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मिट्टी के घड़े को फ्रिज ने किया रिप्लेस, पुश्तैनी धंधा छोड़ने को मजबूर कुम्हार

मिट्टी का घड़ा, सुराही बनाने वाले कुम्हार कठिन हालातों से जूझ रहे हैं. एक समय था जब गर्मी के दिनों में मिट्टी के घड़े में रखे पानी से लोग गला तर करते थे. लेकिन, आधुनिक सुविधाओं की वजह से लोग अब मिट्टी के बर्तनों का उपयोग कम कर रहे हैं.

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Published : Jun 3, 2019, 5:26 PM IST

कुम्हार

गोपालगंजः एक वक्त था जब मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाया जाता था. पानी को ठंडा रखने के लिए भी मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया जाता था. लेकिन धीरे-धीरे मिट्टी के बने बर्तनों का उपयोग बंद हो गया है.

मिट्टी के बर्तनों का उपयोग बंद होने से कुम्हार कठिन हालातों से जूझ रहे हैं. एक समय था जब गर्मी के दिनों में मिट्टी के घड़ों में रखा गया पानी गले को ठंडक पहुंचाता था. लेकिन, अब आधुनिक सुविधाओं की वजह से लोग परंपराओं को भी भूल चुके हैं.

गुमनाम हो रहे गांव के कुम्हार
आलम यह है कि आज कुम्हार गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. पहले प्लास्टिक और स्टील के बर्तनों ने कुम्हारों के पेट पर लात मारी. इसके बाद रही सही कसर फ्रिज ने पूरी कर दी. जिसकी वजह से मिट्टी के बने घड़ों की मांग घट गयी है. लिहाजा कुम्हारों की माली हालत खराब हो रही है. ऐसे में ये लोग किसी तरह अपना पुश्तैनी धंधा को बचाने में जुटे हैं.

मिट्टी के घड़े के बदले फ्रीज ने घरों में बनायी जगह

मिट्टी के बर्तनों की मांग में कमी
गर्मी के दिनों में ठंडे पानी के लिए यह कुम्हार सुराही और घड़े का निर्माण कर अपनी जीविका चलाते हैं. इस समय दिन रात परिवार के सारे लोग मिलकर चाक पर तरह-तरह के देसी फ्रीज समेत कई मिट्टी के बर्तनों का निर्माण करते हुए देखे जाते हैं. उन्हें इंतजार रहता है कि कब ग्राहक आए और उनके मिट्टी के सपनों को उनके मुंह मांगी कीमत पर खरीदें. लेकिन दुर्भाग्य है कि अभी के समय में लोग मिट्टी के बर्तन की खरीदारी कम कर रहे हैं.

gopalganj
मिट्टी के घड़े के बदले फ्रीज ने घरों में बनायी जगह

पुश्तैनी धंधे को छोड़ने का बना रहे हैं मन
कुम्हारों को गर्मी के मौसम में यह आशा होती है कि लोग उनके बनाये मिट्टी के बर्तनों, घड़ों या सुराही को खरीदेंग. लेकिन वर्तमान समय में नई तकनीक इस जाति के लिए भुखमरी का सबब बना गया है. फ्रिज के आने के बाद लोगों ने देसी फ्रिज का इस्तेमाल कम कर दिया है. ग्राहक अगर इनके पास आते भी हैं तो मोलतोल करने से भी पीछे नहीं हटते हैं. अब तो आलम यह है कि अपनी इन समस्याओं को देख ये कुम्हार अपनी पुश्तैनी धंधे को छोड़ने का मन बना रहे हैं.

गोपालगंजः एक वक्त था जब मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाया जाता था. पानी को ठंडा रखने के लिए भी मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया जाता था. लेकिन धीरे-धीरे मिट्टी के बने बर्तनों का उपयोग बंद हो गया है.

मिट्टी के बर्तनों का उपयोग बंद होने से कुम्हार कठिन हालातों से जूझ रहे हैं. एक समय था जब गर्मी के दिनों में मिट्टी के घड़ों में रखा गया पानी गले को ठंडक पहुंचाता था. लेकिन, अब आधुनिक सुविधाओं की वजह से लोग परंपराओं को भी भूल चुके हैं.

गुमनाम हो रहे गांव के कुम्हार
आलम यह है कि आज कुम्हार गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. पहले प्लास्टिक और स्टील के बर्तनों ने कुम्हारों के पेट पर लात मारी. इसके बाद रही सही कसर फ्रिज ने पूरी कर दी. जिसकी वजह से मिट्टी के बने घड़ों की मांग घट गयी है. लिहाजा कुम्हारों की माली हालत खराब हो रही है. ऐसे में ये लोग किसी तरह अपना पुश्तैनी धंधा को बचाने में जुटे हैं.

