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गया जी में मिनी पितृपक्ष को लेकर उमड़े श्रद्धालु, पौष अमावस्या की तिथि है महत्वपूर्ण

पितृपक्ष में, जो लोग अपने पितरों को पिंडदान करने से चूक जाते हैं. वो पौष माह में खास इसकी अमावस्या तिथि को पिंडदान कर सकते हैं. पूरी विधि विधान से पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है.

पितृपक्ष 2019
पितृपक्ष 2019
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Published : Dec 25, 2019, 5:32 AM IST

गया: मोक्ष धाम गया जी में 17 दिसंबर से 14 जनवरी तक चलने वाला पौष पितृपक्ष में देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु पिंडदान करने गया जी पहुंचे हैं. बता दें कि पौष माह की शुरूआत हो चुकी है. वहीं, पौष अमावस्या 26 दिसंबर को है. धार्मिक रूप से यह तिथि बेहद शुभ मानी जाती है. पौष अमावस्या को पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध करने का विधान है. वहीं पितृ दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए इस दिन उपवास रखा जाता है. इसके चलते गया जी में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी हुई है.

पौष पितृपक्ष को बोलचाल के भाषा मे मिनी पितृपक्ष कहा जाता है. मिनी पितृपक्ष को लेकर ईटीवी ने तीर्थ पुरोहित से जानकारी ली. उन्होंने ने बताया खरमास माह में पितरों का कर्म यानी पिंडदान किया जाता है. पूरे साल में तीन तरह का पिंडदान होता है. ये मिनी पितृपक्ष है. इसमें देश के सभी राज्यों से पिंडदान करने पिंडदानी गया जी आते हैं.

पिंडदान करती महिलाएं
पिंडदान करती महिलाएं
  • गया जी में महाराष्ट्र, दक्षिण राज्य, मध्यप्रदेश से अधिक श्रद्धालु आते हैं. ये दो उद्देश्यों से गया पहुंचते हैं. पहला, गया जी मे पिंडदान हो जाएगा. दूसरा, गंगा सागर में स्नान का उद्देश्य रहता है.

पौष अमावस्या को ऐसे करें पिंडदान
पितृपक्ष को जो लोग अपने पितरों को पिंडदान करने से चूक जाते हैं. वो पौष माह को, खासकर इस माह की अमावस्या तिथि को पिंडदान कर सकते हैं. पूरी विधि विधान से पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है.

पिंड दान करते श्रद्धालु
पिंडदान करते श्रद्धालु
  1. पौष अमावस्या के दिन फल्गु नदी में स्नान करें.
  2. सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद पितरों का तर्पण करें.
  3. तांबे के पात्र में शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल रंग के पुष्प डालकर सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए.
  4. पितरों की आत्मा की शांति के लिए उपवास करें और किसी गरीब व्यक्ति को दान-दक्षिणा दें.
  5. पितृ दोष से पीड़ित लोगों को पौष अमावस्या का उपवास कर पितरों का तर्पण अवश्य करना चाहिए.

साफ-सफाई और सुरक्षा व्यवस्था में कोताही
वहीं, गया जी मे पिंडदान करने आये पिंडदानी ने बताया कि पूरे परिवार के साथ तीन पीढ़ियों के पूर्वजो का पिंडदान करने मध्यप्रदेश से आया है. यहां सबसे बड़ी दिक्कत आवारा पशुओं से है. पिंडदान के सामग्री खाने के उद्देश्य से आते हैं. लेकिन उससे हमें डर लगता है कि कहीं ये हमपर हमला न कर दें. वहीं, साफ सफाई को लेकर श्रद्धालु नाखुश दिखाई दिए.

गया जी से सुजीत कुमार पांडेय की रिपोर्ट

ईटीवी भारत ने किया सरोकार
ईटीवी भारत ने इस बाबत पिंडदानियों की समस्याओं को लेकर गया नगर निगम आयुक्त सावन कुमार से सवाल किया. तो उन्होंने बताया मिनी पितृपक्ष के दौरान आने वाले श्रद्धालुओं को बेसिक, सभी सुविधाएं उपलब्ध करायी जाएंगी. आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए नगर निगम को सूचित किया जाएगा. विष्णुपद मंदिर और फल्गू नदी के इर्द-गिर्द घूमने वाले आवारा पशुओं को पकड़ा जाएगा. इसके लिए पहले से ही कर्मचारियों की नियुक्ति है.

