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गरीबी के चलते नहीं बन सके इंजीनियर, अब कमजोर तबके के बच्चों को देते हैं मुफ्त शिक्षा - गोपालगंज

इंद्रजीत कुमार ने कहा कि मुझे दुख है कि मैं इंजीनियर नहीं बन सका, लेकिन खुशी इस बात की है कि मैं आज उन बच्चों के सपनों को साकार करने में लगा हूं. जो आर्थिक स्थिति से कमजोर हैं.

गोपालगंज में निःशुल्क शिक्षा देते हैं इंद्रजीत कुमार
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Published : Sep 28, 2019, 12:51 PM IST

गोपालगंज: जिला मुख्यालय के एक छोटे से गांव के रहने वाले इंद्रजीत कुमार इंजीनियर बनना चाहता थे, लेकिन आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने की वजह से उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका. जिसके बाद उन्होंने अपने सपने को सपना ही रहने दिया, लेकिन दूसरों के सपने न टूटें इसके लिए वह वैसे बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देते हैं, जिनमें कुछ करने का जज्बा हो.

पिता ठेले पर फल बेचा करते थे
गोपालगंज जिला मुख्यालय से करीब 9 किलोमीटर दूर सदर प्रखंड के बाबू बिशनपुर गांव निवासी शंभू शाह के पुत्र इंद्रजीत कुमार बचपन से ही होनहार थे. इंद्रजीत के पिता ठेले पर फल बेचा करते थे और अपने परिवार का खर्च चलाया करते थे. लेकिन अचानक एक दिन इंद्रजीत के पिता कालाज्वर से पीड़ित हो गये. जिसके बाद घर में सबसे बड़ा होने के नाते इंद्रजीत के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई. जिसे इंद्रजीत ने निभाते हुए परिवार का खर्च उठाया.

गोपालगंज में निःशुल्क शिक्षा देते हैं इंद्रजीत कुमार

पैसे नहीं होने की वजह से छोड़ी पढ़ाई
इंद्रजीत ने इसके बाद फरीदाबाद जाने का फैसला लिया और वहीं जाकर उन्होंने मजदूरी करनी शुरू कर दी. जिस घर में वह मजदूरी का काम करते थे, उसी घर में उन्होंने छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. इसके बाद इंद्रजीत ने इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद बीटेक में एडमिशन कराया. सेकंड सेमेस्टर तक इंद्रजीत ने पढ़ाई की, लेकिन आगे की पढ़ाई करने के लिए उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे. अंततः वह अपने सपने को बीच में ही छोड़कर अपने घर लौट आये.

Indrajit Kumar of gopalganj gives free education
बच्चों के पढ़ाते इंद्रजीत कुमार

300 से ज्यादा बच्चे को पढ़ाते हैं
यहां आकर उन्होंने कुछ बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया. धीरे-धीरे ट्यूशन में भीड़ होने लगी और इंद्रजीत ने स्कूल खोल दिया. जिसमें आज करीब 300 से ज्यादा बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं. इसके साथ ही इंद्रजीत करीब 10 शिक्षकों को रोजगार देते हैं. इतना ही नहीं इंद्रजीत वैसे बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देते हैं जो गरीब हैं. जिनमें पढ़ने और कुछ करने का जज्बा है.

Indrajit Kumar of gopalganj gives free education
अपनी मां और बहन के साथ इंद्रजीत कुमार

बच्चों के सपनों को साकार करने में जुटे इंद्रजीत
इंद्रजीत का कहना है कि मैं तो कुछ नहीं कर सका. लेकिन वैसे बच्चों का सपना नहीं टूटने दूंगा जिनका कुछ बनने का सपना है और पैसे की वजह से वह आगे नहीं पढ़ पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि आर्थिक तंगी ही मेरी सफलता में सबसे बड़ी बाधक रही है. इसलिए उसी बाधा को मैं दूर करने का प्रयास करूंगा. इंद्रजीत ने कहा की मुझे दुख है कि मैं इंजीनियर नहीं बन सका. लेकिन खुशी इस बात की है कि मैं आज उन बच्चों के सपनों को साकार करने में जुटा हूं. जो आर्थिक स्थिति से कमजोर हैं. वहीं इंद्रजीत की मां चुनमुनि देवी अपने बीते दिनों को याद करके रोने लगती हैं. उन्होंने कहा कि जब लोगों से अपने बेटे के भविष्य के बारे में बात करती थी, तो लोग मजाक बनाते थे. लेकिन आज वो सब उनके बेटे की तारीफ करते हैं.

