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'घोस्ट फेस्टिवल'.. जहां खाना खाने और परेशान करने आती हैं आत्माएं..! - Ghost Festival celebrated in BodhGaya

बिहार के बोधगया में बुद्धिस्ट पर्व घोस्ट फेस्टिवल मनाया जाता है. मान्यता है कि इस त्योहार में 'आत्माओं का जमघट' (पुरखों की आत्माएं) होता है. ये आत्माएं खाना खाने के लिए और लोगों को परेशान करने के लिए आतीं हैं. पढ़ें पूरी खबर

बोधगया में मना उल्लाम्बना पर्व
बोधगया में मना उल्लाम्बना पर्व
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Published : Aug 23, 2021, 5:03 PM IST

गया: बिहार के गया (Gaya) जिले के बोधगया में ढुङ्गेश्वरी पहाड़ के तलहट्टी में बसे राहुल नगर गांव में बुद्धिस्ट पर्व उल्लाम्बना (Ullambana Festival) मनाया गया. बौद्ध धर्माबलम्बियों के इस महत्वपूर्ण त्योहार को 'घोस्ट फेस्टिवल' भी कहा जाता है. माना जाता है कि इस दिन पुरखों की आत्माएं पुनः अपने परिवार में वापस आती हैं, जिनके लिए भोजन और जल अर्पित किया जाता है. इसे पाकर आत्मायें तृप्त हो जाती है. यह त्योहार हिंदुओं द्वारा अपने पितरों के लिए किए जाने वाले पिंडदान और तर्पण जैसे धार्मिक अनुष्ठान के समान ही है.

इसे भी पढ़ें : बोधगया मठ की लाइब्रेरी में है दुर्लभ पुस्तकों का संसार, संरक्षण के अभाव में हो रहे हैं नष्ट

जानकारी के मुताबिक राहुल नगर जो दलित और गरीबों का गांव है. जहां ज्ञान प्राप्ति के पूर्व भगवान बुद्ध बोधगया पहुंचे थे. ढुङ्गेश्वरी पहाड़ की गुफा में वर्षों तक कठिन तपस्या करने के बाद वे पहाड़ के किनारे-किनारे बोधगया पहुंचे थे. जहां पर पीपल बृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. सोमवार के इस त्योहार में स्थानीय लोगों ने भगवान बुद्ध की प्रतिमा पर जल और चावल अर्पित कर पूजा पाठ किया.

वहीं इस त्योहार के बारे में बोधगया के समाजसेवी विवेक कुमार कल्याण ने बताया कि उल्लाम्बना फेस्टिवल को 'घोस्ट फेस्टिवल' के भी नाम से जाना जाता है. बौद्ध परंपरा के अनुसार आज के दिन भूतों के लिए यह पूजा की जाती है, ताकि वे खुश रहे और किसी तरह की परेशानी ना करें. यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है. जिस तरह पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण व श्राद्ध कर्मकांड किया जाता है, ठीक उसी तरह बौद्ध परंपरा में 'उल्लाम्बना फेस्टिवल' का अनुष्ठान किया जाता है. जिसमें भगवान बुद्ध की भी पूजा की जाती है.

ये भी पढ़ें : यह भी पढ़ें- बोधगया की मदद के लिए आगे आए 10 देशों के लोग, भेजे ऑक्सीजन सिलेंडर के 40 सेट

वहीं पूजा-पाठ संपन्न होने के बाद लगभग 150 ग्रामीणों के बीच खाद्य सामग्री का भी वितरण किया गया है. अमेरिका और वियतनाम के बौद्ध श्रद्धालुओं द्वारा राशन सामग्रियों के लिए आर्थिक सहायता की गई है. कोविड प्रोटोकॉल के कारण इस फेस्टिवल का बड़ा आयोजन नहीं किया जा सकता था. इस वजह से इस गांव में कोरोना गाइड लाइन के अनुसार फेस्टिवल मनाया जा रहा है. साथ ही लंबे समय से लॉकडाउन के कारण मुश्किल में रह रहे गरीब-दलित लोगों को मुफ्त राशन भी उपलब्ध कराया गया.

वहीं राहुल नगर गांव निवासी महिला सुनीता देवी ने बताया कि कोरोना महामारी के कारण पति का रोजगार छिन गया है. खाने पीने की भी समस्या हो गई. जैसे-तैसे जीवन चल रहा है. इस बीच बोधगया से आकर लोगों ने 15 दिनों का राशन दिया है. इससे बड़ी राहत हुई है. कोरोना के कारण पैसे की घोर कमी हो गई है. बीमार पड़ने पर भी इलाज के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है. ऐसे में राशन देखकर गांव वालों की बड़ी मदद की गई है.

