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गोपालगंज: दोनों किडनी खराब होने के बाद भी नि:शुल्क बच्चों को शिक्षित कर रहा है ये शख्स

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Published : Oct 7, 2019, 1:23 PM IST

Updated : Oct 7, 2019, 3:13 PM IST

दोनों किडनी खराब होने के बाद भी विवेकानंद शर्मा ने अपनी जिंदगी से हार नहीं मानी. अब ये गरीब और असहाय बच्चों को मुफ्त शिक्षा देकर उनका भविष्य संवारने में जुटे हैं.

बच्चों को पढ़ाते विवेकानंद शर्मा

गोपालगंज: कहते हैं जब तनाव और चिंता सताने लगे तो ज्यादातर समय बच्चों के बीच बिताना चाहिए. स्वामी विवेकानंद के इसी पंक्तियों से प्रेरित होकर एक शख्स ने बच्चों के बीच रहकर शिक्षा की अलख जगाई है. जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर कुचायकोट प्रखंड के बंगालखाड़ गांव के रहने वाले विवेकानंद शर्मा अपनी दोनों किडनी खराब होने के बाद भी नौनिहालों का भविष्य संवारने में जुटे हैं.

विवेकानंद रिलायंस पेट्रो मैक्स और ओजो ग्रुप जैसी नामी कंपनी में मैनेजमेंट का काम करते थे. साल 2016 में इन्हें पता चला कि इनकी दोनों किडनी खराब है, जिसके बाद इन्होंने नौकरी छोड़ दी. अस्वस्थ्य होने के कारण विवेकानंद काफी चिंतित रहने लगे, खुद को व्यस्त रखने के लिये इन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया.

gopalganj
कई गांव से बच्चे आते हैं पढ़ने

बच्चों को देते हैं निशुल्क शिक्षा
कुछ दिनों बाद विवेकानंद ने गरीब और असहाय बच्चों के लिये प्री स्कूल खोला, जिसका नाम इन्होंने पाठशाला रखा. इस स्कूल में कोई शुल्क निर्धारित नहीं है. बता दें कि जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर सासामुसा सुदूर देहात में पाठशाला स्कूल है. इसमें 3 साल से 12 साल तक के 300 बच्चे पढ़ रहे हैं. स्कूल में 9 शिक्षक शिक्षिकाएं हैं. यहां बच्चे पढ़ाई और खेलकूद के साथ गीत, संगीत, डांस और चित्रकला भी सीख रहे हैं. नूरपुर, खरहरवा, कैथवलिया, महुअवा मकसुदपुर, परसौंनी, माधोमठ समेत कई गांव के बच्चे यहां पढ़ने आते हैं.

पेश है रिपोर्ट

इलाज में होता है प्रतिमाह 44 हजार खर्च
विवेकानंद शर्मा एक दिन बीच कर सदर अस्पताल स्थित बी ब्राउन कंपनी में अपना डायलेसिस कराते हैं. दवा और इलाज मिलाकर लगभग 44 हजार रूपये का खर्च प्रति महीना होता है. दिन भर बच्चों के साथ रहने के बाद शाम में ये डायलेसिस कराने जाते हैं. आज ये स्वामी विवेकानंद के कथनों को चरितार्थ कर न सिर्फ अपनी जिंदगी को तनाव मुक्त रख रहे हैं, बल्कि नौनिहालों का भविष्य भी संवार रहे हैं.

गोपालगंज: कहते हैं जब तनाव और चिंता सताने लगे तो ज्यादातर समय बच्चों के बीच बिताना चाहिए. स्वामी विवेकानंद के इसी पंक्तियों से प्रेरित होकर एक शख्स ने बच्चों के बीच रहकर शिक्षा की अलख जगाई है. जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर कुचायकोट प्रखंड के बंगालखाड़ गांव के रहने वाले विवेकानंद शर्मा अपनी दोनों किडनी खराब होने के बाद भी नौनिहालों का भविष्य संवारने में जुटे हैं.

विवेकानंद रिलायंस पेट्रो मैक्स और ओजो ग्रुप जैसी नामी कंपनी में मैनेजमेंट का काम करते थे. साल 2016 में इन्हें पता चला कि इनकी दोनों किडनी खराब है, जिसके बाद इन्होंने नौकरी छोड़ दी. अस्वस्थ्य होने के कारण विवेकानंद काफी चिंतित रहने लगे, खुद को व्यस्त रखने के लिये इन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया.

