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लॉक डाउन : मरने के बाद लोगों को दो गज कफन भी नहीं हो रहा नसीब

कोरोना को लेकर पूरे देश में लॉक डाउन है. इस वजह से शहर से लेकर गांव तक लगभग सभी दुकाने बंद है. ऐसे में लोगों को दाह संस्कार करने के लिए कफन तक नहीं मिल पा रहा है. जिस वजह से लोग काफी परेशान हैं.

कफन भी नहीं हो रहा नसीब
कफन भी नहीं हो रहा नसीब
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Published : Mar 28, 2020, 7:13 AM IST

Updated : Mar 28, 2020, 9:58 AM IST

गया: कोरोना वायरस को लेकर एहतियात के तौर पर पीएम मोदी ने पूरे देश में लॉक डाउन का आदेश जारी किया है. लॉक डाउन के वजह से आम जनजीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त है. कोरोना का कहर ऐसा है कि एक ओर जहां पर लोग अपनी खुशियां कुर्बान कर ऑनलाइन शादी करने को मजबूर है. वहीं, मरने के बाद आदमी को दो गज का कफन भी मयस्सर नहीं हो पा रहा है.

'कफन के लिए भी हो रही परेशानी'
एक मशहूर कहावत है 'मानव तेरी यही कहनी, जीते जी किया संघर्ष और मरने के बाद मयस्सर भी ना हुआ दो गज कफन.' यह कहावत जिले के डेल्हा थाना क्षेत्र के खरखुरा के रहने वाले पर सटीक बैठती है. मोक्षधाम से प्रसिद्ध विष्णु मसान घाट पर लगभग हर रोज कई शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है. ऐसे में शहर के खरखुरा रोड से शव लेकर पहुंचे रवि कुमार ने बताया कि मेरी बुआ का देहांत हो गया था. बुआ के निधन बाद हमलोग शव विष्णु मसान घाट पर लाए. घाट लाने के क्रम में पहले ही कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. वहीं, अंतिम संस्कार के लिए जितनी भी सामग्रियों की जरूरत पड़ती है. वो भी काफी मुश्किल से मिली. उन्होंने बताया कि पूरे शहर घूमने के बावजूद हमें दो गज कफन तक नहीं मिला.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'पैदल ही शव को लेकर आया'
वहीं, इस मामले पर मृतक के एक अन्य परिजन ने बताया कि लॉक डाउन के कारण शव को कफन तक नसीब नहीं हो रहा है. सनातन धर्म परंपरा के अनुसार शव को कफन के साथ अंतिम विदाई दी जाती है. लेकिन वर्तमान समय में हालात कुछ ऐसे विपरीत हैं कि अंतिम संस्कार के लिए हमें एक अगरबत्ती खरीदने में भी काफी परेशानियों का सामना करना पर रहा है. दाह संस्कार करने आए परिजनों ने बताया कि शव के दाह संस्कार करने के लिए घर से लेकर श्मशान घाट तक हमें कोई वाहन भी नहीं मिला. जिस वजह से हम लोग पैदल ही शव को घाट तक लाए हैं. परंपरा के अनुसार दाह संस्कार के बाद भोजन या मिष्टान्न का ग्रहण करना था. लेकिन शहर की सभी दुकाने बंद है. जिस वजह से हमलोग ऐसे ही वापस घर जा रहे हैं.

'घाट पर शवों की संख्या हुई कम'
श्मशान घाट में कुछ दुकानदारों ने अपनी दुकानें खोल रखी थी. दुकानदारों और घाट पर स्थानीय डोम राजा ने बताया कि विष्णु मसान घाट पर प्रतिदिन लगभग 30 शव अंतिम संस्कार के लिए आते थे. लेकिन जब से लॉक डाउन लागू हुआ है. शवों की संख्या 2 से 4 होकर रह गई है. लोग शव को मजबूरी में निकटतम श्मशान घाट पर दाह संस्कार कर रहे हैं. इस वजह से हमलोगों के रोजगार पर भी ग्रहण लग गया है. बता दें कि सनातन धर्म में गया स्थित मोक्षधाम से प्रसिद्ध विष्णु मसान घाट का बड़ा महत्व है. मगध क्षेत्र के रहने वाले हर व्यक्ति की एक चाहत होती है उसकी मृत्यु के बाद उसका दाह संस्कार विष्णुपद के स्थित मसान घाट में किया जाए.

