गोपालगंजः एक वक्त था जब मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाया जाता था. पानी को ठंडा रखने के लिए भी मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया जाता था. लेकिन धीरे-धीरे मिट्टी के बने बर्तनों का उपयोग बंद हो गया है.
मिट्टी के बर्तनों का उपयोग बंद होने से कुम्हार कठिन हालातों से जूझ रहे हैं. एक समय था जब गर्मी के दिनों में मिट्टी के घड़ों में रखा गया पानी गले को ठंडक पहुंचाता था. लेकिन, अब आधुनिक सुविधाओं की वजह से लोग परंपराओं को भी भूल चुके हैं.
गुमनाम हो रहे गांव के कुम्हार
आलम यह है कि आज कुम्हार गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. पहले प्लास्टिक और स्टील के बर्तनों ने कुम्हारों के पेट पर लात मारी. इसके बाद रही सही कसर फ्रिज ने पूरी कर दी. जिसकी वजह से मिट्टी के बने घड़ों की मांग घट गयी है. लिहाजा कुम्हारों की माली हालत खराब हो रही है. ऐसे में ये लोग किसी तरह अपना पुश्तैनी धंधा को बचाने में जुटे हैं.
मिट्टी के बर्तनों की मांग में कमी
गर्मी के दिनों में ठंडे पानी के लिए यह कुम्हार सुराही और घड़े का निर्माण कर अपनी जीविका चलाते हैं. इस समय दिन रात परिवार के सारे लोग मिलकर चाक पर तरह-तरह के देसी फ्रीज समेत कई मिट्टी के बर्तनों का निर्माण करते हुए देखे जाते हैं. उन्हें इंतजार रहता है कि कब ग्राहक आए और उनके मिट्टी के सपनों को उनके मुंह मांगी कीमत पर खरीदें. लेकिन दुर्भाग्य है कि अभी के समय में लोग मिट्टी के बर्तन की खरीदारी कम कर रहे हैं.
पुश्तैनी धंधे को छोड़ने का बना रहे हैं मन
कुम्हारों को गर्मी के मौसम में यह आशा होती है कि लोग उनके बनाये मिट्टी के बर्तनों, घड़ों या सुराही को खरीदेंग. लेकिन वर्तमान समय में नई तकनीक इस जाति के लिए भुखमरी का सबब बना गया है. फ्रिज के आने के बाद लोगों ने देसी फ्रिज का इस्तेमाल कम कर दिया है. ग्राहक अगर इनके पास आते भी हैं तो मोलतोल करने से भी पीछे नहीं हटते हैं. अब तो आलम यह है कि अपनी इन समस्याओं को देख ये कुम्हार अपनी पुश्तैनी धंधे को छोड़ने का मन बना रहे हैं.