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भाई द्वारिको सुन्दरानी के निधन पर बोलीं बाराचट्टी विधायक ज्योति मांझी - 'मैने अपना पिता खो दिया'

गया के दूसरे बुद्ध कहे जाने वाले समाजसेवी भाई द्वारिको सुन्दरानी के निधन से बाराचट्टी की विधायक ज्योती मांझी काफी आहत हैं. मीडिया से बातें करते हुए विधायक ने कहा कि उन्होंने अपना पिता खो दिया है.

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Published : Apr 2, 2021, 2:10 PM IST

barachhati
ज्योति मांझी

गया: गया के 'दूसरे बुद्ध' कहे जानेवाले गांधी वादी समाजसेवी भाई द्वारिको सुन्दरानी का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया. कहा जाता है कि 99 साल के उम्र में भी उन्होंने समाजसेवा की अपनी भावना को कभी त्यागा नहीं. 1984 में उन्होंने मुफ्त मोतियाबिंद इलाज की व्यवस्था करवाई थी जो आजतक चल रही है.

साथ ही वे विनोबा भावे के संग भूमि दान आंदोलन में भी सक्रिय रहे थे. उनकी समाजसेवा का जीता जागता उदहारण हैं बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र की विधायक ज्योति मांझी.

वे सुन्दरानी के आश्रम में तब आईं थी जब उनकी उम्र पांच साल की थी. पांच साल की उम्र से उनकी शिक्षा से लेकर शादी तक सबकुछ भाई सुन्दरानी ने करवाई.

इसे भी पढ़े: पूरे राजकीय सम्मान के संग किया गया 'दूसरे बुद्ध' द्वारिको सुन्दरानी का अंतिम संस्कार

देखें, क्या कहती हैं विधायक

बाराचट्टी विधायक ज्योति मांझी ने बताया कैसे थे सुंदरानी
बाराचट्टी विधायक ज्योति मांझी उनके अंतिम संस्कार में पहुंची थी. इस दौरान उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि कल उनका पूरा परिवार द्वारिको सुन्दरानी के अंतिम संस्कार में शामिल हुआ था.

अपनी जिंदगी में सुन्दरानी के योगदान के बारे में कहा कि मेरा जन्म भूमिहीन मजदूर के घर मे हुआ था. पांच साल की उम्र में द्वारिको सुन्दरानी के भाई ने मुझे गोद ले लिया और मुझे आश्रम में ले आये.

'मेरे पास उस वक़्त एक फटी हुई फ्रॉक थी. द्वारिको सुन्दरानी के आश्रम में अनौपचारिक शिक्षा दी गई. बाद में हमने डिग्री भी हासिल की. द्वारिको सुन्दरानी ने मेरी शादी एक पिता की तरह समन्वय आश्रम में करवाई. दहेज में उन्होंने एक सिलाई मशीन दी थी, उसी सिलाई मशीन से मेरे जीवन मे बदलाव आया. मेरा जीवन-यापन उसी से चल रहा था. जो मैंने द्वारिको सुन्दरानी से सीखा अपने समाज तक पहुंचाती'.- ज्योती मांझी, बाराचट्टी विधायक.

वे बताती हैं कि इसी बीच उन्होंने कृषि की ट्रेनिंग ली और विदेश तक गईं. उसके बाद नीतीश कुमार ने उन्हें बुलाकर टिकट दिया. मांझी कहती हैं कि मैं पहली बार साल 2010 में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थी. जीरो से हीरो बनाने वाले थे भाई द्वारिको सुन्दरानी. उनके जाने से मैंने अपना पिता खो दिया है. मेरे साथ हजारों लोगों ने अपना पिता खो दिया.

बुधवार को भाई सुंदरानी ने ली थी अंतिम सांस
आपको बताते चलें कि गरीबों और असहायों के लिए काम करने वाले, गांधीवादी विचारक, जमनालाल पुरस्कार से सम्मानित द्वारिको भाई सुंदरानी लगभग 99 के थे. बुधवार भोर में समन्वय आश्रम में ही उन्होंने अंतिम सांस ली.

