गया: विश्व धरोहर महाबोधि मंदिर बौद्ध अनुयायियों के लिए मक्का मदीना माना जाता है. लेकिन महाबोधि मंदिर हिंदुओं के लिए बड़ा अहम है. पितृपक्ष और मिनी पितृपक्ष के दौरान महाबोधि मंदिर में अनूठा नजारा देखने को मिलता है.
एक ओर बौद्ध भिक्षु बुद्धं शरणं गच्छामि का उच्चारण करते हैं. वहीं, इसी परिसर में पिंडदान के लिए कर्मकांड का मंत्र का श्लोक का उच्चारण होता है. इन दोनों तस्वीरों को देखकर लगता है कि महाबोधि मंदिर में मोक्ष और ज्ञान की धरती का संगम हो रहा है.
तीनों पिंडवेदी पर जाकर करते हैं पिंडदान
दरअसल, बोधगया में पांच पिंडवेदी हैं. मुख्यतः तीन पिंडवेदी धर्मारण्य, मन्त्यग व्यापी और सरस्वती पिंडवेदी हैं. इन तीनों पिंडवेदी पर पिंडदान करने के लिए अधिकांश पिंडदानी महाबोधि परिसर को चुनते हैं. कई लोग तीनों पिंडवेदी पर जाकर पिंडदान करते हैं. वहीं, ज्यादातर लोग तीनों पिंडवेदी का पिंडदान महाबोधि मंदिर परिसर में करते हैं. इन दिनों मिनी पितृपक्ष चल रहा है. इस दौरान देश के विभिन्न क्षेत्रों से लोग अपने पितरों के मोक्ष प्राप्ति के लिए महाबोधि मंदिर परिसर में पिंडदान कर रहे हैं.
महाबोधि मंदिर में पिंडदान अर्पित करने से पितरों को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही पिंडदान करने के बाद भगवान विष्णु अवतार में भगवान बुद्ध का दर्शन हो जाता है. महाबोधि मंदिर परिसर में यह दृश्य देख मोक्ष और ज्ञान की धरती का संगम होते दिखता है. -प्रदीप पांडेय, पिंडदानी, अयोध्या (यूपी)
वर्षों पुरानी है परंपरा
पिंडदान का कर्मकांड करवाने के लिए ब्राह्मण अरुण पाठक बताते हैं कि बोधगया में तीन पिंडवेदी पर लोग न जाकर महाबोधि मंदिर परिसर में पिंडदान करते हैं. ये परंपरा वर्षों पुरानी है. गया जी के पांच कोस क्षेत्र में पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. महाबोधि मंदिर उसी क्षेत्र में आता है. पिंडदानी यहां पिंडदान करते हैं. इस जगह पर ज्ञान और मोक्ष का संगम होते दिखता है.