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कई गांव से बच्चे आते हैं पढ़ने

बच्चों को देते हैं निशुल्क शिक्षा
कुछ दिनों बाद विवेकानंद ने गरीब और असहाय बच्चों के लिये प्री स्कूल खोला, जिसका नाम इन्होंने पाठशाला रखा. इस स्कूल में कोई शुल्क निर्धारित नहीं है. बता दें कि जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर सासामुसा सुदूर देहात में पाठशाला स्कूल है. इसमें 3 साल से 12 साल तक के 300 बच्चे पढ़ रहे हैं. स्कूल में 9 शिक्षक शिक्षिकाएं हैं. यहां बच्चे पढ़ाई और खेलकूद के साथ गीत, संगीत, डांस और चित्रकला भी सीख रहे हैं. नूरपुर, खरहरवा, कैथवलिया, महुअवा मकसुदपुर, परसौंनी, माधोमठ समेत कई गांव के बच्चे यहां पढ़ने आते हैं.

पेश है रिपोर्ट

इलाज में होता है प्रतिमाह 44 हजार खर्च
विवेकानंद शर्मा एक दिन बीच कर सदर अस्पताल स्थित बी ब्राउन कंपनी में अपना डायलेसिस कराते हैं. दवा और इलाज मिलाकर लगभग 44 हजार रूपये का खर्च प्रति महीना होता है. दिन भर बच्चों के साथ रहने के बाद शाम में ये डायलेसिस कराने जाते हैं. आज ये स्वामी विवेकानंद के कथनों को चरितार्थ कर न सिर्फ अपनी जिंदगी को तनाव मुक्त रख रहे हैं, बल्कि नौनिहालों का भविष्य भी संवार रहे हैं.

Intro:स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि जब तनाव और चिंता सताने लगे तो ज्यादातर समय बच्चों के बीच बिताना चाहिए और इसी प्रेरणा से प्रेरित होकर एक शख्स ने बच्चो के बीच रहकर शिक्षा की अलख जगाई है। हम बात कर रहे है जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर कुचायकोट प्रखण्ड की बंगालखाड़ गांव के कन्हैया शर्मा के सबसे छोटे पुत्र विवेकानंद शर्मा की जिनकी दोनो किडनी फेल होने के बाद अपनी जिंदगी बच्चो के भविष्य बनाने में लगा दी।


Body:शिक्षा की अलख जगा रहे विवेकानंद शर्मा ने प्रारंभिक शिक्षा मुजफ्फपुर से की। वर्ष 2 हजार में जब ये मैट्रिक परीक्षा उतीर्ण की तब इनके पिता की मौत बीमारी के कारण हो गई। जो आरपीएफ के हेडकांस्टेबल थे। वर्ष 2002 में इन्होंने इंटर जबकि ग्रेजुएशन की शिक्षा एलएनटी कॉलेज से 2006 में पूरी की भाइयो ने इनकी आगे के पढाई के लिए 2007 में हैदराबाद भेज दिया जहाँ इन्होंने एमबीए की पढ़ाई जेएनटीयू यूनिवर्सिटी से वर्ष 2009 में पूरी की। बचपन से ही मेहनती व विवेकानंद के आदर्श पर चलने वाले इस शख्स ने अपने मेहनत और लगन के बदौलत रिलायंस पेट्रो मैक्स व ओजो ग्रुप जैसी नामी कंपनी में मैनेजमेंट की नौकरी 6 साल तक की। बेहतर कार्य कुशलता के बदौलत इन्होंने कम्पनी द्वारा 2013 से सिंगापुर चाइना हांगकांग और जापान में अपनी कंपनी का व्यवसाय संभाला। इस बीच इन्हें कम्पनी ने वर्ष 2016 में बिहार का रीजनल मैनेजर बनाया गया। तभी इन्हें शारीरिक परेशानी हुई तब इन्हें लखनऊ के पीजीआई हॉस्पिटल के डॉक्टर ने दोनों किडनी फेल होने की पुष्टी की। किडनी फेल होने की जानकारी पाकर इनके पैर तले की जमीन खिशक गई। डॉक्टरों ने डायलेसिस करने की सलाह दी।

