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'द इंजीनियर रेस्टोरेंट' : नक्सल प्रभावित इलाके में इंजीनियर ने खोला ढाबा, स्वाद चखने के बाद हो जाएंगे कायल

बिहार के गया के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में 'द इंजीनियर रेस्टोरेंट' (The Engineer Restaurant) लोगों को नया स्वाद चखा रहा है. ढाबा खोलने वाले अंकित कुमार ने तीन साल तक इंजीनियर की नौकरी की. लेकिन उनका स्टार्टअप के प्रति ज्यादा झुकाव रहा. 'एमबीए चाय वाला' से प्रेरित होकर उन्होंने द इंजीनियर रेस्टोरेंट की शुरुआत की. पढ़ें पूरी खबर...

गया के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में 'द इंजीनियर रेस्टोरेंट' की शुरुआत
गया के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में 'द इंजीनियर रेस्टोरेंट' की शुरुआत
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Published : Dec 6, 2022, 8:50 PM IST

गयाः 'एमबीए चाय वाला', 'ग्रेजुएट चाय वाली' (graduate chai wali) के बाद 'द इंजीनियर रेस्टोरेंट' काफी चर्चा में है. बिहार के गया के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में यह रेस्टोरेंट लोगों को नया स्वाद चखा रहा है. इंजीनियर की नौकरी छोड़ अंकित सिंह ने यह स्टार्टअप की शुरुआत की है. उन्होंने कहा कि तीन साल तक नोकरी की लेकिन खाना बनाने और खिलाने के प्रति ज्यादा झुकाव था. इसलिए 'एमबीए चाय वाला' से प्रेरित होकर उन्होंने गया में स्टार्टअप शुरू किया.

यह भी पढ़ेंः मिलिए पटना की ग्रेजुएट चाय वाली से, दुकान पर लिखा 'पीना ही पड़ेगा'

एक इंजीनियर अब ढाबे के किचन में अपनी इंजीनियरिंग आजमा रहे हैं. आमतौर पर शहरी क्षेत्र के युवा रोजगार नहीं मिलने पर परेशान हो जाते हैं लेकिन ग्रामीण इलाके में संभवत यह इंजीनियर युवा की इच्छाशक्ति देखते ही बनती है. वहीं द इंजीनियर रेस्टोरेंट काफी चर्चा में आ गया है. अपने गांव में स्टार्टअप शुरू करने वाले अंकित युवा के लिए मिशान बन गए हैं.

नौकरी में बचत नहीं थीः नक्सल प्रभावित पिपरा गांव के अंकित इमामगंज के रानीगंज बस स्टैंड के पास रेस्टोरेंट खोला है. इसका पूरा नाम द इंजीनियर रेस्टूरेंट एंड देसी फैमिली ढाबा है. अंकित का यह अनोखा अंदाज युवा वर्ग के लिए प्रेरणा स्रोत बना है. अंकित बचपन से लेकर इंजीनियर की पढ़ाई महाराष्ट्र से की. इंजीनियर की नौकरी मिली, लेकिन नौकरी में मन नहीं लगा. इसके बाद गांव लौटकर 'द इंजीनियर रेस्टोरेंट' नाम का ढाबा खोल दिया.

3 साल इंजीनियर की नौकरी कीः अंकित बताते हैं कि उन्होंने नागपुर के बीएमआईटी से बीटेक की है. रांची में कंस्ट्रक्शन कंपनी में प्लानिंग इंजीनियर के पद पर काम कर चुके हैं. 60 हजार हर माह सैलरी मिलती थी लेकिन बचत नहीं हो पाता था. जिस कारण अंकित ने नौकरी से दूरी बना ली. इसके बाद उन्होंने अपने गांव लौटने का विचार बनाया.

प्रफुल्ल बिल्हौर से मिली प्रेरणाः अंकित बताते हैं कि उन्हें पुणे के एमबीए चाय वाला प्रफुल्ल बिल्लौर (MBA Chaiwala Prafulla Billaur) से प्रेरणा मिली. जिसके बाद अंकित ने गांव में ही 'द इंजीनियर रेस्टोरेंट एंड देसी फैमिली ढाबा' खोल दिया. उन्होंने दर्जन भर लोगों को काम भी दिया है. धीरे-धीरे रेस्टोरेंट को और भी आकर्षक बनाया जा रहा है. ररेस्टोरेंट को काफी अच्छे से सजाया गया है.

