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Navratri 2023: भक्त की एक पुकार पर कामाख्या से थावे पहुंची थी मां भवानी, गोपालगंज के इस मंदिर का इतिहास है काफी पुराना - History Of Maa Thave Durga Temple

गोपालगंज में नवरात्रि का त्योहार लोग बड़े उत्साह के साथ मना रहे हैं. नवरात्रि में यहां के थावे दुर्गा मंदिर में सभी भक्त अपना माथा टेकने जरूर आते हैं. इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि अपने भक्त के एक निवेदन पर मां भवानी कामाख्या से थावे पहुंची थी. आगे पढ़ें पूरी खबर...

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 16, 2023, 2:19 PM IST

गोपालगंज में थावे दुर्गा मंदिर

गोपालगंज: बिहार के गोपालगंज में थावे दुर्गा मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. प्राचीन इतिहास को समेटे इस पावन धाम की महिमा भी अपरंपार है. जहां सिर्फ जिले के ही नहीं बल्कि अन्य जिलों और राज्यो के अलावा नेपाल से भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है. ऐतिहासिक मान्यता है कि चेरो बंश के राजा मान सिंह के हठ के कारण मां दुर्गा अपने परम भक्त रहषु के एक निवेदन पर कामाख्या से चल कर थावे पहुंची और अपने भक्त रहषु के मस्तक को विभाजित कर दर्शन दिया था.

पढ़ें-Navratri 2023 :'मां थावे वाली मंदिर सहित हर जगह रहेगी नजर'.. SP बोले - 'पुलिस प्रशासन की तरफ से तैयारियां पूरी'

भक्त कि पुकार पर आई माता: कहते है जो सच्चे मन से मां की आराधना करता है वो उसकी हर मनोकामना पूर्ण करती है. कुछ ऐसी ही कहानी जिला मुख्यालय से करीब 6 किलोमीटर दूर स्थित थावे वाली भवानी की है. जहां एक भक्त कि पुकार सुन मां कामख्या से थावे पहुंच कर भक्त के सच्चे भक्ति की मान रखी थी. तब से लेकर आज तक यहां जो भी भक्त सच्चे मन से मां की आराधना करता है, मां उसकी हर मुराद पूरी करती है.

गोपालगंज में नवरात्रि का त्योहार
गोपालगंज में नवरात्रि का त्योहार

लगती है श्रद्धालुओं की भारी भीड़: मां थावे वाली को सिंहासिनी भवानी, थावे भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी भक्तजन पुकारते हैं. ऐसे तो साल भर यहा मां के भक्त आते हैं लेकिन शारदीय नवरात्र और चैत्र नवारात्र के समय यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है. इस संदर्भ में मंदिर के प्रधान पुजारी संजय पांडेय ने बताया कि चेरो बंश के हथुआ राज के राजा मान सिंह के राज में रहषु नामक भक्त थावे जंगल में रहता था. अचानक राज्य में अकाल पड़ गया, लोग दाने-दाने के मोहताज हो गए.

थावे दुर्गा मंदिर का इतिहास
थावे दुर्गा मंदिर का इतिहास

क्या थावे मंदिर का इतिहास: मां का भक्त रहषु जंगल में उपजे खर पतवार को जमाकर उससे से चावल पैदा करता था और उसी चावल से मां को भोग लगाता और लोगों में वितरण करता. मां की कृपा से घास से अन्न निकालता जिस कारण वहां के लोगों को अन्न मिलने लगा. राजा भी अपने आपको मां दुर्गा का सबसे बड़ा भक्त मानते थे. राजा को विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने रहषु को दरवार में बुलाया और चावल पैदा करने का राज पुछने लगे.

गोपालगंज में नवरात्रि पर भकेतों की भीड़
गोपालगंज में नवरात्रि पर भकेतों की भीड़

रहषु के मस्तक को विभाजित कर मां ने दिया दर्शन: राजा की जिद्द पर भक्त रहषु ने मां की महिमा को बताया उसके बाद राजा ने मां को बुलाने को कहा. रहषु ने कई बार राजा से प्रार्थना की कि अगर मां यहां आएंगी तो राज्य बर्बाद हो जाएगा लेकिन राजा नहीं माने. रहषु की प्रार्थना पर मां कोलकता, पटना और आमी होते हुए यहां पहुंची और रहषु के मस्तक को विभाजित करते हुए साक्षात दर्शन दिया उसके बाद राजा की मौत हो गई.

