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इस अस्पताल में सुविधा के लिए सालों से तरस रहे कुष्ठ रोगी, शिकायत करने पर निकाल देने की मिलती है धमकी

अंग्रेजों के समय बना ये अस्पताल 1956 से बदहाली का दंश झेल रहा है. मगध प्रमंडल का एकमात्र गौतम बुद्ध कुष्ठ आश्रम सह अस्पताल काफी जर्जर हो चुका है. यहां के मरीज कहते हैं कि इसके खिलाफ कुछ बोलने पर नाम काटने की धमकी दी जाती है. इस अस्पताल में वो तिल-तिलकर मर रहे हैं.

जर्जर अस्पताल
जर्जर अस्पताल
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Published : Jan 26, 2021, 1:45 PM IST

गयाः सन् 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध के समय 12 एकड़ में अंग्रजों ने कुष्ट रोगियों के रहने और इलाज के लिए एक अस्पताल बनवाया था. मकस्द था समाज से कटे कुष्ठ रोगियों को बेहतर जिंदगी देना. लेकिन एडवर्ड द सेवेंथ मेमोरियल के नाम पर बने इस अस्पताल को देख आप सिहर उठेंगे. मरीजों की हालत देखकर सख्त दिल इंसान की आखों में भी आंसू भर जाएंगे.

गौतम बुद्ध कुष्ठ आश्रम गया को छोटकी नवादा के पास प्रथम विश्वयुद्ध के समय एडवर्ड द सेवेंथ मेमोरियल के नाम पर लेपर एसाइलम के नाम बनाया गया था. अंग्रेजों के समय मे इस अस्पताल में 300 के करीब मरीजों के रहने की क्षमता थी. इस अस्पताल में अंग्रेजों के समय मे सारी सुविधाएं थी. 1956 में जब बिहार सरकार की अधीन यह अस्पताल आया तो इसकी दुर्दशा हो गई.

बेहाल मरीज
बेहाल मरीज

1956 से ये अस्पताल बदहाली का दंश झेल रहा है. मगध प्रमंडल का एकमात्र गौतम बुद्ध कुष्ठ आश्रम सह अस्पताल काफी जर्जर है. शाम होते ही यह अस्पताल भूत बंगला में तब्दील हो जाता है. अस्पताल के भवन में लगे खिड़की में लोहे के सरिया तक नहीं है. अंग्रेजों के समय इसकी क्षमता 170 बेड की थी और अभी यह सिर्फ 50 बेड का अस्पताल है. जहां 36 मरीज इलाजरत हैं. अभी 33 पुरूष और 3 महिला मरीज रह रहीं हैं. इस अस्पताल में 13 वार्ड भवन है लेकिन सारा भवन जर्जर हालत में है. कुष्ठ मरीजों के लिए एक शौचालय तक नहीं है.

अस्पताल में बिखरे और टूटे पड़े सामान
अस्पताल में बिखरे और टूटे पड़े सामान

अस्पताल में भर्ती एक महिला बताती हैं- शरीर में कुष्ठ रोग हुआ तो घर के लोगों ने निकाल दिया. यहां वर्षों से रह रहे हैं लेकिन सुविधा के नाम पर सिर्फ दो जून की रोटी मिलती है, बाकी सब खुद से ही करना पड़ता है.

अस्पताल के मैदान में बैठा मरीज
अस्पताल के मैदान में बैठा मरीज

'मैं तो भीख मांगकर अपना इलाज करवांती हूं. अपने झोपड़ीनुमा घर में जाकर रात गुजारती हूं. इस अस्पताल में पानी पीने का बहुत दिक्कत है वर्षों पुरानी कुएं से गन्दा पानी पीना पड़ता है'- जानकी देवी, मरीज

अस्पताल का  कुआं
अस्पताल का कुआं

अस्पताल में इलाजरत मरीजों ने बताया कि आश्रम के सभी रूम की खिड़की टूटी हुई है. हमलोग एक पर्दा डालकर रहते है, यहां चोरों का आतंक भी बहुत है.

'यहां बस खाना मिलता है. एक मैदान में रहने के लिए आश्रय मिला है. इसके खिलाफ कुछ बोलो तो नाम काट देते हैं. कई मरीजों का नाम इसलिए काट दिया गया क्योंकि उन्होंने शिकायत किया था'- भगवती प्रसाद,मरीज

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

वहीं, इस सिलसिले में गया के सिविल सर्जन ने अस्पताल की व्यवस्था को आल इज वेल बताया. उन्होंने कहा अस्पताल का निरीक्षण करने मैं खुद गया था. लोगो को कंबल बांटे थे. खाने की समस्या थी. उससे तुरंत आदेश देकर खाने की गुणवत्ता में सुधार करवाया.

'अस्पताल का सभी भवन जर्जर है, रहने लायक नहीं है. हमलोग प्रयास कर रहें है कि इतने बड़े कैम्प्स में कहीं बहुमंजिला इमारत बन जाये जिसमें मरीजों को सुविधा मिले'- डॉ.के.के.रॉय, सिविल सर्जन,गया

गौरतलब है कि इस अस्पताल में जिन मरीजो की मौत होती है. उसका अंतिम संस्कार भी अस्पताल करता है. क्योंकि घर के लोग इस रोग के चपेट में आने के बाद पीड़ितों को घर से बाहर निकाल देते हैं. यहां के मरीजों का कहना है कि इस अस्पताल में वो तिल-तिलकर मर रहे हैं. लेकिन सालों से इनका दर्द सुनने वाला कोई नहीं है. वहीं, सिविल सर्जन डॉ.के.के.रॉय का कहना है कि मरीजों का पूरा ख्याल रखा जा रहा है.