" नौकरी न मिले तो युवा हताश न हों, अपना बिजनेस शुरू करें. मंजिल जरूर मिलेगी. बेरोजगार युवकों को धैर्य रखना बहुत जरूरी होता है. छोटी शुरुआत आगे चलकर बहुत बड़ी हो सकती है." - अंकित सिंह, संचालक, द इंजीनियर रेस्टोरेंट

गयाः 'एमबीए चाय वाला', 'ग्रेजुएट चाय वाली' (graduate chai wali) के बाद 'द इंजीनियर रेस्टोरेंट' काफी चर्चा में है. बिहार के गया के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में यह रेस्टोरेंट लोगों को नया स्वाद चखा रहा है. इंजीनियर की नौकरी छोड़ अंकित सिंह ने यह स्टार्टअप की शुरुआत की है. उन्होंने कहा कि तीन साल तक नोकरी की लेकिन खाना बनाने और खिलाने के प्रति ज्यादा झुकाव था. इसलिए 'एमबीए चाय वाला' से प्रेरित होकर उन्होंने गया में स्टार्टअप शुरू किया.

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एक इंजीनियर अब ढाबे के किचन में अपनी इंजीनियरिंग आजमा रहे हैं. आमतौर पर शहरी क्षेत्र के युवा रोजगार नहीं मिलने पर परेशान हो जाते हैं लेकिन ग्रामीण इलाके में संभवत यह इंजीनियर युवा की इच्छाशक्ति देखते ही बनती है. वहीं द इंजीनियर रेस्टोरेंट काफी चर्चा में आ गया है. अपने गांव में स्टार्टअप शुरू करने वाले अंकित युवा के लिए मिशान बन गए हैं.

नौकरी में बचत नहीं थीः नक्सल प्रभावित पिपरा गांव के अंकित इमामगंज के रानीगंज बस स्टैंड के पास रेस्टोरेंट खोला है. इसका पूरा नाम द इंजीनियर रेस्टूरेंट एंड देसी फैमिली ढाबा है. अंकित का यह अनोखा अंदाज युवा वर्ग के लिए प्रेरणा स्रोत बना है. अंकित बचपन से लेकर इंजीनियर की पढ़ाई महाराष्ट्र से की. इंजीनियर की नौकरी मिली, लेकिन नौकरी में मन नहीं लगा. इसके बाद गांव लौटकर 'द इंजीनियर रेस्टोरेंट' नाम का ढाबा खोल दिया.

3 साल इंजीनियर की नौकरी कीः अंकित बताते हैं कि उन्होंने नागपुर के बीएमआईटी से बीटेक की है. रांची में कंस्ट्रक्शन कंपनी में प्लानिंग इंजीनियर के पद पर काम कर चुके हैं. 60 हजार हर माह सैलरी मिलती थी लेकिन बचत नहीं हो पाता था. जिस कारण अंकित ने नौकरी से दूरी बना ली. इसके बाद उन्होंने अपने गांव लौटने का विचार बनाया.

प्रफुल्ल बिल्हौर से मिली प्रेरणाः अंकित बताते हैं कि उन्हें पुणे के एमबीए चाय वाला प्रफुल्ल बिल्लौर (MBA Chaiwala Prafulla Billaur) से प्रेरणा मिली. जिसके बाद अंकित ने गांव में ही 'द इंजीनियर रेस्टोरेंट एंड देसी फैमिली ढाबा' खोल दिया. उन्होंने दर्जन भर लोगों को काम भी दिया है. धीरे-धीरे रेस्टोरेंट को और भी आकर्षक बनाया जा रहा है. ररेस्टोरेंट को काफी अच्छे से सजाया गया है.

" नौकरी न मिले तो युवा हताश न हों, अपना बिजनेस शुरू करें. मंजिल जरूर मिलेगी. बेरोजगार युवकों को धैर्य रखना बहुत जरूरी होता है. छोटी शुरुआत आगे चलकर बहुत बड़ी हो सकती है." - अंकित सिंह, संचालक, द इंजीनियर रेस्टोरेंट

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