गया: गया शहर के खरखुरा मोहल्ला के रहने वाले महेंद्र प्रसाद के बेटे सुधांशु ने अपनी मेहनत और लगन से सफलता की एक नई इबारत लिखी है. देशभर से कुल 11 अभ्यर्थियों का चयन इसरो ने किया है जिसमें से गया के रहने वाले सुधांशु भी शामिल हैं.
![sudhanshu of gaya](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/bh-gaya-01-jewel-in-rags-sudhansu-isro-scientist-visual-7204414_03042021134519_0304f_1617437719_119.jpg)
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सुधांशु बने इसरो वैज्ञानिक
सुधांशु अब इसरो के वैज्ञानिक बने गए हैं. बड़ी बात ये है कि यहां तक का सफर तय करने के लिए सुधांशु ने दिन रात मेहनत की. सालों-साल अपना जीवन पढ़ाई को समर्पित कर दिया. वहीं उनके माता पिता दोनों आटा चक्की चलाकर इनकी जरूरत को पूरा करने में लगे रहे. आज इनका परिवार सुधांशु के सफलता पर गर्व कर रहा है. वहीं पूरे शहर में सुधांशु की चर्चा हो रही है.
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सुधांशु के पिता चलाते हैं आटा चक्की
दरअसल सुधांशु मिडिल क्लास परिवार से आते हैं. इनके पिता महेंद्र प्रसाद अपने घर मे आटा चक्की चलाते हैं. शुरुआती दौर में सुधांशु के पिता के पास इतने पैसे नही थे कि इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई निजी स्कूल या कॉलेज में करा सके.घर की आर्थिक स्थिति से रूबरू सुधांशु ने दिन रात मेहनत कर सफलता हासिल की है.
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मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरा बेटा इसरो का वैज्ञानिक बनेगा. लेकिन उसके लगन को देखकर लगता था कि वो बड़ा आदमी जरूर बनेगा. इस साल की होली हमारे परिवार के लिए खुशियों की होली रही. जब दोपहर बाद बेटा ने रिजल्ट बताया ,हमलोग खुशी से झूम उठे.- बिंदु देवी, सुधांशु की मां
'मेरी पढ़ाई मेट्रिक और इंटर तक की सरकारी संस्थानों में हुई है. उसके बाद मेरा सेलेक्शन एनआईटी कुरुक्षेत्र सत्र 2015-19 के लिए हुआ. वहां भी सफलता मिली और एक कॉन्ट्रैक्ट आधारित नौकरी मिल गयी थी. लेकिन मेरी रुचि व काबिलियत के हिसाब से नौकरी फिट नहीं बैठी तो फिर मैंने नौकरी छोड़ दी. उसके बाद रुड़की से एमटेक किया.'-सुधांशु, वैज्ञानिक, इसरो
'वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुआ इंटरव्यू'
सुधांशु बताते हैं कि इसरो का रिटेन एग्जाम जनवरी 2020 में दिया था. लेकिन उसके बाद लॉकडाउन लागू कर दिया गया. काफी दिनों के बाद वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये इंटरव्यू लिया गया. जिसका रिजल्ट होली के दिन में आया.
'मैं देश सेवा के लिए इसरो में जाना चाहता हूं. उम्मीद है मेरा काम रॉकेट स्ट्रेक्चर निर्माण करना या मेटेन्स का होगा.मुझे जो काम मिलेगा उसमें शत प्रतिशत दूंगा, क्योंकि ये देश की बात है. इसरो का इतिहास रहा है कि जो इसरो कम पैसे और संसाधन में बना देता है वो दूसरे देश को सोचने पर मजबूर कर देता है.'- सुधांशु, वैज्ञानिक, इसरो
'आज बेटे की सफलता से गर्व और खुशी महसूस हो रहा है. हर तरफ से बधाइयां आ रही हैं. शुरुआती दिनों में आर्थिक तंगी के कारण सरकारी स्कूलों में सुधांशु को पढ़ाया लेकिन जब पढ़ाई के प्रति उसका लगन देखा तो हमने इसे कह दिया तुम्हे जो बनना है बनो हमलोग तुम्हे किसी भी चीज की कमी नहीं होने देंगे.'- महेंद्र प्रसाद, सुधांशु के पिता
'बेटे पर गर्व है'
सुधांसु के पिता महेंद्र प्रसाद बताते हैं कि कैसे उन्होंने अपने बेटे को पढ़ाया लिखाया है. उनका कहना है कि आटा चक्की में पति पत्नी दोनों काम करके पैसे बचाने की कोशिश करते थे. मजदूर नहीं रखते थे ताकि ज्यादा से ज्यादा बचत हो सके. महेंद्र का कहना है कि आज सुधांशु पर उन्हें गर्व है और उम्मीद है कि देश के लिए अच्छा काम करेगा.
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