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समर्थ लोग यहां रख जाते हैं पुराने कपड़े, गरीब इसी में ढूंढ लेते हैं अपनी खुशियां

कहावत है कि नेकी कर दरिया में डाल, लेकिन गया में लोग नेकी दरिया में नहीं डालते बल्कि एक लकड़ी की अलमीरा में रख कर चले जाते हैं. गया में गरीब और असहाय लोगों के लिए एक संस्था (organization neki ki deewar) काम करती है, जो लोगों से गरीबों के लिए पुराने कपड़े लेती है और फिर उसे जरूरतमंदों में बांट देती है.

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Published : Nov 1, 2022, 1:05 PM IST

समर्थ लोग यहां रख जाते हैं पुराने कपड़े
समर्थ लोग यहां रख जाते हैं पुराने कपड़े

गयाः बिहार के गया में नेकी की दीवार (Neki ki Deewar Providing Clothes For Poor In Gaya) असहायों का बड़ा आसरा बन गई है. नेकी की दीवार (wall of kindness) के माध्यम से जो कुछ मिलता है, वह गरीब तबके के लिए बड़ी खुशियां बन जाती है. पिछले 2 वर्षों से नेकी की दीवार हर दिन और हर पर्व-त्योहारों में असहाय के लिए मुस्कान ले आता है. शहर के समर्थ लोग पुरानी चीजें लाकर यहां रख जाते हैं, जो गरीबों के काफी काम आती हैं.

ये भी पढ़ेंः गया: DM ने की लोगों से अपील, जरूरतमंदों के लिए 'नेकी की दीवार' में दान करें कपड़े

2 वर्ष पहले हुई थी शुरूआतः गया नगर निगम द्वारा नेकी की दीवार को संचालित करने के लिए एक कमरा उपलब्ध कराया गया है. काठनुमा अलमीरा बनाया गया है. 2 वर्ष पहले गया के तत्कालीन जिलाधिकारी अभिषेक सिंह द्वारा इस तरह की पहल की गई थी. बाद में इस पहल को एक संस्था का सपोर्ट मिला. शुरुआती सपोर्ट के बाद अब नेकी की दीवार खुद ही अपने आप संचालित होती है. यहां समर्थ लोग अपने घर के कपड़े, जो कि पूरी तरह से बेकार नहीं होते हैं और किसी के काम आ सकते हैं, उसे संस्था में रखकर चले जाते हैं. इस स्थान और इस तरह के कार्य को ही नेकी का दीवार नाम दिया गया है.

बच्चे बुजुर्ग सभी होते हैं लाभान्वितः पिछले 2 साल से यह सिलसिला लगातार चल रहा है. इसका संचालन समाहरणालय के ठीक सामने नगर निगम के परिसर में किया जाता है. समर्थ लोगों के द्वारा लाए कपड़ों में ही गरीब और असहाय तबके के लोग अपनी खुशियां ढूंढ लेते हैं. बच्चे हों या बुजुर्ग सभी को अपनी पसंद के अनुसार कुछ न कुछ जरूर मिल जाता है. गरीब और असहाय तबके के बच्चे, युवा, वृद्ध, महिला युवती सभी के लिए कपड़े रहते हैं, जिसे जरूरत के अनुसार लोग काफी खुश होकर ले जाते हैं.

"यह काफी अच्छी पहल है. कई सालों से लोग इसका लाभ उठा रहे हैं. गरीब लोगों को इसका लाभ मिल रहा है वे अपनी पसंद और जरूरत के अनुसार यहां रखे कपड़े अपने साथ चुनकर ले जाते हैं. कपड़े लेकर वे काफी खुश होते हैं. पर्व पर तो बात कुछ और ही होती है, क्योंकि ऐसे लोगों के पास नए वस्त्र खरीदने के लिए पैसे नहीं होते और नेकी की दीवार के माध्यम से उन्हें अच्छे वस्त्र के रूप में खुशी मिल जाती है"- मुन्ना कुमार, स्थानीय

ये भी पढ़ेंः 'नेकी का दीवार' कार्यक्रम की शुरुआत, ठंड में जरूरतमंदों को मिलेगा अनाज और पोशाक

डीएम की अपील लाई थी रंगः संस्था के लोग बताते हैं कि एक डीएम की अपील के बाद इसे नेकी की दीवार नाम देते हुए यह पहल की गई थी. डीएम ने यहां काठनुमा अलमीरा लगवाया था. बाद एक संस्था आगे आई और खुद हाथ बढ़ाया. इसके बाद लोगों से अपील शुरू हुई. धीरे-धीरे लोग यहां कपड़े पहुंचने लगे. अब यहां रोज काफी संख्या में लोग आते हैं और कपड़े रख कर चले जाते हैं. वहीं, स्थानीय मुन्ना कुमार बताते हैं कि यह काफी अच्छी पहल है और पिछले कई सालों से लोग इसका लाभ उठा रहे हैं. गरीब असहाय लोगों को इसका लाभ मिल रहा है और वे अपनी पसंद और जरूरत के अनुसार यहां रखे कपड़े अपने साथ चुनकर ले जाते हैं.

