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गया: फुदका कीट से कई एकड़ में लगी फसल बर्बाद, DM ने त्वरित रोकथाम के लिए DAO को दिए निर्देश

गया में किसान परेशान (Farmers Are Upset In Gaya) हैं . उन पर दोहरी मार पड़ रही है. धान की फसल पर फुदका रोग लग गया है. ये कीट फसलों को ऐसा नष्ट करते हैं कि जानवर भी खाना पसंद नहीं करते है. इस रोग से कई एकड़ में लगी धान की लहलहाती फसल बर्बाद हो गई. पढ़ें पूरी खबर...

धान की फसल बर्बाद
धान की फसल बर्बाद
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Published : Oct 29, 2022, 3:55 PM IST

गया: बिहार के गया में धान की फसल पर फुदका (Phudaka Disease On Paddy Crop In Gaya) का आक्रमण हो रहा है. जिससे कई एकड़ में लगी धान की लहलहाती फसल बर्बाद हो रही है. कम बारिश के बाद अब किसान इस कीट से फसलों के हो रहे नुकसान से दोहरी मार झेलने को मजबूर हो गए हैं. उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो चली है. जिले के सभी 24 प्रखंड इसकी चपेट में आ गए हैं. इस गंभीर हालात को देखते हुए जिला प्रशासन ने जिला कृषि पदाधिकारी को आवश्यक निर्देश दिए हैं. इसके समाधान के लिए त्वरित कदम उठाने की बात कही है. जिले के विभिन्न प्रखंडों में धान के कीट-व्याधियों के प्रकोप से फसल बर्बाद हो रही है. फुदका कीट जिसे हम भूरा मधुआ भी कहते हैं, यह कीट धान की फसलों को नष्ट कर रहा है.

ये भी पढ़ें- पटना में चक्रवात में धान की फसल बर्बाद, किसानों ने सरकार से की मदद की मांग

'इससे जिले के किसान बर्बाद हो रहे हैं. कई इलाकों में इस कीट ने किसानों की मेहनत पर पूरे तरीके से पानी फेर दिया है. और धान की फसल को बर्बाद कर दिया है. कीट के इस तरह के आक्रमण से फसलें नष्ट हो रही हैं. इसे बचाने के लिए प्रशासन और कृषि विभाग को समाधान बताने चाहिए. ताकि किसानों को होने वाली क्षति से उन्हें बचाया जा सके.' - रणधीर कुमार, किसान

किसानों को झेलनी पड़ रही दोहरी मार : किसान दोहरी मार झेल रहे हैं. पहले अल्प वर्षापात के कारण सुखाड़ की स्थिति उत्पन्न हुई, किसी तरह विकल्प यंत्रों के सहारे जिन किसानों ने धान की फसल उगाई, अब उनकी फसल को कीट नष्ट कर रहे हैं. इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी चरमराई है. चूंकि, फसल की अच्छी स्थिति पर ही किसान निर्भर रहते हैं और अब स्थिति बता रही है, कि किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. यह कीट अगस्त-सितम्बर से प्रारम्भ होकर धान की कटाई तक रहता है. इस कीट का आक्रमण जिन खेतों में यूरिया का उपयोग ज्यादा तथा पोटाश एवं फाॅस्फेट का उपयोग कम किया गया है, वहां ज्यादा होता है. जिन धान के खेतों में यूरिया का बहुत उपयोग होता है, उन खेतों में बीपीएच (फूदका कीट-भूरा मधुआ) का आक्रमण होता है. प्रारम्भ में ये कीट थोड़ी जगह पर आक्रमण करते है.

कीट से धान की फसलों को भारी नुकसान : ये कीट धान के तनों पर चिपके रहते हैं, सारा रस पी जाते हैं. जिससे फसल पुआल बन जाता है. जिसे जानवर भी खाना पसंद नहीं करते. फिर ये कीट रिंग-गोलाई में आगे बढ़ते हैं. इससे पौधे शक्तिहीन होकर लूंज-पूंज पुआल हो जाते हैं. इन पुआलों को जानवर भी नही खाते हैं. ज्यादा समय तक नियंत्रण नही होने पर पूरे खेत को बर्बाद कर देते हैं. निम्फ तथा एडल्ट दोनों पौधो को प्रभावित करते हैं. प्रभावित धान फसल के चारों तरफ हरा भाग इस कीट का संभावित क्षेत्र होता है. फिलहाल फुदका कीट के आक्रमण को लेकर जिला पदाधिकारी डॉक्टर त्यागराजन एसएम भी गंभीर हैं. और उन्होंने जिला कृषि पदाधिकारी सुदामा महतो को आवश्यक निर्देश दिए हैं और फसलों को बचाने के लिए त्वरित तौर पर कदम उठाने की बात कही है. वहीं, निर्देश मिलने के बाद जिला कृषि पदाधिकारी द्वारा किसानों को जागरूक किया जा रहा है और फसल बचाने की विधि बताई जा रही है.

