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ये है गोपालगंज का राजकीय बुनियादी विद्यालय, जहां बुनियादी सुविधा का है घोर अभाव

राजकीय बुनियादी विद्यालय में सुविधा का घोर अभाव है. जिसके कारण छात्रों को काफी परेशानी का समना करना पड़ता है. साथ ही स्थानीय लोगों ने इस विद्यालय को जबरन जानवर का तबेला बना दिया है. इसके कारण यहां के बच्चे गंदगी और जानवरों के बीच दोपहर का भोजन करते है.

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Published : Oct 26, 2019, 7:33 AM IST

गोपालगंज: जिले के सिसवनिया गांव में स्थित राजकीय बुनियादी विद्यालय में बुनियादी सुविधा का घोर अभाव है. इस विद्यालय की स्थापना 1950 में हुई थी. जिसमें रोजगारपरक शिक्षा मिलती थी. लेकिन बदलते समय के अनुसार अब यहां ना ही रोजगारपरक शिक्षा मिल पाती है और ना ही गुणवत्तापूर्ण सामान्य शिक्षा. एक ही रूम में 3 क्लास संचालित होती है. जिसके कारण पढ़ने वाले बच्चे कंफ्यूज हो जाते है.

स्थानीय लोगों की चलती है मनमानी
इस विद्यालय में स्थानीय लोगों की भी मनमानी चलती है. स्थानीय लोगों द्वारा इस विद्यालय को जबरन तबेला बना दिया गया है. यहां पशुओं को बांधा जाता है. साथ ही यहां के बच्चे गंदगी और जानवरों के बीच दोपहर का भोजन करते है. विद्यालय में 11 शिक्षकों का पद स्वीकृत है. लेकिन 4 शिक्षकों के भरोसे करीब 200 छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर रहे है.

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बुनियादी सुविधा का घोर अभाव

एक रुम में चलती है तीन क्लास
बताया जाता है कि यहां जमीन नहीं होने के कारण विद्यालय का भवन निर्माण का कार्य नहीं हो पा रहा है. जिसके कारण एक ही कक्षा में तीन क्लास चलती है. अब ऐसे में छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे मिल पाएगी. इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. वहीं, एक तरफ प्रदेश की सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करती है तो यहां दूसरे तरफ विद्यालय में संसाधन का घोर अभाव है. जिसके कारण छात्र अपने मैलिक अधिकार से वंचित हो रहे है.

सुविधा का है घोर आभाव

बुनियादी शिक्षा क्षेत्र से दूर है यह विद्यालय
बता दें कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों में शुमार बुनियादी विद्यालय की बुनियाद अब हिल गई है. इनका अस्तित्व मिटने के कगार पर है. यह विद्यालय बुनियादी शिक्षा क्षेत्र से दूर है. वर्तमान में हालात यह हो गया हैं कि यहां सामान्य शिक्षा भी नहीं मिल पा रही है. अधिकांश विद्यालयों में शिक्षकों की कमी से बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है. जिसके कारण यह बच्चे मजबूरन प्राइवेट कोचिंग में पढ़ कर परीक्षा देते है.

गोपालगंज: जिले के सिसवनिया गांव में स्थित राजकीय बुनियादी विद्यालय में बुनियादी सुविधा का घोर अभाव है. इस विद्यालय की स्थापना 1950 में हुई थी. जिसमें रोजगारपरक शिक्षा मिलती थी. लेकिन बदलते समय के अनुसार अब यहां ना ही रोजगारपरक शिक्षा मिल पाती है और ना ही गुणवत्तापूर्ण सामान्य शिक्षा. एक ही रूम में 3 क्लास संचालित होती है. जिसके कारण पढ़ने वाले बच्चे कंफ्यूज हो जाते है.

स्थानीय लोगों की चलती है मनमानी
इस विद्यालय में स्थानीय लोगों की भी मनमानी चलती है. स्थानीय लोगों द्वारा इस विद्यालय को जबरन तबेला बना दिया गया है. यहां पशुओं को बांधा जाता है. साथ ही यहां के बच्चे गंदगी और जानवरों के बीच दोपहर का भोजन करते है. विद्यालय में 11 शिक्षकों का पद स्वीकृत है. लेकिन 4 शिक्षकों के भरोसे करीब 200 छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर रहे है.

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बुनियादी सुविधा का घोर अभाव

एक रुम में चलती है तीन क्लास
बताया जाता है कि यहां जमीन नहीं होने के कारण विद्यालय का भवन निर्माण का कार्य नहीं हो पा रहा है. जिसके कारण एक ही कक्षा में तीन क्लास चलती है. अब ऐसे में छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे मिल पाएगी. इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. वहीं, एक तरफ प्रदेश की सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करती है तो यहां दूसरे तरफ विद्यालय में संसाधन का घोर अभाव है. जिसके कारण छात्र अपने मैलिक अधिकार से वंचित हो रहे है.

