गया : बिहार के गया जी में पितृपक्ष मेले में लाखों श्रद्धालु अपने पितरों का पिंडदान करने को हर साल आते हैं. लेकिन जिंदा रहते भी कुछ लोग अपना पिंडदान करने गया के एक ऐसे मंदिर में पहुंचते हैं जो हजारों साल पुराना है. गया जी में वर्तमान 45 वेदियो में से एक वेदी के रूप में यह मंदिर विख्यात है. यहां लोग आत्म पिंडदान करने को आते हैं. भगवान विष्णु जनार्दन स्वामी के रूप में पिंड को ग्रहण करते हैं. ऐसी आस्था है कि आत्म पिंडदान करने वाले को परलोक में जाने के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.
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यहां लोग करते हैं खुद का श्राद्धकर्म : आत्म पिंडदान करने के बाद संबंधित व्यक्ति को धार्मिक तौर पर दान, कर्मकांड आदि करने पड़ते हैं, जो कि आत्म पिंडदान के तुरंत बाद किया जाता है. हर साल लाखों पिंडदानी अपने पितरों का पिंडदान करने पितृपक्ष मेले में आते हैं. गया जी में हर वर्ष पितृपक्ष मेला लगता है, इस वर्ष 28 सितंबर से प्रारंभ हो रहा है. इसमें देश-विदेश के लाखों तीर्थयात्री अपने पितरों का पिंडदान करने को पहुंचते हैं. इस मंदिर में वैसे लोग अपना पिंडदान करने पहुंचते हैं, जिनकी संतान नहीं होती, जिनका घर से मन विमुख हो गया होता हो, या उन्हें लगता हो कि उनके मरने के बाद कोई पिंडदान नहीं करेगा. वैसे काफी संख्या में साधु सन्यासी यहां आत्म पिंडदान करने को आते हैं.
''यहां जन्माष्टमी में विशेष पूजा का आयोजन होता है. यहां सालों भर वैसे लोग जिनका अपने घर से मोह भंग हो गया हो, जिनकी संतान न हो, साधु सन्यासी हों, आदि लोग पिंडदान करने को आते रहते हैं. इस तरह अपनी अद्भुत महता को लेकर यह जनार्दन मंदिर काफी विख्यात है.''- प्रभाकर कुमार गिरी, पुजारी
अद्भुद और अनोखा है मंदिर : वहीं, पुजारी आकाश गिरी, प्रभाकर कुमार गिरी बताते हैं कि विश्व में ऐसा कोई मंदिर नहीं है, जहां इस तरह से आत्म पिंडदान किया जाता हो. यह विश्व में इकलौता ऐसा मंदिर (पिंडवेेदी) है और इसका धर्म पुराणों में भी जिक्र है. शेष 44 वेदियों में पितरों का पिंडदान करने तीर्थयात्री देश-विदेश के कोने-कोने से आते हैं. वहीं जनार्दन मंदिर इकलौती ऐसी वेदी है, जहां लोग आत्म पिंडदान करने को आते हैं. आज इस प्राचीन और अद्भुत आस्था वाली इस मंदिर की जीर्णोद्धार की भी जरूरत हैं.