पिछले कुछ दिनों से पटना के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था.बताया जाता है कि मंगलवार की रात में वे बोधगया समन्वय आश्रम पहुंचे थे. भाई सुन्दरानी के निधन पर गया के जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने कहा कि उनके जाने से एक युग का अंत हो गया.

गया: गया के 'दूसरे बुद्ध' कहे जानेवाले गांधी वादी समाजसेवी भाई द्वारिको सुन्दरानी का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया. कहा जाता है कि 99 साल के उम्र में भी उन्होंने समाजसेवा की अपनी भावना को कभी त्यागा नहीं. 1984 में उन्होंने मुफ्त मोतियाबिंद इलाज की व्यवस्था करवाई थी जो आजतक चल रही है.

साथ ही वे विनोबा भावे के संग भूमि दान आंदोलन में भी सक्रिय रहे थे. उनकी समाजसेवा का जीता जागता उदहारण हैं बाराचट्टी विधानसभा क्षेत्र की विधायक ज्योति मांझी.

वे सुन्दरानी के आश्रम में तब आईं थी जब उनकी उम्र पांच साल की थी. पांच साल की उम्र से उनकी शिक्षा से लेकर शादी तक सबकुछ भाई सुन्दरानी ने करवाई.

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देखें, क्या कहती हैं विधायक

बाराचट्टी विधायक ज्योति मांझी ने बताया कैसे थे सुंदरानी
बाराचट्टी विधायक ज्योति मांझी उनके अंतिम संस्कार में पहुंची थी. इस दौरान उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि कल उनका पूरा परिवार द्वारिको सुन्दरानी के अंतिम संस्कार में शामिल हुआ था.

अपनी जिंदगी में सुन्दरानी के योगदान के बारे में कहा कि मेरा जन्म भूमिहीन मजदूर के घर मे हुआ था. पांच साल की उम्र में द्वारिको सुन्दरानी के भाई ने मुझे गोद ले लिया और मुझे आश्रम में ले आये.

'मेरे पास उस वक़्त एक फटी हुई फ्रॉक थी. द्वारिको सुन्दरानी के आश्रम में अनौपचारिक शिक्षा दी गई. बाद में हमने डिग्री भी हासिल की. द्वारिको सुन्दरानी ने मेरी शादी एक पिता की तरह समन्वय आश्रम में करवाई. दहेज में उन्होंने एक सिलाई मशीन दी थी, उसी सिलाई मशीन से मेरे जीवन मे बदलाव आया. मेरा जीवन-यापन उसी से चल रहा था. जो मैंने द्वारिको सुन्दरानी से सीखा अपने समाज तक पहुंचाती'.- ज्योती मांझी, बाराचट्टी विधायक.

वे बताती हैं कि इसी बीच उन्होंने कृषि की ट्रेनिंग ली और विदेश तक गईं. उसके बाद नीतीश कुमार ने उन्हें बुलाकर टिकट दिया. मांझी कहती हैं कि मैं पहली बार साल 2010 में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थी. जीरो से हीरो बनाने वाले थे भाई द्वारिको सुन्दरानी. उनके जाने से मैंने अपना पिता खो दिया है. मेरे साथ हजारों लोगों ने अपना पिता खो दिया.

बुधवार को भाई सुंदरानी ने ली थी अंतिम सांस
आपको बताते चलें कि गरीबों और असहायों के लिए काम करने वाले, गांधीवादी विचारक, जमनालाल पुरस्कार से सम्मानित द्वारिको भाई सुंदरानी लगभग 99 के थे. बुधवार भोर में समन्वय आश्रम में ही उन्होंने अंतिम सांस ली.

पिछले कुछ दिनों से पटना के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था.बताया जाता है कि मंगलवार की रात में वे बोधगया समन्वय आश्रम पहुंचे थे. भाई सुन्दरानी के निधन पर गया के जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने कहा कि उनके जाने से एक युग का अंत हो गया.

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