"जिस स्थान पर मां ने दर्शन दिया उसी स्थान पर मां की भव्य मंदिर हथुआ राज के राजा द्वारा बनाई गई. तब से मां हथुआ राज के कुल देवी के रूप में पूजी जाने लगी. इसके कुछ ही दूरी पर रहषु भगत का भी मंदिर है. मान्यता है कि जो लोग मां के दर्शन के लिए आते हैं वे रहषु के मंदिर में भी जरूर जाते हैं नहीं तो उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है. लोग किसी भी शुभ कार्य के पूर्व और उसके पूर्ण हो जाने के बाद यहां आना नहीं भूलते हैं."-संजय पाण्डेय, पुजारी,थावे दुर्गा मंदिर

गोपालगंज में थावे दुर्गा मंदिर

गोपालगंज: बिहार के गोपालगंज में थावे दुर्गा मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. प्राचीन इतिहास को समेटे इस पावन धाम की महिमा भी अपरंपार है. जहां सिर्फ जिले के ही नहीं बल्कि अन्य जिलों और राज्यो के अलावा नेपाल से भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है. ऐतिहासिक मान्यता है कि चेरो बंश के राजा मान सिंह के हठ के कारण मां दुर्गा अपने परम भक्त रहषु के एक निवेदन पर कामाख्या से चल कर थावे पहुंची और अपने भक्त रहषु के मस्तक को विभाजित कर दर्शन दिया था.

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भक्त कि पुकार पर आई माता: कहते है जो सच्चे मन से मां की आराधना करता है वो उसकी हर मनोकामना पूर्ण करती है. कुछ ऐसी ही कहानी जिला मुख्यालय से करीब 6 किलोमीटर दूर स्थित थावे वाली भवानी की है. जहां एक भक्त कि पुकार सुन मां कामख्या से थावे पहुंच कर भक्त के सच्चे भक्ति की मान रखी थी. तब से लेकर आज तक यहां जो भी भक्त सच्चे मन से मां की आराधना करता है, मां उसकी हर मुराद पूरी करती है.

गोपालगंज में नवरात्रि का त्योहार
गोपालगंज में नवरात्रि का त्योहार

लगती है श्रद्धालुओं की भारी भीड़: मां थावे वाली को सिंहासिनी भवानी, थावे भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी भक्तजन पुकारते हैं. ऐसे तो साल भर यहा मां के भक्त आते हैं लेकिन शारदीय नवरात्र और चैत्र नवारात्र के समय यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है. इस संदर्भ में मंदिर के प्रधान पुजारी संजय पांडेय ने बताया कि चेरो बंश के हथुआ राज के राजा मान सिंह के राज में रहषु नामक भक्त थावे जंगल में रहता था. अचानक राज्य में अकाल पड़ गया, लोग दाने-दाने के मोहताज हो गए.

थावे दुर्गा मंदिर का इतिहास
थावे दुर्गा मंदिर का इतिहास

क्या थावे मंदिर का इतिहास: मां का भक्त रहषु जंगल में उपजे खर पतवार को जमाकर उससे से चावल पैदा करता था और उसी चावल से मां को भोग लगाता और लोगों में वितरण करता. मां की कृपा से घास से अन्न निकालता जिस कारण वहां के लोगों को अन्न मिलने लगा. राजा भी अपने आपको मां दुर्गा का सबसे बड़ा भक्त मानते थे. राजा को विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने रहषु को दरवार में बुलाया और चावल पैदा करने का राज पुछने लगे.

गोपालगंज में नवरात्रि पर भकेतों की भीड़
गोपालगंज में नवरात्रि पर भकेतों की भीड़

रहषु के मस्तक को विभाजित कर मां ने दिया दर्शन: राजा की जिद्द पर भक्त रहषु ने मां की महिमा को बताया उसके बाद राजा ने मां को बुलाने को कहा. रहषु ने कई बार राजा से प्रार्थना की कि अगर मां यहां आएंगी तो राज्य बर्बाद हो जाएगा लेकिन राजा नहीं माने. रहषु की प्रार्थना पर मां कोलकता, पटना और आमी होते हुए यहां पहुंची और रहषु के मस्तक को विभाजित करते हुए साक्षात दर्शन दिया उसके बाद राजा की मौत हो गई.

"जिस स्थान पर मां ने दर्शन दिया उसी स्थान पर मां की भव्य मंदिर हथुआ राज के राजा द्वारा बनाई गई. तब से मां हथुआ राज के कुल देवी के रूप में पूजी जाने लगी. इसके कुछ ही दूरी पर रहषु भगत का भी मंदिर है. मान्यता है कि जो लोग मां के दर्शन के लिए आते हैं वे रहषु के मंदिर में भी जरूर जाते हैं नहीं तो उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है. लोग किसी भी शुभ कार्य के पूर्व और उसके पूर्ण हो जाने के बाद यहां आना नहीं भूलते हैं."-संजय पाण्डेय, पुजारी,थावे दुर्गा मंदिर

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