गया: कोरोना वायरस को लेकर एहतियात के तौर पर पीएम मोदी ने पूरे देश में लॉक डाउन का आदेश जारी किया है. लॉक डाउन के वजह से आम जनजीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त है. कोरोना का कहर ऐसा है कि एक ओर जहां पर लोग अपनी खुशियां कुर्बान कर ऑनलाइन शादी करने को मजबूर है. वहीं, मरने के बाद आदमी को दो गज का कफन भी मयस्सर नहीं हो पा रहा है.

'कफन के लिए भी हो रही परेशानी'
एक मशहूर कहावत है 'मानव तेरी यही कहनी, जीते जी किया संघर्ष और मरने के बाद मयस्सर भी ना हुआ दो गज कफन.' यह कहावत जिले के डेल्हा थाना क्षेत्र के खरखुरा के रहने वाले पर सटीक बैठती है. मोक्षधाम से प्रसिद्ध विष्णु मसान घाट पर लगभग हर रोज कई शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है. ऐसे में शहर के खरखुरा रोड से शव लेकर पहुंचे रवि कुमार ने बताया कि मेरी बुआ का देहांत हो गया था. बुआ के निधन बाद हमलोग शव विष्णु मसान घाट पर लाए. घाट लाने के क्रम में पहले ही कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. वहीं, अंतिम संस्कार के लिए जितनी भी सामग्रियों की जरूरत पड़ती है. वो भी काफी मुश्किल से मिली. उन्होंने बताया कि पूरे शहर घूमने के बावजूद हमें दो गज कफन तक नहीं मिला.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'पैदल ही शव को लेकर आया'
वहीं, इस मामले पर मृतक के एक अन्य परिजन ने बताया कि लॉक डाउन के कारण शव को कफन तक नसीब नहीं हो रहा है. सनातन धर्म परंपरा के अनुसार शव को कफन के साथ अंतिम विदाई दी जाती है. लेकिन वर्तमान समय में हालात कुछ ऐसे विपरीत हैं कि अंतिम संस्कार के लिए हमें एक अगरबत्ती खरीदने में भी काफी परेशानियों का सामना करना पर रहा है. दाह संस्कार करने आए परिजनों ने बताया कि शव के दाह संस्कार करने के लिए घर से लेकर श्मशान घाट तक हमें कोई वाहन भी नहीं मिला. जिस वजह से हम लोग पैदल ही शव को घाट तक लाए हैं. परंपरा के अनुसार दाह संस्कार के बाद भोजन या मिष्टान्न का ग्रहण करना था. लेकिन शहर की सभी दुकाने बंद है. जिस वजह से हमलोग ऐसे ही वापस घर जा रहे हैं.

'घाट पर शवों की संख्या हुई कम'
श्मशान घाट में कुछ दुकानदारों ने अपनी दुकानें खोल रखी थी. दुकानदारों और घाट पर स्थानीय डोम राजा ने बताया कि विष्णु मसान घाट पर प्रतिदिन लगभग 30 शव अंतिम संस्कार के लिए आते थे. लेकिन जब से लॉक डाउन लागू हुआ है. शवों की संख्या 2 से 4 होकर रह गई है. लोग शव को मजबूरी में निकटतम श्मशान घाट पर दाह संस्कार कर रहे हैं. इस वजह से हमलोगों के रोजगार पर भी ग्रहण लग गया है. बता दें कि सनातन धर्म में गया स्थित मोक्षधाम से प्रसिद्ध विष्णु मसान घाट का बड़ा महत्व है. मगध क्षेत्र के रहने वाले हर व्यक्ति की एक चाहत होती है उसकी मृत्यु के बाद उसका दाह संस्कार विष्णुपद के स्थित मसान घाट में किया जाए.

Last Updated : Mar 28, 2020, 9:58 AM IST
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