गोपालगंज: जिला मुख्यालय के एक छोटे से गांव के रहने वाले इंद्रजीत कुमार इंजीनियर बनना चाहता थे, लेकिन आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने की वजह से उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका. जिसके बाद उन्होंने अपने सपने को सपना ही रहने दिया, लेकिन दूसरों के सपने न टूटें इसके लिए वह वैसे बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देते हैं, जिनमें कुछ करने का जज्बा हो.

पिता ठेले पर फल बेचा करते थे
गोपालगंज जिला मुख्यालय से करीब 9 किलोमीटर दूर सदर प्रखंड के बाबू बिशनपुर गांव निवासी शंभू शाह के पुत्र इंद्रजीत कुमार बचपन से ही होनहार थे. इंद्रजीत के पिता ठेले पर फल बेचा करते थे और अपने परिवार का खर्च चलाया करते थे. लेकिन अचानक एक दिन इंद्रजीत के पिता कालाज्वर से पीड़ित हो गये. जिसके बाद घर में सबसे बड़ा होने के नाते इंद्रजीत के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई. जिसे इंद्रजीत ने निभाते हुए परिवार का खर्च उठाया.

गोपालगंज में निःशुल्क शिक्षा देते हैं इंद्रजीत कुमार

पैसे नहीं होने की वजह से छोड़ी पढ़ाई
इंद्रजीत ने इसके बाद फरीदाबाद जाने का फैसला लिया और वहीं जाकर उन्होंने मजदूरी करनी शुरू कर दी. जिस घर में वह मजदूरी का काम करते थे, उसी घर में उन्होंने छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. इसके बाद इंद्रजीत ने इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद बीटेक में एडमिशन कराया. सेकंड सेमेस्टर तक इंद्रजीत ने पढ़ाई की, लेकिन आगे की पढ़ाई करने के लिए उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे. अंततः वह अपने सपने को बीच में ही छोड़कर अपने घर लौट आये.

Indrajit Kumar of gopalganj gives free education
बच्चों के पढ़ाते इंद्रजीत कुमार

300 से ज्यादा बच्चे को पढ़ाते हैं
यहां आकर उन्होंने कुछ बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया. धीरे-धीरे ट्यूशन में भीड़ होने लगी और इंद्रजीत ने स्कूल खोल दिया. जिसमें आज करीब 300 से ज्यादा बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं. इसके साथ ही इंद्रजीत करीब 10 शिक्षकों को रोजगार देते हैं. इतना ही नहीं इंद्रजीत वैसे बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देते हैं जो गरीब हैं. जिनमें पढ़ने और कुछ करने का जज्बा है.

Indrajit Kumar of gopalganj gives free education
अपनी मां और बहन के साथ इंद्रजीत कुमार

बच्चों के सपनों को साकार करने में जुटे इंद्रजीत
इंद्रजीत का कहना है कि मैं तो कुछ नहीं कर सका. लेकिन वैसे बच्चों का सपना नहीं टूटने दूंगा जिनका कुछ बनने का सपना है और पैसे की वजह से वह आगे नहीं पढ़ पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि आर्थिक तंगी ही मेरी सफलता में सबसे बड़ी बाधक रही है. इसलिए उसी बाधा को मैं दूर करने का प्रयास करूंगा. इंद्रजीत ने कहा की मुझे दुख है कि मैं इंजीनियर नहीं बन सका. लेकिन खुशी इस बात की है कि मैं आज उन बच्चों के सपनों को साकार करने में जुटा हूं. जो आर्थिक स्थिति से कमजोर हैं. वहीं इंद्रजीत की मां चुनमुनि देवी अपने बीते दिनों को याद करके रोने लगती हैं. उन्होंने कहा कि जब लोगों से अपने बेटे के भविष्य के बारे में बात करती थी, तो लोग मजाक बनाते थे. लेकिन आज वो सब उनके बेटे की तारीफ करते हैं.