मिट्टी के घड़े के बदले फ्रीज ने घरों में बनायी जगह

मिट्टी के बर्तनों की मांग में कमी
गर्मी के दिनों में ठंडे पानी के लिए यह कुम्हार सुराही और घड़े का निर्माण कर अपनी जीविका चलाते हैं. इस समय दिन रात परिवार के सारे लोग मिलकर चाक पर तरह-तरह के देसी फ्रीज समेत कई मिट्टी के बर्तनों का निर्माण करते हुए देखे जाते हैं. उन्हें इंतजार रहता है कि कब ग्राहक आए और उनके मिट्टी के सपनों को उनके मुंह मांगी कीमत पर खरीदें. लेकिन दुर्भाग्य है कि अभी के समय में लोग मिट्टी के बर्तन की खरीदारी कम कर रहे हैं.

gopalganj
मिट्टी के घड़े के बदले फ्रीज ने घरों में बनायी जगह

पुश्तैनी धंधे को छोड़ने का बना रहे हैं मन
कुम्हारों को गर्मी के मौसम में यह आशा होती है कि लोग उनके बनाये मिट्टी के बर्तनों, घड़ों या सुराही को खरीदेंग. लेकिन वर्तमान समय में नई तकनीक इस जाति के लिए भुखमरी का सबब बना गया है. फ्रिज के आने के बाद लोगों ने देसी फ्रिज का इस्तेमाल कम कर दिया है. ग्राहक अगर इनके पास आते भी हैं तो मोलतोल करने से भी पीछे नहीं हटते हैं. अब तो आलम यह है कि अपनी इन समस्याओं को देख ये कुम्हार अपनी पुश्तैनी धंधे को छोड़ने का मन बना रहे हैं.

Intro:हड़प्पा संस्कृति की अगर बात की जाए तो मिट्टी के बर्तन का प्रचलन उसे संस्कृति की देन मानी जाती है। तब से लेकर आज तक एक जाति कुंभकार हर भारतीय पर्व त्यौहार में शुभ माने जाने वाले मिट्टी के बर्तनों को बनाते आ रहे हैं। गर्मी के दिनों में ठंडे पानी के लिए यह कुम्हार सुराही और घड़े का निर्माण कर अपनी जीविका चलाते हैं। दिन रात एक कर परिवार के सारे लोग मिलकर चाक पर तरह-तरह के देसी फ्रीज समेत कई मिट्टी के बर्तनों का निर्माण करते हुए देखे जाते हैं, बस उन्हें इंतजार रहता है कि कब ग्राहक आएंगे और उनके मिट्टी के सपनों को उनके मुंह मांगी कीमत पर खरीदेंगे। लेकिन दुर्भाग्य है कि वर्तमान समय मे लोग मिट्टी के बर्तन की खरीदार कम हो गए है जिससे इनका जीविकोपार्जन में भी समस्या उतपन्न हो गई है। इन कुम्भकारो को कई जोखिम भरी प्रक्रिया से गुजरने के बाद इनके सपने जो मिट्टी से गढ़े जाते हैं पूरा नही होते हैं। इन्हें गर्मी के मौसम में यह आशा होती है कि लोग इनके द्वारा बनाये गए घड़े या सुराही को खरीदकर अपने कंठ को ठंडक देंगे जिसको लेकर हर रोज इन्हें लोगों के लिए देसी फ्रीज तैयार करना पहला प्राथमिकता है। लेकिन वर्तमान समय में इंसान नई तकनीकी को बाजार लाकर आज इस जाति के लिए भुखमरी का सबब बना दिया है। फ्रिज के आने के बाद लोग बड़े ही कम मात्र में देसी फ्रिज का इस्तेमाल करते हैं। ग्राहक अगर इनके पास आते भी है तो मोलतोल करने से भी पीछे नही हटते। अब तो आलम यह है कि अपनी इन समस्याओं को देख ये कुम्भकार अपनी पुस्तैनी धंधा को छोड़ रहे है जो नही छोड़े है वे भी छोड़ने का मन बना रहे है। अगर ऐसा ही होता रहा तो हड़प्पा संस्कृति के देन माने जाने वाला कुम्भकारो द्वारा बनाई गई मिट्टी के बर्तन व देशी फ्रिज कही नजर नही आएंगे।








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