गयाः सन् 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध के समय 12 एकड़ में अंग्रजों ने कुष्ट रोगियों के रहने और इलाज के लिए एक अस्पताल बनवाया था. मकस्द था समाज से कटे कुष्ठ रोगियों को बेहतर जिंदगी देना. लेकिन एडवर्ड द सेवेंथ मेमोरियल के नाम पर बने इस अस्पताल को देख आप सिहर उठेंगे. मरीजों की हालत देखकर सख्त दिल इंसान की आखों में भी आंसू भर जाएंगे.

गौतम बुद्ध कुष्ठ आश्रम गया को छोटकी नवादा के पास प्रथम विश्वयुद्ध के समय एडवर्ड द सेवेंथ मेमोरियल के नाम पर लेपर एसाइलम के नाम बनाया गया था. अंग्रेजों के समय मे इस अस्पताल में 300 के करीब मरीजों के रहने की क्षमता थी. इस अस्पताल में अंग्रेजों के समय मे सारी सुविधाएं थी. 1956 में जब बिहार सरकार की अधीन यह अस्पताल आया तो इसकी दुर्दशा हो गई.

बेहाल मरीज
बेहाल मरीज

1956 से ये अस्पताल बदहाली का दंश झेल रहा है. मगध प्रमंडल का एकमात्र गौतम बुद्ध कुष्ठ आश्रम सह अस्पताल काफी जर्जर है. शाम होते ही यह अस्पताल भूत बंगला में तब्दील हो जाता है. अस्पताल के भवन में लगे खिड़की में लोहे के सरिया तक नहीं है. अंग्रेजों के समय इसकी क्षमता 170 बेड की थी और अभी यह सिर्फ 50 बेड का अस्पताल है. जहां 36 मरीज इलाजरत हैं. अभी 33 पुरूष और 3 महिला मरीज रह रहीं हैं. इस अस्पताल में 13 वार्ड भवन है लेकिन सारा भवन जर्जर हालत में है. कुष्ठ मरीजों के लिए एक शौचालय तक नहीं है.

अस्पताल में बिखरे और टूटे पड़े सामान
अस्पताल में बिखरे और टूटे पड़े सामान

अस्पताल में भर्ती एक महिला बताती हैं- शरीर में कुष्ठ रोग हुआ तो घर के लोगों ने निकाल दिया. यहां वर्षों से रह रहे हैं लेकिन सुविधा के नाम पर सिर्फ दो जून की रोटी मिलती है, बाकी सब खुद से ही करना पड़ता है.

अस्पताल के मैदान में बैठा मरीज
अस्पताल के मैदान में बैठा मरीज

'मैं तो भीख मांगकर अपना इलाज करवांती हूं. अपने झोपड़ीनुमा घर में जाकर रात गुजारती हूं. इस अस्पताल में पानी पीने का बहुत दिक्कत है वर्षों पुरानी कुएं से गन्दा पानी पीना पड़ता है'- जानकी देवी, मरीज

अस्पताल का  कुआं
अस्पताल का कुआं

अस्पताल में इलाजरत मरीजों ने बताया कि आश्रम के सभी रूम की खिड़की टूटी हुई है. हमलोग एक पर्दा डालकर रहते है, यहां चोरों का आतंक भी बहुत है.

'यहां बस खाना मिलता है. एक मैदान में रहने के लिए आश्रय मिला है. इसके खिलाफ कुछ बोलो तो नाम काट देते हैं. कई मरीजों का नाम इसलिए काट दिया गया क्योंकि उन्होंने शिकायत किया था'- भगवती प्रसाद,मरीज

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

वहीं, इस सिलसिले में गया के सिविल सर्जन ने अस्पताल की व्यवस्था को आल इज वेल बताया. उन्होंने कहा अस्पताल का निरीक्षण करने मैं खुद गया था. लोगो को कंबल बांटे थे. खाने की समस्या थी. उससे तुरंत आदेश देकर खाने की गुणवत्ता में सुधार करवाया.

'अस्पताल का सभी भवन जर्जर है, रहने लायक नहीं है. हमलोग प्रयास कर रहें है कि इतने बड़े कैम्प्स में कहीं बहुमंजिला इमारत बन जाये जिसमें मरीजों को सुविधा मिले'- डॉ.के.के.रॉय, सिविल सर्जन,गया

गौरतलब है कि इस अस्पताल में जिन मरीजो की मौत होती है. उसका अंतिम संस्कार भी अस्पताल करता है. क्योंकि घर के लोग इस रोग के चपेट में आने के बाद पीड़ितों को घर से बाहर निकाल देते हैं. यहां के मरीजों का कहना है कि इस अस्पताल में वो तिल-तिलकर मर रहे हैं. लेकिन सालों से इनका दर्द सुनने वाला कोई नहीं है. वहीं, सिविल सर्जन डॉ.के.के.रॉय का कहना है कि मरीजों का पूरा ख्याल रखा जा रहा है.

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