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कठपुतली से लेकर हाथी-घोड़े तक, राजस्थान के कलाकार यूं कर रहे रोजगार

एक समय था, जब किसी शुभ काम और मेले में कठपुतली का खेल दिखाया जाता था. डुगडुगी बजती थी.. परदा हटता था और सामने से कठपुतली आकर स्वागत करती थी. लकड़ी से बनी कठपुतली जब अपना खेल दिखाती लोग घण्टो जमे रहते थे.

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Published : Feb 22, 2019, 2:16 PM IST

कठपुतली से लेकर हाथी-घोड़े तक

गया : शहर में दीपावली के समय राजस्थान के कलाकार लकड़ी, रुई, गुदरी कपड़े और पुआल से हाथी, घोड़ा और हिरण का खिलौना बना रहे हैं. गया के सिकड़िया मोड़ के पास तंबू लगाकर इनका परिवार रहता है. परिवार का हर शख्स यही काम करता है.

राजस्थान के मकराना से आए ये लोग पहले कठपुतली बनाया करते थे. कठपुतली का खेल विलुप्तहोने सेरोजगार पर संकट आ गया. इसके बाद इन्होंने कठपुतली जैसा ही खिलौना बनाना शुरू कर दिया. खिलौना बनाना आसान था. परंतु इसके खरीददार कम थे. तब इन कलाकारों ने यूपी, बिहार और बंगाल के शहरों में जाकर खिलौना बेचना शुरू किया.

रोजी-रोटी की दौड़ में कलाकार

इसी तरह ये लोग गया शहर के टावर चौक, स्टेशन रोड पर अपना खिलौना बेचते हैं. कलाकारों ने बताया कि दीपावली से होली तक ये लोग यहां रहकर खिलौने बेचते हैं. इसके बाद फिर ये लोग अपने घर चले जाते हैं. साल में ये तीन या चार महीने ही घर से बाहर रहकर खिलौना बनाकर बेचते हैं.

गया : शहर में दीपावली के समय राजस्थान के कलाकार लकड़ी, रुई, गुदरी कपड़े और पुआल से हाथी, घोड़ा और हिरण का खिलौना बना रहे हैं. गया के सिकड़िया मोड़ के पास तंबू लगाकर इनका परिवार रहता है. परिवार का हर शख्स यही काम करता है.

राजस्थान के मकराना से आए ये लोग पहले कठपुतली बनाया करते थे. कठपुतली का खेल विलुप्तहोने सेरोजगार पर संकट आ गया. इसके बाद इन्होंने कठपुतली जैसा ही खिलौना बनाना शुरू कर दिया. खिलौना बनाना आसान था. परंतु इसके खरीददार कम थे. तब इन कलाकारों ने यूपी, बिहार और बंगाल के शहरों में जाकर खिलौना बेचना शुरू किया.

रोजी-रोटी की दौड़ में कलाकार

इसी तरह ये लोग गया शहर के टावर चौक, स्टेशन रोड पर अपना खिलौना बेचते हैं. कलाकारों ने बताया कि दीपावली से होली तक ये लोग यहां रहकर खिलौने बेचते हैं. इसके बाद फिर ये लोग अपने घर चले जाते हैं. साल में ये तीन या चार महीने ही घर से बाहर रहकर खिलौना बनाकर बेचते हैं.

Intro:एक समय था जब किसी शुभ कार्यों और मेलो में कठपुतली का खेल दिखाया जाता था। आज कठपुतली का खेल विलुप्त हो गया है। कठपुतली बनाने वाले कलाकार अपने जीवन यापन के लिए यूपी,बिहार और बंगाल के शहरों में जाकर कठपुतली के तरह हाथी ,घोड़ा और हिरण का खिलौना बना रहे हैं।


Body:डुगडुगी बजती थी परदा हटता था और सामने से कठपुतली आकर सबका स्वागत करती थी। लकड़ी से बना कठपुतली जब अपने खेल दिखाती लोग घण्टो जमे रहते थे। उसकी हंसी ठिठोली पर लोग जम के ठहाके मारते थे। आधुनिक युग मे कठपुतली खेल विलुप्ति के कगार पर है। राजस्थान के कठपुतली बनाने वाले कलाकार देश के शहर शहर जाकर जीवन यापन के लिए भटक रहा है।

बिहार के गया शहर में दीपावली के बाद से आये राजस्थानी कलाकार लकड़ी, रुई,गुदरी कपड़े और पुआल से हाथी ,घोड़ा और हिरण का खिलौना बना रहे हैं। गया के सिकड़िया मोड़ से मेडिकल अस्पताल जाने के क्रम में खुले स्थान में ये कलाकार खिलौना बनाते नजर आ जाये गए। खुले आसमान में तीन तंबू में 40 से 50 लोग रहते हैं। बच्चे से जवान तक सभी सुबह से ही खिलौना बनाने में लगे रहते हैं।

राजस्थान के मकराना से ये कलाकार आये हैं। पहले ये लोग कठपुतली बनाते थे । कठपुतली खेल के विलुप्ति पर इनके हाथ से रोजगार छीन गया तब इनके घर के बड़े लोगो ने कठपुतली जैसा ही हाथी ,घोड़ा का खिलौना बनाने लगे। खिलौना बनाना आसान था परंतु इसके खरीददार कम थे तब ये कलाकारों ने राजस्थान से निकलकर यूपी ,बिहार और बंगाल के शहरों में जाकर खिलौना बनाकर बेचने लगे। गया में शहर के टावर चौक , स्टेशन रोड पर अपना खिलौना बेजते है।

कलाकारों ने बताया दीपावली में घर से पूजा करके निकलता हूं और होली के पहले फिर राजस्थान अपने घर चला जाता हूँ। साल में ये तीन या चार महीने ही घर से बाहर रहकर खिलौना बनाकर बेजता हूँ। पहले हमलोग कठपुतली बनाते थे अब कठपुतली का खेल नही होता हैं तो खिलौना बनाने लगे हैं। हमलोग कहि से सीखे नही है घर मे बड़े बुजुर्ग बनाते थे उसी को।देखते देखते सिख गए हैं। 40 से 50 लोग शहर में आये हैं। शहर शहर घूमने से खिलौना बिक जाता है। ये मजबूत रहता है और आकर्षक भी होता हैं। लोग इसे राजस्थानी टेडी बियर कहते हैं।




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