बिहार के गया जिले के बोधगया के राहुल नगर दलित टोले में 'उल्लाम्बना फेस्टिवल' का आयोजन किया गया. इस फेस्टिवल को 'घोस्ट फेस्टिवल' के भी नाम से जाना जाता है. बौद्ध परंपरा के अनुसार इस दिन भूतों की पूजा करने से वे खुश होते हैं और किसी तरह की बाधा उत्पन्न नहीं करते हैं. हिंदुओं के पिंडदान कर्मकांड की तरह इस पूजा का आयोजन किया जाता है.

गया: बिहार के गया (Gaya) जिले के बोधगया में ढुङ्गेश्वरी पहाड़ के तलहट्टी में बसे राहुल नगर गांव में बुद्धिस्ट पर्व उल्लाम्बना (Ullambana Festival) मनाया गया. बौद्ध धर्माबलम्बियों के इस महत्वपूर्ण त्योहार को 'घोस्ट फेस्टिवल' भी कहा जाता है. माना जाता है कि इस दिन पुरखों की आत्माएं पुनः अपने परिवार में वापस आती हैं, जिनके लिए भोजन और जल अर्पित किया जाता है. इसे पाकर आत्मायें तृप्त हो जाती है. यह त्योहार हिंदुओं द्वारा अपने पितरों के लिए किए जाने वाले पिंडदान और तर्पण जैसे धार्मिक अनुष्ठान के समान ही है.

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जानकारी के मुताबिक राहुल नगर जो दलित और गरीबों का गांव है. जहां ज्ञान प्राप्ति के पूर्व भगवान बुद्ध बोधगया पहुंचे थे. ढुङ्गेश्वरी पहाड़ की गुफा में वर्षों तक कठिन तपस्या करने के बाद वे पहाड़ के किनारे-किनारे बोधगया पहुंचे थे. जहां पर पीपल बृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. सोमवार के इस त्योहार में स्थानीय लोगों ने भगवान बुद्ध की प्रतिमा पर जल और चावल अर्पित कर पूजा पाठ किया.

वहीं इस त्योहार के बारे में बोधगया के समाजसेवी विवेक कुमार कल्याण ने बताया कि उल्लाम्बना फेस्टिवल को 'घोस्ट फेस्टिवल' के भी नाम से जाना जाता है. बौद्ध परंपरा के अनुसार आज के दिन भूतों के लिए यह पूजा की जाती है, ताकि वे खुश रहे और किसी तरह की परेशानी ना करें. यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है. जिस तरह पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण व श्राद्ध कर्मकांड किया जाता है, ठीक उसी तरह बौद्ध परंपरा में 'उल्लाम्बना फेस्टिवल' का अनुष्ठान किया जाता है. जिसमें भगवान बुद्ध की भी पूजा की जाती है.

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वहीं पूजा-पाठ संपन्न होने के बाद लगभग 150 ग्रामीणों के बीच खाद्य सामग्री का भी वितरण किया गया है. अमेरिका और वियतनाम के बौद्ध श्रद्धालुओं द्वारा राशन सामग्रियों के लिए आर्थिक सहायता की गई है. कोविड प्रोटोकॉल के कारण इस फेस्टिवल का बड़ा आयोजन नहीं किया जा सकता था. इस वजह से इस गांव में कोरोना गाइड लाइन के अनुसार फेस्टिवल मनाया जा रहा है. साथ ही लंबे समय से लॉकडाउन के कारण मुश्किल में रह रहे गरीब-दलित लोगों को मुफ्त राशन भी उपलब्ध कराया गया.

वहीं राहुल नगर गांव निवासी महिला सुनीता देवी ने बताया कि कोरोना महामारी के कारण पति का रोजगार छिन गया है. खाने पीने की भी समस्या हो गई. जैसे-तैसे जीवन चल रहा है. इस बीच बोधगया से आकर लोगों ने 15 दिनों का राशन दिया है. इससे बड़ी राहत हुई है. कोरोना के कारण पैसे की घोर कमी हो गई है. बीमार पड़ने पर भी इलाज के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है. ऐसे में राशन देखकर गांव वालों की बड़ी मदद की गई है.

बिहार के गया जिले के बोधगया के राहुल नगर दलित टोले में 'उल्लाम्बना फेस्टिवल' का आयोजन किया गया. इस फेस्टिवल को 'घोस्ट फेस्टिवल' के भी नाम से जाना जाता है. बौद्ध परंपरा के अनुसार इस दिन भूतों की पूजा करने से वे खुश होते हैं और किसी तरह की बाधा उत्पन्न नहीं करते हैं. हिंदुओं के पिंडदान कर्मकांड की तरह इस पूजा का आयोजन किया जाता है.

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