गयाः बिहार के गया में नेकी की दीवार (Neki ki Deewar Providing Clothes For Poor In Gaya) असहायों का बड़ा आसरा बन गई है. नेकी की दीवार (wall of kindness) के माध्यम से जो कुछ मिलता है, वह गरीब तबके के लिए बड़ी खुशियां बन जाती है. पिछले 2 वर्षों से नेकी की दीवार हर दिन और हर पर्व-त्योहारों में असहाय के लिए मुस्कान ले आता है. शहर के समर्थ लोग पुरानी चीजें लाकर यहां रख जाते हैं, जो गरीबों के काफी काम आती हैं.

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2 वर्ष पहले हुई थी शुरूआतः गया नगर निगम द्वारा नेकी की दीवार को संचालित करने के लिए एक कमरा उपलब्ध कराया गया है. काठनुमा अलमीरा बनाया गया है. 2 वर्ष पहले गया के तत्कालीन जिलाधिकारी अभिषेक सिंह द्वारा इस तरह की पहल की गई थी. बाद में इस पहल को एक संस्था का सपोर्ट मिला. शुरुआती सपोर्ट के बाद अब नेकी की दीवार खुद ही अपने आप संचालित होती है. यहां समर्थ लोग अपने घर के कपड़े, जो कि पूरी तरह से बेकार नहीं होते हैं और किसी के काम आ सकते हैं, उसे संस्था में रखकर चले जाते हैं. इस स्थान और इस तरह के कार्य को ही नेकी का दीवार नाम दिया गया है.

बच्चे बुजुर्ग सभी होते हैं लाभान्वितः पिछले 2 साल से यह सिलसिला लगातार चल रहा है. इसका संचालन समाहरणालय के ठीक सामने नगर निगम के परिसर में किया जाता है. समर्थ लोगों के द्वारा लाए कपड़ों में ही गरीब और असहाय तबके के लोग अपनी खुशियां ढूंढ लेते हैं. बच्चे हों या बुजुर्ग सभी को अपनी पसंद के अनुसार कुछ न कुछ जरूर मिल जाता है. गरीब और असहाय तबके के बच्चे, युवा, वृद्ध, महिला युवती सभी के लिए कपड़े रहते हैं, जिसे जरूरत के अनुसार लोग काफी खुश होकर ले जाते हैं.

"यह काफी अच्छी पहल है. कई सालों से लोग इसका लाभ उठा रहे हैं. गरीब लोगों को इसका लाभ मिल रहा है वे अपनी पसंद और जरूरत के अनुसार यहां रखे कपड़े अपने साथ चुनकर ले जाते हैं. कपड़े लेकर वे काफी खुश होते हैं. पर्व पर तो बात कुछ और ही होती है, क्योंकि ऐसे लोगों के पास नए वस्त्र खरीदने के लिए पैसे नहीं होते और नेकी की दीवार के माध्यम से उन्हें अच्छे वस्त्र के रूप में खुशी मिल जाती है"- मुन्ना कुमार, स्थानीय

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डीएम की अपील लाई थी रंगः संस्था के लोग बताते हैं कि एक डीएम की अपील के बाद इसे नेकी की दीवार नाम देते हुए यह पहल की गई थी. डीएम ने यहां काठनुमा अलमीरा लगवाया था. बाद एक संस्था आगे आई और खुद हाथ बढ़ाया. इसके बाद लोगों से अपील शुरू हुई. धीरे-धीरे लोग यहां कपड़े पहुंचने लगे. अब यहां रोज काफी संख्या में लोग आते हैं और कपड़े रख कर चले जाते हैं. वहीं, स्थानीय मुन्ना कुमार बताते हैं कि यह काफी अच्छी पहल है और पिछले कई सालों से लोग इसका लाभ उठा रहे हैं. गरीब असहाय लोगों को इसका लाभ मिल रहा है और वे अपनी पसंद और जरूरत के अनुसार यहां रखे कपड़े अपने साथ चुनकर ले जाते हैं.

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