सुविधा का है घोर आभाव

बुनियादी शिक्षा क्षेत्र से दूर है यह विद्यालय
बता दें कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों में शुमार बुनियादी विद्यालय की बुनियाद अब हिल गई है. इनका अस्तित्व मिटने के कगार पर है. यह विद्यालय बुनियादी शिक्षा क्षेत्र से दूर है. वर्तमान में हालात यह हो गया हैं कि यहां सामान्य शिक्षा भी नहीं मिल पा रही है. अधिकांश विद्यालयों में शिक्षकों की कमी से बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है. जिसके कारण यह बच्चे मजबूरन प्राइवेट कोचिंग में पढ़ कर परीक्षा देते है.

Intro:राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों में शुमार बुनियादी विद्यालय की बुनियाद अब हिल गई है। इनका अस्तित्व मिटने के कगार पर है। यह विद्यालय बुनियादी शिक्षा क्षेत्र से दूर है। हालात यह हो गए हैं कि अब सामान्य शिक्षा भी इन विद्यालयों में लागू नहीं हो पा रहे हैं। अधिकांश विद्यालयों में शिक्षकों की कमी से बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है। जिसके कारण यह बच्चे मजबूरन प्राइवेट कोचिंग पढ़ कर परीक्षा देते हैं।






Body:कुछ ऐसा ही वाकया गोपालगंज जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर उचकागांव गांव प्रखंड के सिसवनिया गांव के राजकीय बुनियादी विद्यालय की है। इस विद्यालय की स्थापना वर्ष 1950 को हुई थी। जिसमें रोजगारपरक शिक्षा मिलती थी। लेकिन बदलते समय के अनुसार अब यहां नाही रोजगारपरक शिक्षा मिल पाती है और ना ही गुणवत्तापूर्ण सामान्य शिक्षा। एक ही रूम में 3-3 क्लास संचालित होती हैं। जिसे पढ़ने वाले बच्चे कंफ्यूज हो जाते हैं। इतना ही नहीं इस विद्यालय में स्थानीय लोगों की भी मनमानी चलती है। स्थानीय लोगों द्वारा इस विद्यालय को जबरन तबेला बना दिया गया है। यहां पशुओं को बांधा जाता है। साथ ही यहां के बच्चे गंदगी व जानवरों के बीच दोपहर का भोजन करते हैं। इस विद्यालय में 11 शिक्षकों का पद स्वीकृत है लेकिन 4 शिक्षकों के भरोसे करीब 200 छात्र-छात्राएं शिक्षा के तालीम सीखते हैं। शिक्षक भी एक हमेशा नही पहुंचते एक शिक्षक विभागीय कार्य से बाहर ही रहते है तो प्राचार्य समेत तीन शिक्षक भी रेगुलर नही रहते। ऐसे में 200 छात्रों का पठन-पाठन कैसे होगा। ऐसा नही है कि यहां छात्र छात्राओं के लिए क्लास रूम।,भवन या जगह की कमी है। बावजूद शिक्षकों के अभाव के कारण यहां के क्लास रूम में ताला लटका रहता है। और एक ही रूम में तीन तीन क्लास संचालन करने को यहां के।शिक्षक मजबूर होते हैं। अब ऐसे में छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे मिल पाएगी इसकी अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। ज्ञातव्य हो कि आजादी से पूर्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सन 1919 में बुनियादी विद्यालय की स्थापना की परिकल्पना की थी।सन 1934 में बुनियादी विद्यालयों का विकास का कार्य शुरू किया गया। वर्ष 1947 में आजादी के समय बिहार में कुल 391 बुनियादी विद्यालय की स्थापना की गई जिसमें गोपालगंज जिले में बुनियादी विद्यालय का स्थापना हुआ। लेकिन स्थापना का उद्देश्य अब पूरे नहीं हो रहे हैं। स्थापना का उद्देश्य लोगों को स्वावलंबी बनाना था इसके तहत ग्रामीण क्षेत्र के व्यवहारिक रोजगार एवं कौशल की शिक्षा प्रदान करनी थी जिससे रोजगार को बढ़ावा मिलता था लेकिन अब ये बीते दिनों की बात हो गई है। बावजूद सूबे के मुखिया नीतीश कुमार शिक्षा व्यवस्था की दम्भ भरती हुई नजर आती है।


Conclusion:na
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