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'मोक्ष नगरी' पर छाया अस्तित्व का संकट! प्रथा जारी रखने के लिए शव की जगह जलाया गया पुतला - पुआल से बना पुलता

एक पिंड और एक मुंड के पीछे की कथा यह है कि ब्रह्मा जी ने यज्ञ करने के लिए गयासुर का शरीर मांगा. गयासुर ने सहर्ष अपना शरीर दे दिया. जिसके बाद देवता उसके शरीर पर यज्ञ करने लगे और इसी दौरान वे गयासुर की छाती पर धर्मशीला रखकर उसे मारना चाहते थे.

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Published : May 21, 2020, 1:46 PM IST

गयाः देशभर में जारी लॉकडाउन का असर सनातन धर्म से होती आ रही प्रथाओं पर भी पड़ रहा है. मोक्षनगरी गया में फल्गू नदी के तट पर स्थित श्मशान घाट में एक पिंड और एक मुंड पड़ने की प्रथा है. जो लॉकडाउन की वजह से प्रभावित हो रही थी. इसे देखते हुए घाट के पंडा और डोमराजा ने प्रथा को जिंदा रखने के लिए शव के बदले पुतला जलाया.

एक पिंड और एक मुंड
भगवान विष्णु और गयासुर की कथाओं के अनुसार प्रथा है कि विष्णुपद में एक पिंड जरूर पड़ना चाहिए और मंदिर के बगल में स्थित श्मशान घाट में एक मुंड जरूर अंतिम संस्कार के लिये आना चाहिए. लॉकडाउन के कारण बुधवार को श्मशान घाट पर एक भी शव नहीं आया, तो संध्या बेला में पंडा समुदाय और डोमराजा ने मिलकर शव के बदले में पुतला जलाकर प्रथा को जिंदा रखा.

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मंदिर

जलाया गया पुतला
डोमराजा हीरा ने बताया कि लॉकडाउन में एक पिंड तो पंडा समुदाय दे रहे हैं. लेकिन श्मशान घाट पर बुधवार को शव नहीं आने से एक पुतला जलाया गया. उन्होंने बताया कि यहां ऐसा पहली बार हुआ है.

gaya
पंडित

पुआल से बना पुतला
वहीं, श्मशान घाट के पंडित ने बताया मोक्षधाम की प्रथा के अनुसार सारा कार्यक्रम किया गया. पुआल से आदमी के साइज का एक पुतला बनाकर उसे अर्थी पर रखा गया. जिसके बाद चिता पर लिटाकर उसे मुखाग्नि दी गई.

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विष्णु मसान

गयासुर की कथा
मान्यताओं के अनुसार एक पिंड और एक मुंड के पीछे की कथा ये है कि ब्रह्मा जी ने यज्ञ करने के लिए गयासुर का शरीर मांगा. गयासुर ने सहर्ष अपना शरीर दे दिया. जिसके बाद देवता उसके शरीर पर यज्ञ करने लगे और इसी दौरान वो गयासुर की छाती पर धर्मशीला रखकर उसे मारना चाहते थे, लेकिन वो नहीं मरा. तब भगवान विष्णु ने प्रकट होकर उस शिला को दबाया और गयासुर से अंतिम इच्छा पूछी.

देखें रिपोर्ट

प्रथा की शुरुआत
गयासुर ने कहा कि मैं इस शिला में समाहित हो जाऊं और आपका चरण इस शिला पर विराजमान रहे. जो इस शिला पर आकर पिंडदान करेगा, उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी. साथ ही उसने हर रोज एक पिंड और एक मुंड देने की बात कही. उसने कहा कि ऐसा नहीं होने पर नगर का अस्तित्व मिट जाएगा. तब से विष्णुपद में पिंडदान और विष्णु मसान में मुंड यानी एक शवदाह किया जाने लगा.

गयाः देशभर में जारी लॉकडाउन का असर सनातन धर्म से होती आ रही प्रथाओं पर भी पड़ रहा है. मोक्षनगरी गया में फल्गू नदी के तट पर स्थित श्मशान घाट में एक पिंड और एक मुंड पड़ने की प्रथा है. जो लॉकडाउन की वजह से प्रभावित हो रही थी. इसे देखते हुए घाट के पंडा और डोमराजा ने प्रथा को जिंदा रखने के लिए शव के बदले पुतला जलाया.

एक पिंड और एक मुंड
भगवान विष्णु और गयासुर की कथाओं के अनुसार प्रथा है कि विष्णुपद में एक पिंड जरूर पड़ना चाहिए और मंदिर के बगल में स्थित श्मशान घाट में एक मुंड जरूर अंतिम संस्कार के लिये आना चाहिए. लॉकडाउन के कारण बुधवार को श्मशान घाट पर एक भी शव नहीं आया, तो संध्या बेला में पंडा समुदाय और डोमराजा ने मिलकर शव के बदले में पुतला जलाकर प्रथा को जिंदा रखा.

Gaya
मंदिर

जलाया गया पुतला
डोमराजा हीरा ने बताया कि लॉकडाउन में एक पिंड तो पंडा समुदाय दे रहे हैं. लेकिन श्मशान घाट पर बुधवार को शव नहीं आने से एक पुतला जलाया गया. उन्होंने बताया कि यहां ऐसा पहली बार हुआ है.

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पंडित

पुआल से बना पुतला
वहीं, श्मशान घाट के पंडित ने बताया मोक्षधाम की प्रथा के अनुसार सारा कार्यक्रम किया गया. पुआल से आदमी के साइज का एक पुतला बनाकर उसे अर्थी पर रखा गया. जिसके बाद चिता पर लिटाकर उसे मुखाग्नि दी गई.

Gaya
विष्णु मसान

गयासुर की कथा
मान्यताओं के अनुसार एक पिंड और एक मुंड के पीछे की कथा ये है कि ब्रह्मा जी ने यज्ञ करने के लिए गयासुर का शरीर मांगा. गयासुर ने सहर्ष अपना शरीर दे दिया. जिसके बाद देवता उसके शरीर पर यज्ञ करने लगे और इसी दौरान वो गयासुर की छाती पर धर्मशीला रखकर उसे मारना चाहते थे, लेकिन वो नहीं मरा. तब भगवान विष्णु ने प्रकट होकर उस शिला को दबाया और गयासुर से अंतिम इच्छा पूछी.

देखें रिपोर्ट

प्रथा की शुरुआत
गयासुर ने कहा कि मैं इस शिला में समाहित हो जाऊं और आपका चरण इस शिला पर विराजमान रहे. जो इस शिला पर आकर पिंडदान करेगा, उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी. साथ ही उसने हर रोज एक पिंड और एक मुंड देने की बात कही. उसने कहा कि ऐसा नहीं होने पर नगर का अस्तित्व मिट जाएगा. तब से विष्णुपद में पिंडदान और विष्णु मसान में मुंड यानी एक शवदाह किया जाने लगा.

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