गोपालगंज: बिहार के गोपालगंज जिला मुख्यालय से करीब छह किलोमीटर दूर सिवान जाने वाले मार्ग पर थावे नाम का एक स्थान है, जहां मां थावेवाली मां एक प्राचीन मंदिर (Thawe durga mandir) में विराजती हैं. मां थावे वाली को सिंहासिनी भवानी, थावे भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी भक्तजन पुकारते हैं. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां करीब 400 साल पहले ही देवी को पिंडी रूप में स्थापित किया गया था और तब से ही उनका पूजन किया जा रहा है. ऐसे तो सालों भर यहां भक्त आते हैं लेकिन शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र के समय यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है.
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कमाख्या से चलकर थावे पहुंची थीं मां भवानी: थावे मंदिर राजधानी पटना से करीब 180 किलोमीटर दूरी पर बसे गोपालगंज जिले के थावे में स्थित है. मान्यता है कि यहां मां अपने भक्त रहषु के बुलावे पर असम के कमाख्या स्थान (Maa Bhawani Came To Thawe From Kamakhya) से चलकर यहां पहुंची थी. कहा जाता है कि मां कमाख्या से चलकर कोलकता (काली के रूप में दक्षिणेश्वर स्थन में प्रतिष्ठित), पटना (पटन देवी), आमी (छपरा जिला में मां दुर्गा का एक प्रसिद्ध स्थान) होते हुए थावे पहुंची थी और रहषु के मस्तक को विभाजित करते हुए साक्षात दर्शन दी थी.
देश की 52 शक्तिपीठों में से एक : देश के 52 शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर के पीछे एक प्राचीन कहानी है. जनश्रुतियों के मुताबिक राजा मनन सिंह हथुआ के राजा थे. वे अपने आपको मां दुर्गा का सबसे बड़ा भक्त मानते थे. गर्व होने के कारण अपने सामने वे किसी को भी मां का भक्त नहीं मानते थे. इसी क्रम में राज्य में अकाल पड़ गया और लोग खाने को तरसने लगे. थावे में कमाख्या देवी मां का एक सच्चा भक्त रहषु रहता था. कथा के अनुसार रहषु मां की कृपा से दिन में घास काटता और रात को उसी से अन्न निकल जाता था. जिस कारण वहां के लोगों को अन्न मिलने लगा. लेकिन राजा को इसका विश्वास नहीं हुआ.
इस मंदिर के पीछे एक प्राचीन कहानी: राजा ने रहषु को ढ़ोंगी बताते हुए मां को बुलाने को कहा नहीं तो सजा देने की बात की. रहषु ने कई बार राजा से प्रार्थना की अगर मां यहां आएंगी तो राज्य बर्बाद हो जाएगा, लेकिन राजा यह सुनने को तैयार नहीं थे. रहषु के प्रार्थना पर मां कोलकता, पटना और आमी होते हुए यहां पहुंची राजा के सभी भवन गिर गए और राजा की मौत हो गई.
थावे में कमाख्या देवी मां का एक सच्चा भक्त रहषु रहता था : पौराणिक कथाओं के मुताबिक, मां यहां जैसे ही प्रकट हुईं यहां पर आकाशीय बिजली चमकी और राजा मननसिंह और उसके पूरे राजपाट की तबाही शुरू हो गई. रहषु के सिर को फाड़ कर उसमें से मां का कंगन और हाथ का हिस्सा बाहर निकला. इससे रहषु को जहां मुक्ति मिल गई. वहीं देवी मां की इसी थावे जंगल में स्थापना कर दी गई. तभी से इस मंदिर में मां की पूजा शुरू हो गई. थावे मंदिर के थोड़ी दूरी पर ही उनके भक्त रहषु का भी मंदिर है, जहां बाघ के गले में सांप की रस्सी बंधी हुई है.
मनन सिंह के भवनों का खंडहर मौजूदः मान्यता है कि जो लोग मां के दर्शन के लिए आते हैं वे रहषु का भी मंदिर जरूर जाते हैं नहीं तो उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है. इसी मंदिर के पास आज भी मनन सिंह के भवनों का खंडहर मौजूद है. मंदिर के आसपास के लोगों के अनुसार यहां के लोग किसी भी शुभ कार्य के पूर्व और उसके पूर्ण हो जाने के बाद यहां आना नहीं भूलते. मां मंदिर का गर्भ गृह काफी पुराना है. तीन तरफ से जंगलों से घिरे इस मंदिर में आज तक कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है.
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सप्तमी की रात को मां दुर्गा की विशेष पूजाः मंदिर के मुख्य पुजारी संजय पांडेय बताते हैं कि नवरात्र के सप्तमी की रात को मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन मंदिर में भक्त भारी संख्या में पहुंचते हैं. बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल के अलावे यहां नेपाल के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. यहां मां के भक्त प्रसाद के रूप में नारियल, पेड़ा और चुनरी चढ़ाते हैं.