पितृपक्ष मेला राजकीय मेला घोषित है. मेला में सारी सुविधाएं दी जाती हैं. लेकिन पौष माह के पितृपक्ष में सरकार और नगर प्रशासन की तरफ से कोई सुविधा नहीं दी जाती है. देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले पिंडदानी असुरक्षित और सुविधा के अभाव में ही कर्मकांड कर चले जाते हैं.

गया: मोक्ष धाम गया जी में 17 दिसंबर से 14 जनवरी तक चलने वाला पौष पितृपक्ष में देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु पिंडदान करने गया जी पहुंचे हैं. बता दें कि पौष माह की शुरूआत हो चुकी है. वहीं, पौष अमावस्या 26 दिसंबर को है. धार्मिक रूप से यह तिथि बेहद शुभ मानी जाती है. पौष अमावस्या को पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध करने का विधान है. वहीं पितृ दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए इस दिन उपवास रखा जाता है. इसके चलते गया जी में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी हुई है.

पौष पितृपक्ष को बोलचाल के भाषा मे मिनी पितृपक्ष कहा जाता है. मिनी पितृपक्ष को लेकर ईटीवी ने तीर्थ पुरोहित से जानकारी ली. उन्होंने ने बताया खरमास माह में पितरों का कर्म यानी पिंडदान किया जाता है. पूरे साल में तीन तरह का पिंडदान होता है. ये मिनी पितृपक्ष है. इसमें देश के सभी राज्यों से पिंडदान करने पिंडदानी गया जी आते हैं.

पिंडदान करती महिलाएं
पिंडदान करती महिलाएं
  • गया जी में महाराष्ट्र, दक्षिण राज्य, मध्यप्रदेश से अधिक श्रद्धालु आते हैं. ये दो उद्देश्यों से गया पहुंचते हैं. पहला, गया जी मे पिंडदान हो जाएगा. दूसरा, गंगा सागर में स्नान का उद्देश्य रहता है.

पौष अमावस्या को ऐसे करें पिंडदान
पितृपक्ष को जो लोग अपने पितरों को पिंडदान करने से चूक जाते हैं. वो पौष माह को, खासकर इस माह की अमावस्या तिथि को पिंडदान कर सकते हैं. पूरी विधि विधान से पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है.

पिंड दान करते श्रद्धालु
पिंडदान करते श्रद्धालु
  1. पौष अमावस्या के दिन फल्गु नदी में स्नान करें.
  2. सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद पितरों का तर्पण करें.
  3. तांबे के पात्र में शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल रंग के पुष्प डालकर सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए.
  4. पितरों की आत्मा की शांति के लिए उपवास करें और किसी गरीब व्यक्ति को दान-दक्षिणा दें.
  5. पितृ दोष से पीड़ित लोगों को पौष अमावस्या का उपवास कर पितरों का तर्पण अवश्य करना चाहिए.

साफ-सफाई और सुरक्षा व्यवस्था में कोताही
वहीं, गया जी मे पिंडदान करने आये पिंडदानी ने बताया कि पूरे परिवार के साथ तीन पीढ़ियों के पूर्वजो का पिंडदान करने मध्यप्रदेश से आया है. यहां सबसे बड़ी दिक्कत आवारा पशुओं से है. पिंडदान के सामग्री खाने के उद्देश्य से आते हैं. लेकिन उससे हमें डर लगता है कि कहीं ये हमपर हमला न कर दें. वहीं, साफ सफाई को लेकर श्रद्धालु नाखुश दिखाई दिए.

गया जी से सुजीत कुमार पांडेय की रिपोर्ट

ईटीवी भारत ने किया सरोकार
ईटीवी भारत ने इस बाबत पिंडदानियों की समस्याओं को लेकर गया नगर निगम आयुक्त सावन कुमार से सवाल किया. तो उन्होंने बताया मिनी पितृपक्ष के दौरान आने वाले श्रद्धालुओं को बेसिक, सभी सुविधाएं उपलब्ध करायी जाएंगी. आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए नगर निगम को सूचित किया जाएगा. विष्णुपद मंदिर और फल्गू नदी के इर्द-गिर्द घूमने वाले आवारा पशुओं को पकड़ा जाएगा. इसके लिए पहले से ही कर्मचारियों की नियुक्ति है.

