला'
गांव के मुखिया ने बताया कि इस गांव में प्रवेश करते ही सड़क किनारे हरे भरे पेड़-पौधे भरे हुए हैं. गांव की सड़कों पर कदम्ब, पीपल, अमरुद से लेकर नीम और अन्य कई तरह के पेड़ देखे जा सकते हैं. यहां गर्मी की तपती दोपहर और आग उगलते आसमान के बावजूद दोपहर में भी गांव के चौराहे पर पेड़ के नीचे बैठे लोग मिल जाएंगे. गांव के मुखिया ओमप्रकाश ने बताया कि उनके बाबा स्वर्गीय राम नारायण राय ने इस परंपरा की शुरुआत की थी. उन्होंने कहा कि इस गांव के लोग काफी दूरदर्शी थे. उन्होंने पर्यावरण के आने वाले खतरे को काफी पहले भांप लिया था और गांव के लोगों से विचार-विमर्श कर पंचायत में अधिक से अधिक पेड़ लगाने की फैसला लिया. तब से लेकर आज तक जो भी अपना घर बनाता है वह अपने घर के सामने या अपने जमीन पर पेड़ जरूर लगाता है. यह परंपरा सालों से यूं ही चलता आ रहा है.

वहीं, इस मामले पर जब ईटीवी भारत संवाददाता ने जिले के डीएम अरशद अजीज से बात की तो उन्होंने बताया कि गांव वालों का यह कदम स्वागत योग्य है. मुझे इस बात की जानकारी नहीं हैं. उन्होंने कहा कि मैं एक बार इस गांव का विजिट जरूर करूंगा.

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