Intro:कहते हैं हर किसी के मन मे कुछ करने और बनने का सपना जरूर होता है। और यही सपना गोपालगंज जिला के एक गांव में एक गाँव मे रहने वाले युवक ने देखी थी। लेकिन आर्थिक तंगी ने उसके द्वारा देखी गई सपना को पूरा नहीं हो सका। लेकिन आज वह दूसरे के सपनों को साकार करने में जुड़ा हुआ है।


Body:गोपालगंज जिला मुख्यालय के एक छोटे से गांव में रहने वाला युवक सफल इंजीनियर बनना चाहता था। लेकिन आर्थिक कमजोर सबसे बड़ी बाधक बनी। और उसने अपने सपना को सपना ही रहने दिया लेकिन दूसरों का सपना न टूटे उसके लिए वह वैसे बच्चों को निशुल्क शिक्षा देता है। जिसमें कुछ करने का जज्बा हो। हम बात कर रहे हैं गोपालगंज जिला मुख्यालय से करीब 9 किलोमीटर दूर सदर प्रखंड के बाबू बिशनपुर गांव निवासी शंभू शाह के पुत्र इंद्रजीत कुमार की इंद्रजीत जब छोटा था तभी से वह होनहार था। पिता जी ठेले पर गली गली घूम कर फल बेचा करते थे और अपने परिवार का खर्च वहन करते थे। अचानक एक दिन इंद्रजीत के पिता कालाजार से पीड़ित हो गया घर में सबसे बड़े पुत्र होने के नाते इंद्रजीत के कंधों पर परिवार की जिमेदारी आ गई आ गई। जिसे इंद्रजीत ने बखूबी निभाते हुए परिवार का खर्च उठाया। परिवार के लोगों द्वारा साईकिल पर आइसक्रीम बेचने के लिए सलाह दी कहा कि यही पर रह कर आइसक्रीम बेचे इसके लिए राजी हुए लेकिन इंद्रजीत ने सोचा कि गली-गली जाकर आइसक्रीम बेचने पर साथ पढ़ने वाले बच्चे देखेंगे और मुझ पर हंस लेंगे। तब उसने फरीदाबाद जाने का फ़ैसला लिया और वही जाकर उसने मेहनत मजदूरी करना शुरू किया जिस घर में वह लेबर का काम करता था उसी घर मे उसने छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाने लगा। इस कार्य को देखकर घर के मालिक ने कुछ पैसे भी देना शुरू किया तब उसने इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद बीटेक में अपना एडमिशन कराया सेकंड सेमेस्टर तक उन्होंने पढ़ाई की लेकिन आगे की पढ़ाई करने के लिए उसके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे लोन भी नहीं मिलता था और अंततः उसने अपने सपना को बीच में ही छोड़कर अपने घर लौट आए यहां आकर उसने कुछ बच्चों को ट्यूशन के शिक्षा देना शुरू की। उनके पढ़ाई को देखकर बच्चे आने इनके पास आने लगे। धीरे-धीरे ट्यूशन में भीड़ होने लगी और उन्होंने स्कूल खोल दिया जिसमें आज करीब 300 से ज्यादा बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। और करीब 10 शिक्षको को रोजगार देते है। इतना ही नहीं इंद्रजीत वैसे बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देते हैं जो गरीब घर से आते हैं जिन्हें पढ़ने और कुछ करने का जज्बा है। इंद्रजीत का मानना है कि मैंने तो कुछ नहीं कर सका लेकिन वैसे बच्चों का सपना नहीं टूटने दूंगा जो सपना लिए हैं। और पैसे के बिना वह आगे नहीं पढ़ पा रहे हैं। क्योंकि आर्थिक तंगी ही मेरी सफलता में सबसे बड़ी बाधक रही है। उसी बाधा को दूर करने का प्रयास करूंगा। साथ ही उन्होंने कहा की मुझे दुःख है कि मैं इंजीनियर नही बन सका लेकिन खुसी इस बात की है कि मैं आज उन बच्चो के सपना को साकार करने में लगा हूँ जो आर्थिक स्थिति से कमजोर है। वहीं मा चुनमुनि देवी अपने बीते दिनों का याद करके आशु को रोक नहीं पाती। मा कहती है कि जब लोगो से अपने बेटे के भविष्य के बारे में बात करती थी तो लोग उपहास उड़ाते की तुम्हारा लड़का नही पढ़ेगा। आज अपना खुद का मकान बन रहा है।


Conclusion:na
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