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गया: ग्रामीण की पहली पसंद बनी शेरघाटी की प्याऊ मिठाई, दीवाली पर जमकर हो रही खरीदारी

गया में शेरघाटी की प्याऊ मिठाई ग्रामीण की पहली पसंद बन गई है. दीवाली पर इस मिठाई की जमकर खरीदारी हो रही है.

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Published : Nov 14, 2020, 4:06 PM IST

gaya
शेरघाटी की प्याऊ मिठाई

गया: शेरघाटी मिठाई के मामले में काफी मशहूर है. दीपावली के मौके पर गांव में इसकी खरीदारी हो रही है. जबकि प्याऊ का अपना एक इतिहास है. यहां की प्याऊ मिठाई पूर्व में कई राज्यों तक भेजी जाती है. प्याऊ को व्यापारिक महत्व भी प्राप्त था. इस पेशे में शहर के दर्जनों पर जुड़े थे.

अंग्रेज काल में मिठाई की मांग
नई बाजार निवासी और दुकान के संचालक संदीप कुमार गुप्ता और रघुवीर प्रसाद बताते हैं कि शेरघाटी प्याऊ मिठाई के मामले में मशहूर था. दादा परदादा की जुबानी कही जाती थी कि अंग्रेज काल में इस मिठाई की मांग काफी होता रही है. उर्दू शायर और लेखक नवाब ने भी अपने चर्चित पुस्तक शेरघाटी का संक्षिप्त परिचय में इस मिठाई की चर्चा करना उचित समझा है.

दूसरे प्रदेश से आते थे लोग
103 वर्ष पुराना शेरघाटी गोला बाजार के एक स्वीट्स के संचालक दिलीप प्रसाद गुप्ता बताते हैं कि हमारे दादा की जुबानी कही जाती थी कि इस मिठाई के लिए दूसरे प्रदेश से लोग शेरघाटी आते हैं. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्याऊ मिठाई कितनी मशहूर थी.

उन्होंने बताया कि नई बाजार के रहने वाले बुधन शाह और सरकारी बस पड़ाव में मिठाई दुकान चलाने वाले डीपीजी काफी मेहनत से प्याऊ मिठाई बनाते था. पहले मैदा और घी से प्याऊ बनती थी.

ऐसे बनती थी मिठाई
12 से 15 घंटे तक उसे धीरे-धीरे अंगीठी के आग में सिझाया जाता था. फिर जब पूरी तरह से तैयार होता था, तो उसे मीठा या चीनी की चाशनी में डुबोया जाता था. इस प्रकार से यह मिठाई काफी सुंदर और स्वादिष्ट होती थी. जो लोगों को काफी पसंद थी.

क्या कहते हैं साहित्यकार
साहित्यकार और कलाकार विजय आनंद गुप्ता कहते हैं कि शेरघाटी का प्याऊ राजघराने की सारी मिठाई मानी जाती थी. जमींदारी काल में तत्कालीन जमींदार के घर में ये शान की मिठाई होती थी.

राज दरबार में आंगतुको को मिठाई अवश्य परोसी जाती थी. इसी प्रकार से प्याऊ ने काफी ख्याति प्राप्त किया. फिलहाल शेरघाटी में यह प्रति किलोग्राम 120 से 140 बिक्री हो रही है. बता दें शेरघाटी में प्याऊ का अपना एक इतिहास रहा है. यहां का प्याऊ मिठाई पूर्व कई राज्यों तक भेजा जाता था.

गया: शेरघाटी मिठाई के मामले में काफी मशहूर है. दीपावली के मौके पर गांव में इसकी खरीदारी हो रही है. जबकि प्याऊ का अपना एक इतिहास है. यहां की प्याऊ मिठाई पूर्व में कई राज्यों तक भेजी जाती है. प्याऊ को व्यापारिक महत्व भी प्राप्त था. इस पेशे में शहर के दर्जनों पर जुड़े थे.

अंग्रेज काल में मिठाई की मांग
नई बाजार निवासी और दुकान के संचालक संदीप कुमार गुप्ता और रघुवीर प्रसाद बताते हैं कि शेरघाटी प्याऊ मिठाई के मामले में मशहूर था. दादा परदादा की जुबानी कही जाती थी कि अंग्रेज काल में इस मिठाई की मांग काफी होता रही है. उर्दू शायर और लेखक नवाब ने भी अपने चर्चित पुस्तक शेरघाटी का संक्षिप्त परिचय में इस मिठाई की चर्चा करना उचित समझा है.

दूसरे प्रदेश से आते थे लोग
103 वर्ष पुराना शेरघाटी गोला बाजार के एक स्वीट्स के संचालक दिलीप प्रसाद गुप्ता बताते हैं कि हमारे दादा की जुबानी कही जाती थी कि इस मिठाई के लिए दूसरे प्रदेश से लोग शेरघाटी आते हैं. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्याऊ मिठाई कितनी मशहूर थी.

उन्होंने बताया कि नई बाजार के रहने वाले बुधन शाह और सरकारी बस पड़ाव में मिठाई दुकान चलाने वाले डीपीजी काफी मेहनत से प्याऊ मिठाई बनाते था. पहले मैदा और घी से प्याऊ बनती थी.

ऐसे बनती थी मिठाई
12 से 15 घंटे तक उसे धीरे-धीरे अंगीठी के आग में सिझाया जाता था. फिर जब पूरी तरह से तैयार होता था, तो उसे मीठा या चीनी की चाशनी में डुबोया जाता था. इस प्रकार से यह मिठाई काफी सुंदर और स्वादिष्ट होती थी. जो लोगों को काफी पसंद थी.

क्या कहते हैं साहित्यकार
साहित्यकार और कलाकार विजय आनंद गुप्ता कहते हैं कि शेरघाटी का प्याऊ राजघराने की सारी मिठाई मानी जाती थी. जमींदारी काल में तत्कालीन जमींदार के घर में ये शान की मिठाई होती थी.

राज दरबार में आंगतुको को मिठाई अवश्य परोसी जाती थी. इसी प्रकार से प्याऊ ने काफी ख्याति प्राप्त किया. फिलहाल शेरघाटी में यह प्रति किलोग्राम 120 से 140 बिक्री हो रही है. बता दें शेरघाटी में प्याऊ का अपना एक इतिहास रहा है. यहां का प्याऊ मिठाई पूर्व कई राज्यों तक भेजा जाता था.

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