गयाः बादशाह शाहजहां ने भले ही अपनी बेगम की याद में ताजमहल बनवायी हो जिसके दीदार के लिए लोग विदेशों से खिंचे चले आते हैं. लेकिन प्रेम की अगन में पत्थरीली राहों पर नहीं चला. दशरथ मांझी को भला कैसे भूल सकते हैं जिन्होंने प्यार के खोने पर इंतकाम लेने के लिए अकेले ही पहाड़ का सीना चीर रास्ता बना दिया जिसे आज लोग प्रेम पथ के नाम से पुकारते हैं.
गेहलौर घाटी में जहां सिर्फ जंगल था वहां अब प्रेम पथ बन गया है. इसके पीछे जीवंत कहानी पर्वत पुरुष के पुत्र भागीरथ मांझी ने ईटीवी से साझा किया. उन्होंने ने बताया कि उनके पिता दशरथ मांझी का बाल विवाह हुआ. गांव के बड़े व्यक्ति के यहां हल चलाकर परिवार चलता. बाद में उनके पिता पहाड़ के दूसरी तरफ मजदूरी करते जहां उनकी मां फगुनिया हर रोज मांझी को खाना पहुंचाने जाती. एक दिन पहाड़ पर खाना लेकर चढ़ने के क्रम में फुगिनिया फिसल कर गिर गई. कुछ दिन बाद फगुनिया देवी का निधन हो गया.
फगुनिया के मौत ने पहाड़ तोड़ने को विवश किया
दशरथ मांझी के बेटे बताते हैं कि उस समय वो मात्र दस वर्ष के थे. आगे कहते हैं, मां के निधन का गहरा प्रभाव पिता जी पर पड़ा. काफी दिनों तक वो काम पर नही गए. बस यहीं विचार करते सड़क रहता तो मेरी पत्नी आसानी से दूसरी तरफ खाना पहुंचाती और न कोई हादसा होता. इससे शहर और अस्पताल की दूरी कम जाती. अपने पिता दशरथ मांझी को याद करते हुए भागीरथ मांझी कहते हैं मां की मौत से सदमे से उबरते हुए पिता जी ने पहाड़ तोड़ने का फैसला लिया.
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1960 से 1982 तक 22 वर्षो तक कड़ी मेहनत की. 25 फिट ऊंची, 30 फिट चौड़ी और 360 मीटर लंबी पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया. लोग उनके पिता को पागल कहते. पर शायद उनकी मां के प्रति पागलपन ने दूरी तो कम की ही साथ में उन्होंने सच्चे प्रेम का मिसाल कायम किया.
मांझी पर बन चुकी है फिल्म
दशरथ मांझी की सच्ची प्रेम कहानी पर 2015 में फिल्म डायरेक्टर केतन मेहता ने 'मांझी द माउंटेन मैन' नामक फिल्म बनाई. यह फिल्म दशरथ मांझी और उनकी पत्नी फगुनीया के वास्तविक प्रेम कहानी को फिल्म में दिखाया गया. फिल्म में अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्धकी ने मांझी के भूमिका को जीवंत कर दिया. इस चर्चित फिल्म की शूटिंग 85 फीसदी यहीं हुआ है.
गांव का हुआ कायाकल्प
ग्रामीण अभिनंदन पासवान बताते हैं कि पर्वत पुरुष दशरथ मांझी 1972 में पैदल रेलवे ट्रैक के किनारे-किनारे लगभग 2 महीने में दिल्ली पहुंच गए. उन्होंने बिहार के नेता राम सुंदर दास से मुलाकात की. दशरथ मांझी पीएम से मिलने दिल्ली इसलिए गए थे कि आने-जाने के लिए रास्ता बन सके. लेकिन समय ने उनका साथ नहीं दिया. जब नीतीश कुमार बिहार के सीएम बने तब मांझी उनसे मिलने पटना पहुंचे. सीएम ने उन्हें अपनी कुर्सी पर बैठाया और उनके गांव में विकास कार्य का आश्वासन दिया. ग्रामीण बताते हैं कि सीएम के प्रयास से गांव का कायाकल्प हो गया. दशरथ मांझी के नाम पर गांव, समाधि स्थल, अस्पताल और सड़क बनाए गए.
ज्ञान के साथ प्रेम की धरती बना गया
गया आदि काल से मोक्ष और ज्ञान की धरती रही है. वहीं, अब यहां कि फिजाओं में लोगों के लिए प्रेम का संदेश घुला है. लोग इस धरती को प्यार के लिए भी जानने लगे हैं. पर्वत पुरुष दशरथ मांझी ने 22 सालों तक अथक मेहनत से पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया. प्यार के मसीहा ने एक मिसाल प्रेम पथ बनाकर गया को एक अलग पहचान दिया है. माउंटेन मैन के काम को सलामी देने सेलिब्रेटि से लेकर राजनेता गेहलौर घाटी आते आते हैं. हालांकि आज प्रेम पथ बदहाल स्थिति में है.