पितृपक्ष मेला राजकीय मेला घोषित है. मेला में सारी सुविधाएं दी जाती हैं. लेकिन पौष माह के पितृपक्ष में सरकार और नगर प्रशासन की तरफ से कोई सुविधा नहीं दी जाती है. देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले पिंडदानी असुरक्षित और सुविधा के अभाव में ही कर्मकांड कर चले जाते हैं.

Intro:मोक्ष धाम गया जी मे 17 दिसंबर से 14 जनवरी तक चलनेवाला पौष पितृपक्ष में देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालू पिंडदान करने आने लगे,लेकिन नगर निगम ने श्रद्धालुओं के सुविधाओं लिए कोई व्यवस्था नही की।


Body:गया जी में इनदिनों मिनी पितृपक्ष चल रहा है , ये पितृपक्ष 17 दिसंबर से 14 जनवरी तक चलता है। पौष मास में पितृपक्ष यानी खरमास काल पितरों के आदि माना जाता है। खरमास के पाक्षिक काल मे श्रद्धालु देश के विभिन्न हिस्सों से आते हैं लेकिन इन श्रद्धालुओं के लिए जिला प्रशासन और नगर निगम ने कोई सुविधा नही दिया है। श्रद्धालु सुविधाओं के अभाव में पिंडदान कर रहे है।

vo:1 पौष पितृपक्ष को बोलचाल के भाषा मे मिनी पितृपक्ष कहा जाता है मिनी पितृपक्ष के लेकर ईटीवी ने तीर्थपुरोहित से जानकारी लिया , उन्होंने ने बताया खरमास माह में पितरों का कर्म यानी पिंडदान किया जाता है। पूरे साल में तीन तरह का पिंडदान होता हैं ये मिनी पितृपक्ष है ,इस पक्ष में देश के सभी राज्यों से पिंडदान करने पिंडदानी आते हैं लेकिन महाराष्ट्र, दक्षिण राज्य,मध्यप्रदेश से अधिक श्रदालु आते हैं। ये लोग दो उद्देश्य से आते हैं एक साथ मे गया जी मे पिंडदान विधि भी हो जाएगा दूसरा गंगा सागर में स्नान हो जाएगा।

बाइट-विनोद मिश्रा, तीर्थ पुरोहित

vo:2 वही गया जी मे पिंडदान करने आये पिंडदानी ने मिनी पितृपक्ष के व्यवस्था के बारे में बताया पूरे परिवार से 50 लोग तीन पीढ़ियों के पूर्वजो का पिंडदान करने मध्यप्रदेश से आया है। यहाँ सबसे बड़ी दिक्कत आवारा पशुओं से है। पिंडदान के सामग्री खाने के उद्देश्य से आते हैं पर हमलोग को डर लगा रहता है दूसरा यहां जगह के महत्व के हिसाब से साफ सफाई का व्यवस्था नही है।

बाइट- किशोर शर्मा, पिंडदानी (मध्यप्रदेश)

vo:3 लिहाजा पिंडदानीयो के समस्याओं को लेकर गया नगर निगम के आयुक्त से सवाल किया गया तो उन्होंने बताया मिनी पितृपक्ष के दौरान आने वाले श्रद्धालुओं को बेसिक सभी सुविधाएं उपलब्ध कराया जाएगा। और आवारा पशुओं को पकड़ने वाला मशीन नगर निगम ने बोधगया नगर पंचायत को दे दिया है उनसे मांगकर विष्णुपद मंदिर और फल्गू नदी के इर्दगिर्द घूमनेवाला आवारा पशुओं को पकड़कर गौशाला भेज दिया जाएगा इसके लिए कर्मचारी की नियुक्ति की गई है।

बाइट- सावन कुमार, नगर आयुक्त, नगर निगम गया


Conclusion:आपको बता दे पितृपक्ष मेला राजकीय मेला घोषित है उस मेला में सारी सुविधाएं दी जाती है। लेकिन पौष माह में पितृपक्ष में सरकार और नगर प्रशासन के तरफ से कोई सुविधा नही दी जाती है। देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले पिंडदानी असुरक्षित और सुविधा के अभाव में कर्मकांड करके चले जाते हैं। सरकार की इस उदासनिता से अतिथि देवो भव वाक्य को भी शर्मिंदा कर देता है।
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