गोपालगंजः जिले के कुचायकोट प्रखड के जमुनिया गांव के पास नहर किनारे एक झोपड़ी के सामने खाट लेटा वीरेंद्र अपने हालात पर आंसू बहा रहा है. वीरेंद्र पांच वर्ष पूर्व से टीबी बीमारी से ग्रसित है. पत्नी की मौत भी बीमारी के कारण हो गई थी. गंडक नदी के तांडव ने इसका सब कुछ तबाह कर दिया. जमीन जायदाद सब बर्बाद हो गया. अब दूसरे के घर में शरण लेकर खाट पर अंतिम सांस गिन रहा है. वहीं, लॉक डाउन में खाने के लाले पड़ गए हैं.
कुचायकोट प्रखंड अंतर्गत कालामटीहनिया पंचायत के विशम्भरपुर मौजे गांव निवासी वीरेंद्र बस में कंडक्टर का काम करता था. लेकिन पांच वर्ष पहले पत्नी गीता की बीमारी के कारण मौत हो गई. इसके कुछ ही दिनों बाद वीरेंद्र को टीबी ने जकड़ लिया. वहीं, वर्ष 2017 में गंडक नदी के कटाव के कारण जो बचा था वह बर्बाद हो गया. घर जमीन सब गंडक में समा गया. किसी तरह दोनों बच्चों विकास और निपु के साथ जान बचा कर सगे सम्बंधियों के घर पहुंचा. जहां रहने की व्यवस्था मिली साथ ही दवा व भोजन की व्यवस्था भी.
पांच साल से बीमार है वीरेंद्र
हालांकि, कोरोना काल में सगे सम्बंधित भी भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं. अब ऐसे में संबंधियोंं ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं. ऐसे में वीरेंद्र के बेटा विकास और बेटी निपु किसी तरह घर चला रहे हैं. विकास ने बताया कि पिता पिछले 5 साल से खाट पर पड़े हैं. परिवार के सामने खाने की समस्या उत्पन्न हो गई है. आस-पास के लोग खाने के लिए देते हैं तब पेट की भूख शांत होती है.