गया: हैलो-हैलो.. आवाज नहीं आ रही, कौन बोल रहे हैं, नेटवर्क प्राब्लम है. ये शब्द अक्सर गया के कई गांवों में सुनने को मिल जाते हैं. यहां के लोग इस समस्या से अक्सर परेशान होते देखे जाते हैं. वर्तमान में मोबाइल फोन पर बातचीत के जरिए कई काम निपटा लिए जाते हैं, जिससे भागदौड़ से सभी बच जाते हैं. लेकिन गया के इमामगंज प्रखंड के लुटीटाड़ और खड़ाऊ गांव (Lutitad And Khadau Villages Of Gaya) के लोगों के लिए ये सब बेमानी है. ग्रामीणों को अगर फोन पर बात करनी हो तो पेड़ या पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है, ताकि नेटवर्क मिल सके. गया जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर पूर्व सीएम जीतन राम मांझी के विधानसभा क्षेत्र के इलाके का ये हाल है.
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मोबाइल नेटवर्क नहीं मिलने से ग्रामीण परेशान : एक ओर सरकार डिजिटल इंडिया की बात करती है तो दूसरी ओर गया के कई गांव ऐसे हैं, जहां आज भी मोबाइल की घंटियां नहीं बजती हैं. अगर इमरजेंसी हो और किसी को कॉल करना हो तो ये आसान नहीं होता है. इसके लिए ग्रामीण जद्दोजहद करते हैं. पेड़ पर और पहाड़ पर चढ़कर किसी तरह एक कॉल करने की जुगत में घंटों जुटे रहते हैं. जिले के अति नक्सल प्रभावित इमामगंज प्रखंड के लुटीटाड़ (No mobile Network In Lutitad) और खड़ाऊ गांव (no mobile network in khadau) में लोगों को मोबाइल पर बात करने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है.
ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित रहे बच्चे: यहां आज भी मोबाइल का नेटवर्क नहीं आता है. वहीं डिजिटल इंडिया का सपना दिखाने वाली सरकार भी इन गांवों के लोगों से दूरी बनाए हुए है. ग्रामीणों को नेटवर्क की सबसे ज्यादा समस्या कोरोना महामारी के कारण हुई. कोरोना महामारी के कारण वर्ष 2020 मार्च महीने में हुए लॉकडाउन में सभी स्कूल-कॉलेजों को अनिश्चितकालीन समय तक के लिए बंद कर दिया गया था. जिसके बाद स्कूल व कॉलेजों के बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन करायी गई. लेकिन इन ऑनलाइन क्लासों का फायदा इस क्षेत्र के बच्चे नहीं उठा पाए, क्योंकि यहां नेटवर्क उपलब्ध नहीं था.
मुख्य सड़क का भी टोटा: इसके साथ ही इस गांव को प्रखंड मुख्यालय से जोड़ने के लिए मुख्य सड़क भी नहीं है. इमामगंज प्रखंड मुख्यालय से यहां के लोग 10 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करने के बाद इमामगंज प्रखंड से आते-जाते हैं. यहां लोगों को आजादी के बाद से आज तक सड़क नसीब नहीं हुई है. अगर यहां कोई बीमार हो जाता है तो उसे अस्पताल तक ले जाने में भारी परेशानी होती है. गंभीर रूप से बीमार मरीजों को तो जान तक गंवानी पड़ती है.
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डिजीटल इंडिया का सपना कैसे पूरा होगा : ग्रामीणों ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि कई तरह की दिक्कतें आती हैं. एंबुलेंस को नेटवर्क नहीं होने के कारण सही समय पर सूचना नहीं दे पाते हैं. वहीं, पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण सांप, बिच्छू सहित अन्य जहरीले जानवरों के काटने की घटनाएं भी ज्यादा होती है. इन घटनाओं के दौरान समय पर इलाज नहीं मिल पाता है. कोई भी हादसा होने पर इन गांव में रहने वाले लोगों को तुरंत मदद नहीं मिल पाती है. इसके अलावा झगड़ा और अन्य कोई घटना होने पर गांव में पुलिस को सूचना देना अभी संभव नहीं हो पाता है. अब तो परेशानी इतनी है कि अब जहां नेटवर्क आता है, उस जगह को लोगों ने चिन्हित कर लिया है. वहां खड़े होकर ही अब ग्रामीण अपने रिश्तेदारों से बात करते हैं, ऐसे में लोगों का जीवन खासा परेशानी भरा रहता है.
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"सबसे ज्यादा दिक्कत बीमार और गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस बुलाने में आती है. ग्रामीणों का कहना है कि अगर ऐसे हालात रहे तो डिजीटल इंडिया का सपना कैसे पूरा होगा. आने जाने के लिए रोड नहीं है. नेटवर्क की समस्या है. किसी का कॉल आने पर पेड़,पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है. नेटवर्क नहीं होने के कारण बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर सके. सरकार से हमारी मांग है कि रोड के साथ ही नेटवर्क की भी व्यवस्था की जाए." - ग्रामीण
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पहाड़ी क्षेत्र से घिरा होने के कारण दूर-दूर तक मोबाइल टॉवर नहीं मिलता है. अगर किसी को बहुत जरूरी बात करनी हो तो पहाड़ी पर जाना पड़ता है. रात के समय कोई इमरजेंसी होने पर सुबह का इंतजार करना पड़ता है. जंगल से आने जाने में पांच घंटा बर्बाद होता है. मोबाइल में बात करने में भी परेशानी होती है. पेड़ पर चढ़ना पड़ता है. किसी से बात करने के दौरान दो चार बार तो फोन कट होना आम बात है." - ग्रामीण
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