'प्रभावित धान की फसल के चारों तरफ सात कदम बढ़कर गोलाई में धान के पौधों पर इमिडाक्लोप्रिड 40% डब्ल्यूजी एवं इथिप्रोल 40% डब्ल्यूजी का मिश्रण 40.0 ग्राम एकड़ की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. इमिडाक्लोप्रिड एवं इथिप्रोल का मिश्रण विभिन्न ट्रेड नामों से उपलब्ध है. वहीं, इसके पांच दिनों के बाद लमबडा साहिलोथ्रिन 5% ईसी (कराटे) 1 मिलीलीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए, ताकि खुद के खेत से धान की फसल को बचाया जा सके.' - सुदामा महतो, जिला कृषि पदाधिकारी

गया: बिहार के गया में धान की फसल पर फुदका (Phudaka Disease On Paddy Crop In Gaya) का आक्रमण हो रहा है. जिससे कई एकड़ में लगी धान की लहलहाती फसल बर्बाद हो रही है. कम बारिश के बाद अब किसान इस कीट से फसलों के हो रहे नुकसान से दोहरी मार झेलने को मजबूर हो गए हैं. उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो चली है. जिले के सभी 24 प्रखंड इसकी चपेट में आ गए हैं. इस गंभीर हालात को देखते हुए जिला प्रशासन ने जिला कृषि पदाधिकारी को आवश्यक निर्देश दिए हैं. इसके समाधान के लिए त्वरित कदम उठाने की बात कही है. जिले के विभिन्न प्रखंडों में धान के कीट-व्याधियों के प्रकोप से फसल बर्बाद हो रही है. फुदका कीट जिसे हम भूरा मधुआ भी कहते हैं, यह कीट धान की फसलों को नष्ट कर रहा है.

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'इससे जिले के किसान बर्बाद हो रहे हैं. कई इलाकों में इस कीट ने किसानों की मेहनत पर पूरे तरीके से पानी फेर दिया है. और धान की फसल को बर्बाद कर दिया है. कीट के इस तरह के आक्रमण से फसलें नष्ट हो रही हैं. इसे बचाने के लिए प्रशासन और कृषि विभाग को समाधान बताने चाहिए. ताकि किसानों को होने वाली क्षति से उन्हें बचाया जा सके.' - रणधीर कुमार, किसान

किसानों को झेलनी पड़ रही दोहरी मार : किसान दोहरी मार झेल रहे हैं. पहले अल्प वर्षापात के कारण सुखाड़ की स्थिति उत्पन्न हुई, किसी तरह विकल्प यंत्रों के सहारे जिन किसानों ने धान की फसल उगाई, अब उनकी फसल को कीट नष्ट कर रहे हैं. इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी चरमराई है. चूंकि, फसल की अच्छी स्थिति पर ही किसान निर्भर रहते हैं और अब स्थिति बता रही है, कि किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. यह कीट अगस्त-सितम्बर से प्रारम्भ होकर धान की कटाई तक रहता है. इस कीट का आक्रमण जिन खेतों में यूरिया का उपयोग ज्यादा तथा पोटाश एवं फाॅस्फेट का उपयोग कम किया गया है, वहां ज्यादा होता है. जिन धान के खेतों में यूरिया का बहुत उपयोग होता है, उन खेतों में बीपीएच (फूदका कीट-भूरा मधुआ) का आक्रमण होता है. प्रारम्भ में ये कीट थोड़ी जगह पर आक्रमण करते है.

कीट से धान की फसलों को भारी नुकसान : ये कीट धान के तनों पर चिपके रहते हैं, सारा रस पी जाते हैं. जिससे फसल पुआल बन जाता है. जिसे जानवर भी खाना पसंद नहीं करते. फिर ये कीट रिंग-गोलाई में आगे बढ़ते हैं. इससे पौधे शक्तिहीन होकर लूंज-पूंज पुआल हो जाते हैं. इन पुआलों को जानवर भी नही खाते हैं. ज्यादा समय तक नियंत्रण नही होने पर पूरे खेत को बर्बाद कर देते हैं. निम्फ तथा एडल्ट दोनों पौधो को प्रभावित करते हैं. प्रभावित धान फसल के चारों तरफ हरा भाग इस कीट का संभावित क्षेत्र होता है. फिलहाल फुदका कीट के आक्रमण को लेकर जिला पदाधिकारी डॉक्टर त्यागराजन एसएम भी गंभीर हैं. और उन्होंने जिला कृषि पदाधिकारी सुदामा महतो को आवश्यक निर्देश दिए हैं और फसलों को बचाने के लिए त्वरित तौर पर कदम उठाने की बात कही है. वहीं, निर्देश मिलने के बाद जिला कृषि पदाधिकारी द्वारा किसानों को जागरूक किया जा रहा है और फसल बचाने की विधि बताई जा रही है.

'प्रभावित धान की फसल के चारों तरफ सात कदम बढ़कर गोलाई में धान के पौधों पर इमिडाक्लोप्रिड 40% डब्ल्यूजी एवं इथिप्रोल 40% डब्ल्यूजी का मिश्रण 40.0 ग्राम एकड़ की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. इमिडाक्लोप्रिड एवं इथिप्रोल का मिश्रण विभिन्न ट्रेड नामों से उपलब्ध है. वहीं, इसके पांच दिनों के बाद लमबडा साहिलोथ्रिन 5% ईसी (कराटे) 1 मिलीलीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए, ताकि खुद के खेत से धान की फसल को बचाया जा सके.' - सुदामा महतो, जिला कृषि पदाधिकारी

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