शादी के दस दिन पूर्व हुई बीमारी की जानकारी

जिस घर मे खुशियों का माहौल हो लेकिन अचानक ये खुशियाँ दुःखो में तब्दील जाए तो उसे आप क्या कहेंगे कुछ इसी तरह हुआ था विवेकानंद शर्मा के साथ इनकी शादी वर्ष 2016 अप्रैल माह में लखनऊ में तय हुई थी। रिंग शिरोमणि का रश्म भी पूरी हो चुकी थी। दस दिन बाद बारात जाने की तैयारी हो रही थी। तभी इन्होंने इस शादी से इंकार करते हुए कहा कि मेरी जिंदगी का तो अब कोई ठीक नही लेकिन इस लड़की की जिंदगी मैं नही बर्बाद कर सकता और उन्होंने इस शादी को करने से इंकार कर दिया।

विवेकानंद से प्रेरणा लेकर गुजारा बच्चो के साथ समय

किडनी फेल होने के बाद शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण विवेकानंद शर्मा ने नौकरी छोड़ दी। लेकिन चिंता व तनाव उन्हें नही छोड़ी। श्री शर्मा उदास चिंतित व परेशान रहने लगे उन्हें हमेशा अपने जिंदगी की चिंता सताने लगती तभी उन्होंने स्वामी विवेकानंद की बातों का अध्ययन करने लगे इसी बीच उन्होंने एक प्रेरणादायक शब्द पढा जिसमे लिखा था कि "जब तनाव और चिंता सताने लगे तो ज्यादातर समय बच्चों के बीच बिताना चाहिए" जिसे पढ़ उन्हें जीने का सहारा मिल गया। तब उन्होंने गाँव के बच्चो को एकत्रितकर निःशुल्क शिक्षा का अलख जगाना शुरू किया कुछ दिनों तक गाँव के बच्चो को एकत्रित करने बाद शिक्षा के लौ जलाकर गांव गांव में बच्चों के बीच समय बिताने लगे बच्चों के बीच तनाव से दूर रहकर उनकी सेहत में भी सुधार होने लगा हर पल बच्चों के बीच रहने के लिए खुद का पाठशाला खोल लिए हैं। उन्होंने ऐसे बच्चो का चुनाव कर शिक्षा देना शुरू किया जो बच्चे गरीब असहाय व निर्धन है उन्हें निःशुल्क शिक्षा देना शुरू किया। इन्होंने अपने पाठशाला में कोई शुल्क निर्धारित नही किया है जो समर्थवान व्यक्ति है वो जो देते है उसे ये रख लेते है लेकिन कोई फीस तय नही किये है। साथ ही इन्होंने सरकार के महत्वाकांक्षी योजना बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नीति के तहत छात्राओं के लिए निशुल्क शिक्षा है की व्यवस्था किये है। जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर सासामुसा सुदूर देहात में स्थित पाठशाला स्कूल है इसमें 3 साल से 12 साल तक के 300 बच्चे पढ़ रहे हैं जिसमे 150 बच्चो के वैसे गार्जियन जो आर्थिक स्थिति से काफी मजबूत है वे पैसे वहन करते है। बच्चों की देखभाल के लिए 9 शिक्षक शिक्षिका हैं स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे स्मार्ट बन रहे हैं पढ़ाई खेलकूद के साथ गीत संगीत डांस चित्रकला का क्लास भी चला जाता है आसपास का इलाका नूरपुर,खरहरवा, कैथवलिया, महुअवा मकसुदपुर, परसौंनी, माधोमठ समेत कई गांव के बच्चे पढ़ते हैं

इलाज में होता है प्रतिमाह 44 हजार खर्च

दोनो किडनी फेल होने के बावजूद नन्हे मुन्ने मासूमों में शिक्षा की लौ जगा रहे हैं विवेकानंद शर्मा एक दिन बीच कर सदर अस्पताल में स्थित बी ब्राउन कंपनी में अपना डायलेसिस करवाते है। जो महीने में 24 हजार रुपये की खर्च होती है। वही दवा के खर्च में करीब 20 हजार की खर्च होती है। इन तमाम परेशानियों के बावजूद शर्मा दिन भर बच्चो के साथ रहने के बाद शाम को डायलेसिस पर चले जाते है। आज ये स्वामी विवेकानंद के कथनों को चरितार्थ कर ना सिर्फ अपने जिंदगी को तनाव मुक्त रख रहे है बल्कि नन्हे मुन्ने बच्चो को भविष्य संवार रहे है।








Conclusion:
Last Updated : Oct 7, 